पशुओं के प्रजनन को प्रभावित करने वाले मुख्य संक्रामक कारण जीवाणु, विषाणु, प्रोटोजोआ एवं कवक जनित हो सकते हैं।
जीवाणु जनित कारण निम्नांकित हो सकते हैं:
- ब्रूसेलोसिस अर्थात संक्रामक गर्भपात
- कैंपाइलोबैक्टीरियोसिस
- छयरोग अर्थात ट्यूबरक्लोसिस
- लेप्टोस्पायरोसिस
- लिस्टेरियोसिस
उपरोक्त जीवाणु जनित रोग पशुओं में गर्भपात के मुख्य कारक हैं तथा सामान्यता गर्भपात के पश्चात अपरा अर्थात जेर नहीं गिरती है और फल स्वरुप गर्भाशय पेशी शोथ तथा अनु उर्वरता अथवा बंधता के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
विषाणु जनित रोगों में संक्रामक बोवाइन राइनोट्रकीआईटिस- पसचुलर वल्वोवेजाइनाइटिस के विषाणु विभिन्न रूपों में रोग उत्पन्न करते हैं तथा उक्त रोगों के कारण 15 दिन से 2 से 3 माह के बीच गर्भपात हो जाता है तथा अपरा नहीं निकलती है। गो पशुओ मे गर्भपात महामारी का संक्रमण मक्खी यां मच्छर द्वारा होता है। इस बीमारी में गर्भपात 6 से 8 माह के बीच होता है। इस समूह के जीवाणु प्रतिजैविक औषधियों के लिए संवेदनशील होते हैं। अतः इस रोग में औषधि के सेवन से तथा पशुशाला की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखने पर इस बीमारी से बचाव किया जा सकता है।
कवक जनित प्रजनन हीनता एवं गर्भपात एस्पेरजिलस तथा मयूकोरिलेस की जातियों के कारण होता है इसमें कोई मृत्यु हो जाती है।
प्रोटोजोआ जनगों मैं टराईकोमोनिएसिस प्रमुख है । यह रोग गायों को संक्रमित साॉड द्वारा नैसर्गिक प्रजनन कराने पर तथा कृत्रिम गर्भाधान केप्रमुख संक्रमित यंत्रों के प्रयोग करने से फैलती है। इसके लक्षण पूर्ण बंधता एवं गर्व काल के 2 से 4 माह की अवस्था में गर्भपात हो जाता है। इसके पश्चात मादा पशु बार-बार गर्मी पर आती है परंतु गर्भधारण नहीं हो पाता है।
गर्भपात एवं संक्रामक प्रजनन हीनता से बचाव के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उनके प्रजनन अभिलेखों का पशु चिकित्सक द्वारा सम्यक अवलोकन किया जाए। पशु चिकित्सक की सहायता से गर्भपात के कारणों का पता लगाया जाए तथा प्रभावित पशु का समुचित उपचार किया जाए। प्राकृतिक गर्भाधान से पूर्व हमेशा यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि प्रयोग में लाए जाने वाले सॉडो की नियमित जांच हो रही है। कृत्रिम गर्भाधान मैं निर्जमीकृत यंत्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा केवल विषाणु रहित वीर्य से ही कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए। संक्रमित पशुओं को प्रजनन से वंचित रखना बेहतर उपाय होता है।
ब्रूसेलोसिस द्वारा संक्रामक गर्भपात से बचाव के लिए 6 से 8 माह के मादा पशुओं में ब्रूसेल्ला अबारटस काटन स्ट्रेन -19, के जीवित प्रतिजन का टीका लगाकर बीमारी के नियंत्रण हेतु प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न की जा सकती है। डेयरी फार्म पर स्वच्छ वातावरण रखना अत्यंत आवश्यक है तथा जो भी आगंतुक संदिग्ध हो या ऐसे डेयरी फार्म से आए हो जहां गर्भपात का प्रकोप हो चुका हो उनको फार्म के अंदर नहीं आने देना चाहिए। गर्भपात हुए भ्रूण एवं अपरा अर्थात जेर को किसी गड्ढे में चूना मिलाकर गाड़ देना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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