शीत ऋतु/ सर्दियों में गर्भित पशुओं का प्रबंधन

4.6
(112)

गर्भित पशुओं को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  • निषेचन से 3 माह तक के गर्भित पशु
  • 3 माह से लेकर 6 माह तक के गर्भित पशु
  • 6 माह से ऊपर के गर्भित पशु
और देखें :  बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय ने मनाया अपना चतुर्थ स्थापना दिवस

उपरोक्त तीनों श्रेणियों के गर्भित पशुओं की आवश्यकताएं भी अलग-अलग होने के कारण इनका रखरखाव एवं पोषण में अंतर रखना अत्यावश्यक है। सर्दियों में इन सभी श्रेणियों के पशुओं की आवश्यकता बढ़ जाती है। इन सभी पशु का रखरखाव निम्न प्रकार से कर सकते हैं:

  • निषेचन के 2 महीने पश्चात पशु की गर्भ जांच एक योग्य पशु चिकित्सक से अवश्य करा लें।
  • प्रथम तीन महीनों में गर्भित पशुओं के ड्रोन का विकास धीमी गति से होता है अतः इन 3 महीनों में अलग से पशु आहार व्यवस्था में अधिक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • प्रथम त्रैमास में खनिज लवण और  प्रोटीन की थोड़ी मात्रा पशुओं के चारे में बड़ा  देनी चाहिए।
  • 3 से 6 माह तक के गर्भित पशुओं की आवश्यकता अपेक्षाकृत अधिक हो जाती है अतः इन पशुओं के लिए प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिंस की मात्रा को चारे में बढ़ा दें।
  • 5 से 6 माह के गर्भित पशुओं के आहार में 0.15 किलोग्राम पाचक प्रोटीन, 0.75 किलोग्राम संपूर्ण पाचक तत्व 10 से 12 ग्राम कैल्शियम 7 ग्राम फास्फोरस 30 आईयू विटामिन “ए” मिला देना चाहिए।
  • कैल्शियम की पूर्ति के लिए दाने में 2% कैलशियम कार्बोनेट मिलाएं।
  • गर्भावस्था के अंतिम समय में लगभग 7 से 8 महीने के उपरांत दूध देने वाले पशुओं का दूध धीरे-धीरे सुखा देना चाहिए जिससे कि वह अगले व्यात  में अधिक दूध दे सकें।
  • बच्चा देने  के 1 से 2 सप्ताह पूर्व गर्भित पशु को अच्छी गुणवत्ता के शीघ्र पाचक आहार जैसे चोकर, अलसी इत्यादि मिला कर देना चाहिए।
  • गर्भकाल के अंतिम 2 महीनों में पशुओं को समतल स्थान पर बांधे अन्यथा गर्भ में पल रहे बच्चे को खतरा हो सकता है साथ ही साथ बच्चेदानी में ऐठन लगने की संभावना भी बढ़ जाती है।
  • सर्दियों से बचाने के लिए पशुओं के बाड़े में खुले हुए स्थान अर्थात खिड़की इत्यादि पर जूट के बोरे लगाएं।
  • पशुओं का बिछावन प्रतिदिन बदलें। बिछावन में धान का पुआल धान की भूसी इत्यादि का प्रयोग कर सकते हैं।
  • पशुओं को ऐसी जगह बांधे जहां पर उसके फिसल कर गिरने का डर ना हो।
  • ब्याने के 1 माह पूर्व पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें।
  • सर्दियों में गर्भित पशुओं को दोपहर के समय ताजे पानी से ही नहलाएं।
  • पशु के बीमार होने पर पशु चिकित्सक की सलाह के बिना कोई भी औषधि न दें।
और देखें :  Artificial Insemination (AI) कृत्रिम गर्भाधान के लाभ

बच्चा देने के बाद का आहार एवं रखरखाव

  • बच्चा देने के तुरंत बाद पशु को कार्बोहाइड्रेट युक्त चारा खिलाएं।
  • तैलीय खली बच्चा देने के 3 से 4 दिन बाद तक ना दें।
  • दाने की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएं।
  • दूध की मात्रा के अनुसार पशु का राशन भी बढ़ाएं।
  • पशु अगर ब्याने के 10 से 12 घंटे बाद भी जेर ना गिराए तो पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
  • ब्याने के आधे घंटे के अंदर नवजात बच्चे को खीस/ कोलोस्ट्रम अवश्य पिलाएं इससे पशु जेर भी जल्दी गिरा देता है और साथ ही साथ नवजात बच्चे का प्रतिरक्षा तंत्र भी मजबूत होता है।
  • ब्याने के बाद पशु को हल्के गर्म पानी से ही नहलाएं।
  • पशुओं के थन के आसपास की जगह को समुचित रूप से साफ करें।
  • एक ही बार में पशु का सारा दूध न निकाले कम से कम 3 से 4 बार में दूध निकालना चाहिए।
  • नवजात बच्चे और पशु दोनों को गर्म स्थान पर रखें तथा बिछावन प्रतिदिन बदले
  • ब्याने के 1 से 2 सप्ताह तक पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें।
  • समय-समय पर पशु चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेते रहें।
और देखें :  शुष्क व पारगर्भित मादाओं का प्रबन्धन

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.6 ⭐ (112 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*