डेयरी पशुओं में योनि की सूजन (Vaginitis) कारण, लक्षण एवं उपचार

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योनि में सूजन मुख्यतः तीन प्रकार की पाई जाती है :

1. जूविनाइल वेजाइनाइटिस

मुख्य रूप से भैंस की ओसर जो प्रीप्यूबर्टल अवस्था में जब अंडाशय के पुटक विकसित होना प्रारंभ होते हैं और स्क्वैमस एपीथिलियम का क्षरण प्रारंभ होता है। ओसर द्वारा जो शराब गिराया जाता है वह योनि सूजन अथवा गर्भाशय तो जैसा दिखाई देता है। वजाइनल स्पैकुलम द्वारा परीक्षण करने पर सूजन दिखाई नहीं देती है। वेजाइनल सराव में श्वेत रक्त कणिकाएं नहीं दिखाई देती हैं। गुदा परीक्षण करने पर गर्भाशय ए टॉनिक अथवा सब टॉनिक होने के साथ-साथ कम सक्रिय अंडासय  भी देखे जा सकते हैं। इस प्रकार के मामले बिना किसी उपचार के अपने आप भी ठीक हो जाते हैं। कुछ पशु चिकित्सा विद समस्या को गर्भाशय की सूजन द्वारा भ्रमित हो जाते हैं और उसका उपचार प्रारंभ कर देते हैं जोकि उचित नहीं है। पोटेशियम परमैंगनेट के 1:10000 के हल्के गर्म गोल 7 से 10 दिन तक सफाई करते हैं ।

2. ग्रेन्यूलर वेजाइनाइटिस

यह मुख्य रूप प्रथम  बार बच्चा देने वाली अथवा गायों की तुलना में ओसर गाय भैंस में पाई जाती है। इसका स्पष्ट कारण ज्ञात नहीं है परंतु हरपीज वायरस के संक्रमण का संदेश किया जाता है। क्लैटोरिस के आसपास पिनहेड के आकार के दाने पाए जाते हैं जो वेस्टीबुलर क्षेत्र तक फैल जाते हैं। यह पिंनप्वाइंट दाने सीरम जैसे तरल अथवा हल्के गुलाबी कलर के तरल से भरे होते हैं और फूटने पर आपस में जुड़ कर घाव बना देते हैं जो देखने में अधिक लाल रंग का लगता है। ओसर में यह गर्भधारण में हस्तक्षेप करते हैं परंतु गायों में ऐसा नहीं होता है।

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उपचार

2% क्लोरहेक्सिडीन पाउडर से डस्टिंग करते हैं। सेबलान 1:5000 के घोल से एक दिन छोड़कर सफाई करते हैं। प्रतिदिन लोरिकसेन  क्रीम का लेपन करते हैं।

3. वेजाइनाइटिस

योनि में सूजन प्राथमिक अथवा द्वितीयक दोनों ही कारणों से हो सकती है। द्वितीयक योनि की सूजन मेट्राइटिस अर्थात गर्भाशय की सूजन और गर्भाशय ग्रीवा की सूजन के कारण होती है। इसके अतिरिक्त चोट घाव तथा संक्रमण के कारण भी योनि की सूजन होती है। योनि में संक्रमण, गर्भपात, फीटोटॉमी , सामान्य प्रसव तथा हाथ से जेर निकालने के कारण हो सकता है। गर्भाशय में संक्रमण होने पर सांद्र तथा उत्तेजक एंटीसेप्टिक गोल से योनि अथवा गर्भाशय की सफाई करने पर भी योनि की सूजन हो सकती है। भैंस में यह समस्या अपेक्षाकृत काफी कम होती है।

स्वच्छता से कृत्रिम गर्भाधान न करने से भी अथवा आईवीआर-आई पीवी रोग से ग्रसित साड के द्वारा भी हो सकती है।

लक्षण

  • योनि द्वार से कभी-कभी म्यूकस मिला हुआ मवाद गिरता है। मवाद के कारण योनि द्वार के बाल चिपक जाते हैं तथा पूछ व पिछले हिस्से पर भी मवाद लगी रहती है।
  • योनि में सूजन पानी का उतरना अर्थात एडिमा व कंजेशन हो जाता है।
  • योनि में सूजन के कारण बार-बार इरिटेशन होता है जिससे पशु बार-बार मूत्र करता है।
  • गंभीर योनि के संक्रमण में गर्भाशय ग्रीवा के मुख पर भी  संक्रमण हो जाता है और मवाद बन जाती है जिससे वहां की पीएच बदल जाती है। ऐसी स्थिति में यदि गर्भाधान अथवा नैसर्गिक प्रजनन कराया जाए तो शुक्राणु के जीवित रहने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
  • पेशाब का रंग गंदला सफेद अथवा पीला अथवा सिरम जैसा होता है। जल्दी के संक्रमित वेजिनाइटस में योनि द्वार मैं सूजन पाई जाती है।
  • योनि का परीक्षण करने पर लाल रंग के चकत्ते दिखाई देते हैं ।
  • पिक्चर दे चुके पशुओं में इंड्यूरेटेड क्षेत्र और गंदी पीली मवाद की परत चढ़ी रहती है।
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भविष्य

अधिकतर मामलों में योनि की सूजन शीघ्र ही ठीक हो जाती है। जहां संक्रमण अधिक हो वहां गंभीरता  व उपचार के आधार पर योनि की सूजन ठीक हो जाती है।

उपचार

उपचार में सर्वप्रथम योनि में इकट्ठी हो रही मवाद को बाहर निकाले फिर  2% क्लोरहेक्सिडीन पाउडर से डस्टिंग करते हैं।  प्रतिजैविक औषधि का प्रयोग करें। योनि में ऑक्सीटेटरासाइक्लिन, पेनिसिलिन, स्ट्रैप्टोमायसीन आदि किसी भी व्यापक स्पेक्ट्रम प्रतिजैविक का घोल या क्रीम योनि में डालें। यदि आवश्यकता हो तो इंटरमस्कुलर विधि से भी प्रतिजैविक औषधि दें।

2% जाइलोकेन जेली एवं 1% जिंक ऑक्साइड की समान मात्रा और सिलोडर्म ऑइंटमेंट का प्रयोग पोटेशियम परमैंगनेट गोल से सफाई करने के पश्चात  करते हैं।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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