केन्द्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने आज गुजरात के राजकोट जिले के उपलेटा में सहजीवन (पशुचारण केंद्र) द्वारा आयोजित ‘सौराष्ट्र मालधारी सम्मेलन’ को संबोधित किया। “सौराष्ट्र में पशुपालन को प्रोत्साहन- संरक्षण एवं निर्वहन” की विषय – वस्तु वाले इस सम्मेलन में पशुओं की संकटग्रस्त नस्लों, विशेष रूप से गधों की हलारी नस्ल (प्रजनन पथ: जामनगर और गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले) के संरक्षण के बारे में विचार-विमर्श किया गया।
इस सम्मेलन में सहयोगी प्रयासों के लिए सभी हितधारकों की भागीदारी से लैस एक सलाहकार समिति के गठन; पशुओं के प्रजनन एवं स्वास्थ्य संबंधी देखभाल के लिए समर्पित बुनियादी ढांचे के साथ विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं को विकसित करने की जरूरत; दुग्ध आधारित अर्थव्यवस्था पर ध्यान देते हुए आजीविका से संबंधी रणनीतियों को बढ़ावा देने; मौसमी चराई और सीएफआर अधिकारों तक पहुंच के साथ हलारी नस्ल के गधों के प्रजनकों की कार्यकाल संबंधी सुरक्षा को बेहतर बनाने पर भी चर्चा की गई।
इस कार्यशाला में बड़ी संख्या में सामुदायिक संस्थानों से जुड़े पशुपालक समुदाय के प्रतिनिधियों, भारत सरकार के पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय के अधिकारियों, गुजरात सरकार के पशुपालन विभाग के अधिकारियों, नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर इक्विन्स (एनआरसीई) के वैज्ञानिकों; प्रमुख विशेषज्ञों और सिविल सोसाइटी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस कार्यक्रम के दौरान श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने सहजीवन द्वारा संकलित एक पुस्तक ‘पास्टोरल ब्रीड्स ऑफ इंडिया’ का विमोचन किया और सौराष्ट्र एवं कच्छ के मालधारियों के एक समूह द्वारा एक “अपेक्षा पत्र” साझा किया गया।
विभिन्न मालधारियों, विशेष रूप से हलारी नस्ल के प्रजनकों, कहमी और भगरी नस्ल के प्रजनकों और पांचाली दुम्मा नस्ल की भेड़ के प्रजनकों के साथ बातचीत करते हुए, केन्द्रीय मंत्री श्री रूपाला ने कहा कि राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) को पशुधन उत्पादन से जुड़ी प्रणालियों में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करने से जुड़ी सभी जरूरी गतिविधियों को कवर करने और सभी हितधारकों की क्षमता निर्माण के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह मिशन पशुओं के नस्ल संरक्षण की प्रक्रिया में समुदायिक भागीदारी और विभिन्न समुदायों की संलग्नता को प्रोत्साहित करते हुए पशुधन की संकटग्रस्त नस्लों के संरक्षण पर जोर देता है। श्री रूपाला ने कहा, “गधों की हलारी नस्ल के संरक्षण के लिए एक उपयुक्त रूपरेखा बनानी होगी।”
भारत सरकार के पशुपालन, मत्स्यपालन और डेयरी मंत्रालय में सहायक आयुक्त डॉ. देबोलीना मित्रा ने मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के संदर्भ में पशुचारण से संबंधित राष्ट्रीय एजेंडा पर चर्चा की। कामधेनु विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केलावाला ने इस कार्यशाला के परिप्रेक्ष्य को साझा किया।
गुजरात सरकार के पशुपालन विभाग की निदेशक डॉ. फाल्गुनी ठाकर ने पशुओं के नस्लों के संरक्षण और अन्य कार्यक्रमों से संबंधित प्राथमिकताओं के बारे में बात की। उन्होंने ‘भविष्य के लिए चार्टर: उपलेटा घोषणा’ पर भी चर्चा की। मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. श्याम जावर ने संरक्षण की प्रक्रिया में विभिन्न नवाचारों के बारे में बात की। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, आनंद के डॉ. नीलेश नई ने आजीविका से जुड़ी संभावनाओं और आगे की राह के बारे में चर्चा की।
इससे पूर्व, इस कार्यशाला में सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए, सहजीवन के कार्यकारी निदेशक डॉ. मनोज मिश्र ने कहा कि पशुपालकों ने एक महत्वपूर्ण अनुपात में भारत की पशुधन की विभिन्न नस्लों – आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 200 नस्लों में से 73 – को विकसित किया है। ये नस्लें बेहद खास हैं और सतर्क, लचीली, बलशाली एवं स्वतंत्र प्रकृति के कारण अपने चरवाहों के साथ एक सहजीवी संबंध में जुड़ी हुई हैं। गधों की हलारी नस्ल इसी किस्म की एक नस्ल है।
हलारी नस्ल का गधा अर्ध-शुष्क जलवायु वाले गुजरात के सौराष्ट्र इलाके के जामनगर और द्वारका जिले का एक महत्वपूर्ण पशुधन है। भरवाड़ और रबारी चरवाहे वैसे मुख्य समुदाय हैं जो इन गधों का उपयोग प्रवास के दौरान सामान ढोने वाले एक जानवर के रूप में करते हैं। ये पशुपालक नियमित रूप से एक जिले से दूसरे जिले में प्रवास करते हैं। आमतौर पर चरवाहा समुदाय की महिलाएं हलारी नस्ल के इन गधों की देखभाल करती हैं। जामनगर क्षेत्र के द्वारका में कुम्भार (कुम्हार) समुदाय भी इस जानवर का उपयोग मिट्टी के बर्तन बनाने के काम से जुड़ी गतिविधियों में करता है।
वर्तमान में सौराष्ट्र के हलार क्षेत्र के इन गधों का अस्तित्व खतरे में है और इनकी संख्या में आ रही गिरावट की प्रवृत्ति को रोकने के लिए इनके संरक्षण की दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। वर्ष 2015 में हलारी नस्ल के गधों और उसके रखवालों के एक सर्वेक्षण में इस नस्ल को पालने वाले 1200 व्यक्ति मौजूद पाए गए। हालांकि, हाल ही में 2021-22 में किए गए एक सर्वेक्षण में यह संख्या घटकर 439 लोगों तक पहुंच गई। हलारी नस्ल के गधों के रखवालों के साथ एक गहन सामूहिक चर्चा के बाद उनके समक्ष मौजूद विभिन्न चुनौतियां उजागर हुई हैं। इन चुनौतियों में प्रजनन के लिए हलारी नस्ल के नर गधों की अनुपलब्धता, (गधे के दूध पर आधारित) आजीविका को सुव्यवस्थित करने का कोई रास्ता नहीं होने के साथ – साथ हलारी नस्ल के गधों के पालकों को हतोत्साहित किया जाना प्रमुख है।
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