दुधारू पशुओं में ढेलेदार त्वचा रोग (लंपी स्किन डिसीज) कारण एवं निवारण

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लंपी स्किन डिसीज अर्थात एल.एस.डी. गोवंश पशुओं में होने वाला विषाणु जनित अत्यंत संक्रामक रोग है। यह पॉक्स परिवार के विषाणु जिससे अन्य पशुओं में पाक्स अर्थात माता रोग होता है। पहली बार वर्ष 1929 में लंपी स्किन वायरस जिंबाब्वे में दुधारू पशुओं में पाया गया था एवं वर्ष 1949 तक यह बीमारी पूरे दक्षिण अफ्रीका के पशुओं में फैल गई थी । पशु विज्ञानियों ने भारत में इस विषाणु की पहली बार पहचान अगस्त 2019 में उड़ीसा में की थी। वातावरण में गर्मी एवं नमी के बढ़ने के कारण देश के विभिन्न प्रदेशों जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र,पश्चिम बंगाल, दिल्ली व हरियाणा के साथ-साथ हमारे क्षेत्र उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भी पाया जा रहा है।

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संक्रमण फैलने का कारण

स्वस्थ पशुओं को यह बीमारी एलएसडी संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से व उनके वाहक जैसे मक्खी, मच्छर, कलीली (Ticks) एवं पशु से पशु का संपर्क पशु की लार आज दे तेजी से फैलता है । यह विषाणु पशुओं की विषाणु जनित बीमारी है जो मनुष्य में नहीं फैलती है । एलएसडी के कारण दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन एवं अन्य पशुओं में उनकी प्रजनन क्षमता एवं कार्य क्षमता कम हो जाती है।

लंपी स्किन डिसीज

लक्षण

1 से 2 दिन तक तेज बुखार लगभग 104 से 105 डिग्री फारेनहाइट तक के चलते पशु चारा खाना भी छोड़ देते हैं। आंख व नाक से पानी बहने लगता है और सांस लेने में कठिनाई होती है, उपचार न मिलने की दशा में तकरीबन 10 से 15 दिन पश्चात पशु की मृत्यु हो सकती है । शरीर एवं पैरों में सूजन शरीर में जगह-जगह गांठे विशेषकर सिर, गर्दन, अंडकोष और योनि मुख) एवं चकते बन जाते हैं । गांठ अर्थात गठान के झड़कर गिरने के पश्चात घाव का बनना।

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उपचार

क्योंकि एल एस डी एक विषाणु जनित रोग है तथा इसका टीका एवं रोग विशेष की औषधि ना होने के कारण पशु चिकित्सक के परामर्श से लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है। बुखार की स्थिति में पेरासिटामोल सूजन एवं चर्म रोग की स्थिति में एंटी इंफ्लेमिट्री एवं एंटीहिस्टामिनिक औषधियों तथा द्वितीयक जीवन संक्रमण को रोकने हेतु 3 से 5 दिन तक प्रतिजैविक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। आईवरमैक्टिन 1 मिली प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार के अनुसार दे तथा घाव पर लगाने हेतु टॉपीक्योर स्प्रे का प्रयोग करें। सहायक उपचार में मल्टीविटामिन की औषधि भी दी जाती है।

बचाव

इस प्रकार की बीमारियों का बचाव उपचार से बेहतर है। संक्रमित पशुओं को स्वास्थ्य पशुओं से अलग रखें एवं पशु तथा पशुघर में टिक नाशक औषधि का उपयोग करें। डॉक्टर सोलंकी के अनुसार यह बीमारी विषाणु जनित है एवं कैपरी पॉक्स के परिवार का विषाणु है। जो संक्रमित पशु से दूसरे स्वस्थ पशु में फैलता है इसलिए पशुपालकों को हिदायत दी जाती है कि वे पशुओं में शारीरिक दूरी बनाएं और उन्हें समूह में चराने ना ले जाएं।

लंपी स्किन डिसीज का आर्थिक प्रभाव

एलएसडी उच्च रुग्णता परंतु कम मृत्यु दर के साथ देखा जाता है। झुंड के 40% तक पशु संक्रमित हो सकते हैं और मृत्यु दर 10% तक जा सकती है। इस रोग से दुग्ध उत्पादन में कमी स्थाई या अस्थाई हानि हो सकती है। प्रजनन झुंड में प्रजनन क्षमता का अस्थाई या स्थाई नुकसान भी हो सकता है। गर्भपात के साथ-साथ त्वचा को स्थाई नुकसान।

पशुपालकों से अपील

एलएसडी रोग में पशु मृत्यु दर अत्यंत न्यून  है। पशु पालकों से विशेष आग्रह है की एलएसडी से भयभीत न होकर बताए जा रहे तरीकों से पशुओं का बचाव व उपचार करावे। विशेष परिस्थितियों में निकटतम पशु चिकित्सक से तत्काल संपर्क करें। यह एक वेक्टर जनित अर्थात( मच्छर, किलनी) बीमारी है। गाय भैसों का दूध अच्छी तरह उबालकर प्रयोग में ले सकते हैं। इससे मनुष्य को कोई हानि नहीं पहुंचेगी। यह बीमारी मुख्य रूप से पशु के आर्थिक मूल्य को विशेष रूप से प्रभावित करती है।

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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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