विभिन्न विषों से, विषाक्त पशुओं के लक्षण तथा उपचार

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1. सायनाइड विषाक्तता

यह विषाक्तता, हाइड्रोसानिक एसिड(HCN) तथा साइनोजेनेटिक पौधों जैसे ज्वार, बाजरा, अलसी सूडान घास तथा मक्का आदि को सूखे की स्थिति में  खा लेने से उत्पन्न होती है । ऐसे पेड़ पौधे खाने पर इनमें मौजूद ग्लूकोसाइड पशु के रुमन मैं एंजाइम की क्रियाओं से हाइड्रो सैनिक एसिड बनाता है जिससे सायनाइड विषाक्तता होती है। इस तरह के पौधों की पत्तियों में तनों की बजाय अधिक ग्लाइकोसाइड होता है जो विषाक्तता के लिए उत्तरदाई होता है। कई बार पानी की कमी से पौधे छोटे रहते हैं लेकिन पानी मिलते ही यकायक अधिक वृद्धि करते हैं उनमें ग्लूकोसाइड अधिक पाए जाते हैं। जिन पौधों पर पादप हारमोंस का छिड़काव किया जाता है उनके खाने से भी ऐसा हो जाता है।

लक्षण

  1. अधिक मात्रा में एचसीएन या साइनेजेनेटिक, पौधों को खा लेने के 15  से 20 मिनट बाद  ही विषाक्तता के लक्षण  प्रकट होते ही 10 से 15 मिनट में ही पशुओं की मृत्यु हो जाती है ।  उत्तेजना तथा पैरों को पटकना,  अधिक लार गिरना, कई बार मरोड़ उत्पन्न होने तथा स्वसन क्रिया के बंद हो जाने के परिणाम स्वरूप पशु की अचानक मृत्यु हो जाती है।
  2. उत्तेजना तथा चकराना। सांस लेने में अत्याधिक तकलीफ तथा खुला मुंह रखकर सांस लेना।
  3. आंखे तेज लाल रंग की हो जाती हैं  तथा आंखों की पुतलियों  का चौड़ा हो जाना।
  4. अत्याधिक लार का बहना तथा शरीर में कंपन।
  5. ऑपिसथोटोनस अवस्था अर्थात कमर से धनुष के आकार का शरीर बनना।
  6. अनैच्छिक मूत्र तथा मल विसर्जन।
  7. मांस पेशियों का कंपन तथा लड़खड़ाना।
  8. एक विशेष चिल्लाहट के उपरांत मृत्यु।

शव परीक्षण

  1. शिरा, रक्त का रंग चमकता हुआ लाल।
  2. रक्त वाहिनियों में बिना जमा हुआ रक्त।
  3. फेफड़ों में कंजेशन तथा कहीं-कहीं रक्तस्राव।
  4. उदर के खोलने पर कड़वी बादाम जैसी विशेष गंध।

उपचार

  1. यदि संभव हो तो वमन तथा स्टमक लवाज करा कर विष निकाला जाए।
  2. सोडियम नाइट्राइट 20 ग्राम सोडियम थायो सल्फेट 30 ग्राम को 500 मिलीलीटर आसुत जल में घोल कर, 20 मिलीलीटर प्रति 50 किलो शरीर भार के अनुसार इंट्रावेनस विधि से धीरे-धीरे दिया जाए तथा यदि अति आवश्यक हो तो एक बार पुनः दिया जाए।
  3. सोडियम थायो सल्फेट 20% घोल 10ml प्रति 50 किलो शरीर भार के अनुसार इंट्रावेनसली दिया जाए तथा यदि आवश्यक हो तो दोबारा दिया जाए।

2. कनेर विषाक्तता

यह बहुत विषैला पौधा होता है तथा इसकी 30 से 40 ग्राम हरी पत्तियों को या फली को खा लेने से ही गाय, भैंस तथा घोड़े की मृत्यु हो सकती है।

लक्षण

  1. तीव्र अतिसार।
  2. नाड़ी की गति तीव्र तथा स्वसन क्रिया गहरी होती है।
  3. अत्याधिक उदर दर्द।
  4. एक्सट्रीमिटीज ठंडी हो जाती है।
  5. घोड़ों में तीव्र पसीना आना।
  6. अंतिम अवस्था में मल से रक्त आना।

उपचार

लक्षणों के आधार पर चिकित्सा लाभदायक होती यहै।

3. लेंटाना विषाक्तता

जब लेंटाना कमारा नामक पौधे को पशु खा लेता है तो यह  विषाक्ति उत्पन्न होती है। यह पौधा विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है जैसे घनेरी, घनी डलिया, पंचफुलिया, गुल सितारा, उन्नी, ललटेना, इत्यादि। साधारणत: इस पौधे को , पशु नहीं खाते हैं परंतु विषम तथा अकाल जैसी परिस्थितियों में पशु इसको भी खा लेते हैं। इस प्रकार की एक आउटब्रेक सन 1971 में लखनऊ में हुई जिसमें स्थानीय कुकरेल जंगल में बहुत से पशुओं ने इन पौधों को खा लिया तथा उनमें विषाक्तता उत्पन्न हो गई। यह विषाक्तता लेनटाना में पाए जाने वाले हिपेटो-टॉक्सिंस, तथा फोटोडायनेमिक एजेंट्स के कारण उत्पन्न होती है।

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लक्षण

  1. लार और आंसुओं का बहना तथा तापमान न बढ़ना स्ट्रेनिंग, कॉन्स्टिपेशन अर्थात कब्ज, एनोरेक्सिया, जौंडिस तथा फोटोसेंसटाइजेशन एवं त्वचा की सड़न।
  2. युवा पशुओं में अधिक मृत्यु तथा बहुत से पशु लंबे समय तक विषाक्तता से पीड़ित रहते हैं।
  3. लड़खड़ाना पक्षाघात उत्तेजना तथा अत्याधिक सुस्त हो जाना।
  4. अतिसार का होना।

शव परीक्षण

सबक्यूंटेनियस ऊतकों, वसा, मांसपेशियां यकृत, गुर्दों  तथा अन्य अंत: अंग पीले रंग के हो जाना। यकृत का बढ़ जाना तथा पित्ताशय का पित्त से भरकर 10 से 20 गुना तक बढ़ जाना इत्यादि।

उपचार

  1. पीड़ित पशुओं को प्रकाश से बचाना  तैलीय दस्तावर औषधियों का देना,
  2. एंटीहिस्टामिनिक औषधि जैसे एविल 10 से 20 एम एल इंट्रावेनस या इंटरमस्कुलर दिया जाना चाहिए।
  3. त्वचा के घावों आदि पर एंटीसेप्टिक औषधियों का लगाया जाना।
  4. सोडियम थायो सल्फेट का 30% का घोल 60 मिली लीटर प्रति 100 किलोग्राम शरीर भार पर इंट्रावेनस विधि से दिया़ जाना या इसकी दूनी मात्रा मुंह से पिलाया जाना
  5. कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट तथा ग्लूकोस सलाइन, कोरामीन, लिवर एक्सट्रैक्ट विद बी कांप्लेक्स तथा लिव-52 प्रोटेक आदि प्रचुर मात्रा में दिया जाना लाभदायक होता है।
  6. मैगसल्फ तथा सोडियम क्लोराइड के मिश्रण का प्रयोग भी दस्तावर के रूप में किया जा सकता है।

4. इसट्रिकनीन विषाक्तता

लक्षण

पशु का अधीर तथा बेचैन होना, मांसपेशियों की ऐंठन, शरीर ऐंठकर कर ऊपर को उठ जाना, चौंकना, पुतली का फैल जाना तथा दम घुटने के कारण मृत्यु हो जाना।

शव परीक्षण

  1. दम घुटने के लक्षण।
  2. फेफड़े तथा मस्तिष्क में गंभीर कंजेशन।
  3. शिरा रक्त पतला तथा काला।
  4. रायगर मारटिस का शीघ्र प्रारंभ होना।

उपचार

  1. पोटेशियम परमैंगनेट के अति तरल घोलका पिलाना। २.कुत्तों में एपोंमार्फिन देकर वमन कराना ।
  2. छोटे पशुओं को फिनोबार्बीटोन इंट्रावेनस देना तथा बड़े पशुओं को क्लोरल हाइड्रास देना।
  3. पशु को शांत वातावरण में रखा जाना।

5. अबरस या सुई विषाक्तता

अबरस या रत्ती के बीजों को पीसकर सुई बना ली जाती है। इस सुई को पशु की खाल के नीचे घुसेड़ दिया जाता है, तथा पशु कुछ समय बाद मर जाता है। यह प्रक्रिया चमड़ा पाने के लिए कुछ लोग अपनाया करते है।

लक्षण

सुई घुसाने के स्थान पर  शोथ का होना, मरोड़ तथा दर्द का होना पशु का ठंडा होकर बेहोश हो जाना तथा उसकी मृत्यु हो जाना।

शव परीक्षण

त्वचा के नीचे सुई का मिलना, आंतों में कंजेशन तथा फेफड़ों, यकृत, प्लीहा आदि मैं रक्त स्राव के चिन्हों का मिलना।

उपचार

लक्षणों के अनुसार उपचार किया जाए।

6. डी़डी़टी़ तथा गेमैक्सीन की विषाक्तता

लक्षण

अति तीव्र अवस्था में कंपन, ऐठन तथा चकराना एवं पशु की मृत्यु हो जाना। तीव्र उत्तेजना, अधिक लार गिरना, लड़खड़ाना, असामान्य, रूप से बैठना एवं उठना, कराहना और दांत किटकिटाना तथा चक्कर आना इत्यादि।

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शव परीक्षण

फेफड़े यकृत तथा गुर्दों में कंजेशन, एपिकार्डियम में रक्तस्राव, न्यूमोनिया, श्वास नली तथा ब्रानकाई में रक्त युक्त झाग, मस्तिष्क में कंजेशन तथा अधिक तरल पदार्थ इत्यादि।

उपचार

छोटे पशुओं को पेंटोबर्बिटल सोडियम तथा बड़े पशुओं को क्लोरल हाइड्रेट दिया जाए। सलाइन परगटिव दिया जाए। भूल कर भी आयल परगेटिव कभी न दें।

7. यूरिया विषाक्तता

अक्सर ऐसा देखा गया है कि पशु लालचवश यूरिया खाद को खा लेता है तथा इससे विषाक्तता के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। समय पर उपचार न मिलने की स्थिति में पशु की मृत्यु भी हो सकती है।

लक्षण

तीव्र उदरशूल, कराहना, कंपन, लड़खड़ाना, कष्टदायक तीव्र स्वास, अत्याधिक लार गिरना, स्पष्ट जुगुलर पल्स तथा इसके उपरांत उत्तेजित संघर्ष, रंभाना और पशु की मृत्यु हो जाना।

शव परीक्षण, मे कोई विशेष लीजन नहीं मिलते हैं। सामान्य उदर, आंत्र शोथ, ब्रोंकाइटिस के चिन्ह ही दिखाई देते हैं। उदर के पदार्थ की, यूरिया के लिए परीक्षण किया जा सकता है।

उपचार

वयस्क गो वंशीय तथा महिष वंशीय पशुओं को, 2 लीटर से  4 लीटर तक 5% एसिटिक एसिड पिलाया जाए। पशु के भार के अनुरूप कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट अथवा मायफैक्स इंट्रावेनस तरीके से दिया जाए। एड्रिनर्जिक ब्लॉकिंग औषधियां भी इंजेक्शन द्वारा दी जाएं।

8. ऑर्गेनो फास्फोरस कंपाउंड जैसे मेलाथियान पैराथियान की विषाक्तता

लक्षण

इस विषाक्तता में मस्करीनिक, निकोटीनिक तथा  केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के लक्षण प्रकट होते हैं। मस्करीनिक लक्षणों में उल्टी की इच्छा, वमन, उदरशूल, अतिसार, मांसपेशियों में ऐंठन, अत्याधिक अश्रु तथा पसीना बहना तथा स्वास लेने में कष्ट होता है। जबकि निकोटीनिक लक्षणों में ऐच्छिक मांसपेशियों की दुर्बलता तथा पक्षाघात मांसपेशियों की फड़कन  तथा अंतड़ियो की गति वृद्धि के अतिरिक्त केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के लक्षणों में सुस्ती एवं मुरझाना, रिफ्लेक्सेस का समाप्त हो जाना, चकराना, बेहोश हो जाना तथा श्वास क्रिया के बंद हो जाने के कारण मृत्यु हो जाना आदि आते हैं।

शव परीक्षण

विशेष चिन्ह नहीं मिलते हैं। विष की जांच के लिए अंगों के सैंपल एकत्र किए जाते हैं।

उपचार

  1. अट्रोपिन सल्फेट इंट्रामस्कुलर अथवा इंट्रावेनस विधि से देते हैं।
  2. गाय भैंस में 30 एमजी प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार के अनुसार
  3. भेड़ में 50 एमजी प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार के अनुसार
  4. घोड़े में 7mg प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार के अनुसार
  5. कुत्ते में 2 से 4 एमजी संपूर्ण मात्रा

नोट: एक तिहाई औषधि धीमी गति से इंट्रावेनस तथा अवशेष औषधि इंट्रा मस्कुलर विधि से देते हैं।

9. कार्बन टेट्राक्लोराइड की विषाक्तता

लक्षण

भूख न लगना, लड़खड़ाना, रक्तयुक्त मल, कब्ज तथा अतिसार कभी-कभी जौंडिस और पशु 12 से 24 घंटे के अंदर मर जाता है।

शव परीक्षण

अमाशय आंत्रशोथ,  एबोमेजम कन्जेस्टेड, यकृत में रक्त स्राव, फैटी डिजेनरेशन तथा नैक्रोसिस गुर्दों की नैक्रोसिस आदि प्रमुख चिन्ह होते हैं।

उपचार

  1. कार्बन टेट्राक्लोराइड का उपयोग बहुत सावधानी पूर्वक कराना चाहिए।
  2. कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट इंट्रावेनस दिया जाए। अमोनियम क्लोराइड बड़े पशु को 30 से 60 ग्राम तथा छोटे पशु को 5 से 10 ग्राम पिलाया जाए।
  3. लिवोल 10 ग्राम भेड़ तथा बकरी को, 50 ग्राम गाय भैंस को गुड़ में मिलाकर कई दिन तक खिलाया जाए।
  4. भेड़ तथा बकरियों को  2 ग्राम निकोटीनिक एसिड 10ml पानी में मुंह से अथवा इंट्रा मस्कुलर अथवा इंट्रासपेरीटोनियल देना बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
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संक्षेप में पौधों के विष की विषाक्तता एवं उनकी विषहर औषधिया अर्थात एंटीडोट:

  1. आर्सेनिक का एंटीडोट सोडियम थायो सल्फेट है।
  2. कॉपर का एंटीडोट अमोनियम मौलिबडेट + सोडियम सल्फेट है।
  3. लेड का एंटीडोट कैल्शियम-सोडियम ई डी टी ए, है।
  4. मौलिबडेनम का एंटीडोट कॉपर सल्फेट है।
  5. नाइट्रेट एवं नाइट्राइट का एंटीडोट 1% मिथाईलीन ब्लू का घोल है।
  6. साइनोजेनेटिक पौधों का एंटीडोट सोडियम नाइट्राइट+ सोडियम थायो सल्फेट है।
  7. ऑक्सेलेटस का एंटीडोट लाइम वाटर है।
  8. यूरिया का एंटीडोट सिरका अथवा 5% एसिटिक एसिड है।
  9. ब्रोमाइड का एंटीडोट क्लोराइड है।
  10. ऑर्गेनोक्लोरीन कंपाउंड्स का एंटीडोट एक्टिवेटेड चारकोल है।

नोट: उपरोक्त विषाक्तताओं, के लक्षण  सामान्य जानकारी के लिए है  परंतु उपरोक्त विषाक्तताओं और उनके एंटीडोट का प्रयोग किसी योग्य पशु चिकित्सक के निर्देशन में कराना चाहिए।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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