पशुधन के प्रति अमानवीय व्यवहार, क्रूरता तथा संगरोध हेतु सुरक्षा अधिनियम एवं कानून

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पशुपालन का भारतीय अर्थव्यवस्था में अत्यधिक योगदान है। पशुपालन, पशुपालक के परिवार को खाद्य सामग्री जैसे माँस, दूध, अंडा इत्यादि उपलब्ध कराने के अतिरिक्त रोज़गार एवं आय भी प्रदान करता है। पशुपालक, पशुयों का उपयोग सिर्फ खाद्य सामग्री में ही नहीं बल्कि पशु के गोबर से उपले बनाकर ईंधन में, गोबर की खाद से खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाने में, खेतों की जुताई में एवं बोझा ढोने में भी उपयोग करते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि पशुपालक, पशु की मौलिक आवश्यकता एवं क्षमता को नज़र अंदाज़ करके लगातार उसका उपयोग उत्पादन लेने एवं खेती संबंधी कार्य करने में लगा रहता है। पशु के प्रति ऐसा व्यवहार करने से पशु के उत्पादन एवं उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसके कारण पशु बीमार रहने लगता है और अंतत: पशु की मृत्यु हो जाती है। कभी-कभी तो व्यक्ति भी किसी दूसरे व्यक्ति से दुश्मनी निकालने के लिए पशु को अपनी चपेट में लेकर उसे अत्यधिक हानि पहुँचा देते हैं। पशु के प्रति इस निर्दयतापूर्ण व्यवहार एवं क्रूरता पर लगाम कसने के लिए सरकार ने पशु के कल्याण एवं सुरक्षा के लिए कानून एवं अधिनियमों का निर्माण किया है। इस बात को बहुत ही कम लोग जानते हैं कि किसी भी पशु पर अनैतिक अत्याचार एवं क्रूरता एक दंडनीय अपराध है। पशु पर अत्याचार एवं क्रूरता को रोकने के लिए वर्ष 1962 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड पशुयों पर हो रहे विभिन्न अत्याचार एवं क्रूरता की निम्नलिखित तरीके से व्याख्या करता है।

पशु पर विभिन्न अत्याचार एवं क्रूरता

  1. पशु की पिटाई करना, लात मारना, पशु के ऊपर आवश्यकता से ज़्यादा भार रखना, पशु की हत्या करना इत्यादि।
  2. बीमार, घायल, चोटिल पशु से कार्य लेना।
  3. पशु को हानिकारक/नुकसानदायक औषधि देना।
  4. पशु एवं पक्षियों का दर्दनाक तरीके से यातायात करना।
  5. पशु-पक्षी को अपर्याप्त स्थान/कम जगह वाले पिंजरे में रखना।
  6. पशु को अनुचित तरीके से/ज़्यादा भार वाली ज़ंजीर से बांधकर रखना।
  7. जानबूझकर पशु को बेसहारा छोड़ना एवं भूख से प्रताड़ित करना।
  8. बगैर आवश्यकता के पशु के अंग-भंग विकृत करना।

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने पशुयों के उचित कल्याण के लिए मुख्य रूप से पाँच मौलिक स्वतंत्रतायों का वर्णन किया है जोकि इस प्रकार से हैं

  • पशुयों का भूख एवं प्यास से बचाव। साफ एवं स्वच्छ पानी की व्यवस्था, उचित स्वास्थ्य एवं उसके औजस्व के लिए सम्पूर्ण खुराक
  • पशुयों को आराम के लिए उचित व्यवस्था, जैसे अनुकूल वातावरण एवं पशु बाड़ा और आरामदायक क्षेत्र
  • पशुयों का किसी दर्द, घाव एवं बीमारी से बचाव
  • पशुयों को अपने सामान्य व्यवहार को अभिव्यक्त करने की सम्पूर्ण आज़ादी
  • पशुयों का किसी भय एवं खतरे से पूर्ण बचाव

पशुयों के प्रति अमानवीय व्यवहार एवं क्रूरता के वर्णन के लिए हम इसे कई वर्गों में बाँट सकते हैं, जैसे :

कार्य न करने वाले पशुयों पर अमानवीय व्यवहार

  1. पशुपालक, पशुयों को उन्ही दशायों में भरपूर चारा एवं राशन देते हैं जब वे दुग्ध अवस्था में होते हैं एवं उनसे कृषि कार्य लिया जाता है। अन्य पशुयों को या इन्हीं पशुयों को अन्य अवस्था में सुविधायों से वंचित रखा जाता है।
  2. जब पशु दुग्ध अवस्था में न हों एवं इनसे कृषि कार्य न लिया जा रहा हो उस स्थिति में पशुयों को आवश्यकता से कम चारा एवं राशन का दिया जाना, जिसके फलस्वरूप कमज़ोरी के कारण पशु की कार्यक्षमता घट जाती है। पशुपालक कार्य लेते समय पशुयों को चाबुकों से पीटकर उन्हें चोट पहुँचाते हैं।
  3. दर्दनाक तरीके से पशुयों के पैरों में खुरी बांधना एवं उनका बधियाकरण किया जाना।
  4. बोझा ढोते समय एवं गाड़ियाँ खींचते समय पशुयों की पिटाई करना या पशुयों को क्षमता से अधिक बोझा ढोने के लिए विवश करना इत्यादि पशु के प्रति अमानवीय व्यवहार एवं क्रूरता है।

उत्पादन कर रहे पशुयों पर अमानवीय व्यवहार

  1. दूध न उतारने की स्थिति में पशु की पिटाई करना।
  2. पशुयों को यातायात करते समय उनकी पिटाई करना एवं उन्हें कम जगह में ज़्यादा से ज़्यादा भरकर वाहन द्वारा दूसरे स्थान पर भेजना।
  3. वाहन में ले जाते समय छोटे एवं बड़े पशुयों को तथा कई पशुयों को आपस में बांधना।
  4. यातायात के समय रोशनदान, आद्रता एवं ऊष्मा का विशेष प्रावधान न रखना।
  5. धार्मिक रीतियों के कारण पशुयों का माँस हेतु कष्टदायक एवं दर्दनाक तरीके से वध किया जाना।
  6. पशु को वधस्थल तक तेज़ी से पहुँचाने के लिए तेज़ धार वाली छड़ी पशु की गुदा/योनि में डालकर प्रताड़ित करना।
  7. वधशाला में युवा पशुयों को नियंत्रित करने के लिए उनकी आगे की टांगों को तोड़ना तथा अधिक पशु ढोने के लिए पशुयों की टांगें तोड़ देना जिससे वाहन में कम जगह में अधिक पशु आ सकें।
  8. कभी-कभी पशुपालक एवं पशु व्यापारी जानबूझकर पशु को चोट पहुंचाते हैं, जैसे गर्दन एवं टांग की हड्डी का तोड़ना, पशु के अयन को चोट पहुंचाना, योनि या गुदा को किसी छड़ी द्वारा चोट पहुंचाना आदि ।
और देखें :  खुरपका मुँहपका रोग (एफ.एम.डी.) के लक्षण एवं बचाव

मुर्गियों पर अमानवीय व्यवहार

मुर्गियों को कम आकार वाले दड़बे में पालने के कारण मुर्गियाँ अपने पंख पूरी तरह से नहीं फैला पाती हैं। इस व्यवस्था से मुर्गियों की हड्डियाँ बहुत ज़्यादा लचीली एवं भुरभुरी हो जाती हैं और मुर्गियाँ शारीरिक तौर पर कमज़ोर हो जाती हैं। मांसदेही मुर्गियों में वृद्धिदर बहुत तीव्रता से होती है तथा इनके विभिन्न अंगों को अपनी वृद्धि के साथ फर्श पर उचित स्थान नहीं मिल पाता जिसके कारण अधिकतर छ: सप्ताह की आयु में मुर्गियाँ अपंग हो जाती हैं और हृदय गति रुकने के कारण मुर्गियों की मृत्यु भी हो जाती है।

मुर्गियों को ज़बरदस्ती/बलपूर्वक पानी में डुबोकर पंखों का निर्मोचन किया जाना ताकि वह कम समय में दोबारा अंडा उत्पादन की स्थिति में आ सकें। निर्मोचन की इस क्रिया का मुर्गी के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है एवं कई बार इसके कारण मुर्गियों में मृत्यु भी हो जाती है जो कि उसके अत्यधिक शारीरिक तनाव के कारण होता है।

पशु एवं पक्षियों की उचित देखभाल एवं कल्याण हेतु मानक 

पशुयों पर क्रूरता को कम करने के लिए आवश्यक है कि वे सभी वाहन अथवा गाड़ियाँ जिनमें पशुयों द्वारा बोझा ढोया जाता है एवं हल जिससे खेतों की जुताई की जाती है, उन्हें एक वैज्ञानिकता के मापदण्ड के अनुसार बनाना चाहिए। ऐसा करने पर पशु से अधिक कार्य लिया जा सकता है व पशु पर होने वाली क्रूरता जैसे चाबुक द्वारा पिटाई आदि को कम किया जा सकता है। इसके अलावा पशु से अच्छा उत्पादन लेने के लिए पशु को उचित आहार एवं राशन की आवश्यकता होती है।

वधशाला में पहुँचने से पहले होने वाले पशुयों के रखरखाव में तत्परता, वहाँ पर मौजूद व्यक्तियों की पशुयों के प्रति सहनशीलता एवं धैर्य आदि का पशु पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। पशुयों का उचित रखरखाव एवं यातायात में सावधानियों से उत्पादक, वाहक व संसाधनकर्ता की आर्थिक हानि को कम किया जा सकता है।

पशुधन के उचित कल्याण हेतु महत्वपूर्ण दिशानिर्देश

पशुयों के आकार एवं उसके शारीरिक भार के अनुसार यह निश्चित किया जाता है कि कौन सा पशु कितना भार ढो सकता है। इसके लिए पशुयों को अधिक भार वाला पशु (जिसका वज़न 350 कि.ग्रा. से अधिक हो), मध्यम भार वाला पशु (जिसका वज़न 250-350 कि.ग्रा. के बीच हो) एवं छोटे भार वाला पशु (जिसका वज़न 250 कि.ग्रा. से कम हो) आदि वर्गों में बांटा जाता है। बोझा खींचने के अनुसार पशुयों का वर्गीकरण नीचे दिया गया है:

पशु गाड़ी के प्रकार पशु द्वारा ढोया जाने वाला अधिकतम भार, जिसकी सरकारी अनुमति है
छोटे बैल या भैंस दो पहिये की गाड़ी जिसमें 1. बाल बेरिंग लगी हो 1000 कि.ग्रा.
2. टायर में हवा भरी हो 750 कि.ग्रा.
3. बिना हवा भरा टायर 500 कि.ग्रा.
मध्यम साइज़ के बैल या भैंसे दो पहिये की गाड़ी 1. बाल बेरिंग युक्त 1400 कि.ग्रा.
2. हवा वाले टायर युक्त 1050 कि.ग्रा.
3. बिना हवा भरा टायर 700 कि.ग्रा.
बड़ा बैल या भैंसा दो पहिये की गाड़ी 1. बाल बेरिंग युक्त 1800 कि.ग्रा.
2. हवा वाले टायर युक्त 1350 कि.ग्रा.
3. बिना हवा भरा टायर 900 कि.ग्रा.
घोड़ा या खच्चर दो पहिये की गाड़ी 1. हवा युक्त टायर 750 कि.ग्रा.
2. बिना हवा युक्त टायर 500 कि.ग्रा.
छोटा घोड़ा दो पहिये की गाड़ी 1. हवा युक्त टायर 600 कि.ग्रा.
2. बिना हवा युक्त टायर 400 कि.ग्रा.

निम्नलिखित पशु नीचे दिये गए भार से अधिक भार अपनी पीठ पर नहीं ढो सकते हैं । इससे अधिक भार ढोना कानूनन अपराध है।

पशु अधिकतम भार पशु अधिकतम भार
एक छोटा बैल या भैंसा 100 कि.ग्रा. खच्चर 100 कि.ग्रा.
मध्यम साइज़ का बैल या भैंसा 150 कि.ग्रा. गधा 50 कि.ग्रा.
बड़ा बैल या भैंसा 175 कि.ग्रा. ऊंट 520 कि.ग्रा.
छोटा घोड़ा 70 कि.ग्रा.

इसके अतिरिक्त भार खींचने एवं भार पीठ पर ढोने वाले पशुयों के उपयोग के लिए परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं:

  • कुल मिलाकर एक दिन में 9 घंटे से अधिक किसी भी पशु से कार्य नहीं लेना चाहिए।
  • एक दिन में छ: घंटे से अधिक किसी भी पशु से बगैर आराम दिये कार्य नहीं लेना चाहिए।
  • जब दोपहर का तापमान 12 से 3 बजे तक 370 सेल्सियस से अधिक हो तो पशु से कार्य नहीं लेना चाहिए।
और देखें :  एकटिनोमाइकोसिस/ लंपी जबड़ा/ रे फंगस बीमारी

पशुयों पर क्रूरता को कम करने के लिए निम्नलिखित मानक अपनाने चाहिए : –

  1. पशुयों का वधशालायों तक लंबी दूरी से पैदल चलाकर लाना प्रतिबंधित होना चाहिए।
  2. ट्रकों द्वारा सुचारु रूप से पशुयों का यातायात करने के लिए उनकी टायरों की संख्या बढ़ाकर वाहन की क्षमता बढ़ानी चाहिए ताकि पशुयों को एक जगह से दूसरी जगह आराम से ले जाया जा सके।
  3. यातायात के दौरान पशुयों की पीड़ा को कम करने के लिए आहार, राशन एवं पशु-चिकित्सा की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
  4. मांसदेही मुर्गियों की मुर्गी फार्म में एक अधिकतम संग्रहण क्षमता निश्चित होने के साथ-साथ उसका अनुपालन भी होना चाहिए।
  5. मुर्गी पालन में बैटरी पद्धति को नहीं अपनाना चाहिए।
  6. पशु एवं पक्षियों के उचित कल्याण हेतु नए क़ानून बनाने चाहिए एवं पुराने क़ानूनों में संशोधन होना चाहिए ताकि पशुयों पर क्रूरता को रोका जा सके।
  7. पशुयों को उपयुक्त आहार देना चाहिए जिसमें उपयुक्त आहारीय ख़ुशबू तथा सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद हों क्योंकि अच्छे गुणयुक्त पशु आहार से आहार की पोषकता एवं पाचकता बढ़ती है। यदि पशु आहार किसी विटामिन अथवा खनिज लवण से रहित है तो पशु स्वास्थ्य में कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो जाती है। पशु के आहार कल्याण के लिए उसमें कैल्शियम, फौस्फोरस, पोटाशियम, सोडियम, सल्फर, मैग्नीशियम व सेलेनियम इत्यादि का होना आवश्यक है। इन सभी खनिज लवणों की पशु आहार/राशन में कमी से पशुयों में बहुत सी बीमारियाँ हो जाती हैं जैसे, आंध्रता रोग, दुग्ध ज्वर, हड्डियों का कमजोर होना, कम वृद्धि दर, रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी, अनीमिया, थायराएड, पाचकता का कमजोर होना, पुन: उत्पादन क्षमता में कमी होना इत्यादि।

पशुयों के बेचने में कुप्रथा/अनाचार 

पशु के उचित कल्याण के लिए भारत सरकार ने विभिन्न कानून बनाए हैं ताकि पशु पर हो रहे अत्याचारों पर लगाम कसी जा सके। पशु पर अत्याचार उसके विपणन के समय भी होते हैं जोकि भारतीय दंड संहिता 420 अनुभाग के तहत कानूनी जुर्म है। इसलिए आवश्यक है कि पशु को बेचने से पहले सामान्य स्वास्थ्य परीक्षण करा लेना चाहिए जैसे कि ब्रूसेलोसिस के लिए एग्लुटिनेशन परीक्षण, क्षय रोग के लिए ट्यूबरकुलिन परीक्षण, अश्वों में ग्लैन्डर के लिए मैलिन परीक्षण, शारीरिक स्त्रावों, मूत्र, गोबर आदि का परीक्षण।

पशु क्रूरता के विरुद्ध क़ानूनों का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) के अंतर्गत निम्नलिखित क़ानूनों का प्रावधान है जिसकी मदद से पशु पर क्रूरता करने वाले व्यक्ति को सज़ा दिलाई जा सकती है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित अनुभाग (सेक्शन) रखे गए हैं:

अनुभाग 44: इसके अंतर्गत पशु को असंवैधानिक तरीके से पहुंचाई गई चोट (शरीर, मस्तिष्क पर) आती है।

अनुभाग 270: इसके अंतर्गत उन सज़ायों का प्रावधान है जब व्यक्ति पशुयों में बुरी नीयत से संक्रामक बीमारियाँ फैलाता है जिसके कारण किसान को क्षति पहुँचती है।

अनुभाग 284: इस अनुभाग के अंतर्गत उस व्यक्ति को सज़ा देने का प्रावधान है जब व्यक्ति जानबूझकर पशु को ज़हर आदि देकर नुकसान पहुंचाता है।

अनुभाग 326: व्यक्ति जब किसी यंत्र आदि की सहायता से अथवा आग द्वारा और अन्य गर्म औज़ार से अथवा ज़हर देकर अथवा विस्फोटक पदार्थों द्वारा पशु को मौत के घाट उतारना चाहता है, तब उस व्यक्ति को सज़ा इस अनुभाग के तहत दी जाती है।

अनुभाग 377: जब कोई व्यक्ति प्रकृति के विरुद्ध किसी पशु के साथ लैंगिक संबंध बनाता है तो उसे सज़ा इस अनुभाग की संस्तुति पर दी जाती है।

अनुभाग 429: जब कोई व्यक्ति किसी पशु जैसे हाथी, ऊंट, घोड़ा, खच्चर, भैंस, गाय को मारना चाहता है, ज़हर देता है, उसे अनुपयोगी बनाता है, ऐसी परिस्थिति में उस व्यक्ति को सज़ा इस अनुभाग के अंतर्गत दी जाती है।

अनुभाग 430: जब पशु के लिए पीने के पानी की जानबूझकर आपूर्ति बंद की जाती है, इस स्थिति में व्यक्ति को इस अनुभाग के अंतर्गत सज़ा दी जाती है।

पशुपालक पशु के प्रति क्रूरता एवं अत्याचारों के विरुद्ध कहाँ शिकायत करें ?

ज़िला स्तर पर पशु क्रूरता रोकथाम सोसाइटी (एस.पी.सी.ए.) होती है, जिसमें ज़िला न्यायाधीश, पुलिस अधीक्षक, उपनिदेशक पशु पालन, पशु चिकित्साधिकारी एवं अन्य सदस्य होते हैं। अगर किसान के पशु को किसी अन्य व्यक्ति ने किसी तरह की चोट, हानि या फिर किसी प्रकार की बीमारी फैलाने का प्रयास किया है, तो इस संबंध में किसान इसकी सीधी शिकायत एस.पी.सी.ए. में कर सकता है। इसकी सीधी शिकायत नजदीकी पुलिस स्टेशन में भी की जा सकती है, जिसमें पुलिस विभाग, पशु चिकित्सक द्वारा जांच कराकर, पशु पर क्रूरता करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज कराकर सज़ा दिलवाता है।

और देखें :  पशु के शव (मृत शरीर) का निस्तारण/ कारकस डिस्पोज़ल

दूसरी ओर बीमारी से ग्रस्त पशु का वध करना, यातायात में वाहन द्वारा अपेक्षा से अधिक पशुयों का भरना, संक्रामक बीमारी से ग्रस्त पशु को बाज़ार में माँस आदि के लिए बेचना, स्वस्थ एवं उपयोगी पशु को माँस के लिए बेचना, पशु की क्षमता से अधिक भार या बोझा वाहन में भरकर चलाना आदि भी कानूनी अपराध हैं। इस तरह की क्रूरता को रोकने के लिए पशु चिकित्सक एवं पुलिस विभाग की अहम भूमिका होती है । कानून का सही पालन होने से बहुत से दुधारू पशु एवं कम आयु के पशु को माँस हेतु कटने से बचाया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त विदेशों से आए पशुयों द्वारा बीमारियों को रोकने के लिए भारत सरकार ने पशु संगरोध एवं प्रमाणीकरण की स्थापना की है, जिसका कार्य है कि विदेशों से पशु-पक्षियों द्वारा आई बीमारियों जैसे स्वाइन फीवर, मैरेक्स रोग, अफ्रीकन हॉर्स सिकनेस, मुर्गियों में एवियन माइकोप्लाज़्मोसिस, इन्फेक्शियस लैरिंज्योट्रक्याटिस, इन्फेक्शियस ब्रौंकाईटिस, एवियन लिस्टीरिओसिस आदि की रोकथाम हेतु देश के प्रमुख बन्दरगाहों पर इन संगरोध केन्द्रों की स्थापना की है, जो नई दिल्ली, अटारी, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई एवं कोची में हैं। इन सभी संगरोध केन्द्रों पर पशु एवं पक्षियों को विभिन्न बीमारियों के लिए विभिन्न अवधि तक रखा जाता है।

पशुयों को बेचने के लिए, पशुयों को वाहन द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए, बीमारी निवारण के लिए एवं अन्य उद्देश्यों के लिए पशु चिकित्सक द्वारा पशुपालकों एवं पशु व्यापारियों तथा अन्य को प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं जोकि कानूनी तौर पर वैद्य होते हैं।

पशुयों के उचित कल्याण के लिए आवश्यक है की पशुपालकों का पशु कल्याण विषय में ज्ञान बढ़ाया जाए। किसान को यह ज्ञान होना चाहिए की पशु को विभिन्न कार्यों के लिए कितना राशन/आहार दिया जाना चाहिए, पशु को घूमने के लिए कितना स्थान होना चाहिए एवं पशु को संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए कौन-कौन सी औषधियाँ एवं टीके उपलब्ध हैं। पशुपालक को पशु कल्याण के लिए निर्मित कानून, अधिनियम आदि में भी शिक्षित करने की आवश्यकता है जिससे वह अपने पशु की रक्षा एवं सुरक्षा हेतु समय पर कानूनी मदद प्राप्त कर सके। पशु कल्याण में सुधार लाने के लिए आवश्यक है कि जनता में जागरूकता उत्पन्न की जाए। पशु कल्याण मानक के लिए पशुयों की मौलिक आवश्यकतायों का ज्ञान, मौलिक आवश्यकतायों को पूर्ण करने हेतु स्त्रोत एवं संसाधन की उपलब्धता होना अति आवश्यक है ताकि पशुयों को एक सक्षम प्रबंधन प्रदान किया जा सके, क्योंकि उचित कल्याण मानक के अधीन पाले गए पशुयों का स्वास्थ्य उत्तम होगा, उनसे प्राप्त उत्पाद अच्छे गुणों वाले होंगे जैसे दूध-पनीर, माँस, ऊन, चमड़ा एवं अंडा इत्यादि। इसके लिए पशु चिकित्सकों को भी प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है ताकि पशु कल्याण कार्यक्रम सुचारु रूप से सम्पूर्ण भारत में चलाये जा सकें।

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