जमुनापरी जिसे जमनापारी भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुई बकरी की नस्लों में से एक महत्वपूर्ण नस्ल है। सन 1953 में इस नस्ल को इंडोनेशिया में निर्यात किया गया था जहां इस नस्ल को वंहा की स्थानीय बकरियों से क्रॉस कराकर नयी नस्ल विकसित की गयी जो वंहा काफी लोकप्रिय हो गयी। इस नस्ल का नाम उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना नदी से लिया गया है जिसे उत्तर प्रदेश में जमुना भी कहा जाता है। ये बकरियां भी बांग्लादेश में भी पाई जाती हैं।
जमुनापारी नस्ल की बकरियों के रंग में काफी विविधता है लेकिन सामन्यतया जमुनापारी सफेद रंग की होती है और और शरीर पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। परन्तु इनका रंग सफेद, काले, पीले, भूरा या विभिन्न मिश्रण भी हो सकता है। जमुनापारी नस्ल की सबसे विशिष्ट विशेषताएं इसकी अत्यधिक उत्तल नाक है, जिस वजह से ये बकरियां तोते की तरह दिखती है इसलिए इन्हें तोतापरी के नाम से भी जाना जाता है।
जमुनापारी के कान लंबे और लटकते रहते हैं। नर और मादा दोनों के सींग होते हैं। थन अच्छी तरह से विकसित होता है। जमुनापारी नस्ल की बकरियों के पैर लंबे होते हैं।
जमुनापारी नस्ल को दूध और मांस दोनों के लिए पाला जाता है। अच्छी जमुनापारी जाति की बकरियों का दूध उत्पादन 2-2.5 लीटर प्रतिदिन तक भी होता है।
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