24 जनवरी 2019: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा आज नई दिल्ली में जायद अभियान- 2019 के लिए कृषि पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर, कृषि राज्य मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने मंत्रालय द्वारा पिछले 4 वर्षों में हासिल की गई उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। सिंचाई पर बोलते हुए श्री रूपाला ने कहा कि देश में बुवाई किए जाने वाले शुद्ध क्षेत्र, लगभग 141 मिलियन हेक्टेयर में से लगभग 65 मिलियन हेक्टेयर (यानि 45 प्रतिशत) वर्तमान समय में सिंचाई के अंतर्गत आता है। असिंचित क्षेत्रों में वर्षा पर अत्यधिक निर्भरता, खेती को एक उच्च जोखिम वाला और कम उत्पादक वाला पेशा बनाती है। प्रयोगसिद्ध सबूत यह बताते हैं कि सुनिश्चित या सुरक्षात्मक सिंचाई किसानों को खेती तकनीकों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है और उत्पादकता बढ़ाने और कृषि आय बढ़ाने में सहयोग करती है। भारत सरकार, जल संरक्षण और इसके प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रभाव के लिए, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को प्रतिपादित किया गया है जिसका उद्देश्य सिंचाई की पहुंच को बढ़ाने के लिए ‘हर खेत को पानी’ और पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार लाने के लिए ‘मोर क्रॉप, मोर ड्रॉप’ को एन्ड टू एन्ड समाधानों के साथ एक केंद्रित तरीके से स्रोत निर्माण, वितरण, प्रबंधन, क्षेत्र अनुप्रयोग और विस्तार गतिविधियाँ के लिए किया गया है। पीएमकेएसवाई का प्रमुख उद्देश्य, जमीनी स्तर पर सिंचाई में निवेश के उद्देश्य को प्राप्त करना, सुनिश्चित सिंचाई (हर खेत को पानी) के अंतर्गत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए कृषि-जल उपयोग दक्षता में सुधार करना, परिशुद्ध-सिंचाई और पानी की बचत की अन्य प्रौद्योगिकियों को अपनाना (मोर क्रॉप, मोर ड्रॉप), पेरी-अर्बन कृषि के लिए उपचारित म्यूनिसपल आधारित पानी के पुन: उपयोग की व्यवहार्यता की खोज करके जलवाही स्तर को बढ़ाना, जल संरक्षण की स्थायी प्रथाओं को लागू करना और सटीक सिंचाई प्रणाली में अधिक से अधिक निजी निवेश को आकर्षित करना शामिल है।
श्री रूपाला ने कहा कि कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा 28 अगस्त, 2018 को जारी की गई 2017-18 की प्रमुख फसलों के उत्पादन के 4 वें अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। सरकार द्वारा अपनायी गई विभिन्न नीतिगत पहलों के परिणामस्वरूप, देश में 2017-18 में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 284.83 मिलियन टन का अनुमानित उत्पादन हुआ है, जो कि 2016-17 के दौरान 275.11 मिलियन टन खाद्यान्न के पिछले रिकॉर्ड उत्पादन की तुलना में 9.72 मिलियन टन अधिक है। 2017-18 के दौरान उत्पादन, पिछले पांच वर्षों (2012-13 से 2016-17) में खाद्यान्न के औसत उत्पादन की तुलना में 24.66 मिलियन टन अधिक है।
श्री रूपाला ने कहा कि मंत्रालय चालू वर्ष के दौरान कई नई पहल कर रहा है। इनमें, उत्तरी राज्यों में फसल अवशेष जलाने का प्रबंधन, जिससे इन राज्यों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाने की उम्मीद है, उत्पादन लागत का 1.5 गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना, एग्री-मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना, टमाटर, प्याज और आलू के लिए ऑपरेशन ग्रीन, राष्ट्रीय बांस मिशन, पशुपालक किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड, एक पशुपालन इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसायटी का कम्प्यूटरीकरण योजना शामिल है।
सम्मेलन में कई मुद्दों पर चर्चा की गई, जो तेजी से प्रासंगिक हो चुके हैं। व्याख्यानों के साथ विशेष सत्र का आयोजन, संभावित फसलों और जायद के लिए उत्पादन प्रणाली, जायद मौसम में सिंचाई क्षमता और पीएमकेएसवाई के माध्यम से पानी के उपयोग की दक्षता हासिल करना, खुले में चरनेवाले/ आवारा पशुओं से जायद फसलों की सुरक्षा, जैविक खेती को बढ़ावा, मूल्य की प्राप्ति और फसल प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए किया गया।
कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव, श्री संजय अग्रवाल ने अपनी टिप्पणी देते हुए राज्यों से जायद/ग्रीष्म ऋतु एरिया कवरेज के लिए कार्य योजना प्रस्तुत करने का आग्रह किया और कहा कि ग्रीष्मकाल में चावल उत्पादन को हतोत्साहित किया जाना चाहिए और कम पानी की मांग वाले फसलों जैसे दालों, तिलहन और बाजरा को जायद/ ग्रीष्म ऋतु के दौरान बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि गर्मी के मौसम में पानी की कमी होती है। उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे मौजूदा योजनाओं, जैसे टारगेटिंग राइस फैलो एरिया (टीआरएफए), एनएफएसएम के अंतर्गत अतिरिक्त क्षेत्र कवरेज कार्यक्रम, एनएफएसएम के अंतर्गत गन्ना और पाम ऑयल में अंतर-वर्ती फसल के उत्पादन और फसल विविधीकरण कार्यक्रम के माध्यम से लाभ उठाएं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पीएमकेएसवाई की ‘मोर क्रॉप, मोर ड्रॉप’ के माध्यम से सिंचाई और पोषक तत्व प्रबंधन को एक साथ लाया जाना चाहिए; उच्च जल उपयोग दक्षता और पोषक तत्व उपयोग दक्षता प्राप्त करने के लिए पीकेवीवाई के अंतर्गत एक एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन दृष्टिकोण। उन्होंने कहा कि राज्यों द्वारा फसल संरक्षण के तरीकों, जैसे भौतिक अवरोध, जैविक अवरोध, जैव-ध्वनिकी, जैव-घेराबंदी और सामुदायिक चारा ब्लॉक व्यवहारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और इसके लिए आरकेवीवाई और मनरेगा कार्यक्रमों के अंतर्गत मदद मांगी जा सकती है।
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