इस बीमारी को वैक्सीनिया या वेरीओला भी कहते हैं। यह एक घातक, संक्रामक एवं छूत का रोग है। यह प्रायः दूध देने वाली गायों एवं भैंसों में अधिक पाया जाता है इस रोग में शरीर की त्वचा पर विशेष प्रकार के फफोले उत्पन्न हो जाते हैं और थन तथा अयन पर दाने निकल आते हैं जो बाद में फूटकर घाव बन जाते हैं।
रोग का कारण: यह काऊ पाक्स (Cow Pox) नामक विषाणु (Virus) द्वारा होता है।
रोग ग्रहणशील पशु: यह रोग गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊंट तथा घोड़ो में होता है। भेड़ और बकरियों के लिए यह रोग अधिक संक्रामक है।
रोग फैलने की विधियां
- रोगी पशुओं के सीधे संपर्क में आने से।
- रोग ग्रस्त पशु के चारे पानी तथा मल मूत्र से।
यह रोग निम्न प्रकार से फैलता है-
- दूध निकालने वाले के हाथों से।
- दुग्ध दुहने की मशीन से।
- थन के ऊपर बने घाव से विषाणु का प्रवेश हो जाना।
- पशु के बिछावन इत्यादि के संपर्क से।
रोग ग्रस्त पशु की देखरेख करने पर उस मनुष्य को लग जाती है। अधिकांश चेचक माता पशुओं में ही अधिक होता है क्योंकि गाय भैंसों का दूध निकालने के लिए मनुष्य कई पशुओं के संपर्क में आते हैं अर्थात रोग फैलने की शुरुआत मनुष्य करता है। गर्मी में तो विषाणु निष्क्रिय हो जाते हैं इसलिए गर्मी के अपेक्षा सर्दी में रोग अधिक पाया जाता है।
लक्षण उत्पन्न होने का समय अर्थात इनक्यूबेशन पीरियड: रोग के लक्षण 3 से 7 दिन में प्रकट हो जाते हैं।
रोग के लक्षण
पशुओं में पहले हल्का सा बुखार होता है। पशु की भूख कम हो जाती है। पशु जुगाली करना बंद कर देता है। मादा पशु के थन गर्म और कुछ सूजन आ जाती है। नर पशुओं के अंडकोष पर भी दाने पाए जाते हैं। दूध देने वाले पशुओं को दूध दुहने में कठिनाई होती है। अतः पशु पैर चलाता है। अयन के ऊपर छाले हो जाते हैं। रोगी पशुओं में जो छाले अथवा दाने पाए जाते हैं वह निम्नलिखित अवस्थाओं से होकर गुजरते हैं:
- रोसियोला अवस्था: त्वचा के ऊपर छोटा सा भाग लाल हो जाता है।
- पैपुलर अवस्था: त्वचा का लाल भाग मध्य से उभरकर ग्रंथिका बनाता है इसके 7 से 8 दिन में छाले बन जाते हैं।
- वेसिकुलर अवस्था: ग्रंथिकायें पीली या नीली हो जाती है और इनमें लसीका भर जाती है। लसिका से भरे पैपूल, ही छाले का रूप लेते हैं यह छाले गोल होते हैं तथा बीच में दबे होते हैं।
- पशचुलर अवस्था: छालों में भरा लसीका गाढ़ा हो जाता है। इसका रंग भूरा अथवा हल्का पीला होता है। छालों से भरा लसिका 10 से 11 दिनों में सूखने लगता है।
- डेसीकेशन या स्केब: इस अवस्था में छालों का लसीका सूखकर पीला खुरंट या पपड़ी बन जाता है। यह खुरंट, लक्षण पैदा होने के 3 सप्ताह बाद गिर जाते हैं। खुरंट गिर जाने के बाद इन के नीचे गड्ढे बन जाते हैं। कभी-कभी यह चिन्ह सदैव को रह जाते हैं। सांड के अंडकोष और बगल में चिन्ह मिलते हैं। चेचक के चिन्ह कभी-कभी जांघ, माथे और बगल में पाए जाते हैं। अयन पर वेसिकल गोल होते हैं तथा थनों पर अंडाकार होते हैं।
पशु इस रोग से 3 से 4 सप्ताह में ठीक हो जाता है परंतु इस रोग के बिगड़ने से थनैला रोग उत्पन्न हो जाता है।
रोग निदान: लक्षणों के अनुसार रोग के लक्षण देखकर पहचान की जाती है। फोटो वह दर्द युक्त चेचक के फफोले
प्राथमिक चिकित्सा
रोग के कारण थन की त्वचा जगह-जगह से फट गई हो तो कोई भी जीवाणु नाशक मल्हम, या दवा जैसे बोरिक एसिड मल्हम, पेंसिलिंन क्रीम, समान भाग जिंक ऑक्साइड और जैतून का तेल मिलाकर 3% सैलिसिलिक एसिड को ग्लिसरीन में मिलाकर थनों पर लगाना चाहिए। त्वचा को मुलायम करने वाले मलहम लगाएं जिसमें प्रतिजैविक औषधि भी हो, इससे पशुओं के दूध को दुहने में सहायता मिलती है। द्वितीयक संक्रमण को रोकने के लिए अधिक समय तक कार्य करने वाली पेनिसिलिन इंटरमस्कुलर विधि से दें। पशु ठीक हो जाने पर, जीवन भर के लिए तो नहीं परंतु वर्षों तक के लिए रोग मुक्त हो जाता है। अतः वैक्सीन की ना तो आवश्यकता होती है और न ही लगाई जाती है। यह रोग अधिकतर कम पशुओं में ही होता है। मनुष्य में चेचक की रोकथाम हेतु जिस वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है वह गायों की चेचक के विषाणु से ही बनाई जाती है।
रोग की रोकथाम एवं बचाव
- रोगी पशुओं को अलग कर देना चाहिए।
- रोगी पशुओं को अंत में दुहना चाहिए।
- ग्वाला रोगी पशुओं का दुग्ध निकालने के पहले एवं बाद में अपने हाथों को पोटेशियम परमैंगनेट के 1: 1000 के घोल से अवश्य धुले।
- जिन मनुष्यों के हाल ही में चेचक का टीका लगा हो अथवा चेचक हो गई हो उन्हें पशुओं के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए।
- रोगी पशु के नीचे बच्चों को दूध नहीं चूसने देना चाहिए। साफ सफाई का समुचित ध्यान देना आवश्यक है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
मेरी गया के दोनों पैरों मे चेचक हो गया है और दोनों पैर भी सूझ गया है। इसका कुछ घरेलु उपाय बताये 🙏🙏🙏🙏🙏🙏😭😭😭😭😭प्लीज़🐄🐄🐄🐄🐄
मेरी गाय को दोनों पैरों में चेचक् हो गया है इसका घरेलु उपाय कुछ बताये मेडम।
मेरी gay ko pata ni lsd rog ya चेचक kya ho gya samjh me hi ni aa raha tretment lagatar ho rahi but sudhar ni ho raha kaise hoga
मनुष्यों पर रोग ग्रस्त गाय का दुध पीने से क्या कोई असर होता है
Meri gai ke pure sarir pe dhafad ho gye ho or 2 din se uth bi nhi paa rhi h upay bataye
इस लेख में बीमारी के बारे में जानकारी और प्राथमिक उपचार के बारे ने जानकारी दी गयी है। कृपया अपनी गाय को अपने निकटतम पशुचिकित्सक को दिखाएं।
मेरी गाय को पूरा शरीर पर चेचक हो गया है और दो पैर सुज गया है ।कोई उपाय बताएं जिससे मेरी गाय ठीक हो जाए ।
very nice information