इंपैक्शन ऑफ रूमेन
यदि पशु स्वस्थ एवं बेचैन है तथा रूमेन ठस भरा हुआ है, एवं ताप मान लगभग सामान्य है। उपरोक्त स्थिति रूमेन में आहार अधिक मात्रा में भर जाने से होती है और रूमन बाहर से उभरा हुआ प्रतीत होता है। पशु द्वारा अधिक चारा दाना खा लेने से तथा कम पानी पीने से एवं रूमन की निष्क्रियता के परिणाम स्वरूप ऐसा होता है। इसे “इंपैक्शन ऑफ रूमन” कहते हैं। यह रोग आमतौर पर ठोस और सूखा चारा दाना खाने से होता है अथवा अधिक आहार खा लेने से होता है। रूमेन के अधिक भरे होने के कारण रूमेन की मांसपेशियां काम नहीं कर पाती हैं। यांत्रिक बाधा जैसे बालों का गुच्छा तथा अपर्याप्त पानी पीने से यह रोग हो जाता है।
प्राथमिक उपचार
- इसमें पशु के बाई तरफ की कोख की मालिश करनी चाहिए।
- कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट का 25% घोल, १०० मिलीलीटर, खाल में दिया जा सकता है।
- यदि संभव हो तो सोडियम क्लोराइड अर्थात खाने का नमक 250 ग्राम पिसा हुआ सोंठ 30 ग्राम को 1 लीटर गुनगुने पानी में मिलाकर पिला देना चाहिए।
- रूमीनोटोरिक पाउडर आप अपने घर पर चटनी के रूप में बना कर दे सकते हैं जो इस प्रकार है: कुचला पाउडर, अमोनियम कार्बोनेट, पिसा हुआ सरसों 15 ग्राम प्रत्येक को 30 ग्राम सोंठ के पाउडर में मिलाकर देने से पशु को आशातीत लाभ मिलता है।
- कई कंपनियां रूमिनोटोरिक बोलस बनाती हैं, जैसे रूमेनटॉस, अथवा रूमेन बोलस, आदि से चार चार गोली सुबह-शाम दे देना चाहिए।
- विटामिन बी कांप्लेक्स के साथ लिवर एक्सट्रैक्ट का इंजेक्शन ३ से ५ दिन तक मांस में देना चाहिए इसके साथ साथ एंटीहिस्टामिनिक ड्रग फेनिरामिन मैरियट अथवा क्लोरफेनिरामिन मैरियट 10ml 4 से 5 दिन तक देना चाहिए।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि इंपैक्शन अधिक खाना खाने से हुआ है तो खाने का सोडा १००-१०० ग्राम सुबह शाम देना चाहिए।
टिंपैनी अथवा अफारा
यदि किसी पशु के बॉई कोख मैं अत्याधिक गैस बन रही है तो वास्तव में इसे टिंपैनी अथवा अफारा कहां जाता है। गाय भैंस आदि में, अत्याधिक अथवा दूषित हरा चारा दाना खा लेने से रूमेन में गैस उत्पन्न हो जाती है और वह फूलकर ड्रम के आकार का हो जाता है। फूले हुए पेट को थपथपाने पर, ढोलक जैसी आवाज आती है। तथा पशु को सांस लेने में अत्याधिक कष्ट होता है पशु बेचैन रहता है। अगर अफारा अधिक है तो पशु का दम भी घुट सकता है।
प्राथमिक उपचार
- उपरोक्त परिस्थिति में टोकार कैनुला या मोटी नीडल 16 की सहायता से रूमैन को पंचर कर धीरे-धीरे गैस निकाल देनी चाहिए क्योंकि एक साथ गैस निकलने पर पशु की शॉक लगने से मृत्यु हो सकती है।
- गैस निकालने के साथ-साथ पशु को ब्लाटोसिल अथवा टॉयरेल 100 एम एल पिला दे और 100ml रूमेन में भी डाल सकते हैं।
- एंटी जाइमोटिक औषधि जैसे यूकेलिप्टस का तेल या फॉर्मलीन आदि भी दे सकते हैं,
- जब पेट फूलना कम हो जाए तो मैगसल्फ नमक 250 -250 ग्राम पानी में मिलाकर सावधानी पूर्वक पिलाना चाहिए, तथा उसके उपरांत अमोनिया कारब 4 ग्राम खाने का सोडा 30 ग्राम, सोंठ 8 ग्राम, कुचला 3 ग्राम और कुटकी 8 ग्राम, को ठीक प्रकार से मिलाकर दिन में दो बार देना चाहिए।
डायरिया/ दस्त
यदि कोई पशु पतला पानी जैसा दस्त करता है तो इस बीमारी को डायरिया कहते हैं। गंभीर अवस्था में हल्के दर्द के साथ दस्त जल्दी जल्दी आते हैं प्राय: ऐसा भी देखा गया है, की दस्त दुर्गंध के साथ-साथ पतला खून एवं म्यूकस अर्थात ऑव मिला हुआ लिसलिसा होता है पशु खाना पीना छोड़ देता है तथा सुस्त एवं दुर्बल हो जाता है। गंभीर स्थिति में जल के अभाव तथा रक्त हीनता के कारण उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
उपचार
- उपचार के लिए खड़िया 50 ग्राम केवोलीन 30 ग्राम, कत्था 10 ग्राम बेलगिरी 50 ग्राम सब को मिलाकर दिन में दो बार चावल के मॉड में देवें।
- कई आयुर्वेदिक औषधियां जैसे नेबलोन, डायरोक आदि 50 से 100 ग्राम चावल के मांड में देने से लाभ होता है।
- यदि इस प्राथमिक उपचार के पश्चात पशु को लाभ न मिलने पर अपने निकटतम पशु चिकित्सा अधिकारी से संपर्क करें।
कब्ज
यदि पशु कई दिनों मल त्याग न कर रहा हो तो इसे कॉन्स्टिपेशन अर्थात कब्ज कहते हैं। इसमें मल का विसर्जन विलंब से अथवा कष्ट के साथ होता है ऑतों के विकार के कारण, तथा शुष्क भोजन एवं जल के अभाव के कारण भी कब्ज हो जाता है। ऐसा देखा गया है की ऑतों में रुकावट ऑत में ऐंठन, एवं ऑतों का एक दूसरे के ऊपर चढ़ना भी मल न त्यागने का कारण हो सकता है।
प्राथमिक उपचार
- उपचार हेतु अरंडी का तेल 300ml या लिक्विड पैराफिन 2 लीटर अथवा मैगसल्फ पिलाने से लाभ देखा गया है।
- यदि पशु को दर्द है तो क्लोरल हाइड्रेट 30 ग्राम 100 एम एल अलसी के तेल मैं या छाछ में पिलाना चाहिए।
- ज्वर के लिए कोई भी एंटीपायरेटिक एवं एंटीबायोटिक का प्रयोग कर सकते हैं।
- लीवर स्ट्रेट विटामिन बी कांप्लेक्स के साथ 10ml प्रतिदिन गर्दन के मांसल भाग मैं लगाएं।
नाक से खून आना (Epistaxis)
यदि किसी पशु के नाक से खून आने लगे तो, इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे किसी बीमारी के नाक में घाव होने पर अथवा हीट स्ट्रोक अथवा विटामिन के की कमी आदि। इसे नेजल ब्लीडिंग भी कहते हैं।
उपचार
इसमें सर्वप्रथम पशुओं को विश्राम दे तत्पश्चात सर पर ठंडा पानी डालें नाक में सिरिंज या नली से बर्फ का पानी डालें। सिर पर सूती कपड़ा बांधकर पानी से तर रखें।
- कैल्शियम का इंजेक्शन मांस में या रक्त शिरा में लगाएं।
- विटामिन के का इंजेक्शन मास में लगाएं।
- रक्त प्रवाह रोधक इंजेक्शन जैसे रेविसी, अथवा जैकसॉट, 10ml 3 दिन तक मास में लगाएं।
- स्टेपलान, अथवा स्टाइप्टोविट 10 गोली सुबह शाम देना चाहिए। यदि संभव हो तो ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जा सकता है।
पैंटिंग/हॉफना
इस बीमारी को पेंटिंग कहते हैं जो अधिकतर खुर पका मुंह पका चेचक आदि के कुप्रभाव के रूप में प्रकट होते हैं तथा यह बीमारी थायराइड ग्रंथि की कार्य क्षमता में कमी की वजह से भी होती है। इसमें पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है जल्दी-जल्दी सांस लेता है इसमें पशु ठंड या छाया में भी हांफता है। धूप लगने पर यह क्रिया बढ़ जाती है और तापक्रम भी बढ़ जाता है।
उपचार
- उपचार हेतु थायराइड की गोली देने से लाभ मिलता है।
- एड्रिनल हाइड्रोक्लोराइड 5 से 10 मिलीलीटर मांस में 3 से 4 दिन तक देना चाहिए। कभी-कभी ऐसा पाया गया है कि 3 से 4 दिन तक का कॉर्टिसोल लगाने से भी लाभ होता है।
- पेंटिंग के उपचार में आयोडीन प्रिपरेशन से भी लाभ मिलता है।
ट्राउमेटिक पेरिकार्डाइटिस
यह रोग अधिकतर वयस्क पशुओं में पाया जाता है। इसमें पेरिकार्डियम हृदय की ऊपरी झिल्ली जिससे हृदय ढका रहता है मैं चोट के कारण सूजन आ जाती है। पशु अपने चारे या दाने में, कील , सुई, तार इत्यादि कोई नुकीली वस्तु को निगल जाता है। तो यह वस्तु रेटिकुलम को छेद कर डायाफ्राम को पार कर जाती है और पेरिकार्डियम को छेदते हुए हृदय तक पहुंच जाती है। तब इस वस्तु के चलने के संपूर्ण मार्ग में एक शोध ट्रैक्ट बन जाता है। यदि वस्तु रेटिकुलम को छेदती हुई दाई ओर से चली जाती है तो यह पूपलयूरा तथा फेफड़ों को छेदती हुई दॉई और सीने में फोड़ा बनकर बाहर निकल जाती है।
हृदय में सुई के रहने से गर्दन के नीचे तथा दोनों पैरों के बीच में पानी उतर आता है जिससे सूजन आ जाती है व पशु मर जाता है। इसमें पशु बच्चा देने के बाद गर्दन के नीचे या पैरों के बीच में पानी उतर आता है तथा पशु मुंह से सांस लेता है।
उपचार
शल्य क्रिया ही इसका एक उपचार है परंतु सफलता बहुत कम मिलती है। पशु को हल्का खाना दें। पशु के बांधने का स्थान आगे से उठा हुआ होना चाहिए उपचार हेतु नजदीकी पशु चिकित्सा अधिकारी से संपर्क करें।
पेट के कीड़े अर्थात पटेरे पडना
भैंस के बच्चों के गोबर में लंबे-लंबे कीड़े आते हैं यह कीड़े पटेरा केंचुआ या जौ़ंकी अथवा एस्केरिस होते हैं इसलिए इस बीमारी को एस्केरिएिसस इस कहते हैं। अधिकांश छोटे पशुओं की बड़ी आत में इनका संक्रमण होता है। इस रोग में भूख कम लगती है। कब्ज के बाद दस्त और उदर शूल हो जाता है। यह गाय भैंस के बच्चों में अधिक होता है। भैंस के बच्चों ने भ्रूण अवस्था में ही यह कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं।
उपचार
10 से 20 ग्राम के पिपराजीन पाउडर या एंटीपार 30ml छाछ में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। दवा पिलाते समय कभी भी जीभ को नहीं पकड़ना चाहिए।
कीड़े युक्त घाव (Maggot wound)
इस बीमारी को मैगट उंड कहते हैं। यह बीमारी कई प्रकार की मक्खियों द्वारा घाव पर अंडे देने के कारण होती है इन्हें में मैगट कहते हैं। यह घाव में जलन व इरिटेशन करते हैं जिससे पतला रक्त बहता रहता है पशु घाव को बार-बार चाटता है तथा बेचैनी अनुभव करता है।
उपचार
इसके उपचार के लिए घाव को साफ पानी से जिसमें पोटेशियम परमैंगनेट या एक्रीफ्लेविन मिला हुआ हो से साफ कर ले। तत्पश्चात 2% हाइड्रोजन पराक्साइड का घोल घाव पर डालें। घाव से सफेद झाग निकलेगा फिर 2 मिनट बाद घाव को साफ रुई से साफ करें। घाव पर लोरेकसीन, या हिमैकस मरहम लगाकर साफ सूती कपड़े से पट्टी बांध दे। कभी भी घाव पर गाढ़ा फिनाइल, मोबिल आयल चीनी गुड़ आदि नहीं बांधना चाहिए इससे घाव के भरने में बाधा उत्पन्न होती है।
सींग टूटना(Broken Horn)
यदि किसी पशु का सींग टूट जाए तो इसे ब्रोकन हार्न कहते हैं। घाव को स्पिरिट या अल्कोहल से साफ कर के लिक्विड बीटाडीन से एक दिन छोड़कर पट्टी करनी चाहिए। यदि घाव में कीड़े पड़ने की संभावना हो तो लोरिकसेन अथवा हिमैकस, मल्हन घाव पर लगा दे।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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