उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में बकरी पालन का महत्व

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परिचय

प्राचीन समय से ही बकरी पालन दूध और मांस के लिए किया जाता रहा है। बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे किसान एवं पशुपालक आसानी से शुरू कर सकते हैं। बकरी को “गरीब आदम़ी की गाय” या “मिनी गाय” कहा जाता है, क्योंकि इसमें बहुत कम लागत की आवश्यकता होती है। इसका गरीब आदमी की आमदानी में बहुत बड़ा योगदान है। भूमिहीन या सीमान्त किसानों के लिए बकरी का पालन एक नियमित आय का स्रोत हो सकता है। उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता, कम प्रबंधन लागत, जुड़वाँ या तीन बच्चे प्रतिवर्ष देने की विशेषताएं, इत्यादि गुण बकरी पालन को अधिक फायदेमंद बनाते है। यदि किसान बकरी पालन वैज्ञानिक तरीके से करे, तो उसकी आय दो से तिगुनी हो सकती है।

पहाड़ी क्षेत्रों में बकरी पालन का महत्व

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों जैसे पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी में मैदानी क्षेत्र कम हैं। यहाँ बडे पशुओं का पालन कठिन है क्योंकि इनके पालन के लिए अधिक जगह की आवश्यकता होती है। किंतु एक गाय और भैंस की जगह चार या उससे ज्यादा बकरियाँ पाली जा सकती है। बकरी सभी प्रकार के पौधे का उपभोग करती है जो आमतौर पर अन्य जानवरों द्वारा सेवन नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त कांटे वाले पौधे को भी बकरियाँ खा लेती हैं। पत्तियां चरने की इस प्रवृत्ति के कारण बकरियों में कभी फास्फोरस की कमी नहीं होती है। बकरियों के पास कच्चे फाइबर को पचाने की अधिक क्षमता होती है, इसलिए कम गुणवत्ता वाले चारा पर भी पाला जा सकता है।

बकरी एक बहुउद्देश्यीय जानवर है क्योंकक इससे अच्छी गुणवत्ता की खाद, अच्छी मात्र में मांस और दूध मिलता है। हालांकि कुछ नस्ल की बकरियाँ अच्छे चमड़ा उत्पादन के लिए भी जानी जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में बकरियों को हल्के भार के परिवहन के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। बकरी पालन, परिवार की महिलाओं, बच्चों और बूढ़े व्यक्तियों द्वारा आसानी से किया जा सकता है। इसलिए, इसमें किसी अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए भूमिहीन, गरीब किसानों के लिए बकरी पालन फायदेमंद है। एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत बकरी पालन आसानी से किया जा सकता है और अधिक मुनाफ़ा भी कमाया जा सकता है। एकीकृत कृषि प्रणाली मछलियों के लिए बकरी की खाद का उपयोग भोजन सामग्री के रूप किया जा सकता है।

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बकरी पालन और उसके मांस का सेवन करने से संबंधित कोई धार्मिक वर्जना नहीं है। बकरी के मांस में कोलेस्ट्रोल कम होता है और यह रेड मीट की तुलना में कम वसा वाला मांस होता है। ठंड, शुष्क, गर्म और आद्र जैसे विभिन्न जलवायु के लिए बकरियाँ अच्छी तरह अनुकूलित होती है। उन्हें मैदानी, पहाड़ी और रेतीले क्षेत्रों पर भी आसानी से पाला जा सकता है। अन्य जानवरों की तुलना में बकरियों में बीमारी होने की संभावना कम होती है।

उत्तराखण्ड में बकरी पालन की वर्तमान स्थितियां और सम्भावनाये

उत्तराखंड पशुधन विकास बोर्ड के आंकडों के अनुसार, राज्य में 10 लाख से अधिक बकरियाँ हैं। लेकिन यहाँ बकरी पालन के लिए संरचित उद्योग का अभाव है। बकरी पालन को संगठित तरीके से करने के लिए, सरकार ने स्थानीय नस्ल की बकरियों को पेटेंट कराने और उनका केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम की सर्वश्रेष्ठ नस्लों की बकररयों के साथ क्रॉस करा कर और बेहतर नस्ल तैयार करने की योजना बनाई है। बकरी के दूध के संग्रह के मलए संयंत्र स्थापित करने और बकरी पनीर तैयार करने और ऊन के निर्माण का प्रावधान भी है।

उत्तराखण्ड में बकरी पालन का सवतश्रेष्ठ उदाहरण

उत्तराखंड में 7700 फीट की ऊंचाई पर टिहरी जिले के ‘नाग टिब्बा’ गाँव में एक नए प्रकार का प्रयोग किया है। कुछ सामाजिक रूप से सक्रीय लोग जिन्हें “ग्रीन पीपल” (green people) कहा जाता है, जिन्होंने इस गांव को “बकरी गांव” के रूप में स्थापित किया है। मसूरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, यह गााँव पर्यटन के नए आकर्षण प्राप्त कर रहा है। “बकरी गांव” में पर्यटकों के रहने के लिए कॉटेज के रूप में कई घर बनाये गए हैं। प्राचीन और स्वदेशी जीवन जीने की भावना देने के लिए कॉटेज मिट्टी, लकडी और पत्थरों से बना है। यह अहसास तब और बढ़ जाता है जब पर्यटकों को बकरियों को चराने और दूध निकालने के लिए ले जाया जाता है। जैसा की इस क्षेत्र में प्रचुर बकरियों के कारण इस गांव को “बकरी बेल्ट” कहा जाता है। तो, बकरी के अधिकतम लाभों का फायदा उठाने के लिए, पर्यटकों को चराई और दूध देने के लिए बकरियों को ले जाने की सुविधा है। मांस के लिए बकरी पालन गढ़वाल के किसी भी गाँव का अभिन्न अंग है। लेकिन अब “ग्रीन पीपल” इसे बदलने की कोशिश कर रहा है। यहां बकरियों को पाला जाता है ताकि उनके दूध और अन्य दूध उत्पाद जैसे बकरी पनीर को बेचा जा सके।

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किसानों और ग्रामीणों द्वारा स्थानीय स्तर पर निर्मित उत्पादों को बेचने के लिए, ब्रांड “बकरी छाप” के रूप में विकसित किया गया है। सामाजिक रूप से सक्रिय लोग जिन्हें ‘ग्रीन पीपल’ कहा जाता है, ने स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले खाद्य पदाथों जैसे, जैविक हिमालयी बकरी पनीर, हिमालयी क्षेत्र के अनाज, विलुप्त होने वाली दालें, स्थानीय मसाले, फलों के लिए “बकरी छाप” ब्रांड की स्थापना की है। पहाडी क्षेत्र के कई जैविक उत्पाद जैसे ‘आर्दगेनिक हिमालयी बकरी पनीर’ की पांच सितारा होटलों और मार्केट स्टोर्स में अधिक माँग है।

बकरी पालन
“बकरी छाप” ब्रांड

“बकरी गाँव” को विकसित करने के उद्देश्य

  • सुदूर क्षेत्रों के ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
  • पहाड़ी क्षेत्रों के स्थानीय किसानों को स्थानीय स्तर पर बेहतर रोजगार के अवसर देकर उनके पलायन को रोकना।
  • बकरी और भेड़ उत्पादों को बढ़ावा देना।
  • शैक्षिक पर्यटन और कृषि पर्यटन का विकास करना।
  • कृषि पद्धतियों और बकरी पालन को बढ़ावा देना।
  • खेती और जानवरों के पालन की पुरानी परंपराओं को पुनर्जीवित  करना।
  • देसी पहाड़ी लोगों के जीवन के पारंपरिक तरीकों के प्रति पर्यटकों की रूचि हासिल करना।
  • पर्यटन के कारण विकसित किये गए व्यवसायों के प्रति स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित किया जाना।
  • इस गांव को विकसित करने के लिए केवल स्थानीय रूप से उपलब्ध सामाग्रियों का ही उपयोग किया गया है।
  • स्थानीय स्तर पर विकास की इच्छा के साथ पहाड़ी लोगों और प्राकृतिक संसाधनों की सूक्ष्म  संस्कृति का संरक्षण।
  • “बकरी छाप” नामक स्थानीय ब्रांड को लोकप्रिय बनाना।

इसके अलावा, पहाडी क्षेत्रों में बकरियों के उचित प्रजनन और पालन को बढ़ावा देने के लिए, स्थानीय लोगों द्वारा फरवरी के महीने में ”बकरी स्वयंवर” का आयोजन किया गया है। ये समारोह दो दिनों के लिए 500 ग्रामीणों का ध्यान आकवर्षत करता है। बकरी स्वयंवर का उद्देश्य बकरी की विभिन्न नस्लों, उचित प्रजनन समय, उचित प्रजनन और बकरी के प्रबंधन प्रथाओं के बारे में ज्ञान फैलाना है। यह त्योहार वैज्ञानिक और चयनात्मक प्रजनन पर आधारित है।

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“बकरी स्वयंवर” का विज्ञापन

बकरी गांव के मॉडल को अन्य पडोसी गांवों जैसे दयारा बुग्याल, कनाटल और रायथल द्वारा उत्साह से अपनाया जा रहा है।

दयारा बुग्याल गांव हर साल अगस्त/सितंबर के महीने में  स्थानीय रूप से एक अनोखा “बटर फेस्टिवल” आयोजित करता है, जिसे ‘अंडूरी’ के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार पर्यटकों को मक्खन, दूध और छाछ के साथ होली खेलने की पेशकश करता है। इस त्योहार का उद्देश्य बकरियों के पालन-पोषण को बढ़ावा देना और बकरी के दूध का उत्पादन बढ़ाना है।

बकरी किसी भी गांव का सबसे व्यापक जानवर है। ग्रामीणों के लिए बकरी को “मोबाइल एटीएम” कहना गलत नहीं है, क्योंकि दूध, मांस और गोबर बेचकर एक अच्छी आय उत्पन्न की जा सकती है।

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