विभिन्न ऋतु में पशुओं का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन

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पशुओं का वैज्ञानिक तरीके से आवास प्रबंधन

पशुओं को रखने के लिए पशु घर का निर्माण इसलिए आवश्यक है जिससे उन्हें गर्मी, सर्दी तथा बरसात से बचाया जा सके। पशुशाला निर्माण के समय पशुओं के आराम तथा स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। पशु घर कम लागत पर बने लेकिन कई सालों तक उपयोग करने के योग्य रहे। पशुशाला में हवा के आने जाने का तथा रोशनी का समुचित प्रबंध होना चाहिए। पशुओं के गोबर मूत्र की निकासी हेतु नाली बनी होनी चाहिए। बाड़े में इतनी पर्याप्त जगह हो की पशु आसानी से लेट सकें। पशुशाला समतल एवं ऊंचे स्थान पर होनी चाहिए तथा शहर के नजदीक सड़क के किनारे होनी चाहिए। फार्म का क्षेत्र पर्याप्त तथा वर्गाकार होना चाहिए और भविष्य में उसे बढ़ाने का प्रावधान अवश्य रखना चाहिए। इसके साथ-साथ सस्ते दुग्ध उत्पादन के लिए उपयुक्त मात्रा में हरा चारा उगाने का उपजाऊ स्थान उपलब्ध होना चाहिए।

फार्म के चारों तरफ छायादार वृक्ष लगाने चाहिए जिससे तेज ठंडी व गर्म हवा से पशुओं का बचाव हो सके एवं गर्मी में शीतल हवा मिले। पशुशाला की संरचना करते समय फर्श के बारे में खास तौर पर ध्यान देना चाहिए। फर्श को सीमेंट और कंक्रीट से पक्का बनाना चाहिए। फर्श की ऊपरी सतह खुरदरी होनी चाहिए ताकि चिकनाहट के कारण पशु फिसल कर गिर ना जाए। दोनों तरफ के फर्श की ढलान निकास नाली की तरफ बनाएं ताकि मूत्र अपने आप नाली में चला जाए एवं फर्श की धुलाई में सुविधा हो। निकास नाली पशुशाला के ढके एवं खुले स्थान के मिलने वाली जगह पर स्थित होनी चाहिए। फर्श का शेष भाग जो कि खुले हुए स्थान में है उसमें ईट की तह बिछाकर सीमेंट से जोड़ दें। पशु घर की मुख्य दीवार जिसके ऊपर छत बनानी हो कम से कम 3 मीटर ऊंची होनी चाहिए।

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सर्दियों में पशुओं का प्रबंधन

सर्दी के मौसम में पशुओं को विशेषकर बछड़े- बछड़यों को ठंड लगने से हर तरह का बचाव करना अति आवश्यक है। धुंध, तेज बर्फीली हवा तथा कड़ाके की सर्दी में छोटे पशुओं को निमोनिया जैसी बीमारियां हो जाती हैं तथा दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन भी कम हो जाता है। इसलिए इनके आवास के खुले भाग में रात के समय बोरी तिरपाल या कम से कम ज्वार बाजरे के सूखे डंठल का टाट बना कर टांगना चाहिए जिससे पशुघर के अंदर बंधे पशुओं को सीधी ठंडी हवा से बचाया जा सके। नीचे की जमीन का सूखा होना अत्यावश्यक है। अतः रात्रि में जमीन से सीधी ठंड पशुओं को न लगे। पशुओं को अधिक ठंडा व गर्म पानी नहीं पिलाना चाहिए। दिन के समय पशुओं को धूप में छोड़ना चाहिए जिस से बाड़ा भी सूखा रहता है और पशुओं को धूप से गर्माहट भी मिलती है तथा पशुओं का व्यायाम भी हो जाएगा। अधिक सर्दी या तेज हवा चल रही हो तो पशुओं को ठंडे पानी से नहीं नहलाना चाहिए। यदि संभव हो तो उन्हें गुनगुने पानी से स्नान कराएं अथवा मोटे ब्रश से रगड़ कर साफ़ करना चाहिए। खुरहरा करना पशुओं के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक है परंतु यह कार्य दूध निकालने से पहले करना चाहिए।

और देखें :  नवजात बछड़े का प्रबंधन

गर्मियों में पशुओं का वैज्ञानिक प्रबंधन

गर्मी के दिनों में तेज गर्मी तथा लु, पीने के पानी तथा हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन काफी कम हो जाता है तथा छोटे पशुओं की शारीरिक विकास की दर कम हो जाती है। इसलिए पशु घर छायादार वृक्षों के बीच में बनानी चाहिए यह वृक्ष गर्मियों में लू से एवं सर्दी में ठंडी हवा से बचाते हैं। पशु घर के अंदर हवा के आने तथा उसके जाने का प्रबंध होना चाहिए। दीवार में खिड़कियां आमने-सामने होनी चाहिए। पशुघर के अंदर पंखा तथा अंदर की हवा बाहर निकालने वाला पंखा अर्थात एग्जास्ट फैन लगाना आवश्यक है। गर्मी के मौसम में पशुओं को सुबह-शाम नहलाना चाहिए। पशुओं को हर वक्त पीने के पानी की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए। पीने के पानी को कभी भी धूप में नहीं रखना चाहिए। गर्मियों के दिनों में पशुओं का खाना कम हो जाता है। अत: उन्हें गर्मी के दिनों में उगने वाला हरा चारा जहां तक संभव हो सके खिलाना चाहिए। हरे चारे की कमी को पूरा करने के लिए सर्दी में आवश्यकता से अधिक हरे चारों से बनाया गया “साइलेज” भी पशुओं को खिलाना चाहिए। पशुओं को गर्मियों में हमेशा ठंडे समय में ही चारा खिलाएं जैसे सुबह, शाम या रात में। पशुओं का ऐसा दाना नहीं देना चाहिए जो अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता हो जैसे चना,  बिनोले की खली आदि। इसके स्थान पर मक्के का चूरा, गेहूं की चोकर, सरसों की खली आदि दे। ऐसे खाने से पशुओं के अंदर अधिक गर्मी उत्पन्न नहीं होगी और पशु ज्यादा चारा खा सकेंगे।

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