बछड़ों एवं बछड़ियों में तनाव प्रबंधन

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पशुपालन में तनाव प्रबंधन अति महत्वपूर्ण विषय है। परन्तु ये बछड़ों एवं बछड़ियों में तनाव प्रबंधन प्रमुख मुद्दों में से एक है। यह पशुओं की संपूर्ण उत्पादकता और स्वास्थ्य में बाधा डालता है। बछड़े एवं बछड़ियों में इसके दुष्परिणाम अति संवेदनशील होते हैं। अच्छे प्रबंधन से पशुपालक अपने बछड़ों एवं बछड़ियों में तनाव के स्तर को कम सकते हैं।

बछड़ों एवं बछड़ियों में तनाव प्रबंधन

तनाव के लक्षण

तनाव उन लक्षणों को संदर्भित करता है जो एक पर्यावरण या स्थिति से उत्पन्न होते हैं और पशु के लिए सामान्य नहीं होते हैं। तनाव को एक बाहरी प्रभाव के रूप में सोचें जो पशुओ के शरीर की समस्तिथि को प्रभावित करता है। तनाव मवेशियों में शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रकट हो सकता है। तनाव के परिणामस्वरूप होने वाले कुछ शारीरिक बदलाव जिसमे कोर्टिसोल, एड्रेनेलीन और अन्य हार्मोनों का स्तर बढ़ जाता है। तथा ये एक मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति विशिष्ट उत्पन्न करके पशुओ  में डर पैदा करती है।

और देखें :  पशुपालन कार्यों का माहवार कैलेंडर

तनाव के कारक

  1. समाजीकरण से दूर हो जाना।
  2. भूख कम लगने से चारा या दुग्ध का सेवन कम हो जाना।
  3. कमजोरी होना।
  4. चोट लगना।
  5. प्यास लगना।
  6. थकान लगना।
  7. शरीर के के सामान्य तापमान में बदलाव।

बछड़ों एवं बछड़ियों पर लंबे समय तक  तनाव उनकी स्वास्थ पर अधिक नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जैसे कि कमजोर रोग प्रितिरोधक छमता, भविष्य में प्रजनन पर नकारात्मक असर, वजन का कम हो जाना, पाचन अपच, भड़काऊ प्रतिक्रियाएं और चारे के खपत में कमी। तनाव बछड़ों एवं बछड़ियों को दुखी और अस्वस्थ बना सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कम उत्पादकता और रोग फैलने की संभावना बढ़ सकती है।

शरीर की समस्तिथि

पशु सहज ही समस्तिथि को बनाए रखना चाहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे शरीर की आंतरिक प्रणाली को फिर से संतुलित करने के लिए बाहरी परिवर्तनों का सामना कर सके। समस्तिथि की अपनी सीमाएं हैं। एक पशु केवल बाहरी कारकों से तनाव को कम करने के लिए एक सीमा तक कार्य करता है। जब ये दूसरे पशुओ  के  समूह को देखते है तो ये एक महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, ऐसे में पशुपालको को बछड़ों एवं बछड़ियों  के बीच तनाव को कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

बछड़ों एवं बछड़ियों पर तनाव के प्रभाव

निम्न ऊर्जा स्तर का हो जाना, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का हो जाना , रोगों  के होने की सम्भावना का बढ़ जाना तनाव जैसे कोक्सीडायोसिस, पेस्टुरेलोसिस और मैनहेमिया हेमोलाइटिका इत्यादि शामिल हैं। पशु की प्रतिरक्षा प्रणाली आमतौर पर इन्हें नियंत्रण में रखती है। जब एक प्रतिरक्षा प्रणाली तनाव से कमजोर हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप पशु को इनमें से एक बीमारी हो सकती है। बछड़ों एवं बछड़ियों  में पेस्टुरेलोसिस अधिक आम है, विशेष रूप से वे बछड़ों एवं बछड़ियाँ जो शुरुआत में ही माँ से अलग किये जाते हैं। मैनहेमिया हेमोलिटिका फेफड़ों के संक्रमण और तनावग्रस्त जानवरों में निमोनिया के रूप का कारण बनता है। बीमारियों से निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:

  1. वजन कम होना।
  2. बुखार।
  3. नाक का बहना।
  4. खांसी होना।
  5. तेजी से सांस लेना।
  6. निर्जलीकरण।
  7. क्षीणता।
  8. दस्त जिसमें बलगम और रक्त शामिल हो सकते हैं।
  9. श्वसन संबंधी समस्याएं।
  10. गायों के नीचे खड़े होने पर खड़े रहना।
  11. बार-बार पेशाब आना।
  12. दिल की धड़कन बढ़ जाना।
और देखें :  नवंबर/ कार्तिक: माह में पशुपालन कार्यों का विवरण

तनाव के लक्षणों को पहचानना तथा तनाव प्रबंधन

बछड़ों एवं बछड़ियों के जन्म से ही पशुपालको को तनाव का प्रबंधन करना चाहिए।   तनाव जानने के लिए पशुपालकों को उनकी सभी लक्षणों पर प्रतिदिन ध्यान देना चाहिए। यदि पशुपालक बछड़े एवं बछड़ों में तनाव के किसी भी उपरोक्त लक्षण को नोटिस करते हैं,  तो पशुपालकों तनाव का प्रबंधन शीघ्र करना चाहिए। बछड़े एवं बछड़ों के तनाव को कम करने से यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि पशुपालकों पशु  स्वस्थ हैं और उनके जीवन की गुणवत्ता अच्छी है, जो बाद में उनके उत्पादन को बढ़ाएगा।

  1. पशु ब्याने के 2 घंटे के अंदर बछड़े एवं बछड़ों को खींस अवश्य पिलाएं। खींस अथवा दूध बछड़े एवं  बछड़ों को 10 में भाग के बराबर पिलाएं।
  2. वीनिंग (जन्म के शुरुआती दिनों में ही मां से बच्चे को अलग करना) में बछड़े के तनाव को कम करने के लिए पशुपालकों को  प्रभावी टीकाकरण करवाना चाहिए।
  3. अंतः परजीवी नाशक दवा परजीवियों को नियंत्रित करती है, जो वीनिंग में बछड़े के तनाव को कम करने में मदद कर सकता है, क्योंकि बछड़े टीकाकरण के लिए अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने में सक्षम होती है और चारे से पोषक तत्वों का उपयोग बेहतर करते हैं। अंतः परजीवी नाशक दवा 6 माह के अंतराल पर डॉक्टर की सलाह से अवश्य दें।
  4. बछड़े एवं बछड़ों को नियमित आहार के साथ-साथ 25 से 30 ग्राम मिनरल मिक्सर प्रतिदिन खिलाएं । पशुशाला में दीवार आदि सभी जगह पर परजीवी नाशक दवा के 1% घोल से सफाई करें।
  5. मौसम के हिसाब से बछड़े एवं बछड़ों रहने के आवास बनाना चाहिए, सर्दी और गर्मी में बेहतर तरीके  से प्रबंधन करना चाहिए।
  6. अधिक सर्दी में बछड़े एवं बछड़ों का जैकेट, कंबल इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए तथा बंद तरह का आवास होना चाहिए। तथा फर्श पर बिछावन भी प्रयोग करना चाहिए जैसे: धान का पुआल इत्यादि, तथा इसके विपरीत अधिक गर्मी में पशुओं का आवास खुले तरह के होनी चाहिए तथा उन्हें दिन में कम से कम एक बार नहलाना चाहिए।
और देखें :  'पशुपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज' का दूसरा संस्करण लॉन्च
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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