बरसात के मौसम के समय हरा चारा आवश्यकता से अधिक उपलब्ध रहता है। यदि इस चारे को साईलेज (चारे का अचार) Silage बनाकर संरक्षित कर लिया जाय तो, शुष्क मौसम तथा चारे की कमी और अभाव के दिनों में पशुओं को साईलेज के रूप में पौष्टिक चारा उपलब्ध कराया जा सकता है।
क्या है साईलेज अथवा चारे का अचार?
हरे चारे को हवा की अनुपस्थिति में गड्ढे के अन्दर रसदार परिरक्षित अवस्था में रखनें से चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है, जो हरे चारे का PH कम कर अम्लीय बना देता है, तथा हरे चारे को सुरक्षित रखता है। इस सुरक्षित हरे चारे को साईलेज कहते हैं। अम्लीयता बड़ने से चारे में अवांछनीय जीवाणु नहीं पनप पाते और चारा लम्बे समय तक सुरक्षित रहता है। हरे चारे को संरक्षित करने का यह सबसे बेहतरीन तरीका है, क्योंकि साईलेज की गुणवत्ता सूखी घास (पुआल) अथवा ‘हे’ से अधिक होती है।अधिकतर किसान हरे चारे को संरक्षित करने हेतु भूसा या पुआल का उपयोग करते हैं जो पोष्टिकता में साईलेज की तुलना निम्न होते है, क्योंकि भूसा या पुआल मे से पशुओं को प्रोटीन, खनिज तत्व एवं उर्जा की उपलब्धता कम होती है।
साईलेज बनाने हेतु उपयुक्त चारा
साईलेज बनाने के लिए वो घासें उपयुक्त होती है जिनमे कार्बोहाइड्रेट अर्थात शर्करा की मात्र अधिक होती है, जैसे दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, जई, बाजरा, नेपियर घास, गिन्नी घास, आदि। साईलेज इन घासों से अकेले अथवा इनके मिश्रण से बनाया जा सकता है। दलहनीय फसलों का साइलेज अच्छा नहीं रहता परन्तु दलहनीय फसलों को दाने वाली फसलों के साथ मिलाकर साईलेज बनाया जा सकता है, इसके अतिरिक्त अम्लीयता बड़ाने हेतु शीरा अथवा गुड़ के घोल का उपयोग भी किया जा सकता है।
फसल की कटाई की अवस्था
साईलेज बनाने के लिए दाने वाली फसलों जैसे मक्का, ज्वार, जई आदि को जब दाने दूधि्या अवस्था हो तो काटना चाहिए। इस समय चारे में 65-70 प्रतिशत पानी रहता है। अगर चारे में पानी की मात्रा अधिक हो, तो चारे को थोडा सुखा लेना चाहिए।साईलेज बनाने हेतु मोटे ताने वाले पोधो उपयुक्त होते हैं।
साईलेज बनाने की विधियां
भारत में साईलेज संग्रह करने के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है। जैसे जमीन के नीचे गड्ढे बनाकर, ट्रेंच बनाकर, बंकर बनाकर अथवा प्लास्टिक के थैले अथवा प्लास्टिक ड्रम का उपयोग करके। तरीका कोई भी उपयोग करें परन्तु ये ध्यान रखना चाहिए की जंहा चारा संग्रह किया जा रहा है, वो हवारहित हो तथा बाहर से पानी का रिसाव न हो। इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि हवा एवं पानी साईलेज के शत्रु हैं इनकी उपस्थिति में साईलेज सड़ने लगेगा।
साईलेज के गड्ढे बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें
साईलेज बनाने के लिए गड्ढो के लिए जगह का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। गड्ढे हमेशा उॅंचे स्थान पर बनाने चाहिए जहां से वर्षा के पानी का निकास अच्छी तरह हो सके तथा पानी का रिसाव न हो, उस स्थान में भूमि में पानी का स्तर नीचे हो अन्यथा भूमि के अन्दर से गड्ढे में पानी के रिसाव का खतरा रहता है तथा साईलेज बनाने का स्थान पशुशाला के नजदीक होना चाहिए जिससे साईलेज का उपयोग आसानी से किया जा सके। गड्ढो का आकार उपलब्ध चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। गड्ढों के धरातल में ईंटों से तथा चारों और सीमेंट एवं ईंटो से भली भांति भराई कर देनी चाहिए तथा चारों और तथा धरातल की गीली मिटटी से खुब लिपाई कर देनी चाहिए या चारों और दीवारों के साथ पोलीथीन लगा देनी चाहिए।
गड्ढो को भरना तथा बन्द करना
सर्वप्रथम हरे चारे को उपयुक्त अवस्था में काट कर थोडी देर के लिए खेत में सुखाने के लिए छोड देना चाहिए। जब चारे में नमी 70 प्रतिशत के लगभग रह जाये तो उसे 2-5 से.मी. के छोटे छोटे टुकड़ो में कुट्टी काटने वाली मशीन से कुट्टी कर लेनी चाहिए।इसके पश्चात चारे को गड्ढों में अच्छी तरह दबाकर भर देना चाहिए। छोटे गड्ढों को आदमी पैरो से दबा सकते हैं जबकि बडे गड्ढे ट्रैक्टर चलाकर दबा देने चाहिए। जब तक जमीन की तह से लगभग एक मीटर उचॉं ढेर न लग जाये भराई करते रहना चाहिए। भराई के बाद उपर से गुम्बदाकार बना दें और पोलिथीन या सूखे घास से ढक कर मिट्टी अच्छी तरह दबा दें और उपर से लिपाई कर दें ताकि इस में बाहर से पानी तथा वायु आदि न जा सके।
गड्ढों का खोलना
45 से 60 दिनों बाद साईलेज पशुओं को खिलाने हेतु तैयार हो जाती है। साईलेज तैयार होने के बाद जब चारे की आवश्यकता हो तब गड्ढे को खोलना चाहिए। गड्ढे को खोलते समय ध्यान रखें कि गडढे का कुछ हिस्सा ही खोला जाए तथा बाद में उसे ढक दिया जाय। साईलेज एक तरफ से परतों में निकाला जाए और गडढा खोलने के बाद साईलेज को आवश्यकता अनुसार पशुओं को खिलाना चाहिए तथा साईलेज निकाले के बाद गड्ढे को पुनः पॉलिथीन से ढक देना चाहिए ताकि हवा लगकर साईलेज खराब न हो जाय। ध्यान रखना चाहिए कि गड्ढे के उपरी भागों और दीवारों के पास में कुछ साईलेज में फफूंदी लग जाती है ऐसा साईलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए। साईलेज की महक सुहानी होनी चाहिए दुर्गन्धयुक्त साईलेज खराब होती है। दुर्गन्धयुक्त तथा फफूँदयुक्त साईलेज को पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए। एक बार गड्ढे खोलने के बाद जितनी जल्दी हो सके पशुओं को खिलाकर समाप्त करना चाहिए।
पशुओं को साईलेज खिलाना
सभी प्रकार के पशुओं को साईलेज खिलाया जा सकता है। शुरू में यदि पशु साईलेज नहीं खाता है तो सूखे चारे में थोड़ा थोड़ा मिलाकर आदत डालनी चाहिए। जब पशु को आदत पड़ जाए तब एक भाग सूखा चारा, एक भाग साईलेज मिलाकर खिलाना चाहिए परन्तु अगर हरे चारे की कमी हो तो साईलेज की मात्रा ज्यादा की जा सकती है। एक सामान्य पशु को 20-25 किलोग्राम साईलेज प्रतिदिन खिलाया जा सकता है। दुधारू पशुओं को साईलेज दूध निकालने के बाद खिलायें ताकि दूध में साईलेज की गन्ध न आ सके। बढिया साईलेज में लगभग 85-90 प्रतिशत हरे चारे के बराबर पोषक तत्व होते हैं, इसलिए हरे चारे की कमी के समय साईलेज खिलाकर पशुओं का दूध उत्पादन बढाया जा सकता है। अच्छी तरह संगृहीत साईलेज पशुओं द्वारा बड़े चाव से खायी जाती है।
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