भारत में स्वदेशी गाय की महत्ता एवं उसका व्यवसायिक उपयोग

5
(58)

हिंदू धर्म में गाय को माता कहा गया है। पुराणों में धर्म को भी गौ रूप में दर्शाया गया है। भगवान श्री कृष्ण गाय की सेवा अपने हाथों से करते थे, और इनका निवास भी गोलोक बताया गया है। इतना ही नहीं गाय को कामधेनु के रूप में सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला बताया गया है। हिंदू धर्म में गाय के महत्त्व के पीछे कई कारण हैं जिनका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। आज भी भारतीय समाज में गाय को गौ माता कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था। सभी पशुओं में मात्र गाय ही ऐसा पशु है जो मां शब्द का उच्चारण करता है इसलिए माना जाता है की मां शब्द की उत्पत्ति भी गोवंश से हुई है। गाय हम सबको मां की तरह अपने दूध से पालती पोसती है। आयुर्वेद के अनुसार भी मां के दूध के बाद बच्चे के लिए सबसे उपयुक्त गाय का दूध ही होता है। धार्मिक आस्था है कि गौ पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। घर की समृद्धि के लिए घर में गाय का होना बहुत शुभ माना गया है। कहा जाता है कि विद्यार्थियों को अध्ययन के साथ-साथ गाय की सेवा भी करनी चाहिए। इससे उनका मानसिक विकास तेजी से होता है। संतान और धन की प्राप्ति के लिए भी गाय को चारा खिलाना और उसकी सेवा करना बेहतर परिणाम दायक माना गया है।

Holy cow gau mata भारत में स्वदेशी गाय की महत्ता एवं उसका व्यवसायिक उपयोग

भविष्य पुराण के अनुसार गाय के सींग में तीनों लोकों के देवी देवता विद्यमान रहते हैं। सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु गाय के सींग के निचले हिस्से में विराजमान है तो गाय के सींग के मध्य में भोले बाबा शिव शंकर विराजते हैं। गो के ललाट में मां गौरी तथा नासिका भाग में भगवान कार्तिकेय विराजमान है।

धार्मिक आस्था है कि गाय अपनी सेवा करने वाले व्यक्ति के सारे पाप अपनी सांस द्वारा खींच लेती है। गाय जहां पर बैठती है वहां के वातावरण को शुद्ध करके सकारात्मकता से भर देती है। ऐसा शायद इसलिए कहा जाता है क्योंकि गाय जहां भी बैठती है वहां पूरी निर्भीकता से बैठती है। कहा जाता है कि अपनी बैठी हुई जगह के सारे पापों को अपने अंदर समा कर उस जगह को शुद्ध कर देने की क्षमता होती है गाय में। एक तरफ जहां गाय का, गोबर पवित्र कार्यों के दौरान घर को लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है वही गाय के गोबर से बने कंडे अर्थात उपले हवन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। माना जाता है कि गाय के गोबर से हवन करने पर वातावरण और घर के आस-पास मौजूद कीटाणु एवं कीड़े समाप्त या भाग जाते हैं और वायु शुद्ध होती है। वही गोमूत्र को कई तरह की औषधियां बनाने में प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इसमें रोगाणुओं को मारने की क्षमता होती है।

गाय की उत्पत्ति और उसका  महत्व

गाय की अपार महिमा और देवी गुणों से हिंदू शास्त्रों के पृष्ठ भरे पड़े हैं। पुराणों में गाय के प्रभाव और उसकी श्रेष्ठता की ऐसी अनगिनत कहानियां मिलती है जिनसे विदित होता है कि हमारे पूर्वज गो के महान भक्त थे और उनकी रक्षा करना अपना परम धर्म समझते थे। गौ रक्षा में प्राण अर्पण कर देना हिंदू बड़े पुण्य की बात समझते थे और उनका पालन करना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती थी। गांव का महत्व यहां तक समझा जाता है कि उसके शरीर में 33 कोटी/ प्रकार के देवताओं का निवास बतलाया गया और उसकी उत्पत्ति अमृत, लक्ष्मी आदि 14 रत्नों के अंतर्गत मानी गई। यद्यपि यह कथाएं एक प्रकार की रूपक है पर उनके भीतर बड़े-बड़े आध्यात्मिक तथा कल्याणकारी तत्व भरे हैं।

गो की उत्पत्ति की पुराणों में कई प्रकार की कथाएं मिलती हैं

  • पहली तो यह है कि जब ब्रह्मा एक मुख् से अमृत पी रहे थे तो उनके दूसरे मुख से कुछ फैन निकल गया और उसी से आदि गाय सुरभि की उत्पत्ति हुई।
  • दूसरी कथा में कहा गया है कि दक्ष प्रजापति की 60 लड़कियां थी उन्हीं में से एक सुरभि भी थी।
  • तीसरे स्थान पर यह बताया गया है कि सुरभि अर्थात स्वर्गीय गाय की उत्पत्ति समुंद्र मंथन के समय 14 रत्नों के साथ ही हुई थी। सुरभि से सुनहरे रंग की कपिला गाय उत्पन्न हुई, जिसके दूध से क्षीरसागर बना।
और देखें :  लाभप्रदता के लिए आवश्यक है डेयरी पशुओं में रिपीट ब्रीडिंग का समाधान

प्राचीन काल से आर्य जाति गो कि बहुत अधिक महिमा मानती आई है। ऋग्वेद तथा अन्य वेदों में भी गाय के गुड़ानुवाद के सैकड़ों मंत्र भरे पड़े हैं। गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने भी कहा है की गायों में मैं कामधेनु हूं। गाय के शरीर में सभी देवता निवास करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी लक्ष्मी जी पहले गाय के रूप में आई और उन्हीं के गोबर से बिल्व वृक्ष की उत्पत्ति हुई। गौ माता की रीड की हड्डी में सूर्य नाड़ी एवं केतु नाड़ी साथ हुआ करती है गौमाता जब धूप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौ माता की रीढ की हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्वारा केरोटिन नामक पदार्थ बनता है जिसे स्वर्ण छार कहते हैं। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नजर आता है। इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हो और सामने गाय माता की इस प्रकार दर्शन हो कि वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए कि वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा। गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय गोधूलि बेला कहलाता है यह अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गो औषधि है। मां शब्द की उत्पत्ति गोमुख से हुई है। मानव समाज में भी मां शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गो वत्स रंभाता है, तो मां शब्द गुंजायमान होता है। गौशाला में बैठकर किए गए यज्ञ हवन जप तप का फल कई गुना मिलता है। बच्चों को नजर लग जाने पर गौ माता की पूछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उतर जाती है इसका उदाहरण ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है जब पूतना उद्धार में भगवान श्री कृष्ण को नजर लग जाने पर गाय की पूंछ से नजर उतारी गई। काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक है।

रूसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय का दूध में रेडियो विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक क्षमता होती है। गाय का दूध एक ऐसा भोजन है जिसमें प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट दुग्ध शर्करा खनिज लवण वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते हैं। गाय का दूध रसायन का कार्य करता है।

गाय एक महत्वपूर्ण पालतू पशु है जो संसार में प्राया सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। हिंदू गाय को माता अर्थात गौमाता कहते हैं। इस के बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं। भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय का उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गो संख्या से की जाती थी। हिंदू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।

अभी तक लोगों को गायों की साहिवाल, गिर, थारपारकर जैसी देसी नस्लों  के बारे में ही पता है लेकिन आज हम ऐसी ही गाय की देसी नस्लों के बारे में बता रहे हैं जिनमें से कई विलुप्त हो गई हैं और कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं। मध्यप्रदेश के सतना जिले में गोवंश विकास एवं अनुसंधान केंद्र में देश की विलुप्त हो रही देसी गाय की नस्लों के संरक्षण और नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है। यह केंद्र पिछले 25 वर्षों से देसी गायों की नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए शोध कर रहा है। इस केंद्र में देश की 14 नस्लों के गोवंश एक साथ मिल जाएंगे। अभी इस अनुसंधान केंद्र में साहिवाल (पंजाब), हरियाणा(हरियाणा) गिर (गुजरात) लाल सिंधी (उत्तरांचल) मालवी (मालवा मध्य प्रदेश) देवनी (मराठवाड़ा महाराष्ट्र) लाल कंधारी (बीड़ महाराष्ट्र) राठी (राजस्थान) नागौरी (राजस्थान) खिल्लारी (महाराष्ट्र) वेचूर (केरल) थारपारकर (राजस्थान) अंगोल (आंध्र प्रदेश) कांकरेज (गुजरात) जैसी देसी गायों की नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन पर कार्य चल रहा है।

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी स्वदेशी व्यवसाय को बढ़ावा दे रहे हैं यह स्वदेशी व्यवसाय न केवल आपको स्वतंत्र बनाते हैं बल्कि देश की प्रगति में भी योगदान करते हैं। कोई भी व्यक्ति न्यूनतम लागत के साथ स्वदेशी व्यवसाय शुरू कर सकता है और अधिक पैसा कमा सकता है।

और देखें :  कॉन्टेजियस बोवाइन प्लयूरो निमोनिया: (सीं.बी.पी.पी.)

भारत में स्वदेशी गाय की महत्ता एवं उसका व्यवसायिक उपयोग

स्वदेशी शब्द का अर्थ:

जिन उत्पादों को अपने देश में बना कर तैयार किया जाता है उन्हें स्वदेशी उत्पाद कहा जाता है। यदि आप उन्हें अपने देश में वितरित करके पैसा कमाते हैं तो यह स्वदेशी व्यवसाय बन जाते हैं। वर्तमान में स्वदेशी उत्पाद और व्यवसाय को अपनाने पर अधिक जोर दिया जा रहा हैl

स्वदेशी व्यवसाय जिन्हें आप आसानी से प्रारंभ कर सकते है

स्वदेशी व्यवसाय विचार को कम लागत के साथ आसानी से शुरू किया जा सकता है। इन  व्यवसाय को शुरू करने में सरकार, सरकारी ऋण के साथ-साथ अनुदान भी देती है यह कहना गलत नहीं होगा कि यह लाभदायक स्वदेशी व्यवसाय आपको अधिक धन कमाने के लिए प्रेरित करेंगे।

गाय के दूध एवं उसके उत्पादों का व्यवसाय

यह व्यवसाय उन व्यक्तियों द्वारा शुरू किया जा सकता है जो किसी गांव या छोटे शहर में रहते हैं। वह गाय के दूध के उत्पाद जैसे कि मक्खन, दही, पनीर, श्रीखंड एवं दूध से बने अन्य उत्पाद और चॉकलेट बनाना शुरू कर सकते हैं। यह सभी उत्पाद गाय के दूध  की मदद से बनाए जाते हैं। रोचक बात यह है कि गाय के दूध के उत्पादों की मांग हमेशा बाजारों में बनी रहती है। इस प्रकार इस स्वदेशी। व्यवसाय से भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।

आप अपने और कंपनी के लिए एक अलग पहचान भी बना सकते हैं। अच्छी मार्केटिंग से मुनाफा दोगुना करने में मदद मिलती है। इसके लिए जितना हो सके इतनी अच्छी मार्केटिंग करें कि आप अधिक मुनाफा कमा सकें। आप अपने उत्पादों और कंपनी के ऑनलाइन विपणन का विकल्प भी चुन सकते हैं ताकि, व्यापार दर्शकों तक पहुंचे और उसका लाभ आपको हो।

गाय मूत्र उत्पाद व्यवसाय

केवल गाय का दूध ही नहीं बल्कि उसके मूत्र का भी विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जा सकता भी है आप गोमूत्र के साथ है, एक अच्छा व्यवसाय शुरू कर सकते हैं  यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि गोमूत्र की मदद से आप अर्क, नहाने का साबुन,  डिटर्जेंट पाउडर शैंपू और फिनाइल/ गोनाइल जैसे उत्पाद बना सकते हैं। यह उत्पाद जो छोटी-छोटी इकाइयों द्वारा बनाए जाते हैं शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं। दिलचस्प ये है कोई भी आसानी से घर से गोमूत्र का व्यवसाय शुरू कर सकता है और मुनाफा कमा सकता हैं।

देसी गायों का प्रजनन और पालन

देसी गायों के पालन से किसान पशुपालकों को आर्थिक लाभ और उपभोक्ताओं को अवश्य ही स्वास्थ्य लाभ होगा। देसी गायों की नस्लों में एक विशिष्ट नाड़ी मौजूद होती है जिसे सूर्यकेतु नाड़ी कहा जाता है जो सूर्य और चंद्रमा से ऊर्जा को अवशोषित करती है। देसी गाय के उत्पादों के विभिन्न औषधीय लाभ हैं।

देसी गाय का दूध और दूध आधारित उत्पाद जैसे घी, पनीर, बटरमिल्क, लस्सी इत्यादि का उत्पादन

देसी नस्ल की गायों में लगातार दूध की उत्पादकता होती है जब अन्य विदेशी प्रजातियों  के साथ तुलना की जाती है तो देसी नस्ल के दूध में सबसे अच्छा A2 बीटा केसीन प्रोटीन, विटामिन बी2, बी3, विटामिन ए, के साथ-साथ 22 घुलनशील खनिज अमीनो एसिड आदि होते है जो इसके प्रोटीन को पचाने में आसान बनाता है। यह A2 दूध कहलाता है। यह उपलब्ध सर्वोत्तम प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट में से एक है। A2 दूध  की वसा आसानी से पचने योग्य होती है। जबकि A1 दूध में न तो पचने योग्य होता है  और नहीं स्किम्ड होने की आवश्यकता होती है। उच्च नस्ल की देसी गाय के दूध की बिक्री निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थशास्त्र में और अधिक धन कमाने में उपयोगी है।

उर्वरक और प्रतिकारक

देसी गायों के गोबर और गोमूत्र से बने उर्वरक और कीट भगाने वाले उत्पाद, जैविक खेती के लिए खाद के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। क्योंकि इन में अधिक लाभकारी सूक्ष्मजीव अधिक मात्रा में होते हैं और उन पर केंचुए पनपते हैं और इससे जैविक खाद तैयार की जा सकती है। इस प्रकार  किसानों को कीटनाशक और खाद खरीदने की आवश्यकता नहीं रहती है। कृपया रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर अपने शहरी उद्यानों में उनके लिए विकल्प चुनें। यह मिट्टी के लिए स्वास्थ्यवर्धक हैं और निश्चित रूप से अधिक टिकाऊ हैं। उर्वरकों जैसे पंचगव्य, अमृत जल, और कीट भगाने वाले जीवामृथा आदि को मृदा की रसायनिक संरचना को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

और देखें :  सितंबर/ भादो माह में पशुपालन कार्यों का विवरण

बायोगैस इकाइयों की स्थापना और बिक्री

बायोगैस इकाइयों को स्थापित करने से बायोडिग्रेडेबल कचरे को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है ताकि हम रसोई में प्राकृतिक गैस पर निर्भरता को कम कर सकें।

गोमूत्र आसवन संयंत्रों और आसुत मूत्र उत्पादों की स्थापना और बिक्री

मूत्र और आसवन को इकट्ठा करने में मदद करने के लिए गोमूत्र आसवन यंत्रों को स्थापित करना जो बदले में उर्वरकों और कीट भगाने वाले उत्पादों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पौधों के लिए उपलब्ध सबसे प्राकृतिक  जैव कीटनाशक और जैव उर्वरक है। गोमूत्र के छिड़काव से कवक जनित संक्रमण कीटों के हमले के साथ-साथ निमेटोड जैसे परजीवी भी समाप्त हो जाते हैं। बेहतर परिणामों के लिए गोमूत्र को नीम के तेल और वर्मीस के साथ मिलाया जा सकता है। 15% सांद्रता पर गोमूत्र पर एक  शोध अध्ययन से पता चलता है की कवक रोग जनको में फ्यूजेरियम, ऑक्सिस्पोरम, राइजोक्टोनयां सोलानी स्केलेरोटीअम  प्रजातियों जैसे मीठी और भिंडी जैसी सब्जियों के पौधों में दबाना और बिलगन से जुड़ा हुआ था।

आसुत गोमूत्र जब सेवन किया जाता है तो यह हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। यह एक पूर्ण डिटॉक्सिफायर के रूप में कार्य करता है और मोटापा कम करता है। जिससे कोलेस्ट्रॉल भी नियंत्रित होताहै अतः यह मोटापा कम करने में मदद करता है क्षतिग्रस्त ऊतकों और कोशिकाओं को पुनर्जीवित करता है। सूजन और जोड़ों के दर्द को कम करता है।

गोबर के बर्तन और गोबर  के लट्ठे धूप और अगरबत्ती

गोबर के बर्तन, प्लास्टिक के बर्तनों के लिए एक उत्कृष्ट स्थाई विकल्प है। गोबर के लट्ठे लकड़ी की जगह काम मैं लिए जा सकते हैं। यह बर्तन आदर्श उपहार हैं गाय के गोबर और कुछ हवन से बनी धूप और अगरबत्ती  घर के वातावरण को शुद्ध सकती हैं। गाय के गोबर से गणेश एवं श्री लक्ष्मी जी की मूर्तियां भी बनाई जा सकती है जिनका उपयोग हम विभिन्न धार्मिक आयोजनों में कर सकते हैं और वातावरण को प्रदूषण से बचा सकते हैं।

भारतीय गोवंश की प्रमुख नस्लें

भारत में साहिवाल, गिर, थारपारकर और लाल सिंधी समेत कई अन्य देसी नस्ल है जिनको भारतीय पशु अनुवांशिक संस्थान ब्यूरो द्वारा पंजीकृत किया गया है। भारतीय पशु अनुवांशिक संस्थान ब्यूरो के अनुसार अपने देश में 50 प्रकार की देसी नस्ल की गाय है l

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 5 ⭐ (58 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

1 Trackback / Pingback

  1. भारतीय दुधारू गौवंश एवं प्रमुख विशेषतायें | ई-पशुपालन

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*