पशुओं में रूमिनल टिमपेनी के लक्षण एवं उपचार

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अत्यधिक मात्रा में आसानी से किण्वित हो जाने वाले खाद्य पदार्थो को खाने से सामान्य से अधिक मात्रा में गैसों का उत्पादन होता है। किण्वन से बनी इन गैसों से भर जाते हैं, इस अवस्था को आफरा/टिमपेनी/ब्लोट कहते है। यह या तो अत्यधिक मात्रा में गैस उत्पादन या गैस के निष्कासन में किसी भौतिक अवरोध के कारण होता है। यह रोग मुख्य रूप से रूमान्धी प्राणियों मे होता है। अतः यह मुख्यतः गौवंश, भैस, भेड एवं बकरी मे होता है।

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रोग कारक

  1. शीघ्र किण्वित होने वाला लैगुमिनस फुडर ज्यादा मात्रा में खिलाने से होता है।
  2. हरे पादप आफरा उत्पन्न करते है, अतः इनको अधिक मात्रा में खिलाने से ये गैस उत्पन्न करते है।
  3. अधिक मात्रा में मटर, बीन, गोभी, आलू इत्यादि खाने से होता है।
  4. ग्रसिका में किसी अवरोध/रूकावट के कारण होता है।
  5. ग्रसिका के मार्ग के संकरा हो जाने के कारण होता है।
  6. अधिक अनाज वाले भोजन के कारण गैस का निष्कारसन नही हो पाता।
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लक्षण

  1. बहुत घातक स्थिति मे रोगी प्राणी की अचानक मृत्यु हो जाती है।
  2. अन्य स्थितियों में रोगी प्राणी का पेट फूला हुआ दिखाई देता है जो बांए पारा-लुम्बार फोसा में स्पष्ट दिखाई देता है।
  3. रोगी प्राणी खाना- पीना कम/बन्द कर देता है।
  4. पेट में दर्द के लक्षण प्रदर्शित किए जाते है।
  5. रोगी प्राणी बार-बार पेट की ओर देखता है, लात मारता है। एवं जमीन पर लोटता है।
  6. सुस्ती
  7. रोगी प्राणी के मुँह व गर्दन खिंचे रहते है तथा जीभ बाहर निकली हो सकती है।
  8. बांए पारा-लुम्बार फोसा पर परक्युसन करने पर ड्रम के बनजे जैसी आवाज आती है।
  9. रोगी प्राणी को सांस लेने में परेशानी होती है तथा वह मुँह खोलकर सांस लेता है।
  10. तनाव।
  11. लार गिरना।
  12. मुँह खुला रहना।
  13. हृद्य दर एवं श्वंसन दर तेज हो जाती है।
  14. हृद्य के अपनी जगह से थोड़ा विस्थापित हो जाने के कारण कार्डिक मुरमुर की ध्वनि सुनाई देती है।
  15. रूमन की गति प्रारम्भ में बढ़ जाती है एवं बाद मे कम होते हुए बन्द हो जाती है।
  16. श्लेष्म झिल्लियों के हल्के हो जाने के रूप में निर्जलीकरण के लक्षण स्पष्ट दिखाई देते है।
  17. रूमिनल फल्लूड की पी.एच. अधिक अम्लीय हो जाती हैै।
  18. रोग के बढ़ने के साथ रक्त की सान्द्रता बढ़ती है एवं मूत्रोत्सर्जन में कमी हो जाती है।
  19. ट्रोकारिशेसन करने से प्रारम्भ में बहुत थोड़ी मात्रा में गैस बाहर निकलती है लेकिन सेकेन्डरी टिमपेनी में बड़ी मात्रा में गैस निकलती है।
  20. कुछ रोगी प्राणियों मे बहुत गम्भीर स्थिति में बिना संघर्ष के अचानक मृत्यु हो जाती है।
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उपचार

  • रोगी प्राणी का खान-पान कुछ समय के लिए बन्द कर देना चाहिए।
  • रोगी प्राणी को ऐसा स्थिति में खडा करें कि उसका मुँह वाला हिस्सा ऊँचाई पर हो ताकि डायफ्राम पर दबाव नहीं पडे।
  • रोगी प्राणी अगर जुगाली नहीं कर रहा हो तो उसके मुँह में कोई मुख खोलनी, लकडी का टुकडा फंसा देना चाहिए जिससे गैस बाहर निकलती रहे।
  • कम गम्भीर स्थिति में रोगी प्राणी के मुख मार्ग से रूमन में स्टोमक ट्यूब या प्रोबन्ग डालना चाहिए जिससे गैस बाहर निकल सके।
  • गम्भीर स्थिति में रोगी प्राणी के बांए पारा-लुम्बार फोसा के मध्य मे ट्रोकार- कैनुल डालकर रूमन से गैस निकालनी चाहिए एवं इसी से मिनरल आईल व प्रतिजैविक औषधियां अन्दर डाली जा सकती है।
  • 15-30 मि.लि. तारपीन का तेल , 10 ग्राम हींग, 20 ग्राम अजवायन, 200-300 मि.लि. स्वीट आईल (मस्टड आईल, लिन्सीड आईल) भी वयस्क गौवंश, भैस व घोडे में दिया जा सकता है।
  • वीय किण्वन को रोकने के लिए मुख मार्ग से प्रतिजैविक औषधियां देनी चाहिए।
  • रूमन की माँसपेशियों को सक्रिय करने व इसकी गति को सही करने के लिए कैल्शियम बोरोग्लुकोनेट, आई/व्ही दिया जा सकता है।
  • इसके साथ ही रोगी प्राणी को एन्टीहिस्टेमिनिक प्रिपरेशन का इन्जेक्शन लगाना चाहिए।
  • आफरा ठीक होने के पश्चात् रोगी प्राणी को मुलायम, आसानी से पचने वाला भोजन देना चाहिए, उपयुक्त व्यायाम करवाना चाहिए, विटामिन – बी काम्प्लेक्स DS साथ  लिवर  एक्सट्रेक्ट और रुमेनोटोरिक  ड्रग्स साथ  लिवर  एक्सट्रेक्ट और रुमेनोटोरिक  ड्रग्स देनी चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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