मादा बाल पशु ही छोटे से बड़ी मादाएं बन कर एक दुधारू गाय/भैंस बनती हैं। जितनी ज्यादा संख्या में छोटे मादा पशुओं की अच्छी देखभाल होती है तो उतनी ही ज्यादा मादाओं की प्रतिस्थापना होगी। यदि बाल एवं ओसर मादाओं की अच्छी देखभाल नहीं होगी तो प्रतिस्थापना के लिए दुधारू पशु खरीदने होते हैं। इन खरीदे गये पशुओं की आनुवंशिकी के बारे में भी पता नहीं होता है जिससे कई बार पशुपालकों को नुकसान भी होता है। अतः अपने ही बाल व ओसर पशुओं की उचित देखभाल करनी चाहिए।
ओसर एक ऐसी मादा गाय या भैंस है जिसे कोई संतानोंत्पत्ति नहीं है। ‘ओसर’ शब्द आमतौर पर अपरिपक्व जवान मादा विशेषतः जो एक बार भी नहीं ब्याई हो, को संदर्भित करता है। हालांकि, पहले बच्चे़ को जन्म देने के बाद, एक औसर मादा एक परिपक्व गाय या भैंस बन जाती है। ओसर मादा गाय अथवा भैंस को अंग्रेजी में हिफर (Heifer) कहते हैं। ऐसी ओसर गाय और भैंस की मादाओं को क्रमशः बहड़ी और झोटी कहते हैं।
भारत वर्ष में पशुपालन खासतौर पर दुधारू पशुओं का पालन बहुतायत में छोटे स्तर पर किया जाता है। बहुत से परिवारों में ज्यादातर 2-5 दुधारू पशु ही पाले जाते हैं जिनमें से अधिकतर कमजोर होते हैं और उनमें वयस्कता भी देरी से आती है। देरी से वयस्कता होने पर पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है। इस नुकसान से बचाने के लिए पशुपालकों को वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन व्यवसाय करना चाहिए।
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ओसर पशु के लिए बछड़ी/कटड़ी का चयन
सभी छोटी बछड़ियाँ/कटड़ियाँ ओसर मादा पालन के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं, उन में से कुछ ही अच्छी दुधारू मादाएं बनती हैं। इसलिए एक अच्छे दुधारू पशु तैयार करने के लिए उचित छोटी मादाओं का ओसर बछड़ी या झोटी के लिए सही चयन करना चाहिए।
- केवल उन्हीं छोटी मादाओं का ही चयन करना चाहिए जो ओसर मादा बनने के मानदण्डों को पूरा करती हों व उनका उचित शारीरिक भार हो। गायों में एक वर्ष की उम्र के बाद 150 – 200 किलोग्राम शारीरिक भार वाली बछड़ी ओसर बन जाती है। जबकि भैंसों में एक वर्ष की उम्र में शारीरिक भार 200-300 किलोग्राम हो जाता है।
- उन्हीं मादाओं का चयन करना चाहिए जो देखने में सुन्दर, आकर्षक, क्रियाशील, फुर्तीली, शारीरिक तौर पर स्वस्थ और जिनमें कोई भी त्रुटि जैसे कि टांगों, जोड़ों या अन्य किसी भाग में शारीरिक त्रुटि न हो। इसके साथ ही चयनित मादाओं में नस्ल विषेशताएं, चमकीली आँखें, अच्छी शरीर सरंचना, नरम व अच्छी दंत प्रणाली होनी चाहिए। यह अच्छी प्रकार से चारा खाने व शीघ्र प्रतिक्रिया करने वाली होनी चाहिए।
- अच्छी माँ सदृश व दुग्ध उत्पादक के गुणों को ज्यादा महत्त्व दिया जाना चाहिए। चयनित मादाओं का आकार तिकोन जैसा होना चाहिए। चौड़े कुल्हे, आंतरिक जननांगों का समुचित विकास, गर्भावस्था व ब्याने में सहायक होता है। अच्छी तरह से विकसित लेवटी, जिस पर एक समान व आकार के थन उचित दूरी पर हों, वह एक अच्छा दुधारू मादा होती है। लेवटी आगे व पीछे तक फैली हो और उसकी त्वचा नरम व मुलायम, अच्छी दुग्ध उत्पादन क्षमता को दर्शाती है। लेवटी पर अच्छी मोटी विशिष्ठ दुग्ध शिरा भी अच्छे दुग्ध उत्पादन क्षमता को दर्शाती है।
- चयनित मादा की वंशावली की जाँच अवश्य करनी चाहिए। इसके लिए उन्हीं मादा पशुओं को ओसर बछड़ी या झोटी के लिए चयनित करना चाहिए जिनकी माँ, दादी व नानी का दुग्ध उत्पादन अच्छा रहा हो।
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ओसर पशु के पालने की पद्धतियाँ
आमतौर पर निम्नलिखित दो पद्धतियों से ओसर मादाएं पाली जाती हैं।
- बाह्य या चराई पद्धति: इस पद्धति के अनुसार ओसर पशुओं को मुख्यतः बाहर खेतों (चरागाह) में चराई करके पाला जाता है। चरागाह में चराई के समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि पशुओं को चरागाह के एक भाग से दूसरे भाग में चक्रपरिक्रमण में चराना चाहिए। चरागाह में ज्यादा पशु नहीं होने चाहिए। दलीय चरागाह उनके विकास वृद्धि के लिए अच्छी होती है। चरागाह में पशुओं के लिए छाया व पानी और बारिश से बचाने का उचित प्रबंधन होना चाहिए। उनको पूरक आहार के रूप में खनिज लवण भी दिये जाने चाहिए।
- बाड़े में बांधने वाली पद्धति: इस पद्धति के तहत पशुओं को बाड़े में बांधकर रखा जाता है जिसमें पर्याप्त मात्रा में उचित छाया, पानी व खाना उपलब्ध करवाया जाता है। उनको उचित मात्रा में पूरक आहार अनुरूप विटामिन व खनिज लवण भी प्रदान किये जाते हैं। खिलाया जाने वाला चारा अच्छी गुणवत्ता, रसीला व स्वादिष्ट होना चाहिए।
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अपेक्षित शारीरिक भार
चाहे किसी भी पद्धति से ओसर मादाओं को पाला जाता है लेकिन वयस्क होने के लिए एक उम्र व शारीरिक भार का होना आवश्यक होता है ताकि गर्भित होकर अच्छे दुधारू पशु बने। चराई पद्धति में पशुओं का व्यायाम हो जाता है लेकिन बाड़े में बंधे पशुओं के व्यायाम के लिए उनको बाड़े के साथ अतिरिक्त खुली जगह की आवश्यकता होती है जिसमें वे खुले में घूम सके व उनका व्यायाम करवाया जा सके। खुले घूमने व व्यायाम से पशु को भूख अच्छी लगती है व उनका पाचन अच्छा रहता है व उनकी विकास वृद्धि भी अच्छी होती है। उम्र के अनुसार ओसर बहड़ी या झोटी का भार इस प्रकार होना चाहिए।
ओसर पशु की उम्र |
शारीरिक भार (किलोग्राम में) | |||
देशी गाय | संकर गाय | हॉल्स्टीन गाय |
भैंस |
|
12 महीने |
150–200 | 175–225 | 300 | 200–250 |
18 महीने |
200–225 | 250 | 375 |
250–300 |
24 महीने | 250–300 | 300 | 450 |
350–400 |
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खान पान व आवश्यक पोषक तत्व
ओसर बछड़ी या झोटी का पालन पोषण एक बाल पशु का निरन्तर पालन पोषण है। उनके दैनिक विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता इस प्रकार है:
शारीरिक भार (कि.ग्रा.) |
उम्र (महीने) | शुष्क पदार्थ (कि.ग्रा.) | कच्ची प्रोटीन (ग्रा.) |
कुल पाच्य पदार्थ (कि.ग्रा) |
60 |
4 | 1.2 | 200 | 0.80 |
80 | 5 | 2.0 | 240 |
1.50 |
100 |
7 | 2.5 | 260 | 1.90 |
150 | 6 | 3.6 | 300 |
2.60 |
200 |
8 | 5.0 | 330 | 3.00 |
300 | 12 | 6.8 | 400 |
4.00 |
400 |
16 |
9.0 |
440 |
5.00 |
500 |
20 |
10.0 |
450 |
5.00 |
-
शारीरिक विकास व स्वास्थ्य जांच
ओसर बछड़ी/झोटी की विकास दर उसकी नस्ल, जन्म के समय भार व खानपान पर निर्भर करती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि उसके सही विकास का आंकलन समय समय पर हो जिसमें उसका नियमित रूप से शारीरिक भार, छाती का नाप व स्वास्थ्य का आंकलन हो।
- नियमित रूप से भार ज्ञात करना: उनका समय समय पर शारीरिक भार ज्ञात कर उसका रिकॉर्ड रखना चाहिए।
उम्र (हफ्ते) |
भार (कि.ग्रा.) | उम्र (हफ्ते) | भार (कि.ग्रा.) | उम्र (हफ्ते) | भार (कि.ग्रा.) | उम्र (हफ्ते) | भार (कि.ग्रा.) |
जन्म |
24 | 28 | 130 | 12 | 205 | 19 | 283 |
4 | 30 | 32 | 140 | 13 | 219 | 20 |
290 |
8 |
40 | 36 | 155 | 14 | 230 | 21 | 302 |
12 | 55 | 40 | 170 | 15 | 240 | 22 |
310 |
16 |
70 | 44 | 100 | 16 | 254 | 23 | 322 |
20 | 90 | 48 | 195 | 17 | 268 | 24 |
333 |
24 |
110 | 52 | 205 | 18 | 273 | 25 |
340 |
- छाती को नापना: भार तोलने के लिए मशीन उपलब्ध न होने पर भी छाती की परिधि नाप कर शारीरिक भार का अन्दाजा लगाया जा सकता है। शारीरिक भार के लिए छाती की परिधि का सहसंबंध किया जा सकता है। इसलिए ओसर पशु की छाती की परिधि नाप कर उसके शारीरिक भार का अन्दाजा किया जा सकता है। छाती की परिधि इंची टेप की सहायता से कंधे व अगली टांगों के एकदम पीछे छाती की परिधि नापी जाती है।
परिधि (सेंमी.) |
भार (कि.ग्रा.) | परिधि (सेंमी.) | भार (कि.ग्रा.) | परिधि (सेंमी.) | भार (कि.ग्रा.) |
50 | 25 | 105 | 100 | 160 |
345 |
55 |
29 | 110 | 112 | 165 | 380 |
60 |
33 | 115 | 140 | 170 |
410 |
65 | 36 | 120 | 158 | 175 |
445 |
70 |
40 | 125 | 175 | 180 | 480 |
75 | 45 | 130 | 195 | 185 |
520 |
80 |
52 | 135 | 215 | 190 | 560 |
85 | 60 | 145 | 260 | 200 |
640 |
90 |
70 | 150 | 290 | 205 | 680 |
95 | 80 | 155 | 320 | 210 |
720 |
100 |
93 |
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स्वास्थ्य देखभाल
अच्छा खानपान व शारीरिक भार ज्ञात करने के साथ-साथ उनके सामान्य स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए एक कार्यक्रम होना चाहिए जिसमें निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए।
- पशुगृह में उनके लिए साफ व सूखी जगह उपलब्ध होनी चाहिए।
- उनका शरीर (खासकर लेवटी व खुर) गोबर व पेशाब से गन्दा न हो।
- नियमित रूप से अन्तः व बाह्य परजीवियों का नियन्त्रण करना चाहिए।
- नियमित व पर्याप्त अभ्यास करवाना चाहिए।
- संक्रमण को रोकने के लिए नियमित रूप से पशुगृह की व उसके आसपास कीटाणु नाशक का छिड़काव करना चाहिए।
- ताजी हवा, तापमान व आर्द्रता सुनिश्चित करनी चाहिए।
- पशुओं को आपसी चोट से बचाना चाहिए।
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वयस्कता
ओसर मादाओं के संबंध में वयस्कता का अर्थ उसकी शारीरिक व यौन परिपक्वता से है। पशुओं में वयस्कता की उम्र भिन्न-भिन्न है। आहार के साथ-साथ अनुवांशिकी व पर्यायवरण, उसकी परिपक्वता को प्रभावित करते हैं। आमतौर पर अधिकतर पशुपालक ओसर मादाओं को उचित मात्रा में आहार नहीं खिलाते हैं जिससे उनका शारीरिक विकास रूक जाता है व उनमें परिपक्वता देरी से आती है। इसलिए उचित आहार व्यवस्था से 14-15 माह में 225-275 किलोग्राम शारीरिक भार हो जाना चाहिए। विदेशी या संकर नस्ल की गायों की तुलना में देशी गौपशुओं में परिपक्वता की उम्र 24-26 माह होती है।
विदेशी नस्ल ओसर बहड़ी |
शारीरिक भार (कि.ग्रा.) | भारतीय नस्लें |
शारीरिक भार (कि.ग्रा.) |
होलस्टिन-फ्रिजियन |
340 | बड़ी आकार नस्लें | 260–280 |
जर्सी | 230 | मध्यम आकार नस्लें |
220–225 |
संकर नस्ल |
200–250 | भैंस |
300–350 |
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कामोत्तेजना चक्र
मादा में कामोत्तेजना वह अवधि है जब एक मादा पशु सांड/झोटे को संसर्ग के लिए स्वीकार करती है। प्रथम कामोत्तेजना खानपान व मौसम पर निर्भर करती है। विदेशी नस्लों में प्रथम कामोत्तेजना एक वर्ष जबकि देशी पशुओं में लगभग अढ़ाई वर्ष उत्पन्न होती है। यौवनारम्भ (पुबर्टी) सामान्य प्रजनन क्षमता को इंगित नहीं करता है जिसको बाद में यौन परिपक्वता (सेक्सुअल मेचुरीटी) कहा जाता है। ओसर मादाओं को केवल यौन परिपक्वता उपरान्त ही गर्भित करवाना चाहिए। यदि मादा सामान्य है व उसकी अच्छी देखभाल की गयी है तो वह नियमित अन्तराल में कामोत्तेजना में आयेगी। बचपन की बीमारीयाँ व कुपोषण के कारण यौवन परिपक्वता देरी से आती है।|पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व खिलाने से देशी पशुओं की तुलना में संकर नस्ल की गायों में यौवन परिपक्कवता जल्दी आती है। सामान्यतयः पहली दो-तीन कामोत्तेजनाएं अस्पष्ट सी आती हैं। कामोत्तेजना का समय भी सामान्य से कम या ज्यादा होता है। जब तक कामोत्तेजना 18 दिन से ज्यादा अवधि में नहीं आती है तो मादा को गर्भित नहीं करवाना चाहिए। इस कामोत्तेजना की औसत अवधि 21 दिन होती है। हर पशु का अभिलेख अलग-अलग रखना चाहिए। जब मादा पशु गर्भित होने के समय गतिरोध न करती हो व कामोत्तेजना 18 दिन बाद आती हो तो उसको गर्भित करवा देना चाहिए। प्रजनन योग्य कामोत्तजना का समय 9–18 घण्टे का होता है।
- कामोत्तेजना अवधि: जब ओसर बहड़ी या झोटी यौन रूप से परिपक्व होती है तो उसकी डिंबग्रंथि में गतिचक्र शुरू हो जाता है। इस गतिचक्र को कामोत्तेजना काल कहा जाता है। व्यस्क गायों में 18–20 घण्टे की होती है व दो गतिचक्रों के बीच के अन्तराल को कामोत्तेजना अवधि कहा जाता है जो 18–23 दिन की होती है। भैंसों में कामोत्तजना काल लगभग 24 घण्टे का होता है। मौसम भी कामोत्तेजना काल व अवधि को प्रभावित करता है। काल व अवधि गर्मियों में ज्यादा व सर्दियों में कम समय के लिए होती है।
- कामोत्तेजना के शारीरिक लक्षण: कामोत्तजना के प्रारम्भिक लक्षण जैसे कि अन्य मादाओं के ऊपर चढ़ना व सूंघना, योनी द्वार में नमी, हल्की सी सूजन व गुलाबी रंगत लिये इत्यादि होते हैं। ओसर मादाओं को समय गर्भित करवाने के लिए कामोत्तेजना की जाँच नियमित रूप से होनी चाहिए।
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कृमिनाशक
पशुओं के पेट में अंतःकृमि होने की स्थिति में वह मिट्टी व अखाद्य वस्तुएं खाने लग जाते हैं और उनका विकास धीमा हो जाता है। इससे परिपक्व शारीरिक दशा बड़ी उम्र में आती है और पशुपालकों को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। अतः उनको समय-समय पर चिकित्सक की सलाहानुसार अंतःकृमिनाशक दवाई देने के साथ-साथ उनको खनिज मिश्रण भी देना चाहिए। इसी प्रकार बाह्य परजीवियों से बचाने के लिए भी पुख्ता प्रबंध होने चाहिए।
सारांश
किसी भी राष्ट्र के लिए यह तर्कसंगत है कि ‘आज के बच्चे आने वाले कल के राष्ट्र की धरोहर हैं। अर्थात भविष्य के राष्ट्र निर्माण के लिए आज के बच्चों का उचित शारीरिक और बौद्धिक विकास अत्यंत आवश्यक होता है। ठीक इसी प्रकार यह बात पशुपालन में भी फलीभूत होती है। कोई भी डेयरी फार्म अथवा पशुपालक छोटे बाल पशुओं को उचित ढंग से पालन-पोषण करके अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ इनको बेचकर अतिरिक्त आमदनी अर्जित करता है। उचित तरीके से अपने फार्म या घर पर पाली गई बछड़ियों और झोटीयों का पालन-पोषण करके वह अन्यंत्र स्थान से दूधारू पशुओं की खरीद पर खर्च होने वाला धन बचाने के साथ-साथ कई तरह के अप्रत्याशित जोखिमों जैसे कि संक्रमण, निम्न आनुवंशिकी से भी बच सकता है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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