आइये दुधारू पशुओें के व्यवहार को समझें

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हमारा देश भारत दूध उत्पादन में शीर्ष पर है और इसका उत्पादन प्रति वर्ष 185 मिलियन टन से अधिक हो चूका है, राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (2018-19)। दुधारू पशु मुख्यता छोटे एवं मध्यम वर्गी किसानो द्वारा रखे जाते है जिनके पास सीमित भूमि और उन पर खर्च करने की समता काफी कम रहती है। सीमित संसाधन पशुओ के व्यवहार में काफी असर करते है जिससे पशु में कम उत्पादन और बीमार होने की संभावना भी बड़ जाती है हालांकि इसे हमेशा से उतना महत्त्व नहीं दिया गया परन्तु पशुओं और उनसे प्राप्त उत्पादों को प्राप्त  करने के दौरान पशुओ के साथ किये गये व्यवहार के प्रति ग्राहक की बढ़ती जागरूकता पुनः हमें इस विषय में अपनी समझ को बढ़ाने को सुझाती है। पशुओ के व्यवहार की समझ पशुपालकों को उनके वैज्ञानिक रखरखाव अथवा उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पशुओ के प्राकृतिक व्यवहार का अध्ययन उनके प्राकृतिक वातावरण में किया जाता है।

दुधारू पशुओ की इन्द्रियां
दुधारू पशु (गाय और भैंस) दिनचर होते है, और झुण्ड में रहना पसंद करते है इनकी इन्द्रियां काफी विकसित रहती है ये रंगो में अंतर के साथ.साथ आकारों को भी समझते है। आवाज परखने की क्षमता मनुष्यो के सामान होती है लेकिन इन्हे आवाज की दिशा को समझने में मुश्किल होती है। सूंघने की क्षमता अत्यधिक विकसित होती है जिसका उपयोग ये चारे के चयन और आपसी व्यवहार में करते है। पशु अपने नवजात पशु को सूंघ कर पहचानते हैं। इन्हे मीठा और खट्टा स्वाद पसंद रहता है, कड़वा और अधिक नमकीन चारा खाना पसंद नहीं करते। दुधारू पशु भी चोटें, बीमारी और तनाव में दर्द और बैचनी का अनुभव  मनुष्यों  के सामान ही महसूस  करते है।

पशुओ के लिये पर्याप्त व्यक्तिगत रिक्त स्थान
गाय और भैंसो की व्यक्तिगत रिक्त स्थान की आवश्यक्ता को भौतिक और सामाजिक रिक्त स्थान में विभाजित किया गया है। भौतिक रिक्त स्थान का अभिप्राय आवश्यक जरूरतों जैसे उठना, बैठना और अंगड़ाई लेने को पर्याप्त स्थान से होता है, जबकि सामाजिक रिक्त स्थान का दूसरे पशुओ से न्यूयनतम दुरी से है। व्यक्तिगत रिक्त स्थान की आवश्यक्ता पूरी न होने पर पशु तनाव में आ जाता है और उत्तेजित रहता है ।

दैनिक जैविक प्रक्रिया
गाय और भैंस में मुख्य जैविक प्रक्रिया चारा खाना, लेटना, जुगाली और पानी पीना है। संघचारी होने के कारण ये सभी जैविक क्रिया एक समान समय में करना पसंद करते है। ये हलकी झपकी खड़े और जुगाली के साथ भी लेते है और कुछ ही मिनट के की लिये 10-15 बार प्रतिदिन सोते है। पशु दिन और रात्रि के मध्य उठता है अंगड़ाई लेता है और फिर से बैठ जाता है।

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बैठने अथवा लैटने (विश्राम काल) की क्रिया
एक वयस्क दुधारू पशु प्रतिदिन 10-14 घंटे बैठते है जो 15-20 हिस्सों में पूरा करते है। जमीन को करीब से सूंघने के बाद पशु अगले पैरो के घुटने मोड़ता है और पिछले भार को आघे की तरफ ले जाते हुए पीछे के पैरों को मोड़ते हुए बैठ जाता है। इस प्रक्रिया में पशु अपने अगले भाग से 0.6 से 0.8 मीटर तक आगे को झुकता है। उठने की क्रिया मे पशु पिछला वजन आगे करते हुए पीछे के पैरों के बल से खड़ा हो जाता है। बैठने में पशु 15 से 20 सेकण्ड लगाता है और उठने में  5-8  सेकण्ड्स। प्रयाप्त जगह न होने और फिसलन वाली जगह में बैठने अथवा लेटने की क्रिया बाधित होती है और इसे पूरा करने में पशु काफी मिनट लगा देता है ।

पशु के लैटने और बैठनें को विश्राम काल भी कहते है, इसमें केवल बैठना और लेटना, बैठना और साथ में सोना, बैठना और सम्पूर्ण मांसपेशी का ढीला रखना सम्मिलित है बैठने और लैटने के साथ सम्पूर्ण मांसपेशी के ढीला रखने के लिये पशु सर को कंघों पर रख लेता है ताकि गले की माँसपेसिया को भी आराम मिल सके।

चारा खाने  की क्रिया
इनका मुख्य आहार सेल्यूलोस से भरपूर हरे पौधे एवं घास  होती है। सेल्यूलोस को पचाने की समता रुमेन में मोजूद लाभकारी जीवाणु प्रदान करते है परन्तु इसे पूरी तरह विकसित होने में 6 महीने का वक्त लगता है। इसलिए छोटे दुधारू पशुओ को शुरुआत में काल्फ स्टार्टर (प्रोटीन 24.26% तथा टीडीन- 75 %)  देने को सुझाव दिया जाता है।

पशुओ में चारा खाने की क्रिया 5-9 घंटे की होती है, जो, 10-15 भागो में बटी रहती है जिसमें हर भाग लगभग 30-45  मिनट का रहता है। चारा और दाना खाते समय पशु दोनों पैरों को साथ रखता है और जमीन तक मुश्किल से पहुँचता है इसलिये ऐसा सुझाया जाता है की चारा पशुओ को पैरों से 10 सेंटीमीटर ऊपर देना चाहिये तथा चारे की पहुंच 0.6 मीटर से अधिक न हो।

जुगाली करने की क्रिया
पशुओ में जुगाली चारा खाने या चरने के 1/2 से 1 घंटे बाद शुरू हो जाती है। इस क्रिया में  पशु द्वारा ग्रहण किया गया आधा चबा चारा दुबारा मुँह में लाया जाता है और उसे मुहं के पिछले भाग में मौजूद चबाने वाले दांतो की मदद से पूरी तरह चबा लिया जाता है। आधा चबा चारे के मुँह में फिर लाना की प्रक्रिया को ऊर्ध्वनिक्षेप कहा जाता है और इसकी दर 2 से 3 बार प्रति 5 मिनट रहती है। इसमें पशु आधा चबे चारे के तरल भाग को फिर गटक लेता है तथा ठोस चारे को 50-60 बार चबाने के उपरांत  पुनः निगल लेता है। सामान्यता पशु 5-8 घंटे जुगाली करता है।

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पानी की आवश्यकता
पशु खाने के दौरान और उसके बाद पानी पीना पसंद करता है। अत्यधिक पानी से भरपूर चारा देने से पानी की आवश्यकता कम हो जाती है। पानी की आवश्यकता वायु के तापमान और उत्पादन में भी निर्भर करती है। पशु को दिन में 3 बार अवश्य पानी उपलब्ध करायें।

स्वस्थ पशु द्वारा दैनिक जैविक प्रक्रिया में प्रतिदिन लगाया जाने का औसतन वक्त

 

क्रिया

वक्त

आवृत्ति

 

 1

चारा खाने

5-9 घंटे 10-15

 2

विश्राम काल

10-14 घंटे

15-20

 3

जुगाली

5-8 घंटे

15-20

 4 निद्रा

कुछ ही मिनट

15-20

प्राकर्तिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

1. आहार में अचानक परिवर्तन
पशुओ के आहार में परिवर्तन से पाचन क्रिया प्रभावित होती है जो की रुमेन में मौजूद बैक्टीरिया की संख्या को असर करती है जिससे अपच और उत्पादन कम हो जाता हैें इसीलिये ऐसा सुझाया जाता हैै की पशु के आहार में परिवर्तन धीरे धीरे ( 4-5) दिनों के भीतर करें।

2. फर्श
फर्श  का प्रकार, उसकी ढलान और उपयुक्त रिक्त स्थान पशुओ के बैठने उठने को प्रभावित करता  है। कंक्रीट के फर्श साथ में उसका गीला रहना पशुओं के पैरो को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। अगर पशु के बैठने के स्थान में ढलान न हो तो पेशाब होने के बाद भी स्थान लम्बे समय तक  गीला रहता है जिस कारण पशु काफी देर तक खड़ा रहता है और वहां कीटाणु भी ज्यादा पनपते है।

3. व्यक्तिगत रिक्त स्थान में कमी
व्यक्तिगत रिक्त स्थान की आवश्यक्ता पूरी न होने पे पशु तनाव में आ जाता है और उत्तेजित रहता है।

पशुओ के व्यवहार की समझ पशुपालको को कैसे लाभकरी है 

  • पशुओं की विश्राम करने की जगह कम होने पर पशुओ की दैनिक जैविक प्रक्रिया प्रभावित होती है। पशु को उनकी जगह प्रयाप्त है ये बात उनके विश्राम करने के तरीके से समझ सकते है। पशु का लंबे समय तक खड़ा या बैठे न रहना, बैठने पर सामान्य वक्त का लगना और अगर पशु सोने अथवा बैठना पर सम्पूर्ण मांसपेशी को ढीला रख पाता है तो उसके पास प्रयाप्त जगह है।
  • पशुओंको कोमल जगह पे बैठना पसंद होता है और इससे लंगड़ेपन को भी कम किया जा सकता है इसके लिये भूसी, रबर मेट का प्रयोग करना चाहिये तथा फर्श मे 1:40 के अनुपात मे ढलान होनी चाहिये।
  • पशुओं का जुगाली न करना या कम करना, ये इशारा करता है की उसका पाचन तंत्र प्रभावित है तब पशुचिकित्सक की सलाह लें।
  • पशुबाड़े की सफाई बार-बार करते रहें और ये सुनिश्चित करें की पशु के शरीर में विशेषकर खुरो, थनों और पैरों पर गोबर ना ठहरे।
  • पशुओं को प्रतिदिन कम से कम तीन बार प्रयाप्त मात्रा में साफ पानी दें।
  • गर्मियों में पशु को चारा अत्यधिक तापमान के वक्त न दें। पशुओ को उपलब्ध चारे और दाने के विषय में पशुचिकित्सक से लगातार सलाह लें।  इससे चारे और दाने में खर्च को कम तथा उत्पादन को  बढ़ाया जा सकता है।
  • पशुओं को प्यार से दुलारे इससे उसके स्वास्थ का पता रहता है और शरीर में परजीवी होने का भी शीघ्र पता चल जाता है। अमेरिकी वैज्ञानिको ने ऐसा पाया है कि खुश रहने वाले पशुओं के दूध में अधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।

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