पशुओं में होनें वाले अकौता या एक्जीमा-त्वचा रोग एवं उससे बचाव

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अकौता या एक्जीमा-त्वचा रोग पशुओं की त्वचा पर होने वाला एक असंक्रामक सोजश रोग होता है। इससे प्रभावित पशु के शरीर के प्रभावित स्थान पर पपड़ीदार दरारें पड़ जाती है। प्रभावित पशु को खुजली का अनुभव होता रहता है तथा उसके नोचनें पर दर्द होता है।

कारण

  1. पशुओं में होने वाली एलार्जी के प्रति क्रिया के स्वरूप में यह रोग हो सकता है।
  2. रासायनिक क्षोमक पदार्थ के कारण यह रोग हो सकता है पशुओं में होने वाली पाचन सम्बन्धी गडबड़ी के कारण हो सकता है।
  3. पशुओं में पाये जाने वाले पेट कमि, यकृत रोग तथा गुर्दा शोथ इत्यादि रोगों के कारण इस रोग की सम्भावना बन जाती है।

रोग के लक्षण

इस रोग से प्रभावित पशुओं की त्वचा पर फुसिंया, दाने या फफोले उभर आते है। बाद में उन फफोले के फटने के कारण पपड़ी जम जाती है तथा उस पर दरार पड़ जाती है। यह रोग मुख्य रूप से दो रूपो में मिलता है:

1. रसीला या गीला रूप

इस रूप में प्रभावित पशु के त्वचा से श्राव बाहर निकलता रहता है। प्रभावित पशु खुजली से परेशान रहता है। इसके कारण कीटाणुओं के संक्रमण की सम्भावना बनी रहती है। कीटाणुओं के संक्रमण के बाद यह पीवयुक्त हो जाता है तथा दर्द करने लगता है। पशुओं में सामान्य रूप से पीठ या पैर के ऊपर पाया जाता है। घोड़ो में यह घुटनों के ऊपर होता है। कुत्तो में पीठ के ऊपर, पैरो की अगुलियो पर तथा आँख की पपनिओ पर होने पर आँख में सूजन आ सकती है।

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2. सूखा या शुष्क रूप

यह रूप मुख्य रूप से पैरो पर तथा माथे और गर्दन पर होता है। यह रोग कभी-कभी अण्डकोष की त्वचा पर भी हो सकता है। इस रूप में प्रभावित स्थान से बाल झड़ने लगते है और त्वचा बाल रहित हो जाती है। कुछ समय बाद सूखी पपड़ी जम जाती है। प्रभावित पशु की त्वचा धीरे-धीरे मोटी होने लगती है तथा सिकुड़ने लगती है और इसमें दरार पड़ जाती है।

रोग का उपचार

  1. ऐलर्जी के प्रतिक्रिया के स्वरूप में होने वाला एक्जीमा प्रायः तीव्र रूप में होता है। इसमें ऐन्टीऐलिर्जिक दवाइयों की जैसे ऐविल, ऐनीस्टामीन, जीट या कैडिस्टीन की 10-15 मिलीलीटर मात्रा बडे पशुओं की मांस में लगाना लाभदायक होता है।
  2. रोग से प्रभावित पशुओं में कार्टीसोन की सूई लगाना भी लाभदायक होता है।
  3. प्रभावित स्थान वाली जगह से बालों को साफ कर लेना चाहिए तथा उस जगह को औषधी युक्त साबुन या टेटमोसाल, निको साबुन इत्यादि से गुनगुने गर्म पानी के द्वारा साफ कर सुखा लेना चाहिए।
  4. क्षोभक रसायनों के द्वारा उत्पन्न होने वाले ऐक्जीमा रोग में प्रभावित स्थान पर सैलिसिलिक ऐसिड-3 ग्राम, सल्फर सब्लीमेट-3 ग्राम, बैसलीन-4 ग्राम मिलाकर मलहम लगाने से आराम मिलता है।
  5. प्रभावित पशुओें को सल्फर की 3 ग्राम मात्रा जिंक आक्साइड की 3 ग्राम मात्रा नीम का तेल 2 मिलीलीटर लाल मुगरा तेल 2 मिलीलीटर 50 ग्राम नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से लाभ मिलता है।
  6. रोग से प्रभावित पशुओं को हीमेक्स या वीसीकार्ट का लोशन दिन में दो बार लगाने से लाभ मिलता है।
  7. मवाद होने की दशा में 1:1000 एक्रीफ्लेविन लोशन या बीटाडीन विलयन लाभदायक होता है। साथ-साथ डाइकिस्ट्रीसीन, ऐम्पीसीलीन, डाईक्लाक्सासीलीन की सूई मांस में लगाना लाभकारी होता है।
  8. इस रोग से आँख के प्रभावित होने की अवस्था में नियोस्पोरीन एच.आई. आयन्टमेनट आँख में लगाना चाहिए।
  9. पेट की गडबड़ी से होने वाली एक्जीमा के लिए पेट की सफाई तथा पाचन टानिक्स जैसे- हिमालय बतीसा या एच.वी. स्ट्रांग देना चाहिए।
  10. यकृत विकारो के कारण होने वाले एक्जीमा रोग के लिए पाऊडर लिवोल, मैवोलिव का विलयन या लिवोजेन या लिव-फिफ्टीटू प्रोटेक देने से लाभ मिलता है।
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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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