मुर्गीपालन ग्रामीण गरीबों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने,परिवार की आय बढ़ाने, ग्रामीण इलाकों में भूमिहीन, छोटे-सीमांत किसानों और महिलाओं के बीच विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। ग्रीष्म ऋतु का समय मुर्गी पालको के लिए सबसे कठिन समय होता है। क्योंकि मुर्गी पालकों को काफ़ी आर्थिक हानि होती है। जिससे मुर्गियों की उत्पादन क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मुर्गी का सामान्य तापमान 41 डिग्री सेल्सियस होता है जब वातावरण का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना शुरू होता है मुर्गियों की सामान्य शारीरिक स्थिति पर असर पड़ना शुरू हो जाता है जिससे अंदरूनी सिस्टम जैसे सांस, दिल की धड़कन, खून की रवानी आदि सब प्रभावित होते हैं। मुर्गियों मे ग्रीष्म ऋतु के समय हीटस्ट्रेस की स्थिति आ जाती हैं। इसलिए मुर्गी पालकों को ग्रीष्म ऋतु में विशेष ध्यान रखना चाहिए।
मुर्गियों में हीट स्ट्रेस
हीट स्ट्रेस मुर्गियों में अधिक तापमान के कारण होती है। मुर्गीया जो दाना खाती हैं उसके पाचन में और अवशोषित होने के बाद शरीर के विभिन्न अंगो में कई तरह की रासायनिक क्रियाए होती हैं जो जीवित रहने और बढ़ने के लिए आवश्यक हैं। इन रासायनिक क्रियाओ से निरंतर उष्मा निकलती रहती है जो मुर्गी के शरीर के तापमान (41डिग्री सेल्सियस) को बनाकर रखती है परंतु अधिक उष्मा को मुर्गी के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। इसके लिए मुर्गी मुह खोल कर तेज़ी से सांस लेती है जिसे पैंटिंग (Panting) कहते हैं यह शरीर से गर्मी निकालने का मुख्य तरीका है।
मुर्गियों में हीट कम करने के तरीके
मुर्गियों में पसीनें की ग्रंथिया नहीं होने के कारण या बहुत कम होने के कारण मुर्गी के शरीर की अतिरिक्त हीट को चार प्रकार से कम करने की कोशिश की जा सकती हैं।
1. संवहन
इसमे मुर्गी या अपने अंदर उत्पन हीट (गर्मी) को चारो तरफ मौजूद ठंडी हवा के ज़रिए से निकाल देती है। इसके लिए मुर्गीया अपने पँखो को नीचे की तरफ गिरा लेती है और कभी कभी तेज़ी से फड़फडाती है।
2. विकिरणों द्वारा
इसमे मुर्गियों के शरीर की उष्मा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगो के रूप में शरीर से बाहर निकलती है। यह मुर्गियों का तापमान कम करने में ज़्यादा उपयोगी नही होती हैं।
3. चालन विधि द्वारा
इस स्थिति में जब मुर्गी या किसी ठंडी वस्तु के संपर्क में आती है तो उष्मा गर्म से ठंडी वस्तु की तरफ स्थानातरित होती है। जैसे ठंडी ज़मीन या पानी का छिड़काव।
4.वाष्पीकरण शीतलन
इसमे शरीर की गर्मीजो खून से प्रवाहित होकर मुह तक आती है और मुह की झिल्ली से निकलती है, यहाँ गर्मी पानी को वाष्पिकृत करती है।
इस जानकारी का व्यावहारिक या प्रायोगिक उपयोग यह है की बाद की दो प्रक्रियायें चालन और वाष्पीकरण शीतलन मुर्गियों को हीट स्ट्रोक से बचाने के लिए काम आतीहैं। यदि मुर्गीपालक नियमित रूप अधिक गर्मी के समय में ठंडी हवा का प्रयोग करें तो काफी हद तक राहत मिल सकती है। ड्रिंकर में पानी का लेवल बढ़ा देना चाहिए और अगर पानी की टैंकी डायरेक्ट धूप में रखा हो तोउस मे पानी जमा न होने दें और पानी का तापमान 20 डिग्रीसेल्सियस से अधिक नहीं जाना चाहिए। पक्षी अपने आपको इससे गीला करते रहते हैं,तो जब कोई दवाई पानी में दें तो ड्रिंकर में पानी का लेवल कम रखें।
मुर्गियों में हीट स्ट्रेस के प्रभाव
- मुर्गियों मे गर्मियों के कारण अंडे के कवच कमज़ोर और लचीले हो जाते हैं।
- अंडे का एल्ब्युमिन कम हो जाता है।
- बढ़वार पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
- मुर्गियों मे उत्पादन कम हो जाता हैं।
- मुर्गियों में दाने की खपत कम हो जाती है।
- मुर्गियों में गर्मी के कारण मृत्यु दर बढ़ जाती है और एस्ट्रोजन की मात्रा कम हो जाती है।
मुर्गियों में हीट स्ट्रेस प्रबंधन
आहार
आहार मुर्गियों को सुबह और शाम के समय में दिया जाना चाहिए। भर पेट भोजन किए हुए पक्षियों की तुलना में भूखे पक्षियों का मेटाबोलिक तापउत्पादन 20-70 प्रतिशत कम होताहै, साथ ही थर्मोजेनिक प्रभाव 35 डिग्री सेल्सियस पर लगभग 10 घंटे तक रहता है, और 20 डिग्री सेल्सियस पर केवल 2 घंटे के लिए होता है,इसलिए,दोपहर में भोजन नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि पाचन के ताप शरीर का तापमान बढ़ाताहै। पाचन से उत्पन गर्मी को कम करने के लिए कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ सिंथेटिक अमीनो एसिड (0.5प्रतिशत से प्रोटीन कम करें) की तुलना में वसा के उपयोग बढ़ा देना चाहिए। भोजनमें एंटीऑक्सिडेंट्स जैसे विटामिन ई(250 मिलीग्राम/ किग्रा फीड)और विटामिन सी(400 मिलीग्राम/ किग्रा)को शामिल करने से गर्मी के दौरान बढ़ा मृत्युदर कम होता है। ताजा और ठंडा पानी पक्षी के लिए लगातार उपलब्ध रहना चाहिए। डेक्सट्रोज़ और इलेक्ट्रोलाइट्स (सोडियम,पोटेशियम, क्लोराइड इत्यादि)जैसी दवाएं अधिक गर्मी में शरीर के आयनिक संतुलन को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।
पानी
मुर्गियों में जो पानी की आवश्यकता आम दिनो फीड के मुकाबले में 2:1 होती है। हीट स्ट्रेस में पानी की खपत 4 गुना तक बढ़ जाती है हर समय ठंडे साफ पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करें Nipple Drinker में 70 ML पानी प्रति मिनट आना चाहिए। ब्रायिलर फार्म में पानी के बर्तनो की संख्या प्रति 40 पक्षी पर एक बर्तन कर देनी चाहिए। पानी में दिन में कम से कम एक बार इलेक्ट्रलाइट ज़रूर मिलाए।
मुर्गी आवास
मुर्गी आवास हमेशा पूर्व-पश्चिम दिशा में होना चाहिए, इससे हवा का संचालन ठीक रहता है,ठंडक के लिए निकास पंखे, छत पंखा, फॉगर्स आदि का उपयोग किया जा सकता है। जहां तक हो सके एक जगह पर पक्षियों का जमावड़ा नहीं होना चाहिए पक्षियों के लिए ज़रूरत से अधिक जगह होनी चाहिए। छत पर दिनमें 3-4 बार पानी छिडकने से शेड का तापमान 5 से 10 डिग्रीफ़ारेनहाइट तक कम हो जाता है। छत पर तिनकों/ घास-फूस के उपयोग से तापावरोधन बनाना चाहिए या चूने की एक अच्छी मोटी परत के साथ छत की पुताई कर देनी चाहिए।
- अच्छी गुणवत्ता वाले विषेष बाइंडर आहार का प्रयोग करना चाहिए।
- पेलेटिंग फ़ीड: मुर्गियों के भोजन की बर्बादी,पानी को गंदा करने और मुर्गियों में खाने के चयनात्मक व्यवहार को कम करता है।
- पेलेटिंग फ़ीड के उपयोग से फ़ीड की मात्रा को 15-18 प्रतिशत तक कम कर देता है।
- पेलेटिंग फ़ीड साल्मोनेला, ई.कोलाई, और मोल्ड के दुष्प्रभाव को कम करता है,और प्रसंस्करण के दौरान ट्रिप्सिन इनहिबिटर और गॉसीपोल जैसे विकास अवरोधकों को नष्ट कर देता है।
- बेचने के लिए या स्थानांतरण के लिए मुर्गियो को सिर्फ़ सुबह या शाम के समय में ही लेकर जाएँ।
- पानी में इलेक्ट्रलाइट देना अधिक प्रभावशाली होता है। इसके लिए एक लीटर पानी में6 ग्राम खाने का नमक,1.5 ग्राम पोटेशिम क्लोराइड,2.9 ग्राम नींबू रस,15 ग्रामगुड़ मिलाकर देना चाहिए।
- एक लीटर पानी में 1 ग्राम विटामिन सी और आधा-आधा ग्राम अश्वगंधा और कलोंजी मिला कर देने से और भी अनुकूल प्रभाव देखने को मिलता हैं।
- मुर्गीआवास की छत ज्यादा गर्म नहीं होने वाली चीज से बना हो जैसे कवेलू,घांसफूस,बांबू (बांस। अगर छत टीन की हैं तो ऊपर की सतह पर सफेद रंग लगवाना चाहिए।
- बाड़े के ईर्द गिर्द घांस के लॉन (क्यारियां) लगवाये तथा उन पर फुहार पद्धति सिंचाई करें तो आसपास के वातावरण का तापक्रम काफी कम होगा।
- अगर मुर्गियां सघन बिछाली पद्धति में रखी हैं तो भूसे को सबेरे शाम उलट-पुलट करें।
- दाने में (मॅश में) प्रोटीन की मात्रा बढ़ायें ताकि मुर्गियों के शरीर भार में,पोषण स्तर में और अण्डों का आकार, छिलका, वजन सामान्य रहें।
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