सर्दियों में डेयरी पशुओं की देखभाल

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भारत एक कृषि प्रधान राष्ट्र है। भारत की अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाने वाला पशुपालन व्यवसाय कृषि का एक महत्तवपूर्ण अंग है। भारत विविधताओं का देश तो है ही जहाँ पर विभिन्न प्रकार के मौसम भी देखने को मिलते हैं। यहाँ पर गर्मी के मौसम में भीषण तपिश का सामना करना पड़ता है तो वहीं शर्द ऋतु में हडि्डयों को कंपा देने वाली भंयकर ठण्ड का भी सामना करना पड़ता है। भंयकर सर्दी का प्रकोप न केवल इंसान बल्कि पालतु पशु भी  झेलते हैं जिसकी चपेट में  बहुत से पशु आ जाते हैं।

सर्दी के मौसम में पशुपालकों को अपने पशुओं को सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। सर्दी के कारण यदि पशु बीमार होता है तो इससे पशु का उपचार करवाने में पशुपालकों को आर्थिक हानि होने के साथ-साथ बीमार पशु कमजोर भी हो जाता है। इससे पशुओं की उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है व कई बार पशु दुग्ध उत्पादन भी बंद कर देता है। सर्दी से पीढ़ित पशु के बीमार होने पर उसकी मौत भी हो जाती है। ऐसे में शैड के तापमान का खास ध्यान रखें। भैंस जाति के पशु सर्दी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

सर्दी के लक्षण

सर्दी का पशुओं पर तनाव के कारण उनके बढ़वार, खान-पान, पोषण एवं दुग्ध उत्पादन व दुग्ध संघटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सर्दी लगने के कारण पीढ़ित पशु सुस्त और थका हुआ सा बैठा रहता है। उसकी आँखों से पानी बहता है। पशु की नाक से पानी और बलगम निकलती रहती है। वह जुगाली करना बंद कर देता और उसके खान-पान में कमी या वह खाना-पीना बिल्कुल बन्द कर देता है। दूधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है। सर्दी के प्रकोप के कारण पशुओं में खांसी भी हो जाती है। संक्रमण होने पर उसकी स्थिती और अधिक खराब हो जाती है।

पशुओं को ठण्ड से बचाने के उपाय

आमतौर पर बदलते मौसम के अनुसार पशुपालक अपने पशुओं को विकट परिस्थितियों से बचाने के लिए अच्छे से प्रबंधन करते हैं। फिर सदिर्यों के के आगमन या सर्दी अपने चरम पर होने की स्थिति में पशुपालक निम्नलिखित उपाय करके अपने पशुओं को ठण्ड के प्रकोप से बचाने में उपयोगी बातों का अनुसरण कर सकते हैं:

  1. साफसफाई का विशेष ध्यान रखें: सर्दी के मौसम में पशुओं के नीचे सफाई का विशेष ध्यान रखें। पशुओं के आवास में गोबर एवं पेशाब की निकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। किसी भी मौसम में खासतौर से सर्दी में आवास में जलभराव की स्थिती नहीं होनी चाहिए। ज्यादा देर तक उन्हें गीले में न बैठने दें। धूप निकलने पर पशुओं को शेड के अंदर से बाहर निकालने के बाद शैड के चारों ओर लगी पल्ली या तिरपाल को खोल दें अर्थात ऊपर की ओर खिसका दें। ऐसा करने से धूप अन्दर आएगी और गीले बिछावन को सूखने में सहायता प्रदान करेगी। ऐसा करने से शैड में उत्पन्न हुई अमोनिया गैस, जो श्वास रोग उत्पन्न करती है, भी बाहर निकल जाएगी।
  2. ठण्डी हवाओं से बचाएं: रात में सर्द हवाओं से बचाव हेतु जूट से बने टाट एवं बोरे से आवास को चारों तरफ से ढक दें। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखें कि आवास बिल्कुल भी पैक न हो अर्थात आवास में थोड़ी-बहुत ताजी हवा भी आनी चाहिए। इसके लिए पल्ली या तिरपाल के निचले हिस्से को थोड़ा ऊपर कर देना चाहिए। इसी प्रकार पल्ली या तिरपाल के ऊपरी हिस्से को थोड़ानीचे खिसका देना चाहिए। ऐसा करने से निचले हिस्से से ताजी हवा अन्दर आएगी, जो गर्म होने के उपरान्त ऊपरी खुले हिस्से से बाहर निकल जाएगी। ऐसा करने से श्वास संबन्धी रोग होने की संभावना कम रहेगी।
  3. आवास को गर्म रखना: पशु चिकित्सकों के अनुसारी सर्दी में रात का तापमान 15° सेंटीग्रेड तक आने पर पशुबाड़े को गर्म रखने की सबसे अधिक जरूरत होती है। य​दि पक्का आवास है तो गेट पर तिरपाल लगाया जा सकता है। इससे भी कम तापमान होने पर अंगीठी की सहायता से शेड को गर्म रखा जा सकता है, लेकिन अंगीठी का धुआं शेड से बाहर निकालें। जब धुआं निकल जाए, तब अंगीठी को ऐसी जगह पर रखें, जहां पशु की पहुंच न हो। अंगीठी जलाने के दौरान पशुबाड़े में हवा की क्रॉसिंग का प्रबन्ध होना चाहिए। दिन के समय आवास में सीधी आनी चाहिए जिससे आवास गर्म होने के साथ-साथ आवास के सूखने में सहायता मिलती है। अधिकतर पशुपालक पशु पोषण एवं प्रजनन पर ध्यान देते हैं लेकिन उनके आवासीय प्रबंधन को नजरअंदाज कर देते हैं। पशुओं का आवास हमेशा ही साफ-सुथरा, सूखा एवं आरामदायक होना चाहिए। उनको अंत: एवं बाह्य कृमियों से बचाना चाहिए। पशु आवास का तापमान 18 से 25 डिग्री सेल्सियस एवं 70 से 75 प्रतिशत आर्द्रता होनी चाहिए।
  4. ठण्डा पानी पिलाएं: ठण्डा पानी पीलाने से खासतौर पर, छोटे बाल पशुओं में, खून की लाल रक्त कणिकाएं टूटने से हिमाग्लोबिन पेशाब में आना शुरू हो जाता है। इसलिए पशुओं को रात का ठण्डा पानी न पीलाएं।
  5. पशुओं को ताजे पानी से नहलाएं: दोपहर से पहले ताजे पानी में पशुओं को नहलाएं। कमजोर पशुओं को नहलाने के बजाय सूखे कपडे़ व पुआल से रगड़कर उसके शरीर की सफाई करें।
  6. बुखार की दवा: पशु को ठण्ड लगने पर सबसे पहले चिकित्सक को ​दिखाएं। य​दि रात के समय परेशानी है तो पशु पैरासिटामोल की गोलीयां दे सकते हैं। 50 किलोग्राम के पशु को 100 मिलीग्राम की गोली दी जाती है। ऐसे में बड़ी भैंस को पांच-छ: गोलीयां दी जा सकती हैं। सर्दी के मौसम में पशुपालक पैरासिटामोल की गोलीयां घर पर रखें। पशु को गर्म पानी की भांप भी दी जा सकती है।
  7. ग्याभिन पशुओं का रखें विशेष ध्यान: अत्याधिक सर्दी होने पर ग्याभिन पशुओं में गर्भपात की समस्या देखने को मिलती है। अत: ग्याभिन पशुओं सर्दी से बचाने के लिए विशेष ध्यान रखना चाहिए। उनको अतिरिक्त ऊर्जावान आहार देना चाहिए।
  8. छोटे बच्चों का भी रखें ख्याल: सर्दी का अत्याधिक प्रभाव छोटे बच्चों में सबसे अधिक देखने को मिलता है। अत: सर्दी के मौसम में उनका भी ध्यान रखें। नवजात बाल पशु को खीस (ब्याने के बाद माँ का पहला दूध) अवश्य पिलाएं, इससे बीमारी से लडऩे की क्षमता में वृद्धि होती है। इसके बाद उन्हें अधिक दूध पिलाने के साथ-साथ पेट के कीड़ों की दवा भी प्रतिमाह लगातार छ: महीने तक अवश्य पिलानी चाहिए। सर्दी के मौसम में उनको गर्म स्थान पर रखें।
  9. सर्दियों में पशु आहार की व्यवस्था: सन्तुलित पशु आहार पशुपालन में मुख्य स्तंभ है। पशुओं के जीवन निर्वाह शारीरिक वृद्धि एवं उत्पादन हेतु संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। सर्दियों में अधिकतर पशु-ग्याभिन होते हैं, इसलिये उनको अतिरिक्त आहार गर्भावस्था के दो माह पूर्व से प्रारम्भ कर देना चाहिए। प्रसव के उपरांत समुचित मात्रा में आहार देते रहना चाहिए, जिससे लम्बे समय तक दूध उत्पादन मिलता रहेगा। दलहनी हरे चारे जैसे कि हरी बरसीम, लुर्सन या लोबिया पशुओं को खिलाना चाहिए, क्योंकि इसमें प्रोटिन एवं खनिज तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण दूध उत्पादन बनाये रखने में सहायता मिलती है।
  10. पशुओं को अतिरिक्त प्रोटीन दें: सर्दी के मौसम में पशु को अपने शरीर का तापमान बनाए रखने के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसे में अतिरिक्त प्रोटीन दी जा सकती है। नियमित रूप से गुड़, सरसों की खल, सोयाबीन की खल और अनाज में बाजरा ​दिया जा सकता है। छोटे बच्चों को प्‍​र्याप्त मात्रा में मां का दूध ​दिया जाना चाहिए।
  11. टीकाकरण: सर्दीयों में पशुओं को होने वाले रोग खासतौर पर मुँह पका-खुर पका एवं गलगोटू रोग के प्रति अवश्य ही सचेत रहना चाहिए। इस प्रकार के रोगों से पशुओं को बचाने के लिए समय रहते अपने पशुओं को अवश्य ही टीकाकरण करवा लेना चाहिए।
  12. पशुओं की पाचन शक्ति रखें ठीक: आमतौर पर पशुओं की पाचन शक्ति कम होने पर उचित ध्यान न हो पाने के कारण पशु बीमार हो सकते हैं। अत: पशुओं की पाचन शक्ति ठीक रखने के लिए पशुपालक अपने पशुओं को 10 ग्राम मीठा सोडा, 10 ग्राम नमक, 10 ग्राम अदरक, 10 ग्राम गुड़ और 10 ग्राम लहसुन सुबह-शाम आवश्यकतानुसार दे सकते हैं। इससे दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन भी बढ़ता है।
  13. सर्दी लगने पर घरेलु उपचार: पशुओं को सर्दी लगने की स्थिति में पशु को 30 ग्राम हल्दी को 250 ग्राम गुड़ में मिलाकर देने से पशु को सर्दी से राहत मिलती है। खांसी कम करने के लिए तारपीन के तेल या सफेदे के पत्तों का बफारा दिया जा सकता है।
  14. पशु चिकित्सक से करें सम्पर्क: पशु को किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर स्थानीय पशु चिकित्सक को बिना देरी किये अवश्य दिखाना चाहिए।
और देखें :  पशुओं की विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों के नियंत्रण के सामान्य सिद्धांत
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  गलाघोंटू/ घुरका पशुओं की अति संक्रामक एवं जानलेवा बीमारी

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