परिचय
सर्रा पालतू एवं जंगली पशुओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोगो में से एक है। यह रोग पूरे विश्व में फैला हुआ है। भारत में इस रोग का प्रकोप सभी राज्यों में है, जिसके कारण पशुओं की उत्पादक क्षमता में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से अत्याधिक कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप हमारे देशकी पषुधन अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 2017 में प्रकाशित एक रिर्पोट के अनुसार सर्रा रोग के कारण अनुमानित वार्षिक नुकसान रू. 44740 मिलियन होता है। अत्याधिक आर्थिक नुकसान केा देखते हुए पशुपालकों को इस रोग के रोकथाम के बारे मे समुचित जानकारी रखना अतिआवश्यक हो जाता है।
रोग का कारण
- यह एक रक्त परजीवी जनित रोग है, जो ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई नामक प्रोटोजोआ के पशुओं के रक्त-प्लाज्मा में मौजूद रहने के कारण होता है। इसे ‘सर्रा‘ या ट्रिपेनोसोमियोसिस रोग के नाम से भी जाना जाता है ।
ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को सर्वप्रथम ग्रिफिथ इवांस ने 1885 ई में पंजाब के डेरा ईस्माइल खान जिला (अभी पाकिस्तान मे अवस्थित है) में घोडों एवं ऊटों के खून में देखा था।
- यह परजीवी बहुत सारे पशुओं जैसे-घोड़ा, कुत्ता, ऊँट, भैंस, गाय, हाथी, सुअर, बिल्ली चूहा, खरगोष, बाघ, हाथी, हिरन, सियार, चितल, लोमड़ी आदि को प्रभावित करता है। लेकिन ऊँट, घोड़ा एवं कुत्ता में सर्रा बहुत गंभीर रोग के रूप में प्रकट होता है। भैंस में इस रोग का प्रकोप गाय की अपेक्षा अधिक होता हैं।
रोग की व्यापिकता
यह पशुओं के उत्पादकता कम करने वाला तथा प्राणघातक रोग हैं, जो बरसात के समय तथा बरसात के बाद 2-3 महीनों में अधिक देखने को मिलता है क्योंकि इस मौसम में रोग फैलाने वाले उत्तरदायी मक्खियों जैसे- टेबेनस (मुख्य रूप से) आदि की संख्या में अत्याधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है।
रोग का प्रसार
- यह रोग, रोग-ग्रस्त पशु से स्वस्थ पशु में खून चूसने या काटने वाले मक्खी जैसे- टेबेनस (मुख्यतः), स्टोमोक्सिस, लाइपरोसिया आदि के द्वारा यांत्रिक रूप से फैलता है।
- जब टेबेनस मक्खी, सर्रा संक्रमित पशु से खून चुसता है तो ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को अपने मुँह में ले लेती है । यह परजीवी 10-15 मिनट तक मक्खी के मुँह में जिन्दा रहता है।
- टेबेनस मक्खी के थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तराल पर काटने की प्रवृत्ति, ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को सफलतापूर्वक एक पशु से दूसरे पशु के शरीर में पहुँँचाने में मददगार साबित होता है।
- कुत्तों एवं मांसहारी जंगली पशुओं (बाघ आदि) में सर्रा रोग का फैलाव ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई संक्रमित ताजा मांस के खाने से भी होता है।
- टेबेनस मक्खी को भारत में अधिकतर क्षेत्रों के लोग ‘डांस’ मक्खी के नाम से ज्यादा जानते है।
रोग का लक्षण
गाय-भैंस: सर्रा रोग अति तीव्र, अल्पतीव्र, तीव्र तथा दीर्घकालिक प्रकार का होता है। आमतौर पर गाय-भैंस के शरीर में इस रक्त परजीवी के रहने पर भी कोई बाहरी लक्षण नहीं दिखाई पड़ता है। इस रोग में गाय-भैंस में दिखाई पड़ने वाले मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
- प्रभावित पशु में रूक-रूक कर बुखार आना, बार-बार पेशाब करना, खून की कमी, पशु द्वारा गोल-गोल चक्कर लगाना, सिर को दीवार या किसी कड़ी वस्तु से टकराना।
- खाना-पीना कम कर देना, आँख एवं नाक से पानी गिरने लगना एवं मुँह से भी लार गिरने लगना।
- प्रभावित पशु का धीरे-धीरे अत्याधिक दुर्बल एवं कमजोर होते चला जाना।
- सक्रमित दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन में बहुत ज्यादा कमी हो जाना ।
- संक्रमित पशुओं का पिछला धड़ लकवा-ग्रस्त हो जाना।
- प्रभावित पशु की प्रजनन-क्षमता में कमी एवं गर्भित पशुओं में गर्भपात होने की पूरी संभावना रहना।
घोडा: सर्रा रोग से संक्रमित घोंड़ें का समय पर उचित चिकित्सा नही होने पर संक्रमित घोंड़ों का कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों में मृत्यु हो जाती है, जो ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई प्रजाति के प्रचण्डता (विरूलेन्स) पर निर्भर करता है । रूक-रूक कर बुखार आना, दुर्बलता, पैर एवं शरीर के निचले हिस्सों में जलीय त्वचा षोथ (सूजन) अर्थात इडीमा का हो जाना, गर्दन एवं शरीर के पार्श्व क्षेत्रों में पित्ती के जैसा उभार (अर्टिकेरियल प्लैक) हो जाना आदि लक्षण प्रकट होता है।
ऊँट: इस रोग का तीव्र या चिरकालिक रूप ऊँट में पाया जाता है, जिसका उपचार न होने पर प्रभावित ऊँट की मृत्यु भी हो जाती है । चिरकालिक सर्रा में संक्रमण लगभग तीन साल तक रहता है जिसके कारण सर्रा रोग को ऊँट में टिर्बसा भी कहा जाता है। बुखार, प्रगतिशील दुर्बलता, कमजोरी, खून की कमी (एनीमिया), शरीर के निर्भर भागों मे जलीय त्वचा शोथ, गर्भपात आदि लक्षण सर्रा संक्रमित ऊँट में दिखाई पड़ता हैं।
कुत्ता: सर्रा रोग से संक्रमित कुत्ता के कंठनली में जलीय त्वचा शोथ (इडीमा) हो जाता है, जिसके कारण संक्रमित कुत्ता का आवाज रैबीज रोग के समान हो जाता है । इसके अलावे नेत्रपटल अस्पष्टता (काॅर्नियल ओपेसिटी) भी होता है जिसमें आँख नीले रंग का हो जाता है।
रोग की पहचान
- लक्षणों (रूक-रूक कर बुखार आना, दुर्बलता, सिर को दीवार या किसी कड़ी वस्तु से टकराना आदि) के आधार पर।
- कांच के स्लाइड पर रोग-ग्रस्त पशु के रक्त के आलेप को जिम्सा या लीशमैन से रंगकर सूक्ष्मदर्षी की सहायता से देखने पर धागे या पत्ते के आकार का ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई नामक प्रोटोजोआ रक्त-प्लाज्मा में दिखाई पड़ता है । इस जाँच हेतु रक्त प्रायः पशु कान के शिरा (वेन) से शरीर के तापक्रम अधिक होने पर अर्थात बुखार के समय किटाणुरहित स्टेरलाइजड सुई से ही निकालना चाहिए।
- रोग के अति तीव्र एवं तीव्र अवस्था मे संक्रमित पशु का एक बूँद खून कांच के स्लाइड पर लेकर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने पर धागे के आकार ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी जीवित एवं चलते हुए दिखाई देता है।
- पशु के शरीर के अन्दर छिपे हुए ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को पता लगाने में पशु संरोपण विधी में अल्बिनो चूहों का प्रयोग किया जाता है।
- उपरोक्त जांच विधि के अलावे, आधुनिक आणविक विधी जैसे- पाॅलिमेरेज चेन रिएक्शन (पी.सी.आर.) के द्वारा इस रोग का पता लगाया जाता है। इस विधी का प्रयोग कर सर्रा के दीर्घकालिक अवस्था का भी पता लगाया जा सकता है क्योंकि दीर्घकालिक अवस्था वाले सर्रा रोग में शरीर के बाहृय शिरा (परिधीय शिरा) में ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी के मिलने की संभावना कम रहती हैं ।
रोग का उपचार
- ट्रिपेनोसोमियोसिस (सर्रा) रोग के उपचार हेतु क्यूनापाइरामीन सल्फेट 1.5 ग्राम तथा क्यूनापाइरामीन क्लोराइड 1.0 ग्राम (ट्राइक्वीन-2.5 ग्राम) औषधि लेकर 15 मि.ली डिसटिल्ड जल में घोल बनाकर चमड़े के अन्दर सुई द्वारा आधी मात्रा गर्दन में एवं आधी मात्रा शरीर के पिछले हिस्से में पशुचिकित्सक की देख-रेख में देने से लाभदायक सिद्ध होता है।
- सर्रा रोग से प्रभावित पशु के शरीर में ग्लुकोज की अत्याधिक कमी हो जाती है जिसकी पूर्ति हेतु डेक्सट्रोज स्लाईन (25 प्रतिशत) का प्रयोग पशुचिकित्सक की सलाह के अनुसार करना फायदेमंद होता है।
- इसके अलावे डायमिनाजीन एसीचुरेट 7 मिलिग्राम प्रति किलोगा्रम पशु शरीर भार पर या आइसोमेटामिडियम क्लोराइड 0.5 मिलिग्राम प्रति किलोगा्रम पशु शरीर भार पर या मेलारसोमिन हाइड्रोक्लोराइड या टारटर इमेटिक औषधि का प्रयोग भी इस रोग में कारगर साबित होता है ।
बचाव
- सर्रा रोग का कोई टीका अभी तक नही बना है । अतः इस रोग से बचाव हेतू क्यूनापाइरामीन क्लोराइड औषधि या आइसोमेटामिडियम क्लोराइड का प्रयोग कर किया जा सकता है जिसके प्रयोग से पशु को लगभग 4 महीनो तक सर्रा रोग नही हो पाता है।
- सर्रा रोग फैलानेवाले मक्खियों जैसे टेबेनस आदि की संख्या को नियंत्रित करके भी इस रोग के संक्रमण को कम किया जा सकता है। मक्खियों की संख्या को नियंत्रण, कीटनाशक का छिड़काव समयानुसार पशु आवास के अन्दर एवं आस-पास करके, पशु के मल को समुचित निस्तारण करके, पशु आवास के आस-पास जल-जमाव रोककर, मक्खी पकड़नेवाले उपकरणों आदि के द्वारा किया जा सकता है।
The content of the articles are accurate and true to the best of the author’s knowledge. It is not meant to substitute for diagnosis, prognosis, treatment, prescription, or formal and individualized advice from a veterinary medical professional. Animals exhibiting signs and symptoms of distress should be seen by a veterinarian immediately. |
Sara bimari
Meri cow 🐄ko sarra bhimari hoi h bhut hi halt kharbbho gai h datkr bhi sui dawai kar rhe h aram nhi ho rha h 2 din se jada tbhiyt kharb h please koi upay baty
कृपया ये लेख देखने का कष्ट करें…
https://epashupalan.com/hi/10465/animal-husbandry/tail-disease-or-degnala-disease-in-animals/
Dagnala disease ke bara me batai
Thanks
Good information for farmers
किसानों के लिए बहुत उपयोगी
Excellent presentation
Hmm
Very useful for farmer .
Great