पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाली पशुजन्य/ जूनोटिक बीमारियों से बचाव हेतु “जैव सुरक्षा उपाय”

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एवियन इनफ्लुएंजा/ बर्ड फ्लू स्वाइन फ्लू एवं रेबीज इत्यादि विभिन्न ऐसे संक्रामक रोग है जो कि पशुओं से मनुष्यों में फैलते हैं इस प्रकार से पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाले रोगों को पशु जन्य रोग या जूनोटिक रोग कहते हैं। इन रोगों का प्रसार सघन संपर्क वायु, पशुओं के काटने से, कीटों के काटने आदि से फैलते हैं। यदि किसी प्रकार से इन रोगों के विषाणु का पशुओं से मनुष्य में संक्रमण रोक लिया जाए तो इस प्रकार की जूनोटिक बीमारियों की रोकथाम हो सकती है एवं इस प्रकार के उपायों को जैव सुरक्षा उपाय कहते हैं।

वर्तमान में अभी तक लगभग 300 प्रकार के जूनोटिक रोगों की जानकारी है। मनुष्य के लिए सबसे अधिक घातक जूनोटिक रोगों में बर्ड फ्लू एवं स्वाइन फ्लू मुख्य हैं। इन रोगों से पूर्व में भी लाखों मनुष्यों की मृत्यु हुई है। अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने दैनिक जीवन में जैव सुरक्षा उपायों का ध्यान रखें और उसके अनुसार ही पशुपालन करें।

हमारे देश में पशुपालन के दो अलग रूप देखने को मिलते हैं। प्रथम वृहद फार्म एवं दूसरे में पशु पालको द्वारा अपने घर में एक दो या अधिक पशुओं को रखना। अतः जैव सुरक्षा उपाय भी उसी को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

वृहद फार्म हेतु जैव सुरक्षा उपाय

स्थल का चयन: जल पक्षी एवं प्रवासी पक्षी एवियन इनफ्लुएंजा के वाहक होते हैं। अतः हमें फार्म हेतु स्थल का चयन इस प्रकार करना चाहिए कि वे जलाशयों के अति निकट न हों। फार्म से, जलाशय के बीच कम से कम 500 मीटर की दूरी आवश्यक है।

आवास व्यवस्था

  • फार्म के आवास इस प्रकार बनाए जाने चाहिए कि उनमें जंगली पक्षी, चूहे,कीट, पतंगों का प्रवेश न हो सके ऐसा इसलिए आवश्यक है यह पशु रोगों के प्रसार में सहायक होते हैं एवं रोगों के वाहक होते हैं।
  • फार्म के भवन का वास्तु इस प्रकार से होना चाहिए कि उन्हें बड़ी सरलता से कीटाणु रहित किया जा सके।
  • आवास की दीवारें सपाट एवं फर्श पक्के होने चाहिए।
  • आगंतुकों के आगमन पर प्रतिबंध:
  • फार्म के परिसर में अनावश्यक आगंतुकों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। अन्य फार्मो के मालिक कर्मचारी एवं प्रतिनिधियों को केवल अपरिहार्य परिस्थितियों में ही जैव सुरक्षा के उपाय अपनाते हुए ही फार्म पर प्रवेश देना चाहिए।
  • फार्म पर कार्यरत कर्मचारियों एवं अधिकारियों को फार्म पर प्रवेश करते समय प्रतिरक्षा उपकरणों यथा मास्क, दस्ताने आदि का उपयोग करना चाहिए। उनके वस्त्रों को प्रवेश एवं बाहर जाते समय समुचित प्रकार से विसंक्रमित किया जाना चाहिए।
  • सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी यथा पशु चिकित्सा कर्मियों आदि को समुचित विसंक्रमण एवं स्वरक्षा उपकरणों के प्रयोग के पश्चात ही प्रवेश दिया जाना चाहिए।
  • प्रवेश द्वार के निकट डिसइनफेक्टेंट घोल का प्रबंध होना चाहिए जिससे कि आगंतुकों को विसंक्रमित किया जा सकें, तथा इस प्रकार की व्यवस्था रखनी चाहिए कि प्रत्येक आगंतुक विसंक्रमण घोल से अपने जूते आदि धोकर ही प्रवेश कर सकें।
  • फार्म के कर्मचारियों को अन्य फार्मो पर घूमने पर प्रतिबंध होना चाहिए।
  • फार्म के पशुओं को पशु प्रतियोगिता आदि में भाग लेना नहीं चाहिए तथा पशुओं के अनावश्यक आवागमन पर प्रतिबंध होना चाहिए।
और देखें :  रेबीज (Rabies) एक जानलेवा रोग: कारण, लक्षण, बचाव एवं रोकथाम

वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध

  • फार्म पर आने वाला प्रत्येक वाहन केवल पार्किंग एरिया तक ही आना चाहिए।
  • फार्म पर आने वाले वाहन जोकि फार्म के पशुओं को लाने व ले जाने के लिए प्रवृत्त हो रहे हैं उन्हें अंदर व बाहर आते जाते समय समुचित रूप से विसंक्रमित किया जाना चाहिए।
  • वाहन चालकों को फार्म पर केवल पार्किंग एरिया तक ही सीमित रखना चाहिए उन्हें पशुओं के निकट नहीं आने देना चाहिए।

दाना चारा उपकरण एवं कर्मचारियों पर प्रतिबंध

  • उपकरण एवं दाने, चारे आदि को प्रयोग से पहले समुचित रूप से विसंक्रमित किया जाना आवश्यक है।
  • अंडे की ट्रे एवं बॉक्स यथासंभव डिस्पोजेबल होनी चाहिए। यदि पुनः प्रयोग में लाए जाने वाली अंडे की ट्रे अथवा बॉक्स प्रयोग में लाए जा रहे हैं तो पुनः प्रयोग से पूर्व विसंक्रमित किया जाना अति आवश्यक है।

फार्मिंग प्रैक्टिस

  • फार्म पर “ऑल इन एवं ऑल आउट” का नियम लागू करना चाहिए। पूरा फ्लॉक एक साथ फार्म पर लाना चाहिए तथा एक साथ ही फार्म से बाहर निकालना चाहिए। एक गुण उम्र आदि के पशु एक साथ रखने चाहिए।
  •  मिक्स फार्मिंग जैसे मुर्गी, बत्तख, सूकर आदि एक साथ नहीं पालने चाहिए। नवागंतुक फलॉक पूर्णतया स्वस्थ होना आवश्यक है। अपने फार्म को निश्चित समय अंतराल पर विसंक्रमित करते रहना चाहिए।
  • प्रत्येक नए फ्लॉक के आगमन से पूर्व भी विसंक्रमित करना उचित होगा।
  • दो या तीन बार एक बाड़े में नए फ्लॉक/ हर्ड को पालने के उपरांत कुछ समय लगभग 1 माह के लिए बाड़े को खाली छोड़ देना चाहिए।

संदिग्ध मृत्यु की स्थिति में

  • फार्म के पशुओं में संदिग्ध अथवा अचानक मृत्यु होने की दशा में तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सालय को सूचना देना उचित होगा एवं पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार कार्य करना लाभदायक होगा।
  • मृत पशुओं को समुचित ढंग से दफनाया जाना चाहिए उन्हें इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए।
  • फार्मिंग प्रैक्टिस में क्वारंटाइन के मानकों के अनुसार कार्य करना चाहिए जैसे नए फ्लॉक अथवा हर्ड को पुराने में कम से कम 30 दिन के बाद ही मिलाना चाहिए तथा बाजार प्रतियोगिताओं से लौटे हुए पशुओं को कुछ दिन के पश्चात ही पुराने पशुओं में मिलाना चाहिए।
और देखें :  पशुपालक भी समझें पशुओं के मौलिक स्वास्थ्य निरीक्षण का महत्व

बैकयार्ड पोल्ट्री एवं शूकर हेतु जैव सुरक्षा उपाय

  1. अपने बैकयार्ड की उचित दीवार फेंसिंग आदि लगा कर सुरक्षा करनी चाहिये , जिससे अनावश्यक पशुओं एवं व्यक्तियों से सुरक्षा हो सके।२. मुर्गियों / सुकरों को आपस में लड़ने से रोकना चाहिए।
  2. मुर्गियों एवं सुकरो का कार्य करने के उपरांत अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
  3. एक ही बाड़े या घर में मुर्गी, सूकर, बतख आदि एक साथ ना पाले।
  4. राशन , पानी आदि के संक्रमण की जांच करानी उचित होगी।
  5. संदिग्ध या अचानक मृत्यु होने की दशा में तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेनी उचित होगा।
  6. पशु चिकित्सा कर्मियों को उनके कार्य जैसे टीकाकरण, खून की जांच , नमूनों को एकत्र करनाआदि में सहायता करनी चाहिए।
  7. यदि किसी मुर्गी या शूकर में इनफ्लुएंजा के लक्षण प्रदर्शित होते हो, तो उस दशा में तुरंत निकटतम पशु चिकित्सा केंद्र को सूचना देनी चाहिए।

एवियन इनफ्लुएंजा के लक्षण

  1. अचानक पक्षियों की मृत्यु
  2. शिथिलता एवं भूख में कमी
  3. आंख, सिर व कलगी पर सूजन
  4. जांघों तथा कलगी का बैगनी  हो जाना
  5. नाक से स्राव
  6. खांसी, जुखाम
  7. दस्त
  8. मुलायम कवच वाले अंडे

 शूकर इन्फ्लूएंजा(फलू) के लक्षण

  1. शिथिलता एवं भूख में कमी
  2. बुखार
  3. नाक से स्राव
  4. खांसी, जुकाम
  5. दस्त

बैकयार्ड मुर्गी एवं सूकर पालकों के ध्यान देने हेतु जैव सुरक्षा उपाय

  1. जंगली मुर्गी, प्रवासी पक्षी, जलीय पक्षियों की अचानक मृत्यु की दशा में निकटतम पशु चिकित्सा केंद्र से संपर्क करें।
  2. मृत पशुओं या  मुर्गियों के शवों को समुचित रूप से चूना आदि डालकर दफनाए।
  3. उपरोक्त दशा में यह उचित होगा की कुशल पशु चिकित्सक की सलाह लें एवं उनके अनुसार ही कार्य करें।
  4. बीमार पक्षी एवं पशुओं से दूर रहें एवं अपने परिवार के सदस्यों प्रमुख रूप से बच्चों को उनसे दूर रखें।
  5. बीमार पक्षियों या पशुओं को अपने रहने के स्थान से दूर बांधे।
  6. मांस आदि का सेवन करते समय यह ध्यान रखें कि मांस पूर्णतया पका हुआ हो तथा उसमें कहीं भी गुलाबीपन न हो। पके हुए मांस के सेवन से बीमारी नहीं फैलती है।
  7. मांस को बनाते समय ध्यान पूर्वक कार्य करें। पूर्णतया पकाएं एवं पकाने के बाद हाथों को साबुन या एंटीसेप्टिक घोल से धोएं।
  8. बूचड़ का चाकू भी विसंक्रमित किया जाना आवश्यक है।
और देखें :  पशुओं में रोगों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक है जैव सुरक्षा

यदि इन जैव सुरक्षा उपायों को अमल किया जाए तो भविष्य में होने वाली अनेक प्रकार की जूनोटिक बीमारियों से बचाव हो सकता है एवं उनके प्रसार पर नियंत्रण हो सकेगा।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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