पशुओं में अफलाटॉक्सिकोसिस: कारण एवं निवारण

4.4
(83)

पशुओं को बचा हुआ सड़ा,बासी खाना देना तथा कवकअफलाटॉक्सिकोसिस/ फफूंदी लगी हुई चीजें खिलाना एक आम बात है। यह कवक/ फफूंदी माइकोटॉक्सिंस उत्पन्न करती है जो मनुष्य व पशुओं के लिए अत्यंत हानिकारक है। अक्सर यह देखा गया है कि जो अनाज मनुष्य के उपयोग हेतु उचित नहीं माना जाता है जिसमें फफूंद लगा होता है ऐसे अनाज को पशुओं को खिलाने से पशुओं में अफलाटॉक्सिकोसिस हो जाती है।

कारण

एस्पेरजिलस की विभिन्न प्रजातियों विशेषकर एस्पेरजिलस फलेवस नामक कवक/ फफूंदी से अत्यंत विषैला पदार्थ अफलाटॉक्सिन उत्पन्न होता है। यह चार प्रकार का होता हैं और पानी में नहीं घुलता हैं तथा इन पर गर्मी का कोई विशेष असर नहीं होता है। मूंगफली, कपास के बिनौले तथा कुछ अन्य प्रकार के दानों में कवक/ फफूंदी द्वारा अफलाटॉक्सिन बनता है। इसका संक्रमण फसल काटने से पहले, फसल काटने के बाद, दाने को भंडारित करते समय तथा कई बार मौसम में आई अचानक नमी व बरसात के कारण हो सकता है।

लगभग सभी तरह के पशु पक्षी अफलाटॉक्सिन से प्रभावित हो सकते हैं परंतु प्रजाति, नस्ल, लिंग, उम्र तथा आहार के आधार पर इसका प्रभाव कम या अधिक हो सकता है। बतख एवं मुर्गियॉ, सबसे अधिक प्रभावित होती है। यह शरीर में सबसे ज्यादा यकृत को नुकसान पहुंचाता है जिससे पशु पक्षी की मृत्यु भी हो सकती है। कुत्तों में यकृत का आकार बहुत बड़ा हो जाता है एवं कभी-कभी यकृत गल जाता है।

और देखें :  पशुओं के संक्रामक रोग लक्षण एवं रोकथाम

रोग के लक्षण

  • भूख कम लगना पशु की वृद्धि रुक जाना एवं दूध में कमी।
  • सुस्ती, दस्त में रक्त का आना, कमजोरी तथा एनीमिया।
  • भैंसों में पीलिया तथा गायों में मस्तिष्क के लक्षण पाए जाते हैं।
  • अंधापन, गोल घेरे में चलना, तड़पना एवं दिमागी लक्षण।
  • कुत्तों के पेट में पानी भर जाना तथा अधिक मृत्यु दर हो सकती है।

निदान

  • इतिहास द्वारा: सड़ा गला कवक/ फफूंदी लगा हुआ आहार।
  • लक्षणों एवं प्रयोगशाला परीक्षण द्वारा।

उपचार

शरीर में फफूंदी द्वारा पैदा किए जाने वाले अफलाटॉक्सिन के असर को कम करने का प्रयास करना चाहिए जो इस प्रकार किया जा सकता है-

  • पशु के आहार में लिवर टॉनिक, प्रोटीन एवं मेथियोमीन दे।
  • पशु को दिए जाने वाले चारे- दाने को कम से कम दो-तीन दिन तक धूप में सुखाएं।
  • फफूंदी नाशक औषधियों जैसे परोपियोनिक एसिड, कैल्शियम प्रोपियोनेट 2 से 8 किलोग्राम प्रति टन, आहार में मिलाकर खिलाएं।
और देखें :  मादा पशुओं में प्रसव के पहले होने वाला गर्भपात रोग

नियंत्रण

  • पशु को जांच परख कर आहार दें।
  • चारे-दाने को वैज्ञानिक ढंग से काटे, सुखाएं तथा भंडारित करें।
  • चारे-दाने के यातायात के समय विशेष ध्यान रखें।
  • समय-समय पर पशु आहार की गुणवत्ता की जांच कराएं।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  दुधारू पशुओं में बाई-पास वसा आहार तकनीक एवं उससे लाभ

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.4 ⭐ (83 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*