विगत वर्षों में भारत सरकार ने कुक्कुट पालन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुधारने का एक उत्तम साधन मानते हुए इसके विकास हेतु अनेक प्रयास किए है। भारत ऐसा देश है जिसकी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, जिस वजह से “बैकयार्ड कुक्कुट पालन” ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को स्वावलंबी बनाने तथा कुपोषण एवं गरीबी की समस्या को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
क्या है बैकयार्ड कुक्कुट पालन?
बैकयार्ड कुक्कुट पालन यानि पारम्परिक मुर्गी पालन अथवा घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की यह पद्धति भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है। इसमें प्राय: 5-10 मुर्गियों को एक परिवार के द्वारा पाला जाता है, जो घर एवं उसके आस-पास में अनाज के गिरे दाने, झाड़-फूसों के बीच कीड़े-मकोड़े, घास की कोमल पत्तियाँ तथा घर की जूठन आदि खाकर अपना पेट भरती है। इस प्रकार से मुर्गियों को पालने में न किसी विशेष घर की आवश्यकता होती है और न ही किसी विशेष दाने की आवश्यकता होती है, अर्थात न्यूनतम खर्चे पर मुर्गियां पाली जाती हैं। केवल प्रतिकूल परिस्थितयों में निम्न कोटि का थोड़ा बहुत अनाज खिलाने की आवश्यकता होती है। रात्रि विश्राम के लिए घर के टूटे-फूटे भाग/ खंडहर अथवा बांस या जालियों से बनायें हुए बाड़े काम में लाए जाते है। इस प्रकार घर के रखरखाव एवं खाने-पीने पर कोई ख़ास खर्च नही आता है। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को न केवल न्यूनतम खर्चे पर मांस व अंडे के रूप में उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है बल्कि कुछ मात्रा में मांस व अंडा बेचकर कुछ अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त हो जाती है।
बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लाभ
- बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लिए किसी अतिरिक्त जमीन तथा श्रम की आवश्यकता नहीं होती है।
- बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लिए बहुत ही कम केवल एक दिवसीय चूजों की खरीद के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है, वो भी कई सरकारी योजनाओं में बाज़ार से काफ़ी कम कीमत पर उपलब्ध हो जाते हैं।
- किसी प्रतिकूल परिस्थितियों में फसल में नुकसान हो जाने पर भी बैकयार्ड कुक्कुट पालन से एक अतिरिक्त आय प्राप्त हो जाती है जिससे ये आजीविका सुरक्षा प्रदान करती है।
- बैकयार्ड कुक्कुट पालन से मांस व अंडे के रूप में उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है जो ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों एवं औरतों मे प्रोटीन कुपोषण की समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- बैकयार्ड कुक्कुट पालन अवशिष्ट पदार्थों एवं कीड़े मकोड़ो को उच्च प्रोटीन वाले अंडे एवं मांस मे बदलकर न केवल खाद्य सुरक्षा बल्कि स्वच्छ पर्यावरण बनाने में भी सहायक है।
- मुर्गी विष्टा खाद के रूप में भूमि की ऊर्वरक क्षमता भी बढाती है।
- बैकयार्ड कुक्कुट पालन ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को स्वरोजगार प्रदान कर स्वावलंबी बनता है तथा कुछ हद तक तथा कुपोषण की समस्या से भी निजात दिलाता है।
बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लिए नस्ल का चुनाव
घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की यह पद्धति भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है, परन्तु देशी प्रजाति के पक्षियों की वृद्धि दर व उत्पादन कम होने की वजह से इनकी लोकप्रियता धीरे धीरे घटती गई। इस समस्या के सम्म्धन के लिए वैज्ञानिकों द्वारा देशी और उन्नत नस्ल की विदेशी प्रजाति की मुर्गियों को मिलाकर कुछ संकर प्रजातियाँ विकसित की गई है। ये प्रजातियाँ भारत के वातावरण एवं परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम साबित हुई है। इन प्रजातियों को घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की पद्धति में पाला जा सकता है तथा ये देशी प्रजातियों की अपेक्षा अच्छा उत्पादन देती हैं। इनमें वनराजा, ग्रामप्रिया, गिरिराजा, कारी निर्भीक (एसील क्रॉस), कारी श्यामा (कड़कनाथ क्रॉस), हितकारी (नैक्ड नैक क्रॉस), उपकारी (फ्रिजल क्रॉस), कारी प्रिया लेयर, कारी देवेन्द्र, कारीब्रो आदि प्रमुख हैं।
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