दुग्ध प्रसंस्करण: पशुपालकों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण डेयरी उत्पाद

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दूध दुग्धग्रंथि से स्त्रावित होने वाला एक ताजा, साफ-सुथरा तरल पदार्थ है जिसमें मादा के प्रसव से 7 दिन पहले और 5 दिन प्रसव के बाद प्राप्त स्त्राव जिसे ‘कोलोस्ट्रम अर्थात खीस’ कहते हैं, शामिल नहीं है। दुग्ध उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है जिससे पशुपालक खासतौर से भूमिहीन, सीमान्त किसानों के साथ-साथ हर किसान उत्पादित दूध बेच कर घर का सामान्य खर्च पूरा होने के साथ-साथ अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते हैं। दुग्ध उत्पादन एक नकद पूंजी की तरह है जिसे दुग्धोहन के बाद तुरन्त बेचा जा सकता है अर्थात पशुपालक सुबह-शाम आजीविका अर्जित कर सकते हैं। लेकिन मौजूदा समय में दुग्ध उत्पादन व्यवसाय के प्रति लोगों का रूझान कम हो रहा है। जिसका मुख्य कारण है दुग्धोत्पादन एक मंहगा व्यवसाय बनता जा रहा है। बढ़ती आबादी के कारण परिवारों की संख्या भी बढ़ रही है जिससे पशुओं को रखने की जगह कम हो रही है। इसके साथ-साथ अब दुग्धोत्पादन व्यवसाय को आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं माना जाता है। ऐसा इसीलिए कि पशुपालक केवल दुग्ध दोहन करके उसको सीधा दूधिये को बेच देता है जिसकी एवज में पशुपालक को कम बल्कि दूधिये को अच्छा लाभ मिल जाता है। इसलिए, यह अच्छा होगा कि पशुपालक उत्पादित दूध को सीधा बाजार में बेच कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। अच्छा दाम पाने के लिए पशुपालक दूध बेचने के साथ-साथ दूध से तैयार होने वाले पदार्थों को तैयार करके बाजार में बेच कर और भी अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

दुग्ध प्रसंस्करण

दूध एक संतुलित पौष्टिक भोजनाहार है और भूमिहीन एवं सीमान्त किसानों सहित यह सभी पशुपालकों को अन्य किसी भी व्यवसाय की तुलना में अपेक्षाकृत जल्दी आय प्रदान करता है और घरेलू भोजन में भी यह एक प्रमुख तत्त्व है। भारत जैसे राष्ट्र में भूमिहीन एवं सीमान्त किसानों द्वारा बहुतायत में दुग्ध उत्पादन किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर वर्ष 2025 तक दूध की माँग 25 प्रतिशत अधिक बढ़ने की संभावना है (Vinola et al. 2015)। भारत में लगभग 35 प्रतिशत दूध वितरित किया जाता है जिसमें से केवल 13 प्रतिशत ही संगठित डेयरी उद्योग द्वारा उत्पादित किया जाता है, लेकिन बाकि का दूध घर और फार्म पर उपयोग किया जाता है या अपाश्चुरीकृत रूप में बेचा जाता है (Sivasankaran & Sivanesan 2013)। भारत में प्रसंस्कृत तरल दूध (प्रोसेस्ड लिक्विड मिल्क) का प्रमुख हिस्सा डेयरी सहकारिता के नाम है।

बाजार में दो तरह से दूध बेचा जाता है:

  1. ताजा खुला दूध।
  2. पैक बन्द दूध।

भारत में ज्यादातर दूध ताजा खुला बेचा जाता है। पैक बन्द दूध में पाश्चुरीकृत दूध बेचा जाता है। इसी पाश्चुरीकृत दूध को मूल्य वर्धित दूध कहा जाता है। ताजे दूध को भी पैक बन्द करके बेचा जा सकता है। दुग्ध संयंत्रों में दूध को प्रसंस्कृत किया जाता है जिसके लिए इसको पाश्चुरीकृत किया जाता है। पाश्चुरीकृत करने से दूध में मौजूद अधिकतर जीवाणु समाप्त हो जाते हैं और यह जल्दी खराब नहीं होता है। पाश्चुरीकृत दूध को पैक करके उच्च दाम पर बेचा जाता है।

दूध से बने उत्पादों को बेचने से दूध का मूल्य बढ़ जाता है अर्थात पशुपालक दूध के साथ-साथ दूध से बने उत्पादों का मूल्यवर्धन कर अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं। दूध से बने उत्पादों के मूल्य में दूध की तुलना में 1½ से 2 गुणा तक वृद्धि हो जाती है। दुग्ध संवर्धन के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • दूध का मूल्य संवर्धन करने से पशुपालकों को उनके उत्पाद का अधिक मूल्य मिलता है, जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि होती है।
  • कम लागत वाले उत्पादों का निर्माण तथा उपभोक्ताओं को सुरक्षित उत्पाद उपलब्ध कराने से उपभोक्ताओं के साथ-साथ पशुपालकों के लिए भी लाभदायक है।

प्रसंस्कृत दुग्ध उत्पाद

आज के समय में उपभोक्ता मुख्य रूप से दूध से बने हुए उत्पादों का अधिक उपयोग कर रहे हैं इसलिए पशुपालकों को दूध से बने हुए उत्पादों पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से पशुपालकों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिलता है। प्रसंस्कृत दुग्ध उत्पाद इस प्रकार हैं:

संवर्धित दूध

बाजार में सबसे अधिक दूध सम्पूर्ण दूध के रूप में बिकता है। इसे ताजा दूध भी कहते हैं। सम्पूर्ण अर्थात ताजा दूध वह दूध है जिसे दुग्ध ग्रन्थि से निकाल कर बिना किसी भी प्रकार के परिवर्तन के उपभोगताओं को तरल पेय पदार्थ के रूप में साधारण मूल्य पर बेचा जाता है। बाजार में विभिन्न दुग्ध सयंत्रों द्वारा फुल क्रीम दूध के रूप में भी बेचा जाता है। फुल क्रीम दूध वह दूध है जिसे निश्चित मानकों के आधार पर मानकीकृत किया जाता है, इसमें 0 प्रतिशत वसा, और 9.0 प्रतिशत वसारहित ठोस पदार्थ होते हैं। इनके अतिरिक्त मानकीकृत (स्टेंडराइज्ड) दूध, वसा रहित (स्कीमड मिल्क), टोन्ड मिल्क, डबल टोन्ड मिल्क, निर्जंतुक (स्टर्लाइज्ड) दूध, सुगंधित (फलेवर्ड) दूध और कई अन्य प्रकार के दूध भी बाजार में उपलब्ध हैं। दुग्ध संवर्धन करने से दूध के उचित दाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

और देखें :  पशुपालन के क्षेत्र में मूल्य संवर्धन उत्पाद व प्रसंस्करण समय की आवश्यकता

खोआ

भारत में 7 मिलियन कि.ग्रा. खोआ प्रतिदिन बनाया जाता है। परम्परागत रूप से खोआ का उपयोग बर्फी, पेड़ा, गुलाब जामुन, मिल्क केक और कलाकन्द जैसी मिठाइयां बनाने में किया जाता है। शादियों एवं त्योहारों के मौसम में इसकी माँग अचानक ही इतनी बढ़ जाती है कि शुद्ध खोआ मिलना मुश्किल हो जाता है। अतः इस तरह की माँग को पूरा करने के लिए दूध से खोआ तैयार करके अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। त्योहार के दिनों में शुद्ध मिठाई मिलनी मुश्किल होता है। अतः पशुपालक इतना तो अवश्य ही कर सकते हैं कि वह त्योहार के दिनों में अपने परिवार के लिए शुद्ध मिठाइयां जैसे कि घीया की बर्फी, पालक की बर्फी, पेड़े इत्यादि तैयार करके सेवन कर सकते हैं। खोआ मुख्यतः गाय या भैंस के दूध से तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए छिछली कड़ाही में दूध को मध्यम आंच (80 डिग्री सेल्सियस) पर उबाला जाता है। यह प्रक्रिया घंटों तक चलती है। जब इसमें से सारा पानी वाष्पित हो जाता है तो अवशेष के रूप में बचा हुआ ठोस पदार्थ खोआ के रूप में प्राप्त होता है। यह प्राप्त खोआ एक लीटर शुद्ध दूध का लगभग पांचवा हिस्सा होता है। हालाँकि यह दूध की प्राप्ति के स्रोत पशु पर भी निर्भर करता है। यह सफेद या हल्का पीला होता है जिसकी अपनी मिठास होती है।

पनीर

पनीर दूध से तैयार किया जाने वाला सर्वविद्धित प्रसिद्ध उत्पाद है जिसका सेवन जब चाहा किया जा सकता है। घर में कोई भी त्योहार हो या घर में मेहमानों की मेजबानी करनी हो तो पनीर की सब्जी का प्रचलन है। पनीर को स्वादनुसार नमक लगा कर भी खाया जाता है। बाजार में हर मौसम में बिकने वाले खाद्य आहार जैसे कि पिज्जा में तो पनीर उसका अभिन्न भाग है। शुद्ध पनीर की आपूर्ति करने के लिए पशुपालक इसमें एक मुख्य भूमिका निभा सकते हैं और अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। पनीर में मुख्य रूप से दुग्ध वसा और प्रोटीन होते हैं। पनीर बनाने की प्रक्रिया में दुग्ध शर्करा और और पानी में घुलनशील विटामिन और प्रोटीन बाहर निकल जाते हैं। पनीर बनाने के लिए दूध को धीमी आंच पर गर्म करके 70 डिग्री फारेनहाइट पर पांच मिनट तक उसका तापमान लाकर उसमें एक प्रतिशत सिट्रिक एसिड डालकर दूध को फाड़ लिया जाता है तथा मलमल के कपड़े से छानने पर सफेद ठोस पदार्थ जिसमें दुग्ध वसा और प्रोटीन मुख्य रूप से होते हैं, प्राप्त होता है। पनीर बनाने के लिए छाछ का प्रयोग किया जाए तो पनीर अधिक स्वादिष्ट और लचीला बनता है। इसकी गुणवत्ता अच्छी बनाने के लिए छाने गये सफेद पदार्थ को 15 मिनट तक साफ पत्थर या भार के नीचे रखना चाहिए। पैक करने से पहले बर्फ जैसे ठंडे पानी में या बर्फ में रखने पर इसकी सरंचना में मजबूती आ जाती है। पनीर बनाने पर निकलने वाले पानी का उपयोग मुख्यतः सब्जियां और अन्य व्यंजन बनाने में किया जा सकता है।

दही

दही प्रोबायोटिक्स से भरपूर एक ऐसा सुपाच्य एवं पौष्टिक उत्पाद है जिसका सेवन हर घर में लगभग हर रोज खासतौर से सुबह के नाश्ते के समय किया जाता है। दही में लाखों की संख्या में लाभदायक जीवाणु होते हैं जो दूध में मौजूद वसा, शर्करा की पाचकता को बढ़ा देते हैं (Tsuchia et al. 1982)। इनके अतिरिक्त दही में वीटामिन सी, बी-कम्पलैक्स, कैल्शियम एवं अन्य खनिज तत्त्व मौजूद होते हैं। लगातार सात दिन तक दिन में एक बार 100 ग्राम दही का सेवन करने से हानिकारक जीवाणुओं की संख्या को कम करने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धन किया जा सकता है (Saavedra et al. 1994)। इस प्रकार दही के गुणों को समझते हुए इसे तैयार करके बेचने से दूध का संवर्धन मूल्य बढ़ जाता है। दूध से दही तैयार करके अच्छी आमदनी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त दही से कई उत्पाद जैसे कि श्रीखण्ड तैयार करके और भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। दही से पानी निकालने के बाद स्वादानुसार श्रीखण्ड बनाया जाता है जो स्वास्थ्यवर्धक एवं सुपाच्य होता है।

और देखें :  दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु आहार व्यवस्था एवं खनिज मिश्रण का महत्व

श्रीखण्ड

श्रीखण्ड बनाने लिए दही 5 कप, चीनी 1 कप, केसर 8 – 10 धागे, छोटी इलायची 2, बादाम 4, पीस्ता 6 – 7 और दूध 2 छोटे चम्मच की आवश्यकता होती है। दही से श्रीखण्ड बनाने के लिए दही को मलमल के कपड़े में बांध कर दो घण्टे के लिए लटका दें ताकि उसमें से पानी अलग हो जाए। अब इलायची, बादाम एवं पीस्ता को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर रख लें। केसर को दूध मिश्रित होने के लिए मिला कर रख दें। दो घण्टे बाद दही को एक बर्तन में डाल कर उसमें स्वादानुसार चीनी मिला लें। केसर मिश्रित दूध भी इसमें अच्छी तरह मिला लें। अब इसमें छोटी इलायची, बादाम एवं पीस्ता भी मिला लें। इस प्रकार श्रीखण्ड परोसने के लिए तैयार है। कुछ बादाम एवं पीस्ता को श्रीखण्ड तैयार होने के बाद उसके ऊपर भी सजाने के लिए डाल सकते हैं।

छाछ

यह एक ऐसा उत्पाद है जो दही को मथ कर मक्खन निकालने के बाद बचे हुए द्रव के रूप में प्राप्त होता है। यह भी दही की तरह ही प्रोबायोटिक्स से भरपूर एक ऐसा सुपाच्य एवं पौष्टिक उत्पाद है जिसका सेवन किया जाना शरीर के लिए लाभकारी है। छाछ में विभिन्न प्रकार के खनिज तत्त्वों साथ-साथ प्रोटीन एवं कुछ मात्रा में वसा भी होती है। छाछ को भी दूध की तरह अच्छे दामों पर बेचा जाता है।

दुग्ध प्रसंस्करण: पशुपालकों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण डेयरी उत्पाद

मक्खन

मक्खन को दही मथ कर तैयार किया जाता है जिसका सेवन भी हर घर में होता है। मक्खन में वसा की मात्रा कम-से-कम 80 प्रतिशत और नमी 16 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। ग्रामीण आँचल में घी पसन्द किया जाता है लेकिन यदि घी उपलब्ध नहीं है तो मक्खन का उपयोग किया जाता है। हर ढाबे या रेस्टोरेंट में तो मक्खन हर समय वहाँ पर भोजनाहार करने वालों को परोसने के लिए उपलब्ध होता है। शुद्ध मक्खन की उपलब्धता को पूरा करने में पशुपालकों की मुख्य भूमिका है। पशुपालक चाहें तो मक्खन तैयार करके दूध के मूल्य में बढ़ोतरी कर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं।

दुग्ध प्रसंस्करण: पशुपालकों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण डेयरी उत्पाद

देसी घी

देसी घी को मक्खन को उबाल कर तैयार किया जाता है। देसी घी में वसा और नमी क्रमशः 99.5 और 0.5 (अधिकतम) प्रतिशत होनी चाहिए। रासायनिक रूप से मक्खन और घी मिश्रित ग्लिसराइड की एक जटिल वसा है जिसमें थोड़ी मात्रा में मुक्त फैटी एसिड, फॉस्फोलिपिड, स्टेरोल्स और उनके एस्टर, वसा में घुलनशील विटामिन (ए, डी, ई और के), कैरोटेनॉइड, कार्बोनिल यौगिक, हाइड्रोकार्बन, जली हुई कैसिन, नमी और तांबे और लोहे जैसे तत्व होते हैं। घी दूध का ऐसा उत्पाद जो हर पशुपालक के घर में मिलता है। इसको बेच कर पशुपालक अच्छे दाम भी कमाते हैं। बाजार में शुद्ध देसी घी आमतौर पर मिलना आसान नहीं होता है। अतः पशुपालक शुद्ध देसी घी तैयार करके बाजार में बिकने वाले देसी घी से भी ज्यादा दामों पर बेच कर अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं।

दुग्ध प्रसंस्करण: पशुपालकों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण डेयरी उत्पाद

छैना

छैना कुछ-कुछ पनीर के जैसा की होता है, लेकिन यह पनीर की तरह सफेद लेकिन पनीर से अधिक मुलायम एवं दानेदार होता है और आमतौर पर गाय के दूध से बनाया जाता है। यह दूध का ठोस पदार्थ है, जिसे तैयार करने के लिए उबले हुए दूध में एक प्रतिशत लैक्टिक एसिड या सिट्रिक एसिड डाला जाता है जिससे दूध फट जाता है और उसमें से मौजूद पानी अर्थात छाछ को निकालकर छैना को अलग कर लिया जाता है। पनीर बनाने की तरह इसे किसी भारी वस्तु से दबाया नहीं जाता है बल्कि ऊँचे स्थान पर कपड़े में लपेटकर पानी निकालने के लिए 15 मिनट के लिए टांग दिया जाता है। इसको कभी भी निचोड़ना नहीं चाहिए। लटकाने के बाद पानी टपकना बंद हो जाये तो छैना अलग कर लें। छैना का उपयोग विभिन्न प्रकार की मिठाइयों जैसे कि रसगुला, रसमलाई, राजभोग, सन्देश, चमचम आदि बनाने में किया जाता है। इसमें कैल्शियम अच्छी मात्रा में होता है, जो अस्थि क्षय (ऑस्टियोपोरोसिस) को रोकता है और हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाता है। यह प्रोटीन का भी समृद्ध स्त्रोत है और कैंसर के खतरे और पेट की समस्याओं को कम करने में सहायक होता है (धर्मबीर एवं अन्य 2017, दिगांता)। खोआ की तुलना में छैना में अधिक मात्रा में पानी होता है जिस कारण इसका भण्डारण काल अधिक नहीं होता है।

और देखें :  संवर्धित दुग्ध विपणन: समय की आवश्यकता

खीर

यह एक भारतीय व्यंजन है जो हर त्योहार पर बनाया जाने वाला भोजनाहार है। अब तो खीर भी बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध है जिसका लाभ पशुपालक ले सकते हैं। इससे भी दूध का मूल्य कई गुणा तक बढ़ जाता है। अतः पशुपालक खीर को भी बेच कर अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते हैं।

आइसक्रीम

आइसक्रीम गर्मियों का एक ऐसा उपहार है जिसका सेवन आमतौर पर सभी द्वारा किया जाता है। आइसक्रीम में कम-से-कम 10 प्रतिशत वसा, 5 प्रतिशत प्रोटीन और 36 प्रतिशत कुल ठोस पदार्थ होते हैं। यह कई प्रकार के सुगंधित स्वादों में उपलब्ध होती है। इसका बाजार वर्षभर चलता रहता है यहाँ तक कि इसको शादी समारोह में तो कड़ाके की सर्दी में भी खाया जाता है।

दुग्ध प्रसंस्करण: पशुपालकों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण डेयरी उत्पाद

कुल्फी

कुल्फी, गर्मी के मौसम में हर चौराहे पर बिक्री के लिए उपलब्ध होती है जिसको बेचकर अच्छा लाभ कमाया जाता है। कुल्फी का स्वाद और भी ज्यादा तब बढ़ जाता है जब इसको विभिन्न प्रकार के सुगंधित पदार्थों के साथ परोसा जाता है। मटके वाली कुल्फी को गोंद कतीरा के साथ सेवन करने से इसका स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाता है।

इस प्रकार कुल मिला कर आंकलन किया जाए तो तरल दूध को बेचने के साथ-साथ यदि दूध के उत्पादों को भी बेचा जाता है तो इससे दूध उत्पादन करने वाले पशुपालकों को ज्यादा लाभ मिलता है। अतः दूध के मूल्यवर्धन के लिए यह आवश्यक है कि संवर्धित दुग्ध उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए।

संदर्भ

  1. De, S., 2001. Special Milks. In: Outlines of Technology. Chapter 2. 1st Ed., Oxford University Press- New Delhi. pp 90-93.
  2. Perez, R.H. and Tan, J.D., 2006. Production of acidophilus milk enriched with purees from colored sweetpotato (Ipomoea batatas Linn.) varieties. Annals of Tropical Research. [Web Reference]
  3. Roginski, H., FERMENTED MILKS | Products from Northern Europe, Editor(s): Richard K. Robinson, Encyclopedia of Food Microbiology, Elsevier, Pages 791-798. [Web Reference]
  4. Saavedra J.M., Bauman N.A., Perman J.A., Yolken R.H. and Oung I., 1994, “Feeding of Bifidobacterium bifidum and Streptococcus thermophilus to infants in hospital for prevention of diarrhoea and shedding of rotavirus,” The lancet; 344(8929): 1046-1049. [Web Reference]
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  9. दिगांता बी., चेनाः उत्पाद और सरंचना, Hindi Liberary India. Assessed on Feb 28, 2021. [Web Reference]
  10. धर्मबीर दहिया, रमेश कुमार एवं देवेन्द्र सिंह, 2017, दूध की प्रोसैसिंग कर अधिक आय कमाएँ, पशुधन ज्ञान, विस्तार शिक्षा निदेशालय, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार।

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