कृत्रिम गर्भाधान द्वारा वीर्य को उपयुक्त स्थान पर पहुंचाने संबंधी जानकारी

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कृत्रिम गर्भाधान

इस विधि में स्वस्थ नर पशु के वीर्य (semen) को कृत्रिम विधि से स्वच्छतापूर्वक एकत्रित करके यन्त्रों की सहायता से मादा जननेन्द्रियों में स्वच्छतापूर्वक ऋतु के उचित समय (Proper time of Oestrus) पर उचित स्थान पर पहुँचाया जाता है।

गुदा योनि विधि (Rectovaginal Method)

गाय/भैंस को गर्भित करने की यह सर्वोत्तम विधि है। इस विधि में सर्वप्रथम दोनों हाथों को एन्टीसेप्टिक साबुन (डेटोल/सेवलान/लाइफबाय) से धोकर स्वच्छ एवं जीवाणु रहित कर लेते हैं। तत्पश्चात् बांये हाथ को द्रव पैराफिन (Liquid Paraffin) अथवा साबुन के झाग से चिकना करके गाय के मलाशय (Rectum) में आहिस्ता-आहिस्ता प्रवेश करते हैं। चारों उंगलियों को एक साथ एवं अंगूठे को उनके बीच रखकर मलाशय के अन्दर हाथ डालते हैं। इसके बाद मलाशय के गोबर को धीरे-धीरे बाहर निकाल की ओर टटोलकर गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) को उंगली एवं अंगूठे की सहायता से पकड़ते हैं। अब दाहिने हाथ से वीर्य के स्टाॅ से भरी हुई ए.आई. गन को योनि के अन्दर दोनों भगओष्ठों (Vulvar lips) को फैलाकर धीरे-धीरे प्रवेश कराते हैं। जब ए. आई. गन गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) के मध्य या गर्भाशयकाय (Body of Uterus) तक पहुंच जाती है तब ए.आई. गन के पिस्टन को आगे की ओर दबाते हैं जिससे सम्पूर्ण वीर्य गर्भाशय/गर्भाशय ग्रीवा में पहुंच जाता है। इसके बाद ए.आई. गन को दाहिने हाथ से धीरे-धीरे बाहर निकाल लेते हैं एवं बायां हाथ भी मलाशय से बाहर निकाल लेते हैं।

कृत्रिम गर्भाधान करते पशुचिकित्सक

गर्भित करने का स्थान (Place of Insemination)

  1. गर्भाशय ग्रीवा के मध्य भाग में (Mid Cervix)
  2. गर्भाशय काय में (Body of Uterus)
  3. गर्भाशय श्रंग में (Uterine horn)- यदि यह पता हो कि किस ओर के अण्डाशय में ग्राफियनपुटक (Graffian follicle) उपस्थित हैं तो उसी ओर के गर्भाशय अंग में वीर्य जमा कर सकते हैं।

गर्भधारण हेतु वीर्य की मात्रा एवं शुकाणुओं की संख्या

अतिहिमीकृत वीर्य हेतु DFS

  • 0.25 डस मिनी फ्रेंच स्ट्राॅ
  • 0.5 डस मीडियम फ्रेंच स्ट्राॅ
  • शुक्राणुओं की संख्या – 15 से 20 लाख/स्ट्राॅ

Chilled Semen हेतु मात्रा

  • 1.0 मि ली
  • शुक्राणुओं की संख्या – 5 से 10 लाख/स्ट्राॅ

कृत्रिम गर्भाधान का उपयुक्त समय (Optimum time of Insemination)

       कृत्रिम गर्भाधान की सफलता हेतु कृत्रिम गर्भाधान का उपयुक्त समय ज्ञात होना अति महत्वपूर्ण है –

  1. मादा पशु के जनन तंत्र में अण्डाणु (Ovum) के जीवित रहने की अवधि।
  2. मादा के जनन तंत्र में शुकाणु का विकास समय (Capacitation) – 6 घण्टे
  3. मादा गाय के जनन तंत्र में शुक्राणु के जीवित रहने की अवधि – 24 – 30 घण्टे
  4. मदकाल (Oestrus period) अवधि – आरम्भ, मध्य या अन्तिम (State of estrus) – Early, Mid or Late heat
और देखें :  गर्भित पशुओं में ड्राई पीरियड (सूखी अवधि) करने की विधि एवं पशु का संवर्धन

गाय/भैंस में  कृत्रिम गर्भाधान का उपयुक्त समय मद काल की मध्य से अन्तिम अवस्था (Mid to late heat) है।

सर्वाधिक उत्तम परिणाम प्राप्त करने हेतु गाय को मदकाल (Oestrus period) के मध्य में गर्भाधान (Inseminate) कराना चाहिए।

गाय/भैंस प्रत्येक 18 से 21 दिन के पश्चात् ऋतु गर्मी में आती है। यह 18 से 24 घण्टे ऋतु में रहती हैं। सामान्यतः ऋतु के अन्त में अण्डक्षरण (Ovulation)  होता है। अतः इनके ऋतु में आने के 10 से 16 घण्टे के अन्दर इन्हें कृत्रिम गर्भाधान करायें।

अतिहिमीकृत वीर्य (D. F. S.) द्वारा कृत्रिम गर्भाधान (A. I.)  

       इस विधि द्वारा कृत्रिम गर्भाधान करने के लिए प्रयुक्त होने वाली इन्सेमिनेशन किट में निम्नांकित आवश्यक उपकरण होते हैं-

  1. छोटा एवं बड़ा तरल नत्रजन पात्र (LN2 Container)
  2. गर्म पानी रखने हेतु एक थर्मस फ्लास्क
  3. थाइंग करने (Thawing) हेतु फलास्क/बाउल
  4. थर्माेमीटर (Thermometer)
  5. दस्ताने (Gloves)
  6. इन्सेमिनेशन गन (A. I. Gun)
  7. प्लास्टिक शीथ (Plastic Sheath)
  8. कैंची (Scissors)
  9. लम्बी चिमटी (Long handle forceps)
  10. तौलिया/काटन/पेपर साबुन
  11. एन्टीसेप्टिक साबुन – सेवलाॅन/डिटाॅल
  12. अभिलेख पंजिका (Record Books)

वीर्य स्ट्रांज की थांइग एवं सीथ लगाये जाने की जानकारी

डेयरी पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान हेतु प्रारम्भिक समय में तरल सीमन का प्रयोग किया जाता था, किन्तु इस पद्धति के द्वारा व्यवहारिक तौर पर कुछ परेशानियां यथा आवश्यकता से अधिक वीर्य को संग्रहित नहीं किया जा सकता था। वीर्य को तीन दिन के अन्दरही उपयोग में लाया जा सकता आदि परेशानियों से बचने के लिए हिमीकृत वीर्य का उपयोग सभी जगहों पर किया जाता है। कुछ जगहों को छोड़कर जहां तरल वीर्य की उपलब्धता होती है किन्तु हिमीकृत वीर्य उपलब्ध नहीं होता है।

  • तरल वीर्य के प्रयोग में किसी प्रकार की थांइग की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है किन्तु कृत्रिम गर्भाधान से पूर्व वीर्य को 37ºC पर लाया जा सकता है।
  • हिमीकृत वीर्य को तरल नाइट्रोजन गैस के सिलेण्डर से कृत्रिम गर्भाधान करते समय ही निकाला जाता है। एक बार में एक स्ट्रा को इस्तेमाल कर लेना चाहिए। थांइग के बाद यथा शीघ्र स्ट्रा का इस्तेमाल कर लेना चाहिए। किसी भी दशा में अधिक देरी नहीं करनी चाहिए।

थाइंग से पूर्व सावधानियां

LN2 कन्टेनर की सामान्य जानकारी अवश्य होनी चाहिए। थांइग के लिए पाट स्छ2 सिलेण्डर के पास ही रखना चाहिए।

विधि

  • थाइंग के लिए स्ट्रा को LN2 सिलेण्डर से निकालने से पूर्व थाइंग फ्लास्क के पानी का तापक्रम 32-38ºC के बीच रखते हैं। जिसके लिए थर्मामीटर का प्रयोग करना चाहिए। किसी भी दशा में तापक्रम 40ºC से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • सिलेण्डर से ढक्कन को अलग करके, कैनिस्ट का चुनाव करते हैं कि आवश्यक सीमन स्ट्रा किस कैनिस्टर में है। अनावश्यक रूप से दूसरे कैनिस्टरों को ऊपर न उठायें।
  • आवश्यक कैनिस्टर को फ्रास्ट लाइन से ऊपर न उठायें जोकि स्ट्रा की दीवार से उठायें अगर दो स्ट्रा की आवश्यकता हो तो एक बार में दो स्ट्रा निकाल सकते हैं। किन्तु अधिक स्ट्रा एक साथ न निकालें। केनिस्टर को अधिक समय तक उपर उठाकर न रखें व सिलैण्डर के ढक्कन को बिना स्ट्रा के निकालने के तुरन्त बाद बन्द कर दें।
  • सीमन स्ट्रा के दोनों किनारे अलग-अलग प्रकार के होते हैं। एक किनारा लैब एण्ड कहलाता है एवं दूसरा फैक्ट्ररी एण्ड। फैक्ट्ररी एण्ड पर टिक सकने वाली सुई लगी रहती है।
  • स्ट्रा को थांइग फ्लास्क में डालने से पूर्व लैब एण्ड पकड़ कर एक दो बार हल्का सा झटना देते हैं, जिससे फैक्ट्ररी एण्ड पर लगी तरल नत्र जन गैस अलग हो जाती है।
  • सीमन स्ट्रा को थाइंग फ्लास्क में कम से कम समय में ही डाल दें एवं कम से कम 30 सेकेण्ड से 60 सेकेण्ड तक उसमें रहने दें। अधिक समय तक पानी में रहने पर कोई हानि नहीं होती है किन्तु स्ट्रा का उपयोग 20 मिनट के अन्दर अवश्य कर लें।
  • एक बार थाइंग करने के उपरान्त स्ट्रा को किसी भी दशा में कन्टेनर में दुबारा न रखें।
  • थांइग करने के बाद एन्टीमन स्ट्रा को 37ºC से नीचे ने जाने दें एवं बर्फ व ठण्डे पानी में कदापि न डालंे।
और देखें :  बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण का समापन

गन लोडिंग

स्ट्रा को थांइग फ्लास्क से निकालकर लैब एण्ड किनारे से पकड़ लेते हैं एवं ऊपर से नीचे तक एक बार पेपर टाॅबल से पोंछते है। फिर दूसरे किनारे से पकड़कर एक बार फिर से पोेंछते हैं एवं फैक्ट्ररी एण्ड से स्ट्रा को पकड़ते हैं। अत्यधिक रगडने से बचाते हैं। ए.आई. गन को बाक्स से निकाल कर सामन्य तापक्रम पर लाते हैं एवं प्लंजर को 12-18 सेमी तक बाहर निकालते हैं एवं स्ट्रा की गन में फैक्ट्ररी एण्ड की तरफ से डालते हैं। गन का आंख की सतह पर सीधा रखते हुये गन से 10 मिमी ऊपर लैब एण्ड को सीधे कोण पर बिना पिचकाये हुय डालते हैं।

उचित सीथ को पहचान कर चुनकर, उसके फटे किनारे को पकड़ कर गन की वैरल पर चढ़ाते हैं एवं सीथ के अन्दर पड़े लौकिंग रिंग में स्ट्रा को फैलाते हयु घुमाकर फिट करते हैं। जिससे कि प्लंजर को पुश करते समय सीमन गन व सीथ के बीच में लीक न हो।

  • प्लंजर को थोड़ा सा स्ट्रा के अन्दर पुश करें, जिससे सीथ की बूंद किनारे पर दिखाई पड़ जाये।
  • लोडिंग गन को यथा शीघ्र उपयोग कर लेना चाहिए।
  • ए.आई. के समय धीरे-धीरे पुश करें, थूकने के सामान तेजी के साथ पुश न करें।
  • ए.आई. के उपरान्त सीथ गन से निकाल कर नष्ट कर दें एवं पुनः प्रयोग में न लायें। सही स्थिति में स्ट्रा को सीथ के साथ ही बाहर निकल जाना चाहिए।
  • अगर ए.आई. के दौरान गन में पशु से स्त्राव, मूत्र या गोबर लगता है तो गन को सफाई के उपरान्त ही वापस रखें।
और देखें :  सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में "मैत्री" के 90 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन

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