रोमन्थी पशुओ मे अफरा रोग

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जुगाली करने वाले पशु जैसे की गाय, भैस बकरी एवं भेड़ मे अफरा एक आम समस्या हैl इनके पेट (रुमेन) मे भोज्य पदार्थो के पाचन के दौरान गैस एवं अम्ल का बनना एक सामान्य प्रक्रिया है ओर ऐसा प्रति दिन चलते रहता हैl तथा यह गैस थोड़े थोड़े अंतराल पर मुह के रास्ते से बाहर निकलती रहती हैl परंतु किसी कारणवश यह गैस शरीर से बाहर न निकलकर पेट मे ही जमा  होने लगती है तब यह अफरा या पेट फूलना नामक समस्या उत्पन्न करती हैl यह बीमारी जुगाली करने वाले पशुओ  में ज्यादा मात्रा मे सड़ा गला खाना खाने या अधिक घुलनशील शर्करा युक्त आहार खाने से ओर रुमेन मे इसके अनियंत्रित किण्वन से होती है। किण्वन होने से कुछ  दूषित गैसे  जैसे अमोनिया, मिथेन, कार्बन डाई आक्साईड आदि उत्पादित होती है। इससे पेट का मुख्य भाग अर्थात रुमेन फूल जाता है। इसे थपथपाने पर ढम-ढम की आवाज आती है। इसे ही अफरा रोग कहते हैं।

निम्न लिखित कारणो से अफरा हो सकता है

  • हरा और रसीला चारा, भींगा चारा या दलहनी चारा अधिक मात्रा में खा लेने के कारण पशु को अफरा की बीमारी हो जाती है।
  • खासकर, रसदार चारा जल्दी–जल्दी खाकर अधिक मात्रा में पानी पीने से यह बीमारी पैदा होती है।
  • खाने में अचानक बदलाव करना-जैसे की हम जानते है कि गर्मी के मौसम मे पशु को सूखा चारा मिलता है ओर फिर बरसात होने पर अचानक पेट भर हरा चारा मिलने लगता है ओर पशु का पाचन अचानक आहार मे आए बदलाव को सहन नहीं कर पाता है जिससे यह रोग होता हैl इसलिए पशु को हरा व सूखा दोनों मिलाकर ही खिलाये, ओर धीरे धीरे उसे हरे चारे पर सिफ्ट करे अन्यथा यह बीमारी होगीl
  • ज्यादा मात्रा में हरा और सुख चारा और दाना खा लेना।
  • चारे ओर भूसे के साथ कभी कभी कीड़े और जहरीले जानवर खा लेना।
  • दूषित पानी ज्यादा मात्रा मे पी लेना।
  • कभी कभी घर मे अनाज के बोरे खुले रह जाते है ओर जानवर रात मे छुटकर ओर इन अनाज के दानो को ज्यादा मात्रा मे खा लेता है जिससे दूसरे दिन उसका पेट फुला मिलता हैl
और देखें :  पशुओं में होनें वाले अफारा रोग एवं उससे बचाव

कैसे पहचाने की पशु को अफरा हो गया है

  1. अचानक पशु का पेट सामान्य से ज्यादा फूल जाता है। ज्यादातर रोगी पशु का बायाँ पेट पहले फूलता है ओर  पेट को थपथपाने पर एक ढोलक  की तरह (ढप – ढप) की आवाज निकलती है।
  2. पशु दर्द के कारण कराहने लगता है ओर फूले पेट के ओर बार बार देखकर ओर पैर भी मारता है।
  3. पशु को साँस लेने में तकलीफ होती है, कभी कभी तेजी से सांस लेना ओर पशु की जीभ भी बाहर निकल जाती हैl
  4. पशु को पेसाब ओर गोबर करने मे अधिक ज़ोर लगाना पड़ता हैl
  5. रोग बढ़ जाने पर पशु बेचैन हो जाता है एवं चारा – दाना खाना छोड़ देता है।
  6. झुक कर खड़ा होता है और अगल – बगल झांकता रहता है।
  7. रोग के ओर अधिक तीव्र अवस्था होने पर  पशु बार-बार लेटता और खड़ा होता है।
  8. पशु कभी – कभी जीभ बाहर लटकाकर हांफता हुआ नजर आता है।
  9. पीछे के पैरों को बार पटकता है।
और देखें :  साइलेज पशुओं को वर्ष भर हरा चारा प्रदान करने की सर्वोत्तम विधि

अफारा रोग से बचाव

  1. रोगी पशु  का खाना तुरन्त बन्द कर देंना चाहिए।
  2.  जहां तक संभव हो सके पशु को बैठने न दें व धीरे-धीरे इधर उधर टहलते रहे  ऐसा करने से पशु को अफरे की समस्या में आराम मिलेगा।
  3. मुहं को खुला रखने का इंतजाम करना चाहिये । इसके लिए जीभ को मुंह से बाहर निकालकर जबड़ों के बीच कोई साफ और चिकनी लकड़ी रखी जा सकती है।
  4. पशु के बाएं पेट पर दबाव डालकर मालिश करनी चाहिए ओर गले के नीचे भी मालिस करना चाहिए।
  5. अगर पशुचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध नहीं हो तो कुछ घरेलू उपाय भी करना चाहिए जैसे की 400-500 ग्राम सरसो या आलसी के तेल मे 100-125 ग्राम सेंधा या काला नमक मिलाकर पिलाना चाहिए l  इसके अलावा 500-700 ग्राम सरसों के तेल मे 25 ग्राम तारपीन का तेल मिलाकर पिलाने से भी फायदा होता है l यह घरेलू इलाज मे जो मात्रा दी हुई है वह एक 500 किलो ग्राम की भैस के हिसाब से है अगर छोटा जानवर है तो अवयवों की मात्रा काफी कम हो जाएगीl
  6. आधा लीटर गर्म पानी मे 125-150 ग्राम पीसी राई भी मिलाकर पिला सकते हैंl
  7. बीमारी की स्थिति मे पशुचिकित्सक से परामर्श लेना ज्यादा फायदेमंद होता हैl
  8. पशु को लकड़ी के कोयले का चूरा, आम का पुराना आचार, काला नमक, अदरख, हिंग और सरसों जैसी चीज पशुचिकित्सक के परामर्श से खिलायी जा सकती है।
  9. पशु को स्वस्थ होने पर थोड़ा–थोड़ा पानी दिया जा सकता है, लेकिन किसी प्रकार का चारा नहीं खिलाया जाए। ओर खिलाने की प्रक्रिया धीरे धीरे शुरू करनी चाहियेl

पशु पालक भाई उपरोक्त लिखित उपायो को अपनाकर अपने पशु को अफरा नामक बीमारी से बचा सकते हैl

और देखें :  हरे चारे का विकल्प- हाइड्रोपोनिक्स
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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