पशुओं में होनें वाले अपच/ बदहजमी रोग एवं उससे बचाव

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अपच/ बदहजमी

जुगाली करने वाले बीमार पशुओं में लगभग 50 से 80 प्रतिशत बीमार पशु इस रोग से ग्रसित होते हैं। इस रोग में रूमन की कार्यक्षमता कम हो जाती है तथा रूमन स्थिर हो जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप पशु खाना कम कर देता है या बन्द देता है, सुस्त रहता है तथा असामान्य गोबर करता है। अधिकतर पशुओं में कब्ज की शिकायत रहती है। कुछ रोगी पशुओं में पतला दस्त भी होता है।

पशुओं में होनें वाले अपच/ बदहजमी रोग एवं उससे बचाव

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कारण

इस रोग के प्रमुख कारण इस प्रकार है।

  1. आहार में अचानक परिवर्तन करने से रूमन के वातावरण पर प्रभाव पड़ता है। रूमन में पाये जाने वाले पाचन में सहायक जीवाणुओं की इस बदलाव में मृत्यु हो जाती है। परिणाम स्वरूप जानवर कम खाने लगता है। यह समस्या अधिकतर उन पशुओं में आताी है जिन्हें कि पहले अच्छा चारा नहीं दिया जा रहा हो तथा एकाएक उन्हें पर्याप्त मात्रा में अच्छा चारा या दाना दिया जाने लगे।
  2. दाना एवं चारा देने के समय में अनयमितताएं भी इस रोग को जन्म देती है। आहार में अन्तराल लम्बा होने के बाद जब भोजन दिया जाता है, ऐसी स्थिति में पशु भुख के कारण जल्दी जल्दी अधिक मात्रा में खा लेता है। यही अपच का कारण बनता है। रूमन में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवो के पोशण के लिए बार-बार तथा समान रूप से धीरे धीरे खाना व जुगाली करना जरूरी होता है। पशु को पीने का पानी भी पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।
  3. अधिक मात्रा में घटिया किस्म का चारा सड़ा हुआ या फफूंदी युक्त चारा अथवा गर्मी या पाले के कारण दूषित चारे के सेवन से भी तीब्र अपच उत्पन्न होता है। अधिक ठण्डी घास के खाने से भी यह रोग पैदा होता है।
  4. हाल ही में यूरिया छिड़के गये चारे को खिलाने से पशुओं को बदहजमी हो जाती है।
  5. अधिक समय तक एन्टीबायोटिक खिलाने से भी अपच उत्पन्न होता है।
  6. खराब मौसम व जानवर का अच्छा प्रबन्ध न होना भी इसका एक प्रमुख कारण है।
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लक्षण

पशु कम खाता है या फिर दाना चारा खाना पूर्ण रूप से बन्द कर देता है। भूख में कमी इसका पहला लक्षण होता है। पशु जुगाली कम करता है। दूध देने वाली गायों के दूध उत्पादन में कुछ कमी आ जाती है। प्रारम्भ की अवस्था में गोबर ठीक तथा सामान्य आता है यदि अपच अधिक हरा चारा या अनाज खाने से हो तो गोबर पानी की तरह पतला होता है पशु सुस्त रहता है। साधारणतया षरीर का ताप हृदय गति, तथा श्वसन अप्रभावित रहते है। रूमन की गति कमजोर तथा कम हो जाती है। प्रायः 1-3 दिन में पशु निरोग हो जाता है।

उपचार

उपचार का मुख्य उद्देश्य रूमन की गतिषीलता को बढ़ावा, उसके अन्दर क्षारियता/अम्लता के संतुलन को बनाये रखना सहायक जीवाणुओं की संख्या में बृद्धि करना होता है। गतिषीलता बढ़ाने के लिए बाजार में अनेक औशधियां उपलब्ध है जैसे कि फ्लोराटोन, याीसंक, बायोबूस्ट, एनोरैक्सान इत्यादि।  सुबह शाम 2-2 गोली लेने से सुधार होता है। यदि ऐसा चारा जिसमें यूरिया की मात्रा अधिक हो, जानवर खा ले, तब एसीटिक अम्ल या सिरका मुंह द्वारा देना चाहिए। साथ ही में यकृत को मजबूत करने हेतु इंजेक्षन जैसे कि पैपसिड, बेलामाइल, लिवाप्लैक्स इत्यादि दिन में एक बार देनी चाहिए। हिमालयन बतीसा, कैटोन आदि चूर्णों को भी दिन में तीन बार देने से लाभ होता है।

अपच जो काफी लम्बे समय तक चलता है रूमन के जीवाणुओ की क्रियाशीलता को प्रभावित कर क्षारियता/अम्लता के संतुलन को बदल देता है। ऐसी अवस्था में रूमेन प्रतिरोपण से इन्हें दुबारा व्यवस्थित करते हैं। रूमन प्रतिरोपण के लिए द्रव को जीवित या मरे हुए जानवर से ले सकते हैं। प्रतिरोपण द्रव पानी के साथ मिलाते हैं, छानते हैं तथा बाद में आमाशय नलिका से पिला देते हैं।

और देखें :  रोमन्थी पशुओ मे अफरा रोग

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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