विभिन्न पशुओं से प्राप्त उपयोगी उत्पाद

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प्रस्तावना

विभिन्न पशुओ के फार्म से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग विभिन्न उत्पादो को बनाने में किया जा सकता है। इससे ना केवल पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सकता है, अपितु पशु पालकों की आय में सालाना इजाफा किया जा सकता है।

और देखें :  छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी ’गोधन न्याय योजना’ को मिला स्कॉच गोल्ड अवार्ड

गोवंशीय पशुओं से प्राप्त उत्पाद

गोबर, गोमूत्र, सींग, खुर, बाल, खाद अपशिष्ट

पोल्ट्री फार्म से प्राप्त उत्पाद

अंडे का खोल /eggshell, पंख/feather, चोंच और नाख़ून

गोबर/Dung

  • एक गाय या भैंस से एक दिन में प्राप्त गोबर की मात्रा-18-32 किलोग्राम
  • एक माह में गोबर की प्राप्ति लगभग 750-900 किलोग्राम

गोबर में पाए जाने वाले तत्वों की सूची-

  1. नाइट्रोजन-3%
  2. फास्फोरस-2%
  3. पोटेशियम-1%
  4. उपयोगी बेक्टीरिया
  5. अपचित भोज्य पदार्थ

गोबर से प्राप्त उत्पाद

वैदिक पेंट: भारत सरकार के सड़क एवं परिवहन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020-21 में वैदिक पेंट नामक उत्पाद तैयार किया गया है। इसका निर्माण गोबर को सुखाकर उसमे केवल 40% नमी रहे इस प्रकार तैयार किया जाता है। अब इसमें चूना (CaCo3)  व विभिन्न प्रकार के रंगों को मिलकर पेंट बनाया जाता है।इस पेंट के निर्माण हेतु किसानों से गोबर खरीदा जाता है इससे किसानों व पशु पालकों की आय में सालाना 30000 रूपये तक का इजाफा हो सकता है।

गोबर पाउडर: गोबर को तेज धूप में सुखाकर उसकी सम्पूर्ण नमी को समाप्त किया जाता है इस गोबर को बारीक़ पाउडर के रूप में बदल दिया जाता है। इस पाउडर से अगरबत्ती, वर्मी कम्पोस्ट, ईट, गमले आदि बनाये जाते हैं।

धूप बत्ती: गोबर को सुखाकर उसमे सुगन्धित तरल डालकर उससे धूप बत्ती बनाई जाती है। ये धूप बत्ती बाज़ार में अच्छी कीमत पर बिकती है।

Cow dung पेपर: इसे बनाने के लिए एक लघु उधोग और कुछ मशीनों की आवश्यकता होती है।  मशीनों की सहायता से गोबर व लुग्धि तथा बांस की छाल का उपयोग कर कागज तैयार किया जाता है।

इस प्रकार के उधोग की स्थापना के लिए सरकार से अनुदान राशी प्राप्त की जा सकती है।

वर्मी  कम्पोस्ट:  गोबर और केंचुए के माध्यम से जबरदस्त पोषक तत्व युक्त खाद का निर्माण बड़े स्तर पर किया जा सकता है। इस वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग खेतों में उच्च गुणवत्ता की खाद के रूप में किया जाता है साथ ही इसे विदेशों में भी निर्यात किया जाता है।

गोवंशीय उत्पादों पर भारत सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लगाया जाता है तथा बाजारों में इनकी बिक्री के लिए भी किसी सरकारी अनुमति पत्र की आवश्यकता नहीं होती है। इनके आयात-निर्यात पर भी कोई टैक्स नहीं लगाया जाता है।

गोमूत्र: प्रति पशु एक दिन में प्राप्त मूत्र -3 से 5 लीटर एवम एक माह में प्राप्त मूत्र -90 लीटर

जीता अमृत: गोबर, गोमूत्र, नमक, नीम की पत्तियां और गुड को एक निश्चित मात्रा में मिलाकर कीट नाशक व पोषक द्रव तैयार किया जाता है जिसका उपयोग जैविक खेती में किया जाता है।

गोमूत्र अर्क: गोमूत्र अर्क बनाने के लिए गोमूत्र को गर्म किया जाता है। इस गर्म गोमूत्र से भाप निकलती है इस भाप को एकत्र कर संघनित किया जाता है। यह एकत्र द्रव गोमूत्र अर्क कहलाता है। इस अर्क का उपयोग विभिन्न रोगों में किया जाता है।

डिसइन्फेक्टेंट का निर्माण: गोमूत्र का उपयोग का  डिसइन्फेक्टेंट, फिनायल आदि के निर्माण में किया जाता है। गोमूत्र एंटीबेक्टिरिअल ,एंटी फंगल और एंटी हेल्मेन्टिक जैसे गुणों से परिपूर्ण होता है।

और देखें :  केंद्रीय मंत्रियों ने संयुक्त रूप से गोबरधन योजना को बढ़ावा देने के लिए गोबरधन का एकीकृत पोर्टल शुरू किया

पोल्ट्री उत्पाद

  • अंडे के खोल /Egg shell
  • पंख /feather
  • बीट/Faecal material

अंडे के खोल /Egg shell: मुर्गी के अण्डों की खोल में कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। अतः इनका उपयोग कैल्शियम पाउडर बनाने के लिए जाता है।

मृदा में कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त फिश मील के निर्माण मे भी इनका उपयोग किया जाता है।

पंख(Feather): मुर्गियों के पंखों का उपयोग सजावटी सामान, badminton की शटल बनाने एवं साज-सज्जा की रंग बिरंगी वस्तुएं बनाने में किया जाता है।

बीट (Faecal material): प्रतिवर्ष 1से 2 किलोग्राम बीट प्रति मुर्गी प्राप्त होती है।

पोल्ट्री अपशिष्ट में उपस्थित तत्वों की मात्रा:

  1. नाइट्रोजन -4.55-5.46%
  2. फोस्फोरस – 2.46-2.82%
  3. पोटेशियम – 2.02-2.32%
  4. कैल्शियम -4.52- 8.15%
  5. मेग्निचियम- 0.52- 0.73%

उपरोक्त पोषक तत्वों को ध्यान में रखते हुए पोल्ट्री फार्म से निकले अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग उच्च गुणवत्ता की खाद बनाने में किया जाता है। पोल्ट्री अपशिष्ट से बनी खाद में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है और इसका खेतों में नियमित रूप से छिडकाव मृदा की जल धारण क्षमता और उपजाऊपन को बढाता है। नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होने से दलहन फसलों में इसके उपयोग का प्रचालन तेजी से बढ़ रहा है।

इस प्रकार पशुओ से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादो को बनाने में किया जा सकता है एवम पशु पालकों की आय में सालाना इजाफा हो सकता है।

और देखें :  छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी ’गोधन न्याय योजना’ को मिला स्कॉच गोल्ड अवार्ड

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