कुक्कुट प्रसंस्करण में उद्यमिता पर कार्यशाला का आयोजन

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बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय और भा.कृ.अ.प. के राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना के संयुक्त तत्वावधान में बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय में कुक्कुट प्रसंस्करण में उद्यमिता विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया, इस कार्यशाला में पटना और आस-पास के क्षेत्रों से लगभग 20 पोल्ट्री व्यवसायियों और वेटनरी के विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यशाला में प्रतिभागियों को प्रसंस्करण से पहले ली जाने वाली सावधानियां व हाइजीन के साथ प्रसंस्करण की तकनीक बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय के पशुधन उत्पादन प्रौद्योगिकी विभाग की हेड डॉ. सुषमा द्वारा बताई गयी।

कार्यशाला में विशेषज्ञ के तौर पर मौजूद डॉ. अंजय द्वारा बताया गया की सड़क किनारे मीट का प्रसंस्करण पुरे वातावरण के लिए हानिकारक है साथ ही मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है और ऐसे मांस को खाने के बाद खाद्यजनित बीमारियां उत्पन्न होने की संभावनाएं रहती है। उन्होंने आगे बताया की मुर्गे-मुर्गियों के उत्पादन, ट्रांस्पोर्टेशन और प्रसंस्करण में हाइजीन का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए साथ ही वधशाला में पहने जाने वाले कपडे कैसे हो, स्लॉटर करने से पहले हाथों को साबुन से धोना, मीट प्रसंस्करण के समय हाथों में घड़ी, अंगूठी, ब्रेसलेट जैसे चीजों का न होना, बर्तनों की सफाई, मांस काटते वक़्त चोट लगने पर क्या करना है, टॉयलेट हाइजीन और व्यवसाइयों का समय-समय पर मेडिकल चेकअप जैसे कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला।

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पश्चिम बंगाल वेटरनरी यूनिवर्सिटी के पशुधन उत्पादन प्रौद्योगिकी विभाग के हेड डॉ. शुभाशीष बिस्वास ने ऑनलाइन माध्यम से पोल्ट्री के छोटे उद्यम में साफ-सफाई पर व्याख्यान दिया। डॉ. पुरुषोत्तम कौशिक ने पशुजन्य रोग जो पशु-पक्षियों से इंसान में फैलता है, उसके लक्षण, रूप, कारण, उपचार और प्रबंधन पर व्याख्यान दिया। बिहार वेटनरी कॉलेज के पशुधन उत्पादन प्रौद्योगिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. रोहित कुमार द्वारा कुक्कुट के प्रतिउत्पाद के सदुपयोग कैसे किया जाये इसपर व्याख्यान प्रस्तुत किया, उन्होंने कहा की मीट निकालने के बाद जो बेकार के अवशेष हम फ़ेंक देते है वो कई मायनों में उपयोगी है, मुर्गे के खून और पंखों को पाउडर के रूप में तैयार कर पशु चारा उद्योग को बेचा जा सकता है, साथ ही फ़र्टिलाइज़र कंपनी में इसका इस्तेमाल खाद बनाने के काम आता है जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है। पैथोलॉजी विभाग के डॉ. संजीव द्वारा एक स्वच्छ मीट की पहचान और जख्मों की पहचान कैसे किया जाये इसपर अपना व्याख्यान दिया।

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इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंद्र कुमार ने कहा की ऐसे आयोजनों से पोल्ट्री इंडस्ट्री को एक नयी दिशा मिलेगी, तकनीकी ज्ञान होने से मुनाफा ज्यादा होगा और नुकसान काम होगा जिससे अधिक लोगों का इस क्षेत्र से जुड़ाव होगा और वे रोजगानोन्मुख होकर अपना जीविकोपार्जन कर सकेंगे, साथ ही राज्य के अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। कार्यशाला में डॉ. रवि रंजन सिन्हा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. पंकज कुमार और डॉ. कौशलेन्द्र कुमार ने भी कुक्कुट प्रसंस्करण के कई महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला।

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