अमृततुल्य दूध: ए1 और ए2 दूध के मिथक और तथ्य

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1990 के दशक में, न्यूजीलैंड में इलियट और मैकलैक्लन ने एक परिकल्पना विकसित की कि कुछ गायों के दूध में प्रोटीन का एक यौगिक होता है जिससे टाइप-1 डायबिटीज और हृदय धमनी रोग जैसी बीमारियां होने की संभावना होती है।

1 और ए2 दूध क्या है?

1 बीटा-कैसिन दूध में 67वें स्थान पर हिस्टडीन एमीनो एसिड होता है जबकि ए2 दूध में उस स्थान में प्रोलिन होता है। इन्ही दोनों अणुओं की उपस्थिति या अनुपस्थिति के कारण विश्व व्यापी तर्क-वितर्क चल रहा है। वैज्ञानिकों के एक समूह का कहना है कि ए1 दूध स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, लेकिन अन्य कहते हैं कि इसका स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है।

1 और ए2 पशुओं की व्युत्पति

शोधों के अनुसार, 12000 से 15000 वर्ष पूर्व गौवंश को पालतू बनाया गया था, और उस समय गायों के दूध में केवल ए2 बीटा कैसिन प्रोटीन ही पाया जाता था, न कि ए1 बीटा कैसिन। 8000 वर्ष पूर्व, कुछ यूरोपीय गायों में आनुवंशिक उत्परिवर्तन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप ए1 बीटा कैसिन प्रोटीन की उत्पत्ति हुई। इस उत्परिवर्तन के कारण 15 प्रकार के विभिन्न बीटा कैसिन (ए1, ए2, ए3, बी, सी, डी, ई, जी, एच1, एच2, आई, जे, के. और एल) का रूपान्तरण हुआ, जिसमें से केवल ए1 और ए2 सामान्य रूप से पाये जाते हैं और यही महत्वपूर्ण हैं। जैसा कि होल्स्टीन गायों को आनुवंशिकी सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपयोग किया जाता रहा है और यह उत्परिवर्तन भी अन्य नस्लों में पाया जाने लगा है। इस प्रकार, धीरे-धीरे ए1 बीटा कैसिन वेरिएंट टॉरिन गायों में प्रमुख हो गया।

अमृततुल्य दूध: ए1 और ए2 दूध के मिथक और तथ्य
भारतीय मूल की गिर (1) और हरियाना (2), भारत में हॉलस्टीन फ्रीजीयन (3) नस्ल की गायें

1 और ए2 गायों की व्यापकता

विश्व में व्यापक स्तर पर चल रहे सर्वेक्षणों पाया गया है कि उत्तरी यूरोप की मूल नस्लों जैसे कि फ्रिजियन, आयरशायर, ब्रिटिश शोर्टहॉर्न और होलस्टीन गायों के दूध में ए1 टाईप बीटा-कैसिइन पाया गया है। ए2 टाईप का दूध ग्वेर्नसे, जर्सी और चैनल द्वीप समूह और दक्षिणी फ्रेंच नस्लों की गायों में पाया गया। यूरोप में चारोलिस और लिमोसिन नस्लें और अफ्रीका और एशिया में जेबू गायें भी ए2 टाईप का दूध देती हैं (NgKwi-Hang & Grosclaude, 1992)।

विश्वभर में होल्स्टीन और जर्सी नस्ल की गायें दोनों प्रकार अर्थात ए1 और ए2 दूध का उत्पादन करती हैं लेकिन अधिकांश जर्सी नस्ल की गायें ए2 टाईप का दूध देती हैं जबकि होल्स्टीन नस्ल की गायों में ए2 टाईप के दूध का उत्पादन कम अनुपात में होता है। अनुसंधानों में ए1 और ए2 टाईप की गायों की आवृत्ति नस्ल-विशिष्टता की तुलना में क्षेत्रीय विशिष्टता अधिक पायी गई है। उत्तरी अमेरिका में 50-65% होल्स्टीन-फ्रिजियन गायें A1 टाईप के दूध का उत्पादन करती हैं, जर्मनी में 90% से अधिक होल्स्टीन-फ्रिजियन गायें A2 टाईप के दूध का उत्पादन करती हैं (Hegde, 2019)।

यद्दपि, ए2 टाईप दूध का उत्पादन करने वाली गायें यूरोपीय राष्ट्रों सहित विश्व के बहुत से राष्ट्रों में पायी जाती हैं लेकिन भारत सहित एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों में पायी जाने वाली मूल नस्ल की गायें ए2 टाईप के दूध का उत्पादन करती हैं।

भारत में ए1 और ए2 दूध की स्थिति

भारत में पायी जाने वाली मुर्राह एवं सूरती और ब्राजीलियन मुर्राह, इटालियन मुर्राह, फीलिपीन की स्थानीय  भैंसें ए2 टाईप दूध का उत्पादन करती हैं (Ramesha et al. 2016, Pineda et al. 2019)। एक शोध में मालनंद गिद्दा, कासरगोड किस्म और जर्सी में ए1 एलील की आवृत्ति बहुत कम थी, जबकि होलस्टीन फ्रीजियन और होलस्टीन फ्रीजियन संकर नस्ल में ए1 एलील की आवृत्ति थोड़ी अधिक पायी गई है (Ramesha et al. 2016)। भारतीय देसी भैंस की नस्लें (Boro et al. 2018), गायें, बकरियाँ ए2 दूध का उत्पादन करती हैं।

1 दूध का डायबिटीज के साथ संबंध

1992 में एक शोध के अनुसार न्यूजीलैंड में रहने वाले समोआ के बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज के रोगियों में 10 गुना जोखिम था, जो उनके द्वारा सेवन किये गये दूध की मात्रा से जुड़ा था। समोआ के ऐसे बच्चे जो दूध का सेवन अधिक करते थे, उनमें टाइप-1 डायबिटीज की ज्यादा दर देखने में पायी गई। इस शोध यह भी पाया कि केन्या में रहने वाले मसाई बच्चों में डायबिटीज टाईप-1 के रोगी नामात्र के ही थे। इस शोध के अनुसार ए1 टाईप दूध में ओपियोयड की तरह का बीटा-कैसोमोर्फिन-7 (बीसीएम-7) नामक पेप्टीड होता है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है और डायबिटीज टाईप-1, कोरोनरी हृदय रोग, बच्चों में मृत्यु एवं स्वलीनता (Autism) को उत्पन्न करता है (Elliott 1992)। कई अन्य शोध भी बीसीएम-7 के हानिकारक प्रभावों को इंगित करते हैं। 1990 से 1994 के दौरान 19 राष्ट्रों में किये शोध में ए1 बीटा केसिन और डायबिटीज टाईप-1 में गहरा संबंध बताया है (Laugesen and Elliott 2003)। हालांकि, लगभग सभी शोधों में पाया गया है कि व्यस्कों में बीसीएम-7 अंश नहीं पाये गये लेकिन कुछ शोध ही नवजात शिशुओं के रक्त में इसके होने की पुष्टि करते हैं (Wasilewska et al. 2011)। कोई भी शोध बीसीएम-7 का संबंध रोग होने के कारण को सिद्ध नहीं करते हैं लेकिन पहले से ही डायबिटीज टाईप-1 से पीड़ित रोगियों के स्वास्थ्य की स्थिति में अपवृद्धि देखी गई। हालांकि, डायबिटीज टाईप-1 के रोगियों पर बीटा-केसिन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए मनुष्यों में कोई नैदानिक परीक्षण नहीं किये गये (Hegde, 2019)।

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1 दूध एवं हृदय धमनी रोग (Coronary Heart disease) का संबंध

1996 में 16 राष्ट्रों में किये एक शोध में ए1 बीटा-केसिन दूध के सेवन एवं हृदय धमनी रोग के कारण होने वाली मौतों के बीच संबंध बताया है (McLachlan 1996)। 2003 में प्रकाशित 20 राष्ट्रों में 20 वर्ष की अवधि के दौरान किये गये शोध में भी गाय के दूध और मलाई में प्रति व्यक्ति ए1 बीटा-केसीन की खपत का अरक्तता हृदय रोग (Ischaemic heart disease) के साथ महत्तवपूर्ण और सकारात्मक रूप से सहसंबद्ध पाया गया है (Laugesen and Elliott 2003)।

हालांकि एक शोध के अनुसार चूहों में एं बीटा केसीन का सबंध इससे पाया है (Tailford et al. 2003) लेकिन कई शोधों में ए1 या ए2 बीटा केसीन का कोई संबंध स्थापित नहीं हो पाया है (Chin-Dusting et al. 2006, Venn et al. 2006)।

1 दूध एवं आकस्मिक शिशु मृत्यु संलक्षण का संबंध

नवजात शिशुओं में आकस्मिक शिशु मृत्यु संलक्षण (Sudden infant death syndrome) मृत्यु का सबसे सामान्य कारण है। एक शोध पत्र के अनुसार ए1 दूध में मौजूद बीसीएम-7 नवजात शिशुओं के मस्तिष्क में उपस्थित श्वस्न केन्द्र को बाधित करने की आशंका जाहिर की है जिससे उनकी श्वासरोध होने से मृत्यु हो जाती है (Sun et al. 2003)। हालांकि, एक अध्ययन में बताया गया है कि गाय के दूध पीने से स्वलीन बच्चों के व्यवहार के लक्षण और अधिक खराब हो सकते हैं (Lucareli et al. 1995)। एक अन्य अध्ययन में स्वलीन रोगियों के मूत्र में खाद्य प्रोटीन से प्राप्त ओपियोइड पेप्टाइड्स की उपस्थिति का पता चलता है (Reichelt and Knivsberg 2003)। कई अन्य शोधों में स्वलीनता से पीड़ित बच्चों के मूत्र में कोई भी ओपियोड पेप्टाइड नहीं पाया गया (Hunter et al. 2003, Cass et al. 2008)।

वैज्ञानिक तर्क

विश्व में हुए गहन शोधों के अनुसार ए1 प्रकार के दूध के सेवन और मधुमेह एवं हृदय धमनी रोग के संबंध में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य और विभिन्न प्रकार के दूध का सेवन करने वालों के विचार अविश्वसनीय रहे हैं और अधिक राष्ट्रों के आंकड़े उपलब्ध होने पर ए1/ए2 भ्रान्ति को नकार दिया गया (Truswell, 2005)।

एक शोध के अनुसार स्विट्जरलैंड में मधुमेह के रोगियों की संख्या में तीन गुणा बढ़ोतरी हुई है जबकि दूध के सेवन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है (Crawford et al., 2003)। ए1/ए2 दूध के संबंध में न्यूजीलैंड खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण ने 2009 में यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की रिपोर्ट में बीसीएम-7 के आहारीय सेवन और गैर संक्रामक रोगों के बीच किसी कारण एवं प्रभाव का संबंध स्थापित नहीं किया है और ऐसे ऐसे दावों को खारिज कर दिया (NZFSA, 2009)।

दूध- एक सम्पूर्ण आहार

अभी तक अधिकतर उपलब्ध शोध केसिन व्युत्पन्न पेप्टाइड्स और किसी भी प्रकार के रोग के बीच संबंध का समर्थन का नहीं करते हैं। अतः हमें एक बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि दूध प्रकृति द्वारा दिया एक अमूल्य पेय पदार्थ है। यदि किसी परिवार में दूधारू पशु हैं तो उस परिवार में भूखे मरने की नौबत नही आती है। ऐसा देखने में आया है कि यदि किसी परिवार में खाने के लिए अनाज की कमी होती है परन्तु उस परिवार के पास पशु हैं तो वह परिवार अपना भरण-पोषण बहुत अच्छा करता है। क्योंकि उस परिवार में दूध जो है तो वह परिवार अनाज के अभाव में दूध का सेवन कर अच्छे स्वास्थ्य के मालिक बन जाते हैं। हम अपने बचपन को न भूलें कि जब हम छोटे बच्चे होते हैं तो हम अपने जीवन की शुरूआत माँ का दूध ही पीकर शुरू करते हैं। इसीलिए वैज्ञानिक तौर पर पहले छ: महीने बच्चे को माँ का दूध पीने की सलाह दी जाती है। आमतौर, हम अपने ग्रामीण आँचल में देखते हैं कि बच्चे 3 – 4 साल की उम्र तक बच्चे दूध पीते हैं। यदि बच्चे को भरपूर मात्रा में माँ का दूध मिलता है तो उसे अन्य खाद्य पदार्थ खाने की जरूरत नही रहती है। फिर भी आज के इस वैज्ञानिक युग में माँ के दूध के अलावा अन्य खाद्य पदार्थों का सेवन बच्चे के लिए जरूरी है। इन खाद्य पदार्थों में भी पशुओं का दूध अहम् भूमिका निभाता है। दूध में वे सभी आवश्यक तत्त्व होते हैं जिनकी हमें जरूरत होती है। इसलिए दूध को एक सम्पूर्ण आहार का दर्जा दिया गया है।

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दूध के विभिन्न घटक प्रोटीन, वसा, लैक्टोज (शर्करा) खनिज पदार्थ व विटामिन होते हैं। ये घटक विभिन्न पशुओ दूध में भिन्न होते हैं (तालिका 1)।

तालिका 1. दूध में विभिन्न घटकों की मात्रा (प्रति 100 मि.ली.)

घटक

माँ1 गाय2 भैंस2 बकरी2

भेड़2

पानी (ग्राम)

88.32 83.39 87.03

80.7

ऊर्जा (किलो कैलोरी)

67

62 97 69

108

शर्करा (ग्राम)

7.0

4.52 5.18 4.45

5.36

वसा (ग्राम)

4.2

3.25 6.89 4.14

7

प्रोटीन (ग्राम)

1.3

3.22 3.75 3.56

5.98

खनिज पदार्थ  (मि.ग्रा.)

0.1

0.69 0.79 0.82

0.96

कैल्शियम  (मि.ग्रा.)

35

113 169 134

193

कॉपर (मि.ग्रा.)

0.011 0.046 0.046

0.046

लोह तत्व (mcg)

76

0.03 0.12 0.05

0.10

मैगनिशियम (मि.ग्रा.)

10 31 14

18

मैंगनीज (मि.ग्रा.)

0.003 0.018 0.018

0.018

फॉस्फोरस (मि.ग्रा.)

15

91 117 111

158

पोटाशियम (मि.ग्रा.)

143 178 204

137

सेलेनियम (mcg)

3.7 1.4

1.7

सोडियम (मि.ग्रा.)

15

40 52 50

44

जिंक (मि.ग्रा.)

0.40 0.22 0.3

0.54

विटामीन ए (mcg)

60

28 53 57

44

विटामीन बी1 (मि.ग्रा.)

0.044 0.052 0.048

0.065

विटामीन बी2 (मि.ग्रा.)

0.183 0.135 0.138

0.355

विटामीन बी3 (मि.ग्रा.)

0.107 0.091 0.277

0.417

विटामीन बी5 (मि.ग्रा.)

0.362 0.192 0.31

0.407

विटामीन बी6 (मि.ग्रा.)

0.036 0.023 0.046

0.06

विटामीन बी12 (mcg)

0.44 0.36 0.07

0.71

विटामीन सी (मि.ग्रा.)

3.8

0 2.3 1.3

4.2

विटामीन डी

0.01 mcg

40 IU 12 IU

विटामीन ई (mg)

0.06 0.07

फोलेट – (mcg)

5 6 1

7

विटामीन – के (mcg)

0.2 0.3

1 NHMRC, 2 USDA Nutrient Databases (Husain 2014).

दूध में मौजूद तत्वों का महत्व

  • इन तत्त्वों के अलावा दूध में सही मात्रा में विटामिन भी होते हैं जो बच्चों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
  • दूध में उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले प्रोटीन एवं वसा होती हैं।
  • यह कैल्शियम, मैग्निशियम, पोटाशियम, आयोडिन, सेलेनियम, विटामिन ए, डी, एवं बी का महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
  • दूध में मौजूद कैल्शियम हड्डियों के स्वास्थ्य में स्वास्थ्यवर्द्धक, उच्च रक्तचाप और बड़ी आंत का कैंसर रोधी है।
  • जहां एक ओर कैल्शियम और विटामिन डी शरीर की ऊर्जा को कुशलतापूर्वक जलाने में सहायक होते हैं और शारीरिक भार को बनाए रखने में सहायता करते हैं, तो वहीं दूध में मौजूद वसा उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करती है।
  • दूध में मौजूद कैरोटीनॉयड, एंटीऑक्सीडेंट का कार्य करने के साथ-साथ दृष्टि में भी सुधार करते हैं।
  • ब्यूटिरिक एसिड तंत्रिका कोशिकाओं में गुणात्मक वृद्धि करने के साथ-साथ कोशिकाओं की वृद्धि को नियमित करता है। यह कैंसर रोधी कार्य भी करता है।
  • दूध में मौजूद लैक्टोज मस्तिष्क के विकास में सहायक होता है। यह आंत में उत्पस्थित सहायक जीवाणुओं के लिए प्रीबायोटिक (सहायक जीवाणुओं का भोजन) का कार्य भी करता है।
  • घास खाने वाले पशुओं में संयुग्मित लिनोलिक एसिड और ओमेगा-3 फैटी एसिड उच्च मात्रा में पाये जाते हैं। अतः उनके द्वारा उत्पादि दूध में भी इनकी मात्रा ज्यादा होती है।
  • दूध और छाछ में मौजूद प्रोटीन बायोएक्टिव पेप्टाइड्स का चिकित्सकीय महत्व है।

सारांश

2009 में यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की जारी रिपोर्ट के बाद, सभी राष्ट्रों का ध्यान पाचन विकारों पर ए1 दूध के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए गया जिसके बाद यह पाया गया है कि यह कोई गंभीर समस्या नहीं हैं। हालांकि भारत में इस रिपोर्ट की अनदेखी की गई है और ए1 टाईप के दूध का सेवन करने और संकर नस्ल की गायों के दूध का स्वास्थ्य पर होने वाले खतरों का व्यापक प्रचार किया गया है। इससे पशुपालकों और उपभोगताओं के बीच एक गंभीर चिंता पैदा कर दी, जबकि व्यापारियों ने भारतीय मूल की नस्लों के दूध को अत्याधिक कीमत पर बेचने के इस अवसर को वसूला है। यह सर्वविदित है कि यूरोप और अमेरिका में लोग सदियों से ए1 दूध का सेवन कर रहे हैं और सामान्य जन में इस दूध के सेवन का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है। भारत में भी लोग बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के 50 वर्षों से अधिक समय से संकर नस्ल की गायों का दूध पी रहे हैं। सौभाग्य से, गाय के दूध की तुलना में भारत में उत्पादित दूध का लगभग 50 प्रतिशत भैंस द्वारा योगदान दिया जाता है, जिसमें वसा, प्रोटीन, लैक्टोज और कैल्शियम अधिक और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है। इस प्रकार देखा जाए तो हमारे जीवन में दूध का अति विशिष्ट महत्त्व है और अब तक टाईप ए1/ए2 दूध पर हुये शोधों के मद्देनजर दूध का सेवन निर्बाध रूप से करते रहना चाहिए।

और देखें :  भारतीय दुधारू गौवंश एवं प्रमुख विशेषतायें

संदर्भ

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