मुर्गियों में जैव सुरक्षा उपायों से बीमारियों का बचाव

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जैव प्रबंधन एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा फार्म में पाले जा रही मुर्गियों को बीमारी उत्पन्न करने वाले कारको जैसे जीवाणु, विषाणु, कवक इत्यादि को प्रवेश करने से ही रोक दिया जाता है एवं जैव सुरक्षा उपायों का अपनाने मात्र से ही मुर्गियों मे पनपने वाली अधिकांश बीमारियों से निजात पा सकते है। सरल शब्दो में यह कहा जा सकता है कि यह प्रक्रिया बीमारी पैदा करने वाले करको से ही दूर रखती है। जैव सुरक्षा उपायो को अपनाकर मुर्गी पालक अपने फार्म में अच्छी गुणवत्ता कि मुर्गियों को पैदा कर तथा बीमारियो से होने वाले नुकसान को कम करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है। जैव सुरक्षा का उद्देश्य बीमारी पैदा करने वाले करको को मुर्गी फार्म मे प्रवेश से रोकना, फार्म मे कीटाणुओ के प्रवेश को रोकना या उनकी संख्या को कम करना होता है। जैव सुरक्षा उपायो से मुर्गियों मे होने अत्यंत भयंकर बीमारियों जैसे बर्ड फ्लू, रानीखेत, मैरेक्स, पुलोरम आदि से काफी हद तक बचा जा सकता है। साथ ही कई बीमारिया जो मानवो को भी अत्यधिक नुकसान पहुचाती है– से भी बचा जा सकता है। जैव सुरक्षा उपायों से आस – पास के फार्मो में भी बीमारी के प्रसार को कम किया जा सकता है एवं उपचार व निदान मे होने वाले अनावश्यक खर्चो से बचा जा सकता है।

बीमारियो के संचरण एवं प्रसार का मुख्य कारण संक्रमित व्यक्ति, उपकरण, दूषित जल और वाहन आदि हैं। कुछ बीमारियाँ जैसे कि साल्मोनेल्ला संक्रमण, माइकोप्लाज्मा संक्रमण अंडो से ही चूजो मे प्रसारित हो सकती हैं। विषाणु जनित रोग जैसे रानीखेत, इन्फेक्सियश ब्रोंकाइटिस, बर्ड फ्लू आदि वायु के माध्यम से ही एक फार्म से दूसरे फार्म में फैलती है।

बीमारियो के फैलने व संचरण के मुख्य कारण निम्न हैं

  • फार्म में बीमार मुर्गी के प्रवेश से।
  • बाहर से आने वाले आगन्तुको के माध्यम से।
  • फार्म मे प्रयोग मे आने वाले उपकरणो से।
  • प्रदूषित जल के प्रयोग से।
  • बाहरी पक्षियो, चूहो, गिलहरियो इत्यादि के माध्यम से।
  • संदूषित दाने के प्रयोग से।
  • उपयोग मे लाये जा रहे वाहन के प्रयोग से।
और देखें :  ग्रीष्म ऋतु मे मुर्गियों का हीट स्ट्रेस प्रबंधन

जैविक सुरक्षा के उपाय

1. फार्म बनाने की जगह का चुनाव

  • कुक्कुट फार्म का निर्माण आबादी वाली जगह से कम से कम 1-2 किलोमीटर दूर होना चाहिए।
  • फार्म को आस पास से ऊचे स्थान पर बनाना चाहिए।
  • फार्म मे ताजी हवा के आने जाने का उचित प्रबंध होना चाहिए।
  • फार्म के लंबे अक्ष कि दिशा ठंडे इलाको मे उत्तर से दक्षिण कि ओर तथा गरम इलाको मे पूर्व से पश्चिम कि होनी चाहिए।
  • फार्म का फर्श कांक्रीट का बना होना चाहिए। फार्म मे मरी हुयी मुर्गियों के निष्पादन हेतु उपयुक्त जगह होनी चाहिए जो कि मुख्यफार्म से कम से कम 150 मीटर की दूरी पर होनी चाहिए।
  • चूजा उत्पादन इकाई मुख्य फार्म से कम से कम 150 मीटर की दूरी पर होनी चाहिए।
  • फार्म कि बनावट मे प्रवेश के बाद ब्रूडर, ग्रोवर व अंत मे प्रौढ पक्षियो कि जगह होनी चाहिए।
  • फार्म मे जंगली जनवरो, चूहो ,पक्षियो इत्यादि के प्रवेश कि रोक लगाने का उचित प्रबंध होना चाहिए
  • फार्म मे दाना, लिट्टर व उपकरणो के लिए अलग अलग कक्ष निर्मित करने चाहिए।
  • मुख्य द्वार पर कपड़े बदलने, नहाने के लिए कक्ष होने चाहिए।

2. फार्म मे व्यक्तियों के प्रवेश के समय सावधानियाँ

  • केवल आवश्यक कार्यो हेतु जरूरी व्यक्ति को ही फार्म मे प्रवेश करने कि अनुमति देनी चाहिए ।
  • बाहरी व्यक्ति को फार्म मे प्रवेश से रोक होना चाहिए, यदि किसी कारण वश बाहरी व्यक्ति का प्रवेश जरूरी हो तो जाने से पूर्व ठीक प्रकार से स्नान कर फार्म के कपड़े व जूते पहनने के उपरांत ही प्रवेश कि अनुमति देनी चाहिए।
  • एक फार्म के कर्मचारी को दूसरे फार्म मे जाने रोक लगानी चाहिए।
  • फार्म मे प्रवेश व निकासी एक ही होनी चाहिए।
  • फार्म मे कार्य करने वाले व्यक्ति को थोड़े थोड़े समयांतराल पर अपने हाथों को साबुन से धुलना चाहिए
  • मुर्गी फार्म के आस पास की जगहो पर प्रतिदिन कीटाणु नाशको का छिड़काव करना चाहिए।

3. फार्म मे वाहनों के प्रवेश के समय सावधानियाँ

  • प्रवेश के पूर्व वाहन के टायरों की भली प्रकार से धुलाई व रोगाणु मुक्त किए जाने की प्रकिया सम्पन्न कर लेनी चाहिए।
  • सफाई के लिए उच्च दबाव के पानी का प्रयोग करना चाहिए।
  • वाहन को सूखने के बाद ही प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए।
  • वाहन के अंदर के व्यक्तियों , वस्तुओ इत्यादि को अलग से रोगाणु मुक्त किए जाने की प्रकिया सम्पन्न करने के उपरांत ही प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए।
और देखें :  सर्दियों में पोल्ट्री का प्रबंधन

4. फार्म मे नयी मुर्गियों के प्रवेश के समय सावधानियाँ

  • नयी मुर्गियों को अलग स्थान पर प्रथक्य व संगरोधित करना आवश्यक होता है।
  • फार्म मे लायी गयी नयी मुर्गियो को 2-3 हफ़्तों के लिए किसी भी बीमारी के संक्रमण की आशंका हेतु निगरानी मे रखना चाहिए।

5. कुक्कुट फार्म की साफ सफाई

  • मुर्गियों के बिछावन, मल मूत्र, बिखरे हुए दाने इत्यादि को समय–समय पर निकालते रहना चाहिए
  • फार्म की साफ सफाई डिटरजेंट पाउडर व पानी के स्प्रे से करनी चाहिए।
  • सूखने के उपरांत पुनः रोगाणुनाशक का छिड़काव कर्ण चाहिए।

6. कुक्कुट फार्म मे कार्यरत कर्मियों की स्वक्छ्ता

  • कुक्कुट फार्म मे कार्य करने वाले व्यक्तियों को फार्म मे प्रवेश करने से पूर्व अच्छी प्रकार से साबुन से धुलना चाहिए।
  • फार्म मे कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति हेतु एप्रन, गम बूट, टोपी, फ़ेस मास्क, दस्ताने आदि होने चाहिए जिन्हे फार्म से बाहर निकलते समय मुख्य द्वार पर बने स्टोर मे छोड़ देना चाहिए।
  • कपड़ो को अच्छी तरह से डिटरजेंट मे धोकर धूप मे सुखाने के बाद प्रयोग मे लाना चाहिए।

उपरोक्त जैव सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखकर मुर्गीपालन में होने वाले आर्थिक नुक्सान से बचा जा सकता है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  लेयर नुट्रिशन से जुड़ी कुछ समस्याएँ एवं उनके समाधान

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