पशु एवं पशु उत्पाद के विक्रय में धोखाधड़ी

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परिचय
नैतिक पतन के इस दौड़ में आज कोई भी क्षेत्र धोखाधड़ी से बचा हुआ नहीं है। कोई भी पशुपालक असावधानीवश पशु और उनके उत्पाद को खरीदने और बेचने के वक्त ठगी का शिकार हो सकते हैं। इसलिए पशुओं एवं उनके उत्पाद के खरीदने के समय होने वाले धोखाधड़ी के बारे में जानकारी होना परम आवश्यक है।

पशुओं के विक्रय में धोखाधरी
समान्यतः पशुओं के विक्रय के समय उनके गुणों को बदलकर या उनमें मौजूद खामियों को छुपा कर ठगी किया जाता है। ऐसा उस परिस्थिति में किया जाता है जब जानवर चोरी करके लाया गया हो या बीमार हो। समान्यतः बेचे जाने वाले जानवरों के गुणों या खामियों को निम्नलिखित तरीके से छुपाया या बदला जाता है; जैसे:

  1. जानवर का पूरी तरह से बधियाकरण कर देना,
  2. घोड़े के गर्दन या पूंछ के बालों को काट देना,
  3. कुत्ते के पूंछ को काट देना,
  4. शरीर पर मौजूद उजले या अन्य रंगों के चकते को बाल रंगने वाला डाई से रंग देना आदि।
  5. बिसोफिंग: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बूढ़े जानवर को जवान दिखाया जाता है। यह कई तरीके से विभिन्न परिस्थितियों में किया जाता है; जैसे इन्साइजर दाँत के टेबल में एक छोटा सा छेद करके उसमें एक काला पदार्थ भर दिया जाता है। उसी तरह आँखों के ऊपरी पलक में हवा भर कर फुला दिया जाता है ताकि जानवर कम उम्र का दिखाई दे। क्रोनिक अल्सर और फिश्चुला को रंगीन कीचर से भर दिया जाता है। उपरोक्त वर्णित धोखा या ठगी भारतीय दण्ड विधान की धारा 420 के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

इस प्रकार के ना जाने कितने ठगी के तरीके बीमार या चोरी किए गए जानवरों को बेचने के वक्त आजमाए जाते हैं। हम थोड़ी सी सावधानी बरत कर और चौकन्ने रह कर इस ठगी से बच सकते हैं।

पशुओं के उत्पाद के विक्रय में धोखाधड़ी
पशु उत्पाद के विक्रय में ठगी और हेरा-फेरी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और स्वस्थ्य के दृष्टिकोण से एक अपराध है। ये ठगी कुछ धनलाभ के लिए कई तरह से किए जाते हैं। इसमें कृत्रिम पशु उत्पाद बेचने से लेकर घटिया उत्पादों को अच्छे उत्पाद के साथ मिलाकर या सस्ते चीजों को महंगे के साथ मिलाकर बेचा जाता है। कई पशु उत्पाद जैसे दूध, घी, और मांस में मिलावट करके बेचे जाते हैं। निम्नलिखित पशु उत्पादों को बेचने के लिए मिलावट विभिन्न प्रकार से किए जाते हैं; जैसे:

1. दूध में मिलावट
दूध में मिलावट का धन्धा बड़े पैमाने पर किए जाते हैं। आजकल मनुष्यों में ज्यादा होने वाले गंभीर बीमारियाँ, जैसे कैंसर, लकवा, हृदय रोग, डायबिटीज आदि, इसी मिलावट के परिणाम हो सकते हैं। दूध में मिलावट, वसा की मात्रा को घटा कर (दूध में पानी मिलाना), दूध को गाढ़ा करने वाला पदार्थ मिलाकर, दूध को रंगने वाला तत्व मिलाकर या दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने वाला तत्व मिलाकर किए जाते हैं। लेकिन कभी-कभी दूध में ये मिलावट दुर्घटनावश भी हो जाते हैं; जैसे दूध में गोबर या गाय का मूत्र, बाल, धूल, सब्जी का टुकड़ा, या गंदा पानी का मिल जाना।

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मिलावट योग्य दूध, बटर एवं घी
  • मिलावट के द्वारा वसा कम करना: दूध में पानी मिलाकर वसा को कम किया जाता है। लेकिन इसके साथ-साथ प्रदूषित जल के द्वारा दूध में किटाणु भी मिल जाते हैं और हमारे स्वस्थ्य को हानी पहुँचाते हैं। दूध में पानी की मिलावट को, दूध का विशिष्ट गुरुत्वाकर्षण या दूध में मौजूद ठोस तत्व की पड़ताल करके की जाती है। दूध का विशिष्ट गुरुत्वाकर्षण लेक्टोमीटर से मापा जाता है। दूध में मौजूद नाइट्रेट की मात्रा के आधार पर भी दूध में पानी की मिलावट का पता लगाया जाता है, क्योंकि साधारण दूध में नाइट्रेट की मात्रा बिल्कुल नहीं होती है, जबकि पानी मिलाने पर इसमें नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। दूध के वसा को कम करने की अन्य विधि को स्कीमिंग कहते हैं। इसमें दूध को मथ कर मलाई को हटाया जाता है। स्कीमिंग को दूध में उच्च विशिष्ट गुरुत्वाकर्षण, वसा रहित ठोस का उच्च प्रतिशत और वसा के निम्न मात्रा के आधार पर आसानी से पहचाना जा सकता है। कभी-कभी दूध में पानी मिलाने और मलाई हटाने के कार्य को साथ-साथ किया जाता है जिससे दूध काफी पतला हो जाता है।
  • दूध को गाढ़ा करने वाला पदार्थ मिलाना: इसका उद्देश्य दूध के स्पेसिफिक ग्रेभिटी और गाढ़ापन को बढ़ाना होता है। इसके लिए स्टार्च, जिलेटिन या केन शुगर को दूध में मिलाया जाता है। विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा प्रयोगशाला में जाँच कर इस मिलावट का पता लगाया जा सकता है।
  • दूध को रंगने वाला पदार्थ मिलाना: कभी-कभी दूध को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए, उसमें रंग मिलाकर रंगीन कर दिया जाता है। इसके लिए अन्नाटो और कोलतार का उपयोग किया जाता है। इसको पता लगाने के लिए भी प्रयोगशाला जाँच आवश्यक होता है।
  • दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने वाला तत्व मिलाना: दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए कुछ रासायनिक तत्वों का उपयोग किया जाता है, जो स्वस्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, क्योंकि ये प्रिजरवेटीव जहरीले होते हैं। इस तरह के मिलावट वाली दूध पीने के योग्य नहीं होते हैं, क्योंकी पीने के बाद, ये भोजन के पाचन को प्रभावित करके हैं। साधारणतः इसके लिए बोरिक एसिड, बोरेक्स, फोर्मलीन, सैलिसिलिक एसिड, बेंजोइक एसिड, हाइड्रोजन परआक्साइड, सोडियम कार्बोनेट और सोडियम बाईकार्बोनेट का उपयोग किया जाता है। इस तरह के मिलावट को पकड़ने के लिए संदिग्ध दूध को प्रयोगशाला में जाँच किया जाता है।
  • दूध में यूरिया की मिलावट: दूध में प्रोटीन रहित नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए यूरिया को मिलाया जाता है। यह मिलावट मानव स्वस्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है। इस मिलावट को भी प्रयोगशाला में संदिग्ध दूध के जाँच के द्वारा पकड़ा जाता है।

2. घी में मिलावट
घी एक महँगा पशु उत्पाद के रूप में जाना जाता है। मिलवाटखोर इसमें सस्ता बिकने वाला बनस्पति तेल, हायड्रोजेनेटेड तेल और मृत पशुओं की चर्बी को मिलाता है। बनस्पति में फाइटोस्टेरील मौजूद होता है, लेकिन यह घी में नहीं पाया जाता है। घी में अगर फाइटोस्टेरील मौजूद है, तो यह साबित होता है कि, इसमें बनस्पति तेल या हायड्रोजेनेटेड तेल मिला हुआ है। इस जाँच को फाइटोस्टेरील एसिटेट टेस्ट कहा जाता है।

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वनस्पति घी बनाने के लिए एक सुनिश्चित मात्रा में सीसामे तेल मिलाना अनिवार्य होता है। घी में सीसामे तेल का मिलना यह सुनिश्चित करता है कि इसमें बनस्पति घी को मिलाया गया है। इस मिलावट की जाँच बौडीन टेस्ट के द्वारा किया जाता है। कभी-कभी घी में जानवर के चर्बी को मिलाया जाता है। प्रोगशाला में मिलावट वाले घी का जाँच करके इस मिलावट को पकड़ा जा सकता है।

3. मांस में मिलावट
बहुत से मांस विक्रेता सस्ते, बासी और निम्न स्तर के मांस को मिलते-जुलते महँगे और उच्च गुणवत्ता वाले मांस के साथ मिला देते हैं; जैसे, घोड़े के मांस को बीफ के साथ, बकड़े के मांस को मटन के साथ, बिल्ली के मांस को खरगोश के मांस के साथ मिलाया जाता है। मांस में मिलावट को मांस के भौतिक परीक्षण, केमिकल परीक्षण और सिरोलोजिकल परीक्षण के द्वारा पकड़ा जाता है। मांस के भौतिक जाँच के लिए विभिन्न प्रकार के भौतिक गुणों को जानना आवश्यक है।

भौतिक परीक्षण:

  • मटन (भेड़ का मांस): यह गहरे रंग का अमोनिया जैसे गंधवाला होता है। इसके मांस का रेशा मजबूत और घना होता है। मांस के रेशे के समूह में चर्बी भरा रहता है, लेकिन, चर्बी मांस के रेशे में मिला हुआ नहीं होता है। इसका चर्बी उजले रंग का कड़ा और मजबूत होता है। इसके अस्थि-मज्जा हल्का लाल रंग का होता है।
  • बकरे का मांस (चेभोन): मटन की अपेक्षा सफेद और बहुत कम चर्बी वाला मांस होता है। इसका मांस बकरे के गंध वाला होता है।
  • सूअर का मांस (पोर्क): उजला धूसर रंग वाला, मुलायम मांस होता है, जिसमें चर्बी मांस के साथ मिला हुआ रहता है। चर्बी उजले रंग का दानेदार होता है। अस्थि-मज्जा का रंग गुलाबी लाल होता है। इसके मांस का गंध मूत्र के जैसा होता है।
  • कुत्ते का मांस: चर्बी मांस में हल्का मिला हुआ होता है। चर्बी उजले रंग का होता है, लेकिन मांस गहरे लाल रंग का होता है।
  • गाय का मांस (बीफ): इसका मांस भूरा रंग लिए हुए, संतृप्त लाल रंग का होता है, जिसमें चर्बी मांस के साथ मिला हुआ होता है। इसके मांस को फ्रिज करने पर चर्बी कड़ा हो जाता है।
  • घोड़े का मांस: इसका मांस गहरे लाल रंग का होता है, लेकिन जब यह हवा के संपर्क में आता है तो यह काला पर जाता है। चर्बी गोल्डेन से ले कर गहरा पीले रंग का होता है। अस्थि-मज्जा ग्रीजी होता है।
  • पॉल्ट्री का मांस: पतले और मजबूत रेशेदार मांस पॉल्ट्री के होते हैं, जिसमें चर्बी मांस में मिला हुआ होता है।
  • मछ्ली का मांस: इसका मांस उजला होता है जिसका पूरा मांसल भाग का प्रत्येक हिस्सा सिर्फ एक मांस के प्लेट से बना होता है। चर्बी सूक्ष्म रूप से मांसल भाग में मौजूद रहता है। मांस में पानी की  मात्रा अधिक होता है।

इन सभी गुणों के अलावा हड्डियों का अध्यन भी मांस में मिलावट को पकड़ने में मददगार होती है।

रासायनिक परीक्षण
मिलावट वाले संदिग्ध मांस के रासायनिक टेस्ट के लिए ग्लाइकोजेन टेस्ट उपयुक्त टेस्ट है। घोड़े का मांस अन्य जानवरों के अपेक्षा अधिक ग्लाइकोजेन रखते हैं। उसी प्रकार सूअर का लिवर ज्यादा ग्लाइकोजेन युक्त होता है। केमिकल टेस्ट के द्वारा चर्बी का जाँच करके भी मिलावट को पकड़ा जा सकता है, जैसे घोड़े के चर्बी में लिनोलेइक एसिड 1 से 2 प्रतिशत होता है, जबकि दूसरे जानवरों में इसका मात्रा मात्र 0.1 प्रतिशत होता है। चर्बी के अयोडीन स्तर का जाँच करके भी मिलावट का पता लगाया जाता है। आयोडीन भेलु वह मानक है जो अयोडीन चर्बी में मौजूद अनसेचुरेटेड फेट्टी एसिड द्वारा सोखा जाता है। घोड़े के चर्बी का अयोडीन भेलु सबसे अधिक (71 से 86) होता है। सूअर के चर्बी का 50 से 70, बैल के चर्बी का 38 से 46 और भेड़ के चर्बी का 35 से 46 अयोडीन भेलु होता है। विभिन्न जानवरों के चर्बी का रेफ्रेक्टिव इंडेक्स अलग-अलग होता है। रेफ्रेक्टिव इंडेक्स को मापने के लिए विभिन्न जानवरों के चर्बी को गर्म करके पिघलाया जाता है और रेफ्रेक्टिव इंडेक्स मापा जाता है। सूअर के चर्बी का रेफ्रेक्टिव इंडेक्स 51.9 से अधिक नहीं होता है, उसी तरह बैल के चर्बी का रेफ्रेक्टिव इंडेक्स 40 से अधिक नहीं होता है। घोड़े के चर्बी का रेफ्रेक्टिव इंडेक्स 35.5 होता है।            

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सिरोलॉजिकल परीक्षण
विशेष परिस्थिति में मिलावट का पता लगाने के लिए सिरोलॉजिकल जाँच आवश्यक होता है। सिरोलॉजिकल जाँच के लिए प्रेसिपिटेशन टेस्ट का प्रयोग किया जाता है, जो प्रयोगशाला का जटिल प्रक्रिया है।

पशु उत्पादों में मिलावट करना और मिलावट किए गए उत्पादों को बेचना, दोनों भारतीय दंड विधान के धारा के अनुसार दंडनीय अपराध है। अतः इससे बचना चाहिए।

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