पशुपालन देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसका कृषि जीडीपी में 27-32% योगदान है। पशुपालन के माध्यम से गरीबी उन्मूलन, पोषण सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार, महिला सशक्तिकरण आदि मुद्दों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। भारत में किसान पशुपालन क्षेत्र में बकरी पालनको गाय के बाद सबसे ज्यादा करते हैं। विश्व में बकरियों की लगभग 108 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से भारत में 37 प्रजातियाँ हैं। 20वें पशुसंख्या जनगणना-2019 के अनुसार, भारत में बकरी की जनसंख्या 14.8करोड़ है, जो 19वें पशुसंख्या जनगणना-2012 की तुलना में 10.14%अधिकहै। 2020-21 के अनुसार, भारत 209.96 मिलियन टनदूध उत्पादन के साथ विश्व में पहले स्थान पर है, जिसमें2019-20 की तुलना में5.81% की व्रद्धि हुई है। भारत में बकरी दूधउत्पादन,कुल उत्पादित दूध का लगभग 3% (भैंस-45% और गाय-51%) है। 2018-19 के अनुसार,भारत में बकरी का मांस उत्पादन 1097.91 हजार टन था। कम लागत में अधिक लाभ देने के कारण बकरी को आमतौर पर “गरीब की गाय” कहा जाता है। बकरी मांस, दूध, खाल और खाद के माध्यम से छोटे किसानों और गरीब लोगों की आय को बढ़ाने में मदद करती है। बकरी को भविष्य का पशु माना जाता है और यह किसानों की आय को तेजी से बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। बकरी पालन और बकरी उद्यम पहले से ही ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और उम्मीद है कि यह ग्रामीण लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के परिवर्तन में एक प्रेरक कारक के रूप में कार्य करेगा। आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकियों के साथ बकरी पालन, गरीब लोगों कोवंचित स्थानों मेंभी आजीविका सुरक्षा प्रदान करके सामाजिक परिवर्तन ला सकता है।
उत्तर प्रदेश का विंध्याचल क्षेत्र उसकी विशेष जलवायु, भोगोलिक संरचना और चारे के लिए प्रचुर मात्रा में पेड़ों की उपलब्धता आदि के कारण बकरी पालन के लिए अत्यधिक उपयुक्त है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वर्तमान आनुवंशिक संसाधनों को प्रभावी प्रबंधन और पशुधन संसाधनों के संरक्षण के लिए फेनोटाइपिक भिन्नता, सामाजिक महत्व और अद्वितीय आनुवंशिक विशेषताओं के लिए प्रलेखित किया जाए। सोनपरी बकरी विंध्याचल क्षेत्र में अपने विशेष गुणों जैसे कठोर प्रकृति, उच्च प्रजनन क्षमता और मध्यम आकार के कारण यह बकरी पालकों की पसंदहै और सोनपरी बकरी इस क्षेत्र की कठोर जलवायु परिस्थितियों में जीवित रहने में सक्षम हैं। इस बकरी की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के विंध्याचल क्षेत्र में सोनपरी बकरियों के रूपात्मक और उत्पादन मापदंडों के डेटा को रिकॉर्ड करने की योजना बनाई गई।
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सामग्री और विधियां
यह अध्ययन सोनभद्र जिले में उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) द्वारा वित्तपोषित परियोजना में किया गया। वर्तमान अध्ययन के लिए सोनभद्र के 16 गांवों की 630 देशी सोनपरी बकरों एवं बकरियों, दोनों का अलग-अलग आयु वर्ग के सात अलग-अलग आकारमितीय विशेषताओं और शरीर के वजन का डेटा लिया गया। मॉर्फोमेट्रिक माप में शरीर की लंबाई, कंधों से ऊंचाई, छाती की परिधि, कान की लंबाई, कान की चौड़ाई, पूंछ की लंबाई, सींग की लंबाई और शरीर का वजनशामिल था। इन पशुओं को एक समान जमीन पर खड़ा करके शरीर के माप को 1 मिमी सटीकता के मानक मापने वाले टेप के साथ लिया गया। शरीर के वजन को 10 ग्राम सटीकता के साथ 50 किलोग्राम वजन वाले तराजू की मदद से मापा गया।सभी अवलोकन सुबह में पशुओं को चराने या पशुओं को चारा या पानी देने से पहले किए गए। प्रजनन मापदंडों जैसे, यौवन उम्र, यौन परिपक्वता पर शरीर का वजन, प्रथम गर्भाधान के समय उम्र, प्रथम बच्चे के जन्म के समय उम्र, बच्चों के जन्म अंतरालका समय, गर्भकाल इत्यादि को रिकॉर्ड किया गया। बकरियों के प्रबंधन के तरीकों की जानकारी बकरी पालकों से प्रश्नावली के माध्यम से दर्ज की गई। सोनभद्र में बकरियों को प्राय: पूरी तरह से चराई पर रखा जाता है। पशुओं को गर्मियों में 6 से 8 घंटे और सर्दियों के मौसम में 5 से 6 घंटे तक चराया जाता है।
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तालिका 1. सोनपरीबकरों तथा बकरियों के विभिन्न आयु वर्ग में शरीर का वजन।
उम्र (महीनों में) | नर | मादा | साख्यिकी अंतर |
जन्म के समय | 1.69 ± 0.03 (34) | 1.65 ± 0.02 (36) | नहीं |
3 | 7.02 ± 0.07 (50) | 6.81 ± 0.09 (50) | नहीं |
6 | 11.64 ± 0.11 (50) | 11.08 ± 0.13 (50) | 0.0013* |
9 | 16.73 ± 0.12 (50) | 15.92 ± 0.24 (50) | 0.0031* |
12 | 20.13 ± 0.30 (50) | 19.69 ± 0.22 (50) | नहीं |
18 | 26.95±0.36 (50) | 24.11±0.16 (50) | ** |
तालिका 2. वयस्क सोनपरी बकरियों की मॉर्फो-मीट्रिक माप (सेमीमें)।
चरित्र | नर | मादा | साख्यिकी अंतर |
शारीरिक लम्बाई | 61.17 ± 0.59 | 59.54 ± 0.51 | 0.04* |
छाती का घेरा | 72.39 ± 0.35 | 70.92 ± 0.39 | 0.006* |
ऊंचाई | 67.32 ± 0.42 | 65.66 ± 0.38 | 0.003* |
पूंछ की लंबाई | 12.34 ± 0.12 | 12.29 ± 0.21 | नहीं |
शरीर का रंग | भूरा काला |
तालिका 3. वयस्क सोनपरी बकरियों के चेहरे के हिस्सों का मॉर्फो-मीट्रिक माप (सेमीमें)।
माप | नर | मादा | साख्यिकी अंतर |
चेहरे की लंबाई | 19.52±0.12 | 19.22±0.25 | नहीं |
कान की लंबाई | 14.44±0.20 | 13.82±0.26 | नहीं |
कान की चौड़ाई | 5.36±0.19 | 5.65±0.16 | नहीं |
सींग की लंबाई | 12.33±0.28 | 8.37±0.25 | 3.39E-18* |
चेहरे का रंग | भूराकाला | ||
दाढ़ी | 86 % | — |
तालिका 4. सोनपरी बकरियों के प्रजनन गुणों का विवरण (n=60)
क्र.सं | प्रजनन चरित्र | माध्यिका ± मानक त्रुटि |
1. | यौवन आयु (महीना) | 8.02±0.10 |
2. | यौन परिपक्वता पर शरीर का वजन (किलोग्राम) | 19.99±0.29 |
3. | प्रथम प्रसव के समय आयु (दिन) | 476.26±4.49 |
4. | दो बच्चे देने के मध्य अंतराल (दिन) | 258.2±4.89 |
5. | गर्भकाल (दिन) | 151.23± 0.45 |
6. | जुड़वा बच्चे देने की दर | 1.76±0.11 |
शारीरिक माप और वजन
शारीरिक माप पशुओं के कंकाल विकास को दर्शाती हैं। शरीर की लंबाई और ऊँचाई हड्डियों के विकास के श्रोत हैं जबकि छाती का घेरा मांसपेशियों, हड्डियों और वसा के विकास का एक श्रोत है और इसका बढ़ते वजन के साथ घनिष्ठ संबंध है।इस अध्ययन में मॉर्फो-मीट्रिक माप और शरीर के वजन के विभिन्न लक्षणोंकीमाध्यिका ± मानक त्रुटिको तालिका 1, तालिका 2 और तालिका 3 में प्रस्तुत किया गया है।
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प्रबंधन के तरीके
बकरियों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में उनका प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। सोनपरी बकरियों को किसानों द्वारा सर्दियों में 5-6 घंटे और गर्मी के मौसम में 6-8 घंटे प्राकृतिक घास, वन क्षेत्र में उपलब्ध झाड़ियों और फसलों के अवशेषों पर चराई प्रणाली पर प्रबंधित किया जाता है। अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि 21 प्रतिशत किसानों के पास बकरियों के लिए अलग घर था जबकि 79 प्रतिशत किसानों ने बकरियों को अपने घर के हिस्से में पाल रखा था। बाड़ों की सफाई प्रतिदिन ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों द्वारा की जाती थी। अपर्याप्त आवास बकरियों के स्वास्थ्यऔर प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले प्रमुख सीमित कारकों में से एक था। बाल मृत्यु दर, वयस्क मृत्यु दर से काफी अधिक पाया गया। किसानों ने बकरों के समूह से प्रजनन बकरे का चयनबकरे के विकास प्रदर्शन के आधार पर किया। यह देखा गया कि 94% किसानकृमिनाशक टीकाकरण के बारे में अनजान थे। बच्चों में पायी जाने वाली सामान्य बीमारियाँ निमोनिया, न्यूमोएंटेराइटिस और एंटरोटॉक्सिमिया थीं।
निष्कर्ष
उपरोक्त अध्ययन केमाध्यम से पता चलता है कि सोनभद्र में एक विशेष प्रकार की बकरी की प्रजाति पायी जाती है जो कि अन्य बकरियों कि प्रजातियों से भिन्न है। यह बकरी मध्यम आकार की है व यहाँ की परिस्थितियों में आराम से पाली जा सकती है। सोनपरी नस्ल का विकास प्रदर्शन और प्रजनन क्षमता उच्च है। किसानों द्वारा इसके आनुवंशिक सुधार के लिए प्रयास किया जाना चाहिए और स्थानीय देशी नस्लों के पालन के लिए किसानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि प्रदान की जानी चाहिए। बकरी पालन पर वैज्ञानिक प्रशिक्षण राज्य पशुपालन विभाग और के.वी.के के माध्यम से आयोजित किया जाना चाहिए और एक स्थायी नस्ल सुधार कार्यक्रम का भी सुझाव दिया जाना चाहिये।
भा.कृ.अनु.प.- केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान बकरी पालन और बकरी उद्यम पर किसानों को ही नहीं, बल्कि उच्च शिक्षित और श्रेष्ठ वर्ग के सेवा से निवृत्त लोगों को भी वैज्ञानिक बकरी पालन प्रशिक्षण दे रहा हैऔर ये लोग प्रशिक्षण प्राप्त करके नए जोश और संकल्प के साथ व्यापारिक स्तर पर बकरी व्यवसाय को अपना रहे हैं।
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