पशुओं में जोहनीजरोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) के कारण, लक्षण एवं नियंत्रण

5
(101)

जोहनीज रोग भेड़, बकरियों एवं गोपशुओं मैं माइकोबैक्टेरियम पैराट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु से होने वाला एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है। यह रोग भारत के लगभग हर प्रदेश में पाया जाता है। यह जीवाणु मनुष्य में क्रॉनस बीमारी से भी संबंधित पाया गया है। पशुपालकों को इस रोग से काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। इस जीवाणु का संक्रमण नवजात बच्चों में संक्रमित दूध,  चारा एवं पानी के माध्यम से हो सकता है। किंतु काफी लंबे अंतराल के बाद वयस्क पशु जैसे भेड़ बकरियां में 1 साल के बाद तथा गाय भैंस में 2 से 3 साल बाद में ही रोग के लक्षण पता चलते हैं। यह एक शरीर गलाने वाला रोग है। अतः पशु कब संक्रमित होता है वास्तव में पता ही नहीं चलता।

जीवाणु का संक्रमण एवं संचरण एक प्रजाति के पशु से दूसरे प्रजाति के पशु में हो सकता है। बाहरी वातावरण में जीवाणु गोबर की खाद में 9 से 12 महीनों तक जीवित रहता है। डेयरी फार्म के एक बार संक्रमित होने के बाद बीमारी से मुक्ति पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

रोग के लक्षण

जॉहनीज रोग के लक्षण विशिष्ट नहीं होते हैं। उस्मायन काल के दौरान पशुओं में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। पशुओं में धीरे धीरे शारीरिक भार का कम होना, दुर्बलता, मांस पेशियों मे क्षरण एवं अतिसार जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। प्रारंभ में अतिसारर रुक रुक कर होता है और बाद में अतिसार तीव्र रूप धारण कर लेता है तथा मल अत्यंत पतला बदबूदार हो जाता है और उसमें म्यूकस के लोथड़े तथा हवा के बुलबुले आने लगते हैं। प्यास बढ़ जाती है और सब मैंकजलरी एडिमा उत्पन्न हो जाता है। भेड़ों एवं बकरियों में गोवंश पशु जैसा अतिसार तो नहीं होता है लेकिन मैगनी के साथ गाढी लेई  जैसा मल विसर्जित होने लगता है। रोगी पशु की मृत्यु अवश्यंभावी है।

रोग निदान

रोग ग्रसित पशुओं में लक्षण के आधार पर रोग के होने का आभास किया जा सकता है जिसमें लंबे समय का अतिसार पशु के स्वास्थ्य की गंभीर हालत इत्यादि। प्रभावित पशु अपने मल में भी अधिक संख्या में रोग के जीवाणु भी विसर्जित करता है जिसे आलेप बनाकर देखा जा सकता है। शव  परीक्षण में आंत की स्लेष्मा की खुरचन से बनाई गई पट्टिका को जील नीलसन विधि से रंग कर अम्ल सह जीवाणु को देखकर रोग की पुष्टि की जाती है। इसके अतिरिक्त एगार जेल प्रतिरक्षा विसरण  एवं एलाईसा परीक्षणों से भी रोग का निदान किया जा सकता है।

उपचार एवं रोग नियंत्रण

  1. जोहनीज रोग का उपचार अप्रभावी होता है तथा आर्थिक दृष्टि से व्यवहारिक नहीं है। हर रोग ग्रसित पशु की शीघ्र् पहचान एवं पुष्टीय निदान कर शेष पशुओं से अलग करना ही रोग नियंत्रण एवं बचाव का सबसे उत्तम तरीका है।
  2. रोग से प्रभावित भेड़ों एवं बकरियों का वध कर देना चाहिए तथा रोग ग्रसित गो पशुओं को अलग कर दें या फिर गोसदन भेज दें।
  3. एक बार झुंड में रोग स्थापित होने के बाद इससे मुक्ति मिलना कठिन होता है। अतः नए पशुओं को झुंड में शामिल करने से पूर्व कम से कम जोहनीज खाल एवं एलाईसा परीक्षण अवश्य करवाएं।
  4. वर्ष में सभी पशुओं का कम से कम 2 बार परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए।
  5. दूषित चारागाह में पशुओं को चराने ना भेजें।
  6. नवजात बच्चों को वयस्क पशुओं से दूर अलग बाड़े में रखें।
  7. गौशालाओं एवं बाडों की सफाई रसायनिक औषधियों जैसे सोडियम आर्थो फिनाइल फीनेट 1‌‌ अनुपात 200 से करने से जोहनी रोग के जीवाणु को नष्ट करने में मदद मिलती है।

संदर्भ

  1. वेटरनरी क्लिनिकल मेडिसिन लेखक डॉ अमरेंद्र चक्रवर्ती
  2. मरकस वेटरनरी मैनुअल

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 5 ⭐ (101 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*