उत्तराखण्ड जैसे विकासशील राज्य में बकरी पालन में महिलाओं की प्रमुख भूमिका है। बकरियाँ ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक और वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में समय से मदद करती हैं क्योंकि बकरियाँ ऋण चुकाने के लिए सरल और सुलभ स्रोत प्रदान करती हैं। बकरी पालन अनपढ़, विधवा, गरीबी रेखा से नीचे निराश्रित महिलाओं को आजीविका और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है। उत्तराखण्ड के परिदृष्य में बकरी पालन में महिलाओं की भूमिका का अध्ययन किया गया है जिसके परिणाम इस प्रकार हैं।
श्रम वितरण और काम का बंटवारा
बकरियों के बड़े झुण्डों का प्रबंधन आमतौर पर पुरूषों द्वारा किया जाता है, जबकि छोटे झुण्ड का प्रबन्धन आमतौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है। बकरी पालन का अधिकांश कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है चाहे वह भारत के किसी भी क्षेत्र या सामाजिक स्तर से सम्बंधित हों। महिलायें औसतन 12.6 घण्टे काम काम करती हैं जिसमें औसतन वे 2.8 घण्टे बकरी़ पालन की छोटी-छोटी गतिविधियों में खर्च करती हैं। यह पाया गया है कि लड़कियों आमतौर पर 6 या 7 साल की उम्र में अपनी माँ के साथ बकरी पालन के कार्य में हाथ बटाती है। महिलाऐं पशुशाला की सफाई, बकरियों को खिलाने, चारा लाने, दूध निकालना, घर पर पूरक आहार देने और नवजात मेमनों की देखभाल करने का कार्य करती हैं। विशषतः महिलाऐं दूध से पनीर, दही, बनाने में और दूध के प्रसंस्करण का काम करती हैं। उत्तराखण्ड़ में महिलाऐं बकरी पालन से जुड़ी हस्तकला गतिविधियों में प्रमुख हिस्सा लेती हैं जैसे स्वेटर व कंबल बुनना आदि।
निर्णय लेना
इसके विपरीत पर्वतीय समाज में महिलाओं और पुरूषों के बीच महिलाओं की निरक्षरता की उच्च दर या कम पढे लिखे होने के कारण प्रबंधन, विपणन और निर्णय लेने में महिलाऐं कम भूमिका निभा पाती हैं। पुरूष दूध की बिक्री, बकरियों की बिक्री व खरीद और आय के उपयोग में शामिल रहते हैं।
पारंपरिक अभ्यास और स्वदेशी ज्ञान
महिलाऐं बकरी के छोटे आकार के कारण उन्हें आसानी से संभाल लेती हैं और बकरी पालन पसंद भी करती हैं। बकरी प्रबंधन सरल है, बकरियाँ जल्दी परिपक्व भी हो जाती हैं, आसानी से प्रजनन करती हैं और कम समय में अपनी संख्या में वृद्वि कर लेती हैं। बकरियाँ खराब परिस्थितियों में आसानी से पनप सकती हैं और विभिन्न प्रकार के चारे, वनस्पति व सामग्री खा सकती हैं। बकरियाँ गरीब परिवार के लिऐ दूध और मांस का एक सस्ता स्रोत है जो पोषण सुरक्षा प्रदान करती हैं। महिलाओं को कुछ विशेष घास, पेड़ के पत्ते, जड़ी-बूटियाँ स्थानीय फीड सामग्री के बारे में पता है जो कि शारीरिक वृद्वि और दूध उत्पादन में सुधार कर सकती हैं। परजीवी संक्रमण को रोकने के लिए चराई क्षेत्रों के कुछ हिस्सों का उपयोग कब और कैसे करना है, इस विषय का भी उन्हें पारंपरिक ज्ञान है। महिलाऐं अपने इस ज्ञान को अपने बच्चों एवं समाज के लोगों में भी बांटती हैं जिससे यह ज्ञान पीढी दर पीढी बना रहता है और लोग इसका प्रयोग एक लंबे समय तक करके लाभंवित हो सकें।
प्रशिक्षण कार्यक्रमों के बारे में महिलाओं की धारणा
लघु रूमंथी पशु बकरी के वैज्ञानिक पालन के बारे में प्रशिक्षण कार्यक्रमों के प्रति महिलाओं का दृष्टिकोण अत्यंत सकारात्मक है, लेकिन उनके लिए बहुत कम कार्यक्रम प्रशिक्षण आयोजित किये जाते हैं। उत्पादकता में सुधार के लिये महिलाओं को नवजातों की देखभाल, स्वास्थ्य प्रबंधन, बकरियों को उचित खान-पान के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। विपणन सेवाओं, ऋण, बैंकिंग और वैज्ञानिक सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुँच से महिला किसान जूझ रही हैं। बकरी प्रशिक्षण और विस्तार कार्यक्रमों में विशेष रूप से महिला बकरी पालकों के लिये तैयार किया जाना चाहिये। महिला विस्तार कार्यकर्ताओं की सेवाऐं ली जा सकती हैं क्योंकि ग्रामीण व पर्वतीय महिलाऐं उनसे बातचीत करने में स्वतंत्र महसूस करेंगी। युवा लड़कियों को बकरी पालन का आजीविका के साधन के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि पुरूषों का भी सहयोग लेना चाहिए और पशु की खरीद और प्रजनन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दो पर उनके भी सुझाव लेने चाहिए।
निष्कर्ष
कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम महिला सशक्तीकरण और आजीविका सुरक्षा की दशा में महत्वपूर्ण कदम है। प्रशिक्षण और विस्तार कार्यक्रमों को तैयार करते समय महिलाओं की भावनाओं, धारणाओं और विचारों को समझने की आवश्यकता है। भविष्य में पर्वतीय क्षेत्र की युवा लड़कियों और महिलाओं को वैज्ञानिक बकरी पालन पर प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है।
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