बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में मना विश्व पर्यावरण दिवस

4.6
(33)

अपने आवश्यकताओं के पूर्ति के लिए मानव जाती ने पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंचाई है, और इसका दुष्प्रभाव दिख रहा है। पर्यावरण के प्रति लोगो की जागरूकता बढ़ी है, उक्त बातें बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रामेश्वर सिंह ने विश्व पर्यावरण दिवस पर विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित वृक्षारोपण कार्यक्रम में लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा। उन्होंने कहा की मौसम परिवर्तन वैश्विक रूप में बड़ी समस्या बनकर उभरी है, पर्यावरण के लिए क्षेत्र, राज्य और देश की सीमाएं मायने नहीं रखती बल्कि यह समस्या सबके लिए है जिसका समाधान एकजुटता दिखाने में है। पर्यावरण से सम्बंधित गतिविधियों में सभी का योगदान जरुरी है। उन्होंने आगे कहा की पर्यावरण से जो छेड़छाड़ हो रही है और इससे उत्पन्न क्षति को हम किसी आंकड़े से नहीं माप सकते हैं। बिहार सरकार द्वारा संचालित जल-जीवन-हरियाली योजना के बारे में उन्होंने कहा की इस योजना के तहत राज्य भर में बहुत ही बेहतरीन कार्य किये जा रहे हैं जिसका परिणाम दिख रहा है, जल श्रोतों का जीर्णोद्धार, नदी-नहर, तालाबों की स्वच्छता और राजव्यापी वृहद् वृक्षारोपण जैसे कार्यों का सुखद परिणाम अब दिखने लगा है, बिहार में ग्रीन फारेस्ट कवर में भी बढ़ोत्तरी देखा जा रहा है, इस योजना की तारीफ पूरे देश भर में की जा रही है। ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से लोग पर्यावरण के प्रति सजग होते हैं साथ ही वे प्रोत्साहित होते है।

इस अवसर पर ऑनलाइन लेक्चर का भी आयोजन किया गया, जिसमे जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के भूतपूर्व निदेशक डॉ. के. वेंकटरमण ने ज़ूम के जरिये विश्वविद्यालय के करीब 200 छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और पदाधिकारियों को सम्बोधित किया। अपने अभिभाषण में उन्होंने जैव विविधता के इतिहास के बारे में बताया और भविष्य में इकोसिस्टम में क्या परिवर्तन हो सकता है उसके बारे में बताया। उन्होंने कहा की हम अपने पूर्वजो के द्वारा दिखाए गए रास्ते को भूल गए है जिसका परिणाम आज हमें दिख रहा है, हमने पर्यावरण को नुकसान कर के खुद को खतरे में डाला है। उन्होंने भारत के जैव-विविधता पर विस्तारपूर्वक चर्चा करते हुए बताया की भारत को प्रकृति का वरदान प्राप्त है की हमारे देश में वो सभी इकोसिस्टम मौजूद है जो विश्व में है, रेगिस्तान, डीप वाटर, मैंग्रूव, मरीन जैसे अनगिनत इकोसिस्टम हमारे देश में मौजूद है। उन्होंने कहा की जैव-विविधता मानव जीवन के लिए, आर्थिक विकास के लिए और इकोलॉजिकल बैलेंस के लिए बहुत आवश्यक है। अपने व्याख्यान में  उन्होंने बताया की इस वर्ष के अंत तक खाद्य पदार्थो में अपर्याप्त आपूर्ति देखने मिलेगी साथ ही 26 मिलियन टन खाद्यान्न की कमी देखा जा सकता है। उन्होंने भारत में फल, सब्जी, फूल, भारतीय मशाले, ड्राई फ्रूट और भी तमाम तरह के खाद्य पदार्थो में विविधता को समझाया साथ ही कई लुप्त होते प्रजातियों की जानकारी दी। भारत में लुप्त खाद्य सामग्रियों पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने बताया की हमने पिछले कई दशकों में भारतीय खाद्य किस्मों के आधे से अधिक को खो दिया है। लेक्चर को विश्वविद्यालय के फेसबुक और यूट्यूब चैनल में लाइव भी किया गया।

और देखें :  डेयरी प्रबंधन और दूध से मूल्यवर्धन पर प्रशिक्षण का आयोजन

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.6 ⭐ (33 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

और देखें :  बिहार वेटनरी कॉलेज में दीक्षांत कार्यक्रम का आयोजन

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Author

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*