पशुओं में होने वाले दुग्ध ज्वर के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव

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दुग्ध ज्वर/ हाइपोकैल्सीमिया
दुग्ध ज्वर एक चपापचई रोग है जो गाय भैंस में ब्याने के 2 से 3 दिनों के अंदर ही होता है परंतु ब्याने के पूर्व या अधिकतम उत्पादन के समय भी हो सकता है। पशु के रक्त में और मांसपेशियों में कैल्शियम की भारी कमी इसका मुख्य कारण होता है। शरीर में रक्त का प्रवाह काफी कम व धीमा हो जाता है अंत में पशु काफी सुस्त होकर लगभग बेहोशी की अवस्था में चला जाता है। पशु एक ओर पेट की तरफ गर्दन मोड़ कर बैठा रहता है । इसे दुग्ध बुखार कहते हैं परंतु इसमें उसके शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है इस कारण शरीर ठंडा पड़ जाता है। सामान्य रूप से गाय भैंस में सिरम कैल्शियम का स्तर 10 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है जब यह स्तर 5 से 7 मिलीग्राम/ 100 मिलीलीटर से नीचे गिर जाता है तो दुग्ध ज्वर के लक्षण प्रकट होते हैं। यह अधिक दूध देने वाली 6 से 10 वर्ष की उम्र की गायों तथा भैंसों में तीसरे से सातवें ब्यात में अधिक होता है। यह प्रायः ब्याने के 72 घंटे के अंदर होता है परंतु ब्याने के दसवें दिन के आसपास भी हो सकता है जो अधिक गंभीर होता है। कुछ पशुओं में ब्याने के बाद दूसरे व तीसरे महीने में भी दुग्ध ज्वर के लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं जब पशु का दूध उत्पादन अधिक होता है। गाय भैंस के अतिरिक्त यह रोग भेड़ बकरियों में भी पाया जाता है। लंबी दूरी के यातायात के बाद एवं अचानक आहार की मात्रा एवं गुणवत्ता में कमी आदि से भी इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं। गोवंश में जर्सी गाय में यह अधिक होता है।

कारण
रक्त के सिरम कैल्शियम के स्तर में कमी से दुग्ध ज्वर होता है। रक्त में कैल्शियम की कमी तीन प्रमुख कारणों से होती है :-

  1. पशु के ब्याने के बाद अधिकांश कैल्शियम कोलोस्ट्रम के साथ शरीर से बाहर आ जाता है क्योंकि कोलोस्ट्रम में रक्त से 12 से 13 गुना अधिक कैल्शियम होता है।
  2. ब्याने के बाद अचानक कोलोस्ट्रम में कैल्शियम निकल जाने के कारण हड्डियों से शरीर को कैल्शियम शीघ्रता से नहीं मिल पाता है।
  3. यदि ब्याने के बाद पशु को कम या असंतुलित आहार दिया जाए तो रूमेन और आंतों में भी, कम आहार होने से यह कम सक्रिय रहेंगे और कैल्शियम का अवशोषण भी कम होगा। थके हुए या भूखे पशु में दुग्ध ज्वर के लक्षण शीघ्र प्रकट होते हैं।

दुग्ध ज्वर तीन अवस्थाओं में होता है:-

  1. ब्याने से पहले गर्भकाल के अंतिम दिनों में तथा ब्याने के दौरान।
  2. पशु के ब्याने के 72 घंटे के अंदर दुग्ध ज्वर होता है लेकिन कभी-कभी ब्याने के बाद 10 दिन के अंदर भी हो सकता है।
  3. ब्याने के 6 से 8 सप्ताह बाद भी दुग्ध ज्वर हो सकता है।
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शरीर में मांसपेशियों में तनाव बनाए रखने के लिए कैल्शियम आवश्यक है। पशु के शरीर के रक्त में कैल्शियम मैग्नीशियम का अनुपात 6:1होता है, और इस अनुपात में बदलाव आते ही इनकी कमी व बढ़ोतरी के लक्षण प्रकट होते हैं। इनमें भी तीन स्थितियां हो सकती हैं:-

  1. कैल्शियम की कमी और मैग्नीशियम की अधिकता से पशु में लकवा व नशे की हालत होती है।
  2. कैल्शियम की कमी और मैग्नीशियम सामान्य मात्रा में होने पर अधिकतर समय पशु बैठा रहता है और मुश्किल से खड़ा हो पाता है। लकवा सी हालत में कामा जैसी स्थिति हो जाती है।
  3. कैल्शियम और मैग्नीशियम दोनों की कमी होने से चारों पैरों में टिटनेस के लक्षण तथा नीचे लेटी हुई अवस्था में उत्तेजना होती है।

लक्षण
इस रोग के लक्षणों की तीन अवस्थाएं होती हैं:

1. ब्याने से पूर्व उत्तेजित अवस्था

उत्तेजना, टिटनेस जैसे लक्षण तथा अधिक संवेदनशीलता। सिर व पैरों में अकड़न आ जाती है। पशु चारा दाना नहीं खाता है तथा चलने फिरने की अवस्था में नहीं होता है। सिरको इधर-उधर हिलाना। जीभ बाहर लटकी होना एवं दांत किटकिटाना। तापमान सामान्य से हल्का बढ़ा हुआ। पिछले पैरों में अकड़न आंशिक लकवा जैसी स्थिति के कारण पशु गिर जाता है।

2. गर्दन मोड़ कर बैठी हुई अवस्था

पशु अपनी गर्दन को एक और पेट की ओर मोड़ कर निढाल सा बैठा रहता है। इसमें पशु लेटे रहने की वजह सीने वाले भाग के सहारे बैठा रहता है। थूथन सूखा होता है पैर ठंडे पड़ जाते हैं और शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है। खड़ा नहीं हो पाता है आंखें सूज जाती हैं आंखों की पुतलियां फैलकर चौड़ी हो जाती हैं। गुदा की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती है। हृदय गति बढ़कर लगभग 80 प्रति मिनट हो जाती है परंतु हृदय की आवाज काफी कम सुनाई देती है। नाड़ी की गति भी कमजोर पड़ जाती है। शिरा में दबाव कम होने से जुगुलर शिरा भी मुश्किल से पकड़ में आती है इसलिए इंट्रावेनस इंजेक्शन भी मुश्किल से लगता है। रूमेन की गति काफी कम हो जाती है जिससे कब्ज की शिकायत हो जाती है।

3. लेटे रहने की अवस्था

पशु सीने के सहारे बैठे रहने की बजाए बेहोशी की हालत में लेटी अवस्था में रहता है और खड़ा भी नहीं हो पाता है। शारीरिक तापमान काफी कम हो जाता है नाड़ी और हृदय की गति भी महसूस नहीं हो पाती है । बैठे रहने के कारण अफरा भी हो जाता है। मांसपेशियों में लकवा होने के कारण मूत्र भी नहीं आता है या बहुत कम आता है। इसमें उपचार जितना जल्दी हो सके उतना ही अच्छा है यदि समय पर उपचार नहीं मिलता है तो ह्रदय फेल होने से पशु की मौत 12 से 24 घंटे में हो जाती है। यदि कैल्शियम के साथ-साथ मैग्नीशियम की भी कमी होती है तो टिटनेस तथा उत्तेजना के लक्षण दिखाई पड़ते हैं ।

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निदान
ब्याने के बाद पशु की लकवा जैसी स्थिति तथा सुस्त रहने के आधार पर। तापमान सामान्य से कम होना लेटे रहने की अवस्था खड़ा ना हो पाना मूत्र तथा गोबर का रुक जाना। रोग की निश्चित पहचान पशु को इंट्रावेनस कैल्शियम इंजेक्शन देने से कंफर्म हो जाता है।

उपचार
उपचार जितना जल्दी हो सके करना चाहिए क्योंकि देरी होने से एक बार यदि पशु जमीन पर लेट जाता है तो मांस पेशियों का लकवा हो जाता है और डाउनर्स कॉउ सिंड्रोम हो जाता है। जब तक उपचार मिले पशु यदि लेटा हुआ है उसे सहारा देकर बैठाना चाहिए। पशु के नीचे भूसा बोरी या पुराने बिछावन का सहारा रखना चाहिए। दुग्ध ज्वर की प्रारंभिक अवस्था में इंट्रावेनस कैलशियम देने से जादुई ढंग से पशु जल्दी उठ खड़ा होता है। देरी होने पर दो तीन गुना अधिक कैल्शियम व अन्य सहयोगी औषधि देने के बावजूद उठ नहीं पाता है।

इंजेक्शन कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट 25%- 450ml 250ml इंट्रावेनस तथा 200ml सबक्यूटेनियस, विधि से देना चाहिए । 50- 50ml सबक्यूटेनियस, विधि से गर्दन के दोनों तरफ तीन से चार स्थानों पर लगानी चाहिए। कई बार तेज गति से इंट्रावेनस कैलशियम देने या अधिक मात्रा में कैल्शियम देने से रिएक्शन हो जाता है। हृदय गति बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में 10% मैग्निशियम सल्फेट सलूशन इंट्रावेनस या सबकूटेनियस देना चाहिए। कभी-कभी तेज गति से इंट्रावेनस कैलशियम देने से पशु की मौत भी हो जाती है इसलिए यदि पशु इंट्रावेनस देने में सहयोग कर रहा है तो इंट्रावेनस कैल्शियम धीरे-धीरे देना चाहिए। कैल्शियम हृदय की मांसपेशियों की गति को तेज करता है। ठंडी बोतल से कैल्शियम को इंट्रावेनस नहीं देना चाहिए बल्कि इसको पहले शरीर के तापमान के बराबर करने के लिए थोड़ी देर हल्के गुनगुने पानी में रखना चाहिए। जब कैल्शियम के साथ मैग्नीशियम की भी कमी हो तो कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट के स्थान पर कैल्शियम मैग्नीशियम बोरोग्लूकोनेट देना चाहिए इसके लिए  मायफेक्स दें।

यदि कीटॉसिस की भी संभावना है तो 25% डेक्सट्रोज 500 से 1000 एमएल इंट्रावेनस दें। उपरोक्त उपचार देने से पशु को डकारे आती हैं। पेट की मांसपेशियां गति करने लगती हैं। हृदय की आवाज बढ़ जाती है तथा जुगुलर वेन भी उभर आती है। सूखे थूथन पर पसीना आ जाता है तथा हल्की लार गिरती है।। रूमेन की गति बढ़ने से पशु जुगाली करने लगता है। चिकनी म्यूकस में लिपटी हुई मिंगनी के रूप में गोबर आता है। अंत में पशु सामान्य रूप से खड़ा होकर जुगाली करने लगता है।

सहायक उपचार
पशु की गंभीर स्थिति में सोडियम एसिड फास्फेट 25 ग्राम नॉरमल सलाइन या डेक्सट्रोज फ्लूड के साथ इंट्रावेनस दे। यह रक्त के पीएच को कम करता है तथा शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाता है।

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इंजेक्शन मैग्निशियम सल्फेट 10 से 20% घोल 200 से 300 एम एल सबक्यूटेनियस विधि से देना चाहिए। रूमेन की गति नहीं होने तथा परिचित होने के कारण पशु गोबर भी नहीं करता है ऐसी स्थिति में गुदा में हाथ डालकर गोबर निकालना चाहिए। यदि पशु अधिक देर बैठा या लेटा रहता है तो अफरा हो जाता है अतः इंजेक्शन एंटीहिस्टामिन 10 से 15 एम एल इंटरमस्कुलर विधि से दें।

बचाव या रोकथाम
विटामिन डी की पूर्ति हेतु पशु को मौसम को देखते हुए कुछ समय धूप में भी रखना चाहिए।

ब्याने से 3 माह पूर्व अधिक कैल्शियम तथा फास्फोरस युक्त आहार खिलाने से इस रोग की संभावना नहीं रहती है। सूखी घास तथा चारा खिलाना भी लाभप्रद होता है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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  1. बहुत ही नवीन जानकारी जो कि पशुपालकों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी

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