भैंस से प्राप्त उतोत्पादः किसानों की आय का उत्तम साधन

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कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था में केन्द्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने हेतु अनेक सराहनीय कार्य कर रही है इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से पशु पालक किसान अपनी आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।

भैंस का उल्लेख आदि काल से ही प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। भैंसों को पालतू बनाए जाने का उल्लेख तकरीबन 4000 वर्ष पूर्व सबसे पहले सिन्धु घाटी की सभ्यता में है। सिन्धु घाटी की खुदाई में ऐसे सिक्के एवं मोहरें मिली थी जिन पर भैंस का चिन्ह अंकित है। उस समय भैंसों का उपयोग दूध एवं मांस के लिए होता था। आधुनिक समय में भी पंजाब प्रान्त में भैंस को परिवार के सुख एवं समृधि का प्रतीक माना जाता है यहाँ पर भैंस को मझ कहा जाता है।

भारत में भैंस पालन किसानों के लिए अधिक उपयोगी है क्योंकि ये सूखे और मोटे चारे को अधिक अच्छी तरह से पचाकर ज्यादा दूध दे सकती है। भैंस का मांस भी उपयोगी होता है। भैंस गर्म जलवायु को भली-भांति सह जाती है इसी कारण भैंसों का गर्म देशों में अधिकांशतः डेयरी कार्यो में प्रयोग होता है। भैंसों की लम्बी उम्र, रोग प्रतिरोधक क्षमता और बदलते जलवायु में अपने आप को सुरक्षित रखने की क्षमता अधिक होती है। भैंस के दूध में अधिक वसा, विटामिन-ए, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस तथा कम कोलेस्ट्राल होता है जिसके कारण भैंस का दूध अधिक फायदेमंद होता है।

भैंस देश की अर्थव्यवस्था और किसानों की आय बढ़ाने में निम्नलिखित तरीके से योगदान देती है।

जीविका में भैंस पालन का योगदान

भैंस किसानों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतवर्ष में लगभग 2.05 करोड़ लोगों का जीवनयापन पशुधन पर निर्भर करता है। पशुधन से छोटे किसानों का लगभग 16 प्रतिशत और मझोले किसानों को 14 प्रतिशत आय प्राप्त होती है। पशुधन दो तिहाई गाँव की आबादी का जीवन यापन का सहारा बनती है। यह भारत वर्ष में 8.8 प्रतिशत लोगों को रोजगार प्रदान करती है। पशुधन 4.11 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 25.60 प्रतिशत कृषि के जी.डी.पी. में योगदान करती है। भारत वर्ष में कुल पशुधन 51.23 करोड़ है जिसमें कि भैंस 10.53 करोड़ है जो कि भारतीय किसानों के आमदनी का बेहतरीन सा्रेत है।

भैंस से प्राप्त उतोत्पाद

पशुओं की उपयोगिता आधुनिक परिवेश में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है। यह गरीब मनुष्यों के लिए जीविका का महत्वपूर्ण साधन हो गया है, बढ़ती हुई जनसंख्या का बोझ व जमीन की सीमित उपलब्धता के कारण भविष्य में निर्धन लोगों का पशुओं पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ जायेगी। पशु न केवल जिन्दा रहने पर उपयोगी होता है परन्तु मरने के उपरान्त भी अनेक प्रकार से धन कमाने का माध्यम बन सकता है, जिससे मनुष्य अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है।

  1. माँस का उत्पादन

भैंस के माँस को बफेलो बीफ, काराबीफ, बफन आदि नामों से जाना जाता है। भैंस के बछ़डों से प्राप्त माँस को बीफ-ब्रायलर या बफेलों बीफ कहा जाता है। भैंस का माँस भोजन के रूप में महत्वपूर्ण आहार का काम करता है जो कि गुणकारी, स्वादिष्ट और सुपाच्य होता है और प्रोटीन खनिज लवण व विटामिन की पूर्ति करता है। विश्व बाजार में माँस की पूर्ति गाय, भैंस, सुअर, मुर्गी तथा मछली से होती है। विश्व बाजार में सुअर के बाद गाय और भैंस के माँस का उत्पादन दूसरे नम्बर पर आता है। भारतवर्ष में गाय का वध धार्मिक कारणों से प्रतिबन्धित है तथा भैंस का माँस उत्तम माना जाता है। हमारे देश में विभिन्न जानवरों से प्राप्त माँस का अनुपात क्रमशः भैंस- 20 प्रतिशत, भेड़ व बकरी- 54 प्रतिशत, मुर्गी-13 प्रतिशत तथा सुअर 7 प्रतिशत है। माॅस प्राप्ति का अनुपात भैंस के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। सामान्यतः भैंस का वजन 1 किग्रा0 प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ सकता है तथा आहार का माँस में परिवर्तन 5.5 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत हो सकता है।

और देखें :  पशुओं में गर्भपातः कारण एवं निवारण

भैंस के माँस के गुण: भैंस के माँस की ड्रेसिंग 55-66 प्रतिशत होती है जबकि खाली पेट यह 65-66 प्रतिशत होती है। भैंस के माँस में गाय के माँस की तुलना में प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के साथ ही लाइसिन की मात्रा सर्वाधिक होती है तथा वसा की मात्रा कम पाया जाती है। भैंस के माँस में सफेद वसा पाया जाता है। भैंस के माँस में नमी प्रतिशत 74.42, प्रोटीन प्रतिशत 20.30, वसा प्रतिशत 1.60, खनिज लवण प्रतिशत 11, कुल वर्णक (टोटल पिगमेंट) 4.10 मिग्रा./ग्रा., मायोग्लोबिन 1.5 मि.ग्रा./ग्रा., कोलेस्ट्रोल 54.80 मि.ग्रा./ग्रा. पाया जाता है।

माँस का विश्लेषण: माँस की गुणवत्ता आयु पर भी निर्भर करती है। संयोजी ऊतक के कारण कम आयु के जानवरों का माँस नरम होता है जैसे-जैसे आयु बढ़ती है माँस सख्त होता जाता है तथा ऐसा माँस स्वादिष्ट नहीं होता है। भैंस के माँस से विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे कबाव, कोफ्ता तथा टिक्की आदि भी बनाई जा सकती है। कश्मीर घाटी में मोस्तावा, रिस्ता तथा वतेयग्नि विश्वविख्यात है।

  1. भैंस के वध से प्राप्त उत्पादों का उपयोग

पशु न केवल जिन्दा रहने पर उपयोगी होता है परन्तु मरने के उपरान्त भी धन कमाने का अच्छा माध्यम बन सकता है।पशु ग्रन्थियों से प्राप्त जीवनदायी औषधियों की किस्में अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। हार्मोन्स को रासायनिक संश्लेषण से तैयार नहीं किया जा सकता है। बूचड़खानों से भैंस के विभिन्न अंगों/उपोत्पादों को इकट्ठा करके उससे मूल्यवान औषधियाँ तैयार की जा सकती है। पशुओं के खुरों से हिषक पाद तेल निकाला जाता है। इसका उपयोग मलहमों के आधार के रूप में तथा इंजेक्शन में सह- औषधि के रूप में किया जाता है।

भैंस के उत्पादों से प्राप्त औषधियाँ जैव रसायन

रक्त प्लाज्मा, सीरम, एल्ब्यूमिन, रक्तचूर्ण, हीमेटोनिक्स
फिब्रीन पेप्टीन, फिब्रीन कोम, फिब्रीन चूर्ण
अग्न्याशय (पैन्क्रियाज) इंसुलिन, ग्लूकोगोन, पेनक्रियेटीन, ट्रिपसिन तथा कोइनो ट्रिपसिन
फेफड़ा और आंत हिपेरिन
यकृत् (लीबर) यकृत् निष्कर्ष
थाइरॉइड थाइरॉक्सिन
पिट्यूटरी

1. अग्रभाग
2. पश्चभाग

 

एफ. एच. एच., प्रोलेक्टिन, टी.सी.एच.जी.एच.
ऑक्सीटोसिन और वेसोप्रेसिन

(वृक्क) किडनी एड्रिनेलीन
अंडकोश हाईलूरोनिडेस
पित्ताशय पित्त व पित्त लवण
रीड रज्जु कोलेस्टेरॉल, लेसीथिन
हड्डियाँ जिलेटिन, अस्थि संरचना, विकास प्रोटीन
  1. भैंस की खाल से चमड़ा उत्पादन एवं शरीर के अन्य अंगो का उपयोग

भैंस से चमड़ा, हड्डियाँ, सींग तथा कई अन्य उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति होती है जिससे यह सि˜ होता है कि भैंसे जीने के समय ही नहीं बल्कि मरने के उपरान्त भी उपयोगी होती है। इसकी खाल से जूते, पर्स तथा अन्य कई वस्तुएं बनती है। भैंस के वध के समय चमड़े का वजन 5-6 प्रतिशत, हड्डिया, 15-30 प्रतिशत, सींग व खुर 1 प्रतिशत तथा वध के उपरान्त रक्त 4-6 प्रतिशत तथा रूमेन 8-10 प्रतिशत होता है। भारतवर्ष में लगभग कुल 4.2 लाख टन हड्डियाँ प्राप्त होती है। परन्तु 2.5 लाख टन हड्डियों का ही उपयोग हो पाता है। इसका उपयोग चूरा बनाकर पशुओं के दाने में डालने के कार्य में आता है जिससे कैल्शियम व फॉस्फोरस की प्राप्ति होती है तथा आहार को संतुलित बनाया जाता है। सींगों से दस्ते, बटन, बाद्य यंत्रों के मूंड इत्यादि की प्राप्ति होती है । सींग और खूर से प्राप्त चूर्ण खाद तथा अग्निशमन (फोम) बनाने के काम में आती है। मृत पशु से उनकी अस्थियों का संरक्षण कर अस्थि पिंजर बना सकते हैं जिससे काफी धन अर्जित किया जा सकता है। पशु अस्थियों का उपयोग पशुचिकित्सा विज्ञान महाविद्यालयों मे छात्रों को पढ़ाने के काम आता है जिससे छात्र अच्छे डाक्टर बन सकते हैं और पशुओं के रोगों का इलाज करते हैं।

भैंस के बच्चे का अस्थि पिंजर
  1. गोबर

गोबर से उपले बनाकर जलाने के कार्य में आते है। गोबर गैस संयत्र में उपयोग होता है जिससे ऊर्जा की प्राप्ति होती है। गोबर से गैस प्राप्त करने के बाद पोषक तत्व संचित रहता है जो खाद्य के रूप में अधिक उपयोगी होता है।इसके अतिरिक्त भैंस वजन ढ़ोने वाला जानवर होता है इससे प्रति 5-6 घण्टे कार्य लिया जा सकता है। बैलगाड़ी में व खेत जोतने के लिए नर भैंस का उपयोग किया जाता है।

भैंस पालन की संभावनाऐं

भविष्य मैं भैंस की नस्ल सुधार करके व संतुलित आहार देकर दुग्ध उत्पादन व माँस का उत्पादन बढ़ा सकते है। भारत वर्ष को माँस के निर्यात से प्रतिवर्ष करोड़ो की विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। माँस व्यवसाय में वृद्धि की प्रचुर संभावनाऐं है।  वर्ष 2008 में भैंस के माँस का निर्यात करके रू. 3533 करोड़ प्राप्त हुआ जो कि 2016 में बढ़कर रू. 26,682 करोड़ हो गया।  पिछले कुछ वर्षों से भैंस के माँस का उत्पादन एक संगठित व सामूहिक रूप से विभिन्न उन्नतशील बुचड़खाना में किया जा रहा है जिसके कारण भैंस के माँस का उत्पादन अधिक साफ व वैज्ञानिक तरीके से हो रहा है और खाड़ी के देशों व अन्य देशों में भैंस के मांस की मांग बढ़ी है। अगले पांच वर्षों में माँस का उत्पादन 8 प्रतिशत के हिसाब से बढ़कर लगभग रू. 40,000 करोड़ की होने की संभावना है। कोरोना वायरस की वजह से हुई बन्दी के कारण माँस के निर्यात पर विपरीत प्रभाव पड़ा है परन्तु सितम्बर 2020 में इसका व्यापार कोविड से पहले वाली स्थिति में पहुंच चुका है।

भारतवर्ष मुख्यतः इन्डोनेशिया, वियतनाम, ईराक जार्डन, सऊदी अरब और मिश्र को अधिक निर्यात होता है क्योंकि भारतीय भैंस के माँस ब्राजील से 20 प्रतिशत सस्ती है और हलाल तरीके से काटने से ये मुस्लिम देशों मे अधिक स्वीकार्य है। भारतीय भैंसें मैडकाऊ रोग, सी.बी.पी.पी. (कन्टेजियस बोवाइन प्लूयूरो निमोनिया, एफ. एम. डी. से मुक्त है)।  2019-20 में वेटरिनरी विश्वविद्यालय, मथुरा से मा. प्रधानमंत्री जी ने रोगों के रोकथाम के लिए 300 मिलियम पशुओं के टीकाकरण के लिए तेरह हजार तीन सौ तैतालीस करोड़ रूपये की परियोजना को शुरू किया है जिससे पशुओ को रोगमुक्त किया जा सके साथ ही में पशु आहार को भी सस्ते में दिया जा रहा है जिससे पशुओं को अच्छा चारा मिल सके जिससे उनके मांस की गुणवक्ता अच्छी रहे। अतः विदेश में भारतीय भैंस के माँस की मांग अधिक बढ़ने की संभावना है तथा अभी तक भारत द्वारा निर्यात किये गये भैंस के माँस से किसी भी प्रकार के रोग नहीं फैला है।

भारत से आयातित मुर्रा नस्ल की भैंस वहां पर काफी लोकप्रिय है। सारांश में यह कहा जा सकता है कि भैंस, भविष्य में न केवल भारत में बल्कि विश्व में पशु पालन उद्योग एक महत्वपूर्ण जीविका का साधन बन जायेगा। इसके लिए भैंस के अनुसंधान कार्यों में तेजी लाने की बहुत आवश्यकता है। हिसार स्थित केन्द्रीय भैंस अनुसंधान केन्द्र इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहा है। इस शताब्दी में भैंस की मदद से न केवल हर व्यक्ति तक दूध पहॅुचाया जा सकता है इस प्रकार से भैंस से हम जीवित रहने पर उत्तम प्रकार का दूध और उससे प्राप्त होने वाले उत्पाद तथा वध के उपरान्त माँस और उससे प्राप्त होने वाले उत्पादों से भारतीय किसानों की आमदनी को दोगुनी करने के साथ ही हमारा देश अधिक से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकता है।

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