पशुओं में जनन क्षमता को लम्बे समय तक बनाये रखना

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जनन क्षमता

गौ पशुओं में जनन क्षमता (यौवनारम्भ) जन्म से लेकर 24-30 माह गौ पशु में, व भैंस में 30-36 माह मे आ जाती है। जिससे दुधारु पशु के जीवन में ब्यॉत की संख्याओं का मूल्यांकन किया जाता है। जिसे दूध उत्पादन की दर मे भी आंकलन किया जाता है । पशुओं मे पशुओ के यौवन अवस्था मे जनन अंग क्रियाशील हो जाते है, जनन प्रक्रिया पशु के जीवन को, उसे मानव उपयोगी बनाती है। यदि कोई पशु पूर्ण बांझ होता है, तो उसे कोई भी पशुपालक अपने पास नही रखना चाहेगा ।  इसलिये दुधारु पशुओं में यौवन समयाअनुसार आ जाये और औसत समय तक बना रहे,  तो पशु पशुपालको के लिये पशु उपयोगी हो जाता है।

दुधारू पशुओं में गर्भ ठहराव होना पशुपालक भाइयों के लिए एक चुनौती होती है क्योंकि “आज की बछडी और पडिया कल की गाय/भैंस है,” पशुओं की प्रजनन क्षमता को ज्यादा तर उसके जीवन काल में पहले ब्यांत से लेकर अंतिम ब्यांत तक प्राप्त बछड़े या बछडियों के संदर्भ में ही देखा जाता है। यदि पशु कम उम्र में ही लगभग एक से दो/तीन वर्ष में यौवन प्रारंभ कर देता है, तो पशुपालकों के लिए औसत दूध प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है जिससे उसकी आमदनी बढ़ जाती है। अशिक्षित पशुपालकों को इस बारे में जानकारी के अभाव में उन्हें वांछित परिणाम नहीं मिल पाता हैं। तो वे हताश हो जाते हैं, यदि हताश होने के बजाय वे तकनीकी पशुपालन पर वे विशेष ध्यान दे, तो इस समस्या का समाधान आसानी से हो जायेगा।

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पशुओं मे जनन अंगो की सक्रियता न होने के कुछ मूल कारण हो सकते है, जैसे कि जनन अंगो का ठीक से विकास न हो पाना, बार-बार पशु का गर्भधारण हो पाने मे असफल होना, या फिर सांड के वीर्य का उपयुक्त न होना इत्यादि सम्भावनाये हो सकती हैं। जिससे पशु अनुउत्पादक हो जाता है तो पशुपालकों को नुकसान होता है। इस समस्या के निवारण हेतु पशुपालक भाईयो को पशुपालन के दौरान कुछ विशेष बातो पर ध्यान देने की आवस्यकता है।

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 जनन क्षमता व गर्भधारण के रखरखाव को बनाये रखने के सार्थक उपाय

  • पशुपालक भाइयों की बछिया या पडिया जब 2 वर्ष की हो जाती है तब पशुपालकों को उसके देखभाल पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि 30 महीने की उम्र तक वह गर्मी में नहीं आती है तो उन्हें पशुचिकित्सक से अवश्य जांच करवानी चाहिए।
  • जन्म के प्रारंभ से ही उन्हें उचित राशन देना चाहिए ताकि वे कम उम्र में वांछित शारीरिक भार प्राप्त कर सकें। उन पशुओं को आहार में हरे चारा का मिश्रण, खनिज मिश्रण साधारण नमक उचित मात्रा में अवश्य खिलाना चाहिए।
  • पशुओं के ब्याने के बाद वे ढाई से तीन महीने बाद यदि वे स्वतः ताव में नहीं आते हैं, तो उनकी जांच पशु चिकित्सकों द्वारा अवश्य करवाएं।
  • पशुओं के रहन-सहन पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए एवँ उन्हें आवश्यकता अनुसार अनुकूल वातावरण में रखे । पशु को टहलाकर उसे व्यायाम अवश्य करवाएं, जिससे उनके शरीर में रक्त का संचार भी ठीक से होता है।
  • पशुओ में उनके आंतरिक व बाह्य परजीवियो को खत्म करने के प्रयास अवश्य करें, समय समय स्नान कराये।
  • पशुओ को विभिन्न रोगों से दूर रखने के लिए उचित आहार व्यवस्था अपनाये। ऐसा करने से पशु स्वस्थ एवम् समय से गर्मी में आयेगा।
  • यदि पशु किसी भी प्रकार का असामान्य व्यवहार करता है तो उसे पशु चिकित्सक को दिखलाएं।

पशुपालक भाई समय-समय पर विशेषकर बढ़ते हुए पशुओ की देखभाल के लिए उन्हें आधुनिक पशुपालन की कार्यशैली का यदि वे प्रशिक्षण लेते रहेंगे, तो उन्हें और भी अधिक जानकारी मिल जाएगी, जिससे उन्हें पशुओ को उचित प्रकार से पालने में आसानी हो जाएगी।

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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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