बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रथम दीक्षांत समारोह का आयोजन

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15 अक्बिटूबर 2019: बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय का प्रथम दीक्षांत समारोह मंगलवार को अधिवेशन भवन में आयोजित किया गया, दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता बिहार के महामहिम राज्यपाल-सह-कुलाधिपति श्री फागू चौहान ने किया। बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेज बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय और संजय गाँधी गव्य प्रौद्योगिकी संस्थान के विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की गयी, जिनमे से 4 छात्रों को गोल्ड मेडल से भी नवाज़ा गया। बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय के बैचलर ऑफ़ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी पाठ्यक्रम के 54 विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की गयी, मास्टर्स इन वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी पाठ्यक्रम में 14 विद्यार्थियों को डिग्री दी गयी, वहीं संजय गाँधी गव्य प्रौद्योगिकी संस्था के बीटेक डेयरी टेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम के 27 विद्यार्थियों को डिग्री देकर सम्मानित किया गया।

गोल्ड मेडल पाने वालों में संजय गाँधी गव्य प्रौद्योगिकी संस्था की बीटेक डेयरी टेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम की छात्रा खुशबू कुमारी (2014 बैच), बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय के बैचलर ऑफ़ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी पाठ्यक्रम के छात्र सौरभ स्वामी (2013 बैच), आकृति अन्ना (2014 बैच) और एम.भी.एस.सी की छात्रा संजना (2017 बैच) शामिल है।

इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल महामहिम श्री फागु चौहान ने कहा कि बिहार की धरती प्राचीन समय से ही शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाती रही है। राज्य में उच्च शिक्षा की गरिमा पुनः स्थापित करने के लिए बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है। पशुपालन भारतीय कृषि का अभिन्न अंग रहा है। पशुधन हमेशा से भारत के आर्थिक चिन्तन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।कृषि और पशुपालन को प्रोत्साहित कर हम ग्रामीण क्षेत्र के करोड़ों किसानोंऔर पशुपालकों को रोजगार और आर्थिक विकास से जोड़ सकते हैं। पशुपालन हो, मछली-पालन हो, मुर्गी-पालन हो या मधुमक्खी-पालन इन पर किया गया निवेश ज्यादा मुनाफा देता है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की शोध परियोजनाएँ चल रही हैं। मुझे ऐसा विश्वास है कि इन शोध परियोजनाओं के सकारात्मक परिणामों से हमारे किसानों को आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान में सहायता मिलेगी। देश एवं राज्य में देशी नस्ल की गायों के सम्वर्द्धन हेतु भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक की एक परियोजना इस विश्वविद्यालय में चलायी जा रही है। उम्मीद है, हमारे बिहार राज्य की देसी नस्ल की गाय “बछौर” के संरक्षण में यह परियोजना सहयोग देगी। राष्ट्रपितामहात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती वर्षगाँठ के सुअवसर पर भी हमने संकल्प लिया है कि राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में जलशक्ति कैम्पस और स्वच्छकैम्पस की अवधारणा को साकार किया जायेगा। विश्वविद्यालयों को गाँवों को गोदलेकर जलशक्ति ग्रामों के सपने को भी साकार करना है। स्वच्छताए सफाई एवं जल संरक्षण के कार्यों को मूर्त रूप देने के लिए सभी विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। शिक्षा कीयात्रा कभी समाप्त नहीं होती। दीक्षांत समारोह को शिक्षा की समाप्ति नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसे तो अपने ज्ञान की अभिवृद्धि में प्रेरक मानना चाहिए।

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माननीय मुख्यमंत्री, बिहार के पूर्व सलाहकार डॉ मंगला राय ने कहा कि बिहार प्रदेश की सबसे बड़ी पूँजी उसकी उर्वरा भूमि और गुणवत्तापूर्ण जल का भंडार है। दोनों पर आज संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में एनिमल हसबेन्ड्री के साथ-ही-साथ समग्र रूप में लैण्ड हसबेन्ड्री की भी बात सोचेंगे? देश में सबसे पहले Quality Protein Maize की उन्नतिषील प्रजातियाँ लगभग दो दशक पहले, बिहार में ही विकसित की गईं, पर उनका कितना उत्पादन और उपभोग आप कर रहे हैं? आप का मक्का आँध्र प्रदेश जाता है तथा अण्डा और मछली वहाँ से यहाँ आता हैै। आप अपने बहुमूल्य मक्के का भरपूर उपयोग कर अण्डा-मछली का उत्पादन यहाँ क्यों नही बढ़ा सकते हैं? अगर अण्डा उत्पादन की चक्रवृद्धि दर कुछ वर्शों में देष में 40% के ऊपर जा सकती है, तो आप के यहाँ अण्डा, मछली का उत्पादन 30% क्यों नही बढ़ सकता? मछली आप पूरे South East Asia को खिला सकते हैं। भरपूर लाभ कमा सकते हैं और घर-घर में रोजगार पैदा कर सकते हैं। इस तरह की अनेक सम्भावनायें आप का आह्वाहन कर रहीं हैं। आपको अपने जीवन में संकल्प शक्ति को दृढ़ करना होगा एवं अपना लक्ष्य खुद निर्धारित करना होगा। आप संसार के घटनाक्रम को और समाज में हो रही उथल-पुथल को अपनी इच्छानुसार नहीं बदल सकते परन्तु अपने अन्दर इतना मनोबल अवश्य उत्पन्न कर सकते हैं कि उनका कोई कुप्रभाव किसी प्रकार भी आपको अपने निर्धारित मार्ग से विचलित न कर सके।

डॉ मंगला राय ने कहा कि परिस्थिति जन्य समन्वित खेतीबारी-पशुपालन-मछली पालन आधारित उत्पादन और उपभोग प्रणाली का विकास करना होगा। आवष्यक होगा कि प्रदेष की कृषि एवं पशुपालन के विश्वविद्यालयों की एक सम्मिलित, समन्वित परियोजना बनाई जाये। प्रदेश में मछली उत्पादन की चक्रवृद्धि दर 30ः एक दशक तक लगातार प्राप्त करना आवश्यक है। यह आसान और सम्भव है। इसे 3-4 वर्षों में क्रमबद्ध तरीके से हासिल किया जा सकता है। इसमें जल प्रबन्धन, जीरा उत्पादन, चारा उत्पादन आदि पर ध्यान देना होगा। गुणवत्तापूर्ण सीमेन का उत्पादन और उपयोग सुनिश्चित करना पड़ेगा, जिससे मनचाही बछिया ही उत्पन्न की जा सके। यह कार्य मेरठ में करीब 15 वर्ष पहले शुरू हुआ था। आज एन०डी०आर०आई० भी काम कर रहा है। सबको कंधे-से-कंधा मिला कर आगे बढ़ना होगा। प्रदेश को कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ वर्ष दर वर्ष झेलना पड़ता है। अतएव, चारे की गुणवत्तापूर्ण प्रजातियों का विकास, बीज उत्पादन, पशु आहार उत्पादन, मूल्य सम्वर्धन, फीड ब्लाॅक निर्माण, भंडारण और यथास्थिति उपयोग प्रणाली विकसित करनी होगी तथा एक समसामयिक नीति निर्धारण के साथ उसका कार्यान्वयन करना होगा। पशुधन सुरक्षा हेतु समग्र समेकित स्वास्थ्य प्रणाली का विकास करना होगा। सेन्सर आधारित रोग पहचान, निदान एवं रोग निवारण पर परियोजना बनानी और चलानी होगी। दवा डिलेवरी प्रणाली का विकास, नैनो टेक्नोलाॅजी का विकास एवं डी०एन०ए० वैक्सीन का उत्पादन तथा सदुपयोग करना होगा। जुनोटिक बीमारियों पर एक समेकित प्रणाली बनानी होगी। मानव चिकित्सा आधारित अनुसंधानकर्ताओं के साथ समुचित समन्वित रोग निवारण का प्रयास करना होगा। आपको समीपवर्ती मेडिकल संस्थान को साथ रखना होगा। गुणवत्तापूर्ण चूजे, पिगलेट, मछली जीरा आदि का समुचित उत्पादन और उपयोग करना होगा। इसपर विषेश बल अत्यंत लाभकारी होगा। कृशि को लाभकारी बनाने के लिए तथाकथित Waste को Wealth में परिवर्तित करना होगा। मूल्य सम्वर्धित विविधीकृत उत्पाद बनाना होगा तथा प्राइमरी प्रोडक्ट आधारित कृशि व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा। समयानुकूल नाना प्रकार के उत्पाद, मूल्य सम्वर्धन, भण्डारण, वाणिज्य, विपणन और उपभोग की समुचित व्यवस्था विकसित करने पर विशेष बल देना होगा।

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कृषि-सह-पशुपालन मंत्री, बिहार डॉ प्रेम कुमार ने कहा कि राज्य में कृषि एवं पशुपालन के विकास के लिए शिक्षा एवं प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए कृषि रोड़ मैप में इसके लिए व्यापक कार्यक्रम निर्धारित किये गये है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना करना हमारे तीसरे कृषि रोड मैप के लक्ष्यों में प्रमुख रूप से दर्शाया गया है। विश्वविद्यालय का समाज के प्रति विशेष कर किसानों के प्रति उत्तरदायित्व है। ज्ञान का लाभ समाज तक पहुंचे, इसके लिए विश्वविद्यालय को गावों से जोडने का काम करना होगा। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक तथा छात्र जब गाँव-गाँव जाकर वहां के पशुपालकों की आवश्यकताओं को समझेंगे तभी हीं उन्हें समाज के प्रति कर्तव्य का बोध होगा। उन्हें गावों से जुड़ कर पशुपालकों को विभिन्न प्रकार के बीमारी के पहचान एवं उपचार, आधुनिक तरीके से पशुपालन, पशु उत्पादक, सही विपणन, खाद्य सुरक्षा मानकों इत्यादि के बारे में जानकारी एवं प्रशिक्षण देना होगा। इसके अलावा विश्वविद्यालय को किसान सहायता केंद्र भी खोलना चाहिए, जिससे की दूरस्थ पशुपालको की समस्याओं का समाधान एवं महत्त्वपूर्ण जानकारी आसानी से मिल सके। अभी हमारे राज्य में ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 49 प्रतिशत पशुपालक हैं। हमें अन्य किसानों को प्रोत्साहित कर पशु एवं मत्स्य पालन में सम्मिलित करना होगा। विश्वविद्यालय को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पशु विज्ञान केंद्र स्थापित करके किसानों को पशु विज्ञान सी प्रभावी रूप से जोडा जा सकता है तथा किसानों को पशुधन से अधिक लाभ मिल सकता है। मैं मानता हूँ कि पशु विज्ञान के व्यापक प्रसार से प्रदेश में रोजगार बढेगा, पोषक तत्त्वों से परिपूर्ण दूध, अंडे और मछली की उपलब्धता बढ़ने से प्रदेश में महिला एवं बाल कुपोषण को रोका जा सकेगा।

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समारोह में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के पूर्व महानिदेशक-सह-सचिव और माननीय मुख्यमंत्री, बिहार के पूर्व सलाहकार डॉ. मंगला राय ने दीक्षांत भाषण प्रस्तुत किया। दीक्षांत समारोह में कृषि-सह-पशुपालन मंत्री, बिहार डॉ. प्रेम कुमार, कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह, अपर मुख्य सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा, विभागीय सचिव डॉ. एन. विजयलक्ष्मी, सहित विश्वविद्यालय के प्रबंधन बोर्ड के सदस्य एवं विद्वत परिषद् के सदस्यगण मौजूद थे, साथ ही बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय के भूतपूर्व छात्र व पदाधिकारी ने शिरकत किया।

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