बकरी पालन रोजगार आज के समय में किसानों, महिलाओं एवं व्यवसायियों के लिए सफल रोजगार साबित हो चुका है। बकरों की मांस की कमी भी कम नहीं होता है। सभी धर्म, जाति, समुदाय के लोग बकरी के पालन, उपयोग एवं इससे जुड़े कार्यों में परहेज नहीं करते हैं। आज के समय में लोगों के खानपान में बकरों के मांस का प्रचलन सभी धर्म एवं समुदाय में महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। बकरी के दूध में विशेष गुणों के कारण दूध की मांग दिन-ब-दिन बढ़ रही है। दूध के उपयोग से रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ने के कारण सभी विषाणु जनित (वायरल) रोगों में औषधीय उपयोग एवं इसकी प्रोटीन की सुपाच्यता के कारण रोगियों एवं बच्चों में विशेष उपयोग भी इसके अधिक मांग एवं कीमत दोनों को बढ़ा रहे हैं।
बकरी पालन व्यवसाय में लाभ उसके में मेमनो की सही देखभाल पर निर्भर करती है। अधिक संख्या एवं स्वस्थ मेमने ही बकरी पालन व्यवसाय का आधार है। स्वस्थ मेमनो के जन्म के लिए हमें उसके भ्रूण में आने से पहले ही तैयारी करने की आवश्यकता है। स्वस्थ मेमने के जन्म से पहले ही इसकी तैयारी के लिए हमें निम्न बिंदुओं का ध्यान में रखना आवश्यक है।
- मां बकरी का चुनाव – स्वस्थ्य मां बकरी का स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। फार्म में मां बकरी का चुनाव सावधानीपूर्वक करनी चाहिए।
- मां बकरी की खान-पान का ध्यान पूर्व से ही करनी चाहिए। गर्भधारण के पहले ही आहार में मिनिरल पाउडर एवं अतिरिक्त प्रोटीन एवं हरे चारे की व्यवस्था करनी चाहिए।
- गर्भधारण के पूर्व ही मां बकरी को कृमि नाशक दवाई भी खिलाना आवश्यक है।
- गर्भधारण के पूर्व मां बकरी को सभी प्रकार के जानलेवा बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण भी आवश्यक है यथा एफ०एम०डी०, गला-घोटू, इंट्रोटाॅक्सिमिया, एवं पी०पी०आर० इत्यादि के टीके ताकि मेमने स्वस्थ और रोग प्रतिरोधक हो सके।
- मां बकरियों का गर्भधारण भी स्वस्थ बकरों एवं उचित ब्रीड के बकरों से ही कराना आवश्यक है।
गर्भधारण के उपरांत मां बकरियों की उचित देखभाल अति आवश्यक है।
- गर्भ के 3 माह के उपरांत अतिरिक्त पोषण हेतु 50 से 100 ग्राम अतिरिक्त दाने की राशन प्रतिदिन दिया जाना आवश्यक है। हरे चारे की व्यवस्था अवश्य होना चाहिए साथ ही 10 से 15 ग्राम मिनिरल पाउडर का प्रयोग राशन के साथ लाभकारी होता है।
- गर्भधारण के अंतिम माह में अन्य बकरियों से अलग कर बकरी शाला में रखना चाहिए ताकि चोट से बचाव एवं उन्हें अन्य तरह के पोषण अलग से दिया जा सके।
- गर्भधारण के अंतिम सप्ताह में मां बकरियों को घर में रखकर ही हरे चारा की व्यवस्था करनी चाहिए एवं समय-समय पर देख-रेख करते रहना चाहिए।
- मेमनों के जन्म के समय मां बकरियों को बच्चे जनने में सहायता करनी चाहिए ताकि सभी बच्चे अच्छी तरह से बाहर आएं।
- मेमने जैसे ही बाहर आएं उसका नाक साफ कपड़े या पट्टी से साफ करना चाहिए एवं बकरियों के सामने रखना चाहिए। मेमनों का नाल धागे से दो जगह बांधकर नाल बीच से नए ब्लेड से काटना चाहिए एवं तुरंत जी०भी०पैंट लगाना चाहिए जिससे तीन चार बार प्रतिदिन 5 दिनों तक अवश्य लगाना चाहिए ताकि बाद में किसी भी तरह का संक्रमण नाल से नहीं हो सके।
- मेमनों के जन्म के समय जर यानी प्लासेंटा बाहर निकाल कर अच्छी तरह से गाड़ देना चाहिए बकरियों को खाने नहीं देना चाहिए। मां बकरी उस वक्त भूखी होती है अतः जर खाने की कोशिश करती है। मां बकरी को उस समय सूखा चोकर एवं बांस के पत्ते इत्यादि देनी चाहिए। नमक और गूड़ मिला पानी देना चाहिए। अगले ही दिन से सभी तरह का राशन दिया जा सकता है।
- जन्म के 15 मिनट के अंदर में मेमनों को उसकी मां का पहला दूध या फेनुस अवश्य पिलाऐं। फेनुस में कैल्शियम, विटामिन एवं एंटीबॉडीज (रोग प्रतिरोधक शक्ति) रहती है जो मेमनों को विभिन्न रोगों से बचाती है। फेनुस पेट की सारी गंदगीयों को निकालती है एवं कब्ज नहीं होने देती है।
- मेमनों को एक सप्ताह पूरा होने तक चार-पांच बार दूध पीने दे ताकि मेमनों को भूखा न रहना पड़े एवं शुरुआती दूध मिल सके। इससे बच्चे स्वस्थ रहेंगे।
- एक सप्ताह के बाद में मेमनों को दूध पिलाने का समय दिन में तीन बार निर्धारित कर देना चाहिए एवं शुरुआती दाना देना शुरू कर देना चाहिए जिसे क्रीपर राशन कहते हैं।
मेमनों का आहार (क्रीशपर राशन) निम्न प्रकार से बनाना चाहिए।
- मकई का दर्रा-32%
- मूंगफली खल्ली का दर्रा-35%
- गेहूं चोकर-20%
- मिनरल पाउडर- 2.5%
- नमक-0.5%
- फिश मिल-10%
सभी अवयव को मिला लें। अवयवों को खरीदने में सावधानी बरतें तथा सुंघकर अवश्य देख लें ताकि उसमें फफूंद ना लगा हो और कीटनाशक दवा नहीं मिला हो।
उम्र और वजन के अनुसार 15 ग्राम से 60 ग्राम तक मेमनों (7 दिनों के उम्र से 3 माह के उम्र तक) देना चाहिए। साथ ही हरा चारा इत्यादि भी जितना चाहे उतना खिलाना चाहिए।
चौथे माह से 6 माह तक में मेमनों का आहार को ग्रोवर राशन कहते हैं जिसे निम्न तरीके से बनाया जा सकता है।
- चना दर्रा-15%
- मकई दर्रा-37%
- मूंगफली खल्ली दर्रा-25%
- गेहूं चोकर-20%
- मिनिरल पाउडर-2.5%
- नमक-0.5%
ऊपर की तरह सभी अवयवों को सावधानी के साथ खरीद कर मिला लेना चाहिए।
उम्र एवं वजन के हिसाब से प्रति बकरी 60 ग्राम से 150 ग्राम तक की राशन प्रतिदिन खिलाएं एवं साथ ही 6 से 8 घंटे की चराई कराएं ताकि मेमनों की बढ़ोतरी अच्छी तरह से हो सके।
सात माह से दस माह तक मेमनों का आहार को फिनिशर राशन कहा जाता है। इसे निम्न तरीके से बनाया जा सकता है। दस माह के मेमनों को बेचने लायक माना जाता है।
- गेहूं/मकई का दर्रा-22%
- मूंगफली खल्ली का दर्रा-15%
- गेहूं चोकर-30%
- दाल की चुन्नी-15%
- सरसों खल्ली दर्रा-15%
- मिनिरल पाउडर-2%
- नमक-1%
उम्र एवं वजन के अनुसार फिनिशर राशन 150 ग्राम से 200 ग्राम तक प्रति बकरी प्रतिदिन देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 6 से 8 घंटे तक चराई कराना चाहिए।
- मेमनों को जन्म के 15 दिनों के बाद कृमि नाशक दवा देना चाहिए एवं प्रत्येक तीन महीने पर कृमि नाशक दवा की खुराक बार-बार देनी चाहिए।
- मेमनों के तीन माह पूरा होने पर नियमित टीकाकरण भी करा देनी चाहिए ताकि किसी तरह की संक्रामक बीमारी ना हो।
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