कामधेनु गौ-अभयारण्य गौशालाओं को आत्म-निर्भर बनाने का मॉडल बने

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मध्य प्रदेश गौपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड की कार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने आगर-मालवा जिले के सालरिया में स्थित कामधेनु गौ-अभयारण्य का निरीक्षण करने के साथ ही गतिविधियों की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि इस अभयारण्य में गौपालन और संवर्धन के लिये प्राथमिक एवं आधारभूत सुविधाएँ सहज सुलभ हैं। इनकी सहायता से युगानुकूल, सम-सामयिक और नवाचार से गौशालाओं को आत्म-निर्भर बनाने का मॉडल देश और विदेश में स्थापित करें।

गौवंश कभी अनार्थिक और अनुपयोगी नहीं होता

स्वामी अखिलेश्वरानंद ने कहा कि अभयारण्य में 1400 एकड़ भूमि, 3400 गौवंश, 24 गौवंश शेड, 85-85 घनमीटर के गोबर गैस प्लांट, वर्मी कंपोस्ट किट, नाडेप पद्धति से खाद बनाने के टांके, गोनाइल, गौमूत्र अर्क, गौघन वटी निर्माण इकाई हैं। इतना ही नहीं यहाँ प्रशासानिक, अनुसंधान, उत्पादन एवं विपणन, कृषक प्रशिक्षण भवन, विश्राम भवन, गौ-सेवकों के आवास आदि देश के गौ-संरक्षण एवं सेवा केन्द्रों के लिये अनुकरणीय और प्रेरणाप्रद हैं। सेवा गतिविधियों के आधार पर सर्वत्र संदेश दें कि “गौवंश कभी भी अनार्थिक और अनुपयोगी नहीं होता।”

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नाम के अनुकूल अभयारण्य को वन से आच्छादित करें

स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने प्रबंधन से कहा कि गौ-अभयारण्य को इसके नाम के अनुकूल गौवंश के साथ-साथ अरण्य (वन) से भी आच्छादित करें। विभिन्न क्षेत्रों से 1000 लोगों को आमंत्रित कर आम, नीम, जामुन, पीपल, बरगद, आँवला, कैथा, बिल्व, कदम्ब, बबूल, बाँस, शीशम, अमरूद, इमली, महुआ आदि के पौधे लगवायें। परिसर में पहले से ही 1000 गड्ढे, पौधे, खाद आदि की तैयारी कर लें। उद्यानिकी, वानिकी और औषधीय वृक्षों का पौध-रोपण प्राथमिकता से करें।

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वैज्ञानिक पद्धति से उत्तम नस्ल के देशी गौवंश तैयार करें

स्वामी जी ने कहा कि अभयारण्य में आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति के अनुसंधान आरंभ कर उत्तम नस्ल के भारतीय गौवंश को तैयार करें। अभयारण्य में गौवंश का 40 प्रतिशत दुधारु गाय और 60 प्रतिशत बेसहारा, निराश्रित और बीमार गायों को प्रश्रय दें।

गौशाला, गौ-अभयारण्य 8 बिन्दुओं का करें पालन

स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी ने कहा कि जिस गौसेवा केन्द्र में ये 8 आयाम होंगे, वे केन्द्र कभी कुप्रबंधन का शिकार नहीं होंगे। ये 8 आयाम हैं- गौवंश का आवासीय परिसर, संरक्षण और सेवा का भाव, गौ-संवर्धन, गौवंश का आहार, नस्ल सुधार, गोबर-गौमूत्र आधारित उत्पाद निर्माण, पंचगव्य औषधि निर्माण तथा गौ-चिकित्सा, गोबर गैस प्लांट, विद्युत एवं अन्य उत्पादन और कृषक प्रशिक्षण। उन्होंने कहा कि गौशालाओं में समय-समय पर संगोष्ठी, पर्व, सम्मेलन, पौध-रोपण होते रहना चाहिये।

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