जलवायु परिवर्तन का मवेशियो की उत्पादकता, प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर प्रभाव

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प्रस्तावना

भारत एक कृषि प्रधान देश है। पशुधन, कृषि क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है। भारत मे पशुधन के विपुल संसाधन है जो देश के ग्रामीण समुदाय को आजीविका का साधन प्रदान करने के साथ ही देश की सामाजिक, आर्थिक और खाद्य सुरक्षा मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। पशुधन क्षेत्र, देश के सकल घरेलू उत्पाद में और कुल कृषि सकल घरेलू उत्पाद में भी योगदान देता है। इसलिए पशुधन का देश की अर्थव्यवस्था के विकास और स्थिरता मे अहम योगदान है। आधुनिकरण के साथ साथ बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण, ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाई आक्साइड, मेथेन इत्यादि के बढ़ते स्तर, वनों की होने वाली अंधाधुंध कटाई की वजह से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, जिससे भूमंडलीय तापमान बढ़ रहा है। विश्व स्तर पर ये जलवायु परिवर्तन मनुष्य और जीव जन्तुओ के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश मे जलवायु परिवर्तन पशुधन क्षेत्र की स्थिरता के लिए सबसे महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक है। कई जलवायु कारक जैसे की उच्च तापमान, उच्च आर्द्रता, बाढ़, विकिरण आदि पशुओ के स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करके उनकी कार्य क्षमता, उनके स्वास्थ्य, उत्पादन और प्रजनन क्षमतापर प्रतिकूल प्रभाव डालते है।

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पशुओ की उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग, पशुओ की उत्पादक क्षमता को प्रभावित करता है। गर्मी से होने वाले तनाव (हीट स्ट्रेस) को कम करने के लिए पशु अपनी उपापचय क्रिया को बदलते हुए, खाने का सेवन कम कर देते हैं, जिससे पशुओ का वजन कम होने लगता है। साथ ही वजन कम होने की वजह से पशुओ को युवावस्था मे आने और यौन परिपक्व होने में देरी हो जाती है। इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। उच्च ताप से तनाव के कारण पशुओ में दूध का उत्पादन और दूध की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। पशुओ मे गर्मी के कारण चारे के सेवन और खाने की रूपांतरण दक्षता में कमी से दूध उत्पादकता कम हो जाती है। वातावरण मे उच्च तापमान की वजह से, दूध देने वाले पशुओ के मध्य लैक्टैशन अवधि और लैक्टैशन अवधि के शुरुआती समय मे दूध उत्पादन मे कमी के साथ ही दूध की वसा, लैक्टोस एवं प्रोटीन में भी कमी दर्ज की गई है। पशु की गर्भावस्था के अंतिम चरण और प्रारंभिक प्रसवोत्तर अवधि के दौरान गर्मी के तनाव की वजह से कोलोस्ट्रम संरचना मे भी परिवर्तन हो सकता है। जिससे नए जन्मे बछड़ों के शरीर मे इसका अवशोषण भी प्रभावित हो जाता है। इसलिए जलवाऊ परिवर्तन के कारण हुए उच्च तापमान, दुधारू पशुओ की उत्पादन क्षमता मे कमी का एक प्रमुख कारण है।

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पशु की प्रजनन क्षमता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवाऊ परिवर्तन से नर और मादा दोनों पशुओ की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है। ये  मादा पशु मे प्रजनन हार्मोन का स्तर, मद चक्र के दौरान फालिकल की वृद्धि, उशिष्ट (संपुटित युग्मक) के विकास और गुणवता, भ्रूण विकास और गर्भधारण की दर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, जिससे भ्रूण की मृत्यु दर बढ़ने की भी संभावना रहती है। उच्च तापमान, नर पशु मे वृषणकोश के  आकार, वजन, शुक्राणुओ की संख्या, जीवित शुक्राणु प्रतिशत और उनकी गतिशीलता, यौन इच्छा, स्खलन मात्रा पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से पशुओ मे प्रजनन क्षमता कम हो सकती है जिससे, किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

पशु के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिवर्तन पशु के उत्पादन में कमी के साथ ही स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। पेड़-पोधों की कटाई और इस बढ़ते हुए तापमान की वजह से पशुओ के लिए उपलब्ध खाने के स्रोतों मे कमी हो रही है। पशु स्वयं भी गर्मियों मे खाने का सेवन कम कर देता है, जिसके कारण पशुओ मे कुपोषण, विषाक्त पेड़-पोधों के सेवन, वजन मे कमी, नकारात्मक ऊर्जा संतुलन होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए जलवाऊ परिवर्तन से पशु कई वेक्टर जनित रोग, संक्रामक रोग और खाद्य जनित बीमारियों के लिए अधिक संवेदनशील हो जाते है। पशु के शरीर में उपापचय गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं, जिससे पशु मे उपापचय से संबंधित रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। गर्म तापमान और उच्च नमी वाले वातावरण मे कवकों का उत्पादन बढ़ जाता है। खाने के साथ ये कवक और इनके विषाक्त पदार्थ पशु के शरीर मे जाकर विभिन्न अंग जैसे यकृत, गुर्दे, गैस्ट्रिक म्यूकोसा, मस्तिष्क, प्रजनन तंत्र आदि को प्रभावित करने के साथ ही पशु के विकास दर पर भी असर कर सकते है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बचाव का प्रबंधन

  • पशु की उत्पादकता, प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य को सर्वोतम बनाए रखने के लिए एक आरामदायक वातावरण की जरूरत होती है। जिसके लिए मौसम के अनुसार पशु को आश्रय प्रदान करना एक उपयुक्त विकल्प है। ये पशु आश्रय मौसम के अनुसार अच्छा अवरोध प्रदान करने के साथ ही छोटे फार्म वाले किसानों के लिए किफायती भी होने चाइए, इसके लिए कम लागत वाली प्राकृतिक एवं स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।
  • बड़े डेयरी फार्म मे पशु को इसके जलवाऊ के विपरीत प्रभाव से बचाने के लिए वातानुकूलित शेल्टर, स्प्रिंकलर और उचित वेंटिलेशन का उपयोग किया जा सकता है।
  • जैसे की जलवाऊ परिवर्तन से पशु अपनी उपापचय से गर्मी को कम करने की कोशिश करता है। इसलिए पशु को उच्च गुणवता वाला चारा, सांद्रण आहार, विटामिन और खनिजों की उचित मात्रा तथा पर्याप्त पानी प्रदान करना चाहिए, ताकि तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना कर सके।
  • विश्व स्तर पर जलवायु परिस्थितियों में बदलाव के पीछे मानवजनित गतिविधिया भी एक प्रमुख कारण है। आधुनिकीकरण के लिए मानव द्वारा की गई वनों की कटाई, वाहनों की बढ़ती संख्या से बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण ने जलवाऊ परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग में काफी हद तक योगदान दिया है। इसलिए पर्यावरण प्रदूषकों, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम के प्रयासों के साथ ही बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने चाहिए।
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निष्कर्ष

आधुनिकीकरण के इस दौर मे वनोन्मूलन, पर्यावरण प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन ने जलवाऊ को परिवर्तित कर दिया है तथा वातावरण के तापमान बढ़ने की वजह से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ ही पशु-उत्पादों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन बदलती हुई जलवायु परिस्थितियों की वजह से पशुओं की उत्पादकता, प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए, पशु को जलवाऊ परिवर्तन से बचाने के लिए सम्पूर्ण आहार एवं आश्रय प्रबंधन के साथ-साथ जलवायु परिस्थितियों में बदलाव को भी रोकने की आवश्यकता है।

संदर्भ

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  3. Prathap, P., Archana, P.R., Aleena, J., Sejian, V., Krishnan, G., Bagath, M., Manimaran, A., Beena, V., Kurien, E.K., Varma, G., & Bhatta, R. (2017). Heat stress and dairy cow: Impact on both milk yield and composition. International Journal of Dairy Science, 12:1-11.

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