पशु प्रसव के बाद मादा द्वारा शिशु को जन्म दिया जाता है। शिशु को जन्म के 2 घण्टे के अन्दर फेनुस (Colostrum) अवश्य पिलाना चाहिए।
खीस या फेनुस क्या है?
बछड़ा/बछड़ी के जन्म के तुरन्त बाद ही माँ के थनों से जो पहला पीले रंग का गाढ़ा दुध निकलता है उसे कोलस्ट्रम या खीस अथवा फेनुस कहते है। यह दुधारु पशु के नवजात शिशु को पिलाना अति आवश्यक है, क्योकि इसमें बीमारियों से लड़ने के ऐसे तत्व विद्यमान होते है जो कि नवजात बछड़ा/बछड़ी को संक्रामक रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। उनसे प्रतिरक्षा शक्ति की क्षमता बढ़ जाती है तथा आये दिन की पेट व संक्रामक रोगों की रोगों से बचे रहते है।
फेनुस क्यों पिलायें?
- जन्म के तुरन्त बाद, नवजातशिशु को प्रतिरोध प्रोटीन (गामा ग्लोब्युलिंन) माँ के फेनुस से प्राप्त होता है। ये प्रतिरोध प्रोटीन अमाशय से बहुत जल्दी अवशोषित होकर, खून में प्रवेश कर बछड़ा/बछड़ी को कई प्रकार की बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं।
- प्रतिरोध क्षमता के अलावा फेनुस बहुत ही पौष्टिक तथा पाचक होता है। खीस/फेनुस में ऐसे भी तत्व होते हैं, जो पाचन क्रिया को संतुलित रखते है तथा बछड़ा/बछड़ी के प्रथम भल (गोबर) को निकालने में सहयोग करते है।
- फेनुस साधारण दूध से एकदम भिन्न होता है। इसमें प्रोटीन 20.3 प्रतिशत होता है। जो कि साधारण दूध से लगभग सात गुना अधिक होता है। साथ ही इसमें वसा की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत होने से फेनुस में विटामिन ‘ए‘ की मात्रा से सामान्य दूध से 10 गुना अधिक होती जो नवजात शिशु को स्वस्थ रखने में सहायता करते हैं।
फेनुस कब और कैसे पिलाये?
पशु पालकों को चाहिए कि गाय व भैंस द्वारा जन्म देने के 1-2 घण्टे के भीतर फेनुस को या तो निकाले अथवा बछड़े को थन (छीमी) के पास ले जाकर थन (छीमी) को धीरे-धीरे उसमें मुँह में देकर चूसना सिखाँए और बारी-बारी से चारों थनों (छीमीयों) से दूध पीलवायें एवं बची हुई फेनुस को साफ बर्तन में निकाले।
फेनुस उपलब्ध न होने पर क्या करें?
कभी-कभी किसी कारणवश जैसे गाय के बीमार होने पर या अकस्मात मर जाने पर थन (छीमी) पर चोट आने पर नवजात बछड़ा/बछड़ी को यदि सीधे थनों (छीमीयों) से फेनुस पिलानी चाहिए। ऐसी अवस्था में जब बच्चे को माँ से अलग करें तो बोतल व बर्तन से फेनुस व दूध निकाल कर तुरन्त पिला दें। फेनुस को चैडे़ बर्तन में ले। धीरे-धीरे फेनुस के पास ले जाए। जब बच्चे का मुँह फेनुस की सतह को छूने लगे, तब अँगुली को भी फेनुस में डुबा दें। बछड़ा तो अँगुली चूसेगा, किन्तु उसके साथ ही फेनुस भी उसके मुँह में जाने पर वह तेजी से चूसना शुरु करता है तथा जल्दी ही पी जाता है। यदि किसी अन्य पशु को फेनुस भी शिशु के लिए उपलब्ध न हो तो उसके स्थान पर पशुचिकित्सक की राय से पूरक आहार देना चाहिए।
जन्म के सप्ताह बाद बछड़ा/ बछड़ी का पोषण
नवजात शिशु को जन्म लेते ही या दो दिनों तक माँ के थन (छीमीें) से खीस (फेनुस) पिलाने के बाद अलग करके दूध पिलाने के साथ प्रारंभिक आहार और चारा खाने दें। अधिक सक्रिय होने के कारण शिशु को केवल 9 सप्ताह तक ही दूध पिलाने की आवश्यकता पड़ती है। इनकों जन्म से 4 सप्ताह की आयु तक शरीर भार का 10 प्रतिशत 5-6 सप्ताह की आयु तक 7 प्रतिशत और उसके बाद क्रमशः घटाकर नवे सप्ताह में दूध पिलाना बन्द कर दें। दूसरे से तेरहवें सप्ताह तक बछड़े-कछिया (बाछा-बाछी) को निम्नलिखित तालिका के अनुसार खाद्य मिश्रण व चारा दें।
नवजात बछड़ा/बछड़ी हेतु राशन की मात्रा
बछड़ा/बछड़ी की आयु (सप्ताह) |
प्रारंभिक खाद्य मिश्रण (ग्राम/दिन) |
हरा चारा (ग्राम/दिन) |
दूसरा | 50 | 500 |
तीसरा | 100 | 900 |
चौथा | 300 | 900 |
पांचवा | 500 | 1500 |
छठा | 600 | 1800 |
सातवां | 700 | 2100 |
आठवां | 800 | 2400 |
नवां | 900 | 2700 |
दसवां | 1000 | 3300 |
ग्यारहवां | 1100 | 3300 |
बारहवां | 1200 | 3600 |
तेरहवां | 1300 | 3900 |
नोट:
- हरे चारे की मात्रा चारे की प्रौढ़ता के अनुसार घटती-बढ़ती रहेगी। यह मात्रा 20 प्रतिशत शुष्क पदार्थ के आधार पर दिया गया है।
- दलहनी चारा उपलब्ध होने पर प्रारंभिक खाद्य मिश्रण में 20 प्रतिशत मक्के, गेहूँ या जौ का दलिया मिश्रित कर देना चाहिए या 15 प्रतिशत शीरा मिश्रित कर देना चाहिए।
तीन माह की आयु के बाछा-बाछी की खुराक
3 माह की आयु में बाछा-बाछी पर्याप्त मात्रा में चारा खाकर जुगाली करना सीख जाते हैं। अतः 3 माह की आयु की बाछी को धीरे-धीरे दूध छुड़ा देना चाहिए और उसे हरा चारा व दाना देना चाहिए। दाने के मिश्रण में कम से कम 12-13 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा अवश्य होनी चाहिए। ऐसी बाछी को एक-दो किलोग्राम दाना प्रतिदिन देना चाहिए।
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