पशु के ब्यांत के पश्चात होने वाली मुख्य बिमारी मिल्क फीवर (दुग्ध ज्वर): जानकारी बचाव एवं उपचार

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आपका पशु आपके परिवार का सदस्य होता है यदि उसके साथ कुछ गलत घटित होता है तो उसका सीधा प्रभाव आपकी आय पर पड़ता है, क्योकि यह आपके परिवार का एक कमाऊ सदस्य होता है। दुधारू पशु का व्याना आपके लिए सुखद अनुभव है, पशुधन मे बढ़ोत्तरी है परन्तु कुछ रोग/विकार जानलेवा भी हो सकते हैं। जैसे की मिल्क फीवर-पशुओं का मिल्क फीवर एक उपापचय सम्बन्धित विकार है। यह रोग सामान्यतः गाय एवं भैसों मे व्याने के दो दिन पहले से लेकर तीन दिन बाद तक होता है। परन्तु कुछ पशुओ मे देखा गया है कि व्याने के पश्चात 15 दिन तक भी हो सकता है। यह रोग प्रमुख रूप से अधिक दूध देने वाले गायों एवं भैसों के रक्त मे व्याने के बाद कैल्सियम स्तर मे एकाएक गिरावट के कारण होता है। इसलिए इस रोग के लक्षण उपचार एवं इस रोग से बचाव की जानकारी किसान भाईयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

लक्षण

सजगता दिखाते हुए, समय रहते मिल्क फीवर से जुड़े लक्षण भली भांति जान ले, पहचान ले व समझ लें। रोगी पशुओं मे इस रोग के लक्षण तीन अवस्थाओं मे देखे जा सकते हैं। तो वही पशु दुर्बल हो जाता हैं तथा चलने में लड़खडाने लगता है। इतना ही नही रोग ग्रसित पशु खाना पीना व जुगाली करना बन्द कर देता है। देखने में आया है कि पशु की मांशपेशियाॅ कमजोर पड़ने लगती है। मांशपेशियों में कमजोरी के कारण शरीर में कम्पन्न होने लगता है। पशु बार बार सिर हिलाने तथा रंभाने लगता है।

पशु के ब्यांत के पश्चात होने वाली मुख्य बिमारी मिल्क फीवर (दुग्ध ज्वर): जानकारी बचाव एवं उपचार

प्रारम्भिक अवस्था के लक्षण लगभग 03-04 घण्टे तक दिखायी देते है तथा इस अवस्था के रोग की पहचान केवल अनुभवी किसान या पशु चिकित्सक ही कर पाते है। यदि इस अवस्था में पशु का उचित उपचार नही किया जायें, तो पशु के दूसरी अवस्था में पहुच जाता है। इस रोग में प्रायः पशु के शरीर में मैग्नीशियम की कमी हो जाती है। इसलिए कैल्शियम-मैग्नीशियम बोरोग्लूकोनेट के मिश्रण की दवा देने से अधिक लाभ होता है। यह दोनो दवायें बाजार में कई नामों से उपलब्ध है। रोग के लक्षण दिखायी देते ही तुरंत रोगी पशु को कैल्शियम-मैग्नीशियम बोरोग्लूकोनेट दवा की 450 एम0एल0 की एक बोतल रक्त की नाड़ी के रास्ते चढ़ा देनी चाहिए। यह दवा धीरे धीरे 10-20 बूदे प्रति मिनट की दर से लगभग 20 मिनट में चढ़ानी चाहिए। यदि पशु दवा की खुराक देने के 8-12 घण्टे के भीतर उठ कर स्वयं खड़ा नही होता है। तो इसी दवा की एक और खुराक देनी चाहिए। सामान्यतः लगभग 75 प्रतिशत रोगी पशु उपचार के 2 घण्टे के अन्दर ठीक होकर खड़े हो जाते है। उनमें से भी लगभग 25 प्रतिशत पशुओ को यह समस्या दुबारा हो सकती है। अतः एक बार फिर इसी उपचार की आवश्यकता पड़ सकती है। यहा विशेष बात यह समझे की उपचार के 24 घण्टे तक रोगी पशु का दूध नही निकालना चाहिए। या तो प्रयास करना चाहिए की यह रोग पनपे ही नही। परन्तु पशु रोग की चपेट में आ जायें तो तत्काल बचाव का उपाय करें ।

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पशुओं को कैसे बचाए दुग्ध ज्वर से

अन्य रोगो की तरह दुग्ध ज्वर से पशुओ का बीमारी से बचाव, उपचार से अधिक महत्वपूर्ण होता है। तो बचाव के लिए क्या करना होगा। पहली व आवश्यक बात यह है कि इस रोग से बचाव के लिए पशु को व्यॅात काल में संतुलित आहार दे। संतुलित आहार के लिए दाना मिश्रण, हरा चारा, व सूखा चारा उचित अनुपात में दे। ध्यान रहे कि दाना मिश्रण 20 प्रतिशत उच्च गुणवत्ता का खनिज लवण व 10 प्रतिशत साधारण नमक अवश्य शामिल हो। अगर सम्भव नही हो पाये तो पशु को 50.00 ग्राम खनिज लवण व 25 ग्राम साधारण नमक प्रतिदिन अवश्य दें। ऐसा करने से ब्याने के बाद कैल्सियम की बढ़ी हुई आवश्यकता को पूरा करने के लिए हड्डियों से कैल्सियम अवशोषित करने की प्रक्रिया ब्याने से पहले ही अमल मे आ जाती है। जिससे ब्याने के बाद पशु के रक्त मे कैल्सियम का स्तर सामान्य बना रहता है। अतः पशु इस रोग से बच सकता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात एह है कि ब्याने के समय पशु पर 3-4 दिन तक नजर रखें। रोग के लक्षण दिखाई देते ही तुरन्त उपचार करवायें। अधिक दूध देने वाली गायों व भैसों अथवा जिन पशुओं मे यह रोग पिछली ब्याॅत के समय हुआ हो, उनकी खीस का दोहन पूर्णतः न करें। लगभग एक चैथाई खीस थनो मे छोड दें, ऐसा करने से पशु के रक्त मे कैल्सियम के स्तर मे अधिक गिरावट नही आती है। अतः पशु रोग से बच जाता है। जिन पशुओं मे दूध दोहन पूर्णतः नही होता है उनमे थनैला रोग के संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः ऐसी स्थिति दोहन के समय स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यता है। खीस या दूध निकालते से पहले थनों को अच्छी प्रकार विसंक्रमित घोल से साफ करके दूध निकालना चाहिए तथा दूध दोहने वाले व्यक्ति के हाथ व दूध का बर्तन अच्छी तरह साफ होना चाहिए। दूध दोहने के स्थान का फर्श साफ सुथरा व विसंक्रमित किया हुआ होना चाहिए। अधिक दूध देने वाले पशुओं को या जिन पशुओं को यह रोग पहले हो चुका हो उन्हे इस रोग से बचाव के लिए ब्याने के 7-8 दिन पहले विटामिन डी-3 (10 एम जी) का एक टीका लगा देने से निश्चित तौर पर इस रोग से बचाव हो जाता है।

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इसके अतिरिक्त पशुओं के ब्याने के एक सप्ताह पहले से लेकर व्याने के एक सप्ताह बाद तक ओस्टियोंकैशियम की 100 एम0एल0 की खुराक दिन में दो बार देने से भी इस रोग से बचा जा सकता है। इन सभी बिन्दुओं पर ध्यान देकर किसान भाई अपनें पशुओं को प्रसूति ज्वर के रोग से बचा सकते है तथा अपने पशुओं से अधिक उत्पादन लेकर अपने डेयरी फार्मिगं के व्यवसाय को अधिक लाभप्रद बना सकते है।

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