राष्ट्रीय गोकुल मिशन: स्वदेशी पशुओं के संरक्षण एवं नस्ल सुधार

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19वीं पशुधन गणना के अनुसार भारत में लगभग 190 मिलियन पशु है जो पूरे विश्व की पशु का लगभग 14.5 प्रतिशत है। इनमें से, 151 मिलियन देशी गो पशु है जो कुल गो पशु का 80 प्रतिशत हैं, परन्तु भारत में पिछले कुछ वर्षो के दौरान क्रॉस ब्रीडिंग प्रोग्राम के चलते स्थानीय या स्वदेशी नस्ल की गायों की संख्या में कमी होने के कारण उनके पहचान पर संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिए शुद्ध स्वदेशी नस्ल की गायों के संरक्षण एवं नस्ल सुधार को वैज्ञानिक विधि से बढ़ावा देने के उद्देश्य ये भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा 28 जुलाई 2014 को राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरूआत की गई हैं। इस मिशन के अन्त्तर्गत के साहीवाल, गिर, राढ़ी, देवनी, थारपारकर, रेड सिंधी जैसे देशी नस्ल के पशुओं के आनुवंशिकी स्वरूप को उन्नत करने एवं इनके वंश की वृद्वि के प्रबंधन करने की योजना है, जिससे कि देशी नस्ल की गायों की दूग्ध उत्पादन और उत्पादकता क्षमता को बढ़ाई जा सके तथा कृषि कार्य हेतु स्वस्थ एवं उच्च आनुवांशिक गुणों वाले बैल भी उपलब्ध हो सकें।

देशी नस्ल की गायों की निम्न विशेषताएं होती है, जिसके कारण सरकार इसके संरक्षण एवं विकारा पर जेार दे रही हैं:

  1. भारत कई वर्षो से दूध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। इसमे हमारे देशी नस्ल के पशुओं का बहुत बड़ा योगदान है। भारत में पशुगणना के अनुसार 80 प्रतिशत देशी नस्ल एवं 20 प्रतिशत संकर नस्ल की गायों हैं। हमारे देश में 28 मान्यता प्राप्त देशी नस्ल की गायें हैं। इसके अलावे, बहूत सारे गैर वर्णित प्रकार की गायें हमारे देश में मौजूद हैं।
  2. देशी नस्ल की गायें किसी भी जलवायु में आसानी से ढल जाती है। वातावरण के तापमान में उतार-चढ़ाव के होने पर भी देशी नस्ल की गायों के दूध उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव नही पड़ता है, जबकि संकर एवं विदेशी नस्ल के गायों के दूध उत्पादन क्षमता, वातावरण के तापमान में उतार-चढ़ाव होने पर घट जाती है। तापक्रम सहने की क्षमता के कारण अमेरिका, ब्राजील, आस्ट्रेलिया आदि देषों में तापमान अधिक होने के कारण हमारे देशी गायों को आयत कर रही हैं।
  3. हमारे देशी नस्ल के पशुओं में बहुत सारे रोगों से लड़ने की क्षमता होती है जैसे देशी नस्ल के गायों मे किलनी (टिक) नामक बाहृय परजीवी का संक्रमण होने की संभावना बहुत कम होती हैं।
  4. देशी नस्ल के पशु कम चारे में अच्छी दूध देने की क्षमता रखती है। अतः चारा संकट उत्पन्न होने पर भी इनके दूध उत्पादन पर कुछ खास असर नही पड़ता है।
  5. देशी नस्ल की गायों की दूध पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है।
  6. इसके अलावे हमारे देशी नस्लों की गायों की गोबर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मददगार होते हैं।
  7. देशी नस्लों की गायों की गोमुत्र का औषधीय महत्व है क्योंकि बहुत सारे रोगों के उपचार में उपयोगी सिद्ध होते हैं।
  8. हमारे देशी नस्ल की गायें भारतीय सभ्यता की नीवं हैं।
और देखें :  भारत में स्वदेशी गाय की महत्ता एवं उसका व्यवसायिक उपयोग

राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू करने का उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. दुधारू गायों के स्वदेशी नस्लों का विकास एवं संरक्षण: हमारे देश में बहुत सारे अमान्यता प्राप्त नस्लों की गायें हैं जिसे मान्यता प्राप्त एवं उच्च आनुवांशिक गुणोंवाले स्वदेशी नस्ल के साढ़ों से गर्भाधान कराकर ज्यादा दूध देनेवाली गायों की नस्लों में परिवत्र्तन करना। कुछ पीढ़ी के प्रजनन के बाद आनुवांशिक गुणों में उन्नयन हो जाता हैं।
  2. स्वदेशी नस्ल के गायों (साहीवाल, गिर, राढ़ी, देवनी, थारपारकर, रेड सिंधी आदि) के आनुवांशिक रचना में सुधार करना एवं उनकी संख्या को बढ़ाना ताकि दूध उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता को बढ़ाया जा सके।
  3. प्राकृतिक गर्भाधान हेतु उच्च आनुवांशिक गुणों वाले रोगमुक्त साढ़ों का वितरण करना।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन: स्वदेशी पशुओं के संरक्षण एवं नस्ल सुधार

 गोकुल ग्राम

इस मिशन के अन्त्तर्गत ग्रामस्तरीय समन्वित पशु केन्द्र भी बनाने का प्रस्ताव है जिसे गोकुल ग्राम कहा जाएगा। गोकुल ग्राम की स्थापना स्वदेशी प्रजनन प्रदेषों एवं शहरी पशुओं के लिए महानगरों के निकट की जाती हैं। इसकी स्थापना पी0 पी0 पी0 अर्थात सार्वजनिक निजी भागीदारी मोड में किया जाता है। गोकुल ग्राम में 1000 पशुओं के रखने की क्षमता होगी, जिसमें उत्पादक एवं अनुत्पादक पशुओं का अनुपात 60: 40 का होगा। इसमें रखे जाने वाले पशुओं के पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए चारा उत्पादन गोकुल ग्राम में ही किया जाता है। गोकुल ग्राम में एक पशुचिकित्सालय एवं कृत्रिम गभा्रधन केन्द्र भी रहेगा।

और देखें :  भारत में पशुधन विकास हेतु सरकारी योजनाएं

गोकुल ग्राम के द्वारा दूध, जैविक खाद, केुचुआ खाद, गोमुत्र, बायो गैस उत्पादित बिजली एवं पशु उत्पादों (घी, मक्खन, पनीर आदि) की बिक्री कर आर्थिक संसाधन पैदा किया जाता है। इसके अलावे गोकुल ग्राम में मच्छर भगाने की अगरबतियों, छत पर लगने वाली उष्मा प्रतिरोधक टाइल्सों, गमलों आदि उत्पादन किया जाता है। इसके द्वारा रोजगार का भी सृजन किया जाता है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन का कार्यान्वयन राज्य पशुधन बोर्ड के माध्यम से किया जात है। स्वदेशी नस्ल के पशुओ के विकास में भूमिका निभावाने वाली एंजेसियों जैसे – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केन्द्रीय हिमकृत वीर्य उत्पादन एवं प्रशिक्षण संस्थान, कृषि या पशुपालन विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, गैर सरकारी संगठनों, सहकारी समितियों एवं सर्वश्रेष्ठ जर्मप्लाज्म वाली गोषालाओं इसमें प्रतिभागी एंजेसियां होती है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन के बढ़ावा देने हेतु निम्न कार्यक्रमों पर जोर दिया जाता है

  1. स्वदेश नस्लों के पशुओं के उचित प्रबंधन करने वाले किसानों को गोपाल रत्न एवं सर्वोतम प्रबंधित गोशालाओं को कामधेनु पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।
  2. इस मिशन के तहत स्वदेशी नस्ल के पशुओं के संरक्षण एवं उचित रख-रखाव को बढ़ावा देने के लिए देशी नस्ल के दूधारू पशुओं के लिए दुध उत्पादन प्रतियोगिता आयोजित किया जाता है तथा प्रतियोगिता के दौरान चिन्हित उत्कृष्ठ पशुओं को चुनकर उसको गोकुल ग्राम में रखने का लक्ष्य है।
  3. स्वदेशी गो-पशु विकास में लगे संस्थानों में कार्यरत तकनीकी एवं गैर-तकनीकी कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।
  4. गो-पालन संघ नाम से प्रजनक समाज की स्थापना करना।
  5. उच्च आनुवांशिक क्षमता वाले स्वदेशी नस्ल के संरक्षण के लिए बुल मदर फार्म को मजबूत करना।
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इस तरह राष्ट्रीय गोकुल मिशन के द्वारा स्वदेशी नस्ल के गोवंशीय पशुओं की संरक्षण एवं संख्या को बढ़ावा मिलेगा तथा साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिेग का दुष्प्रभाव दूधारू पशुओं के दूध उत्पादन पर नही पड़ेगा, जिसके फलस्वरूप दूसरी श्वेत क्रांति का सपना साकार हो पाएगा।

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