बौद्धिक संपदा अधिकार पर कार्यशाला का आयोजन

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बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के संजय गांधी गव्य प्रौद्योगिकी संस्थान में बौद्धिक संपदा अधिकार पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के विशेषज्ञ के तौर पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के पेटेंट और डिजाइन आई.पी.आर के परीक्षक आशीष प्रभात उपस्थित थे।

कार्यशाला का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रामेशवर सिंह, निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंद्र कुमार और संस्थान के अधिष्ठाता डॉ. वीर सिंह राठौड़ ने किया। विषय पर प्रकाश डालते हुए संस्था के अधिष्ठाता ने कहा की पशु विज्ञान में बौद्धिक संपदा अधिकारों की भूमिका और महत्व बड़ी है, शैक्षणिक संस्थानों खासकर ऐसे संस्थाओं जहाँ पब्लिकेशन, प्रोजेक्ट और प्रोडक्शन पर कार्य किये जाते है वैसे संस्था में बौद्धिक संपदा अधिकार की भूमिका बहुत अहम है।

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इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रामेशवर सिंह ने कहा कि पशु विज्ञान और इससे संबद्ध क्षेत्र खाद्य और पोषण सुरक्षा की दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ऐसे में वैज्ञानिकों को जानकारी को लैब से लैंड तक किसानों और पशुपालकों तक ले जाने का दायित्व होता है जिसमें बौद्धिक संपदा का महत्व बढ़ जाता है। शिक्षण, अकादमिक, शोध और विकास के क्षेत्रों में पेटेंट की महत्ता व्यापक है। उन्होंने आगे कहा की भारत में अभी भी पेटेंट, ट्रेडमार्क, ज्योग्राफिकल इंडिकेशन इत्यादि बौद्धिक संपदा अधिकार में जागरूकता की कमी है और जो जागरूक है वो तकनीकी पेटेंट का उपयोग कर कमर्शियल लाभ लेने में नहीं चूकते। साथ ही अनावश्यक रूप में पेटेंट का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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कार्यशाला के विशेषज्ञ आशीष प्रभात ने कहा की जो चीज़े मूर्त है उनके संरक्षण और बचाव के लिए हम व्यवस्था कर सकते है मगर जो चीज़े अमूर्त है जिसे हम न देख सकते है न छु सकते है जो हमारी बौद्धिक उत्पति है उसे हम कैसे सुरक्षा दे सकते है, अपने बौद्धिक क्षमता से विकसित चीज़ो के सुरक्षा के लिए बौद्धिक सम्पदा कानून बने है, जिनमे डिज़ाइन, पेटेंट्स, ट्रेडमार्क, ज्योग्राफिकल इंडिकेशन, कॉपीराइट्स, सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड सर्किट्स लेआउट डिज़ाइन जैसे कई अधिकार हमारे सिस्टम में मौजूद है। उन्होंने वैज्ञानिकों के शोध, शोधपत्र, नयी खोज, नयी तकनीक इत्यादि के सुरक्षा के लिए बौद्धिक सम्पदा अधिकार के प्रयोग पर अपना व्याख्यान दिया साथ ही कई महत्वपूर्ण जानकारियों पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान दिया।

निदेशक अनुसन्धान डॉ. रविंद्र कुमार ने वहां मौजूद शिक्षकों और छात्रों को पेटेंट के लिए रिसर्च प्रोटोकॉल के दौरान की गयी गतिविधियों के डाटा  संरक्षण और रिकॉर्ड के संवर्धन पर अपनी बात रखी, और कहा की पेटेंट पाने के लिए सर्वप्रथम अच्छे प्रयोगशाला अभ्यास बनाये रखने की जरुरत है। उन्होंने ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पर कार्य करने पर विशेष जोर दिया और कहा कि बिहार में बहुत सारे ऐसे उत्पाद है जिसे जीआई टैगिंग की जरूरी है, हम अपने क्षेत्र से जुड़े उत्पादों के जीआई टैगिंग पर काम कर सकते है जिससे हमारे राज्य का मान और उस उत्पाद से हमारी पहचान वैश्विक पटल पर हो सके। उन्होंने  कार्यक्रम के शुरुआत में कार्यशाला की कोऑर्डिनेटर डॉ. विनीता रानी ने कार्यशाला के विषय पर संपूर्ण परिचय दिया, आयोजन सचिव डॉ. सोनिया कुमारी ने अतिथियों का स्वागत किया वहीँ सह-आयोजन सचिव डॉ. राकेश कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यशाला में विवि के कुलसचिव डॉ. एजी बंद्योपाध्याय सहित संस्था के सभी शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।

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